मल्टीब्रांड एफडीआई यानी हर ब्रांड में ‘फुल दादागिरी इनकी’!

इक़बाल हिंदुस्तानी

यू पी ए यानी ‘उल्टी पुल्टी ऐबदार’ सरकार आजकल पांच साल के ठेके पर चल रही है। सरकार के पास बहुमत है। वह अपने बहुमत से कुछ भी कर सकती है। उसने मल्टीब्रांड एफडीआई यानी हर ब्रांड में ‘‘फुल दादागिरी इनकी’’ का फंडा अपनाया है तो आपके पेट में दर्द क्यों हो रहा है। अन्ना हज़ारे ने पिछले दिनों सरकार ख़ासतौर पर बेचारी जलेबी की तरह सीधी सादी कांग्रेस को बदनाम किया कि ये लोग बेईमान हैं। सरकार की शराफत का इससे बड़ा नमूना क्या होगा कि उसने एक पूर्व सैनिक और बुजुर्ग गांधीवादी को तो तिहाड़ भेजकर हाथों हाथ रिहा कर दिया लेकिन सारे फसाद की जड़ टीम अन्ना के सदस्यों को एक एक कर बारी बारी से सबक सिखाना शुरू कर दिया। अरे भैया सरकार नाम के एवरेस्ट से टकराओगे तो चोट तो लगेगी ही। केजरीवाल से नौ लाख रुपये इनकम टैक्स के नाम पर जमा करा लिये तो किरण बेदी के खिलाफ एनजीओ में गड़बड़ी के आरोप में मुकद्मा दर्ज करा दिया। उधर कुमार विश्वास के कालेज के प्रबंधतंत्र को पता नहीं सरकार ने क्या पट्टी पढ़ाई वह बेचारे कोर कमैटी से ही विश्वास खो बैठे। अब बारी आई है उस जनता की जिसने अन्ना के आंदोलन में बहुत बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था। जनता यह समझ रही थी कि अन्ना और उनकी टीम को तो सरकारी अधिकारी और मीडिया वाले पहचान लेंगे लेकिन उन लाखों लागों का सरकार क्या कर लेगी जिनका यही नहीं पता कि वे कौन थे और कहां से आये थे? अब पता चला कि सरकार से पंगा लेने का क्या मतलब होता है? पहले तो महंगाई बेतहाशा बढ़ाकर जनता को उसके हाल पर छोड़ दिया गया अब मल्टीब्रांड में एफडीआई। समझे बच्चू इसे कहते हैं कि सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे। एक तरफ अपने अंकल सैम यानी अमेरिका खुश दूसरी तरफ सरकार अपने पांच साल के मनमानी के लाइसंस के हिसाब से लूट का काम कर रही है। अब चिल्ला रहे हैं कि वालमार्ट, कारफोर और टेस्को जैसी डायनासोर जैसी मल्टीनेशनल कम्पनियां देश में आकर हमको कच्चा चबा जायेंगी। सरकार की बला से। अब रोते रहो कि देश के छह करोड़ लोग खुदरा कारोबार से हाथ धो बैठेंगे। अरे सरकार को क्या? सरकार ने ठेका ले रखा है कि कोई साबुन से हाथ धोये या रोज़गार से या अपनी जान से उसे तो हर हाल में अमेरिका को खुश रखना है। एक बात और देश के 77 प्रतिशत लोग 20 रुपये रोज़ से कम पर गुज़ारा कर रहे हैं उन्होंने सरकार का क्या बिगाड़ लिया? अच्छे बच्चे की तरह बेचारे अपने भाग्य को रो रहे हैं। नौकरी और दवाई के लिये झाड़फूंक करने वाले ओझाओं और बाबाओं के पास दौड़ते रहते हैं। मजाल है कि कभी सरकार को इस कंगाली या दिवालियापन के लिये कसूरवार माना हो ? रहे ये लाला लोग सरकारी इंस्पेक्टरों को मासिक शुल्क वसूलने में बहुत तंग करते थे। अब बड़ी बड़ी कम्पनियां आयेंगी तो ज़ाहिर है कि उनका बजट भी बड़ा होगा। अभी उन्होंने भारत में लॉबिंग करने के लिये मात्र 62 करोड़ डॉलर ख़र्च किया है जिससे उनकी मंुहमांगी मुराद पूरी हो गयी अब वे सरकार, मंत्रियों और सांसदों के बाद राज्यों के विधायकों को साधने के लिये जो ‘कुछ ज़रूरी’ कदम उठाने होंगे उठायेंगी। सरकार, उसका यूपीए और गैंग की सरगना कांग्रेस जानती है कि इस देश में चाहे जितना शोर मचे लेकिन चुनाव में इन बातों का कोई असर नहीं पड़ता। सरकार को पता है कि जनता की याददाश्त कमजोर होती है। लाला लोग बातें बहुत करते हैं। वोट डालने घर से निकलते नहीं हैं जिससे हर क्षेत्र में फुल दादागिरी इनकी यानी सरकार की मनमानी और लूट आगे भी चलती रहेगी। जिन लोगों को यह गलतफहमी है कि शायद भाजपा अगर सत्ता में होती या आ जाये तो यह दिन नहीं देखना पड़ेगा उनको अपनी खुशफहमी समय रहते दूर कर लेनी चाहिये क्योंकि लंका में सब 52 गज़ के होते हैं। अगर भूल गये हों तो याद करें कि जिस भाजपा ने 13 दिन की सरकार बनते ही अपने आक़ा अमेरिका को खुश करने के लिये एनरान जैसी बिजली बनाने वाली दुनिया की बदनाम कम्पनी को मान्यता तब दी थी जबकि उसका बहुमत भी सिध्द नहीं हुआ था। मतलब समझे श्रीमान जी बुश अंकल को यह जताना था कि आप हम से इतना परहेज़ न करें हम और कांग्रेस पार्टी एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं इस मामले में। अब बेचारे कम्युनिस्ट चिल्लाते रहें कि यूपीए एनडीए पूंजीवादी सोच के हैं उनको सत्ता में न लाकर हमें लाओ लेकिन बेचारी जनता को अच्छी तरह समझा दिया गया है कि ये कम्युनिस्ट नहीं कामनष्ट होते हैं इन नास्तिकों को सरकार बनाने का मौका दिया तो धर्म ख़तरे में पड़ जायेगा। सो यह ख़तरा भी ख़त्म। अब रहा सवाल ममता दी और अम्मा जी का तो उनकी क्या कौड़ी उठती हैं। बोल तो बहन मायावती जी भी रहीं हैं कि यूपी की फिर से सीएम बनी तों राज्य में एक भी मल्टीब्रांड स्टोर नहीं खुलने दूँगी। खैर उनको यह ज़ेहमत नहीं उठानी पड़ेगी क्योंकि जनता उनसे पांच साल में ही इतनी खुश हो चुकी है कि अब उससे उनका विकास और प्रगति सहन नहीं हो रही इसलिये सारे समीकरणों के बावजूद उनको किसी कीमत पर बहुमत नहीं मिलेगा। कई बार दूध से जली भाजपा छाछ से डरकर उनको सीएम बनाकर आत्महत्या करने से रही। सपा और कांग्रेस तो जीते जी उनको सपोर्ट करने की सपने में सोच भी नहीं सकती। लेदेकर दलबदलू लोकदल के भाईसाहब अजित सिंह इस हालत में होंगे नहीं कि बहनजी की सरकार बनवाकर अपनी ही बिरादरी की गालियां खायें। भ्रष्टाचार से लेकर महंगाई के मामले में पीएम से लेकर मिनिस्टर तक यूपीए सरकार का जो खुली लूट का रूख़ अब तक सामने आया है उससे यह दावे से कहा जा सकता है कि उसको खुदरा बाज़ार में विदेशी निवेश से अब किसी कीमत पर नहीं रोका जा सकता। वह पूरी तरह कारपोरेट सैक्टर और अमेरिका की एजंट की तरह बेशर्मी और ढीटता से काम कर रही है। जहां तक ममता दी का सवाल है वह अपने बंगाल के लिये बड़ा पैकेज लेकर पहले पेट्रोल मूल्यों में बढ़ोत्तरी पर आग बबूला होने बाद ठंडी होने की तरह चुप्पी साध जायेंगी। अम्मा के बोलने का कोई खास फर्क पड़ना नहीं है फिर भी अगर नहीं मानी तो आय से अधिक सम्पत्ति का मामला और सीबीआई अभी ज़िंदा है।यही हालत द्रमुक और समाजवादी पार्टी की है। सब दलों और नेताओं की जय हो। इस जनविरोधी और अक़्ल की दुश्मन सरकार पर हास्य व्यंग्य के विख्यात शायर नाज़ नहटौरी का एक शेर याद आ रहा है-

जिंदों की भूख प्यास की बिल्कुल फिकर नहीं,

और मुर्दां के वास्ते तू क़ब्र में घुसा पड़ा।।

Previous articleआप तो मर ही जाओ ।
Next articleकौन सी प्रेस, किस की आज़ादी?
इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

3 COMMENTS

  1. मल्टीब्रांड एफडीआई .इन रिटेल सेक्टर का मामला सरकार ने क्या उठा दिया ,सब लगे उसकी ताल पर नाचने .ऐसे लोग अपनी मूर्खता और गलत फहमी के कारण भले ही वाल मार्ट जैसीकम्पनियों की तुलना ईस्ट इंडिया कंपनी से करने लगे,पर यह उतना बड़ा मुद्दा नहीं है,जिस पर लोग भ्रष्टाचार और जन लोक पाल बिल के मुद्दे को भी भूल कर बहश में मसगूल हो जाएँ ,पर सरकार को जनता की मूर्खता का पता था,इसीलिये वह इस मुद्दे को उस समय लाई जब जन लोक पाल बिल का मुद्दा फिर से गरमाने लगा था.
    कांग्रेस सरकार और पार्टी की बहुत सोची समझी चाल के अंतर्गत ऐसा हो रहा है.पहले तो अप्रैल में अन्ना के अनशन के साथ ही वे लोग तुरत अन्ना हजारे के साथ समझौता करने को तैयार हो गए.बीच में जब बाबा रामदेव मैदान में आये तो उनको लगा यह तो एक विरोधी दल तैयार हो गयाऔर उनके स्वागत के लिए हर तरह की सीमा का उल्लंघन कर गए,पर जब उनको पता चला कि ये तो उनसे भी एक कदम आगे जा रहेहैं और सीधा सीधा हमारे आकाओं के विदेशी तिजोरी पर हाथ डालना चाहतेहैं तो जल्दी से जल्दी उनसे पीछा छुडाने के चक्कर में जालियांवाला काण्ड की पुनरावृति में लग गए.फिर उन्होंने संयुक्त कमीटी की बैठक कोमजाक बना दिया,क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि अन्ना हजारे अब उतना जन समर्थन नहीं जुटा सकेंगे ,जितना उन्होंने अप्रैल में जुटाया था.पर उनके पैरों तले जमीन खिसक गयी जब उन्होंने अगस्त का नजारा देखाऔर फिर समझौते के लिए तैयार हो गए.पर उनके मन में खोट तो था ही,जैसा संसदीय समिति की अंतिम मसौदे से जाहिर होता है. .इस बार वे कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहते थे. विदेशी पूंजी निवेश के प्रति जनता के अज्ञान और समवेदंशिलता का अनुचित लाभ उठाते हुए उन्होंने इस बिल को संसद में पेश कर दिया और लोग लगे नाचने उनकी ताल पर .ऐसे मैं बार बार लिख चूका हूँ कि रिटेल सेक्टर में विदेशी कंपनियों के प्रवेश से जनता को न केवल अनाप सनाप मुनाफा कमाने वालों से निजात मिलेगा,बल्कि उन्हें नकली और मिलावटी सामन से भी छुटकारा मिल जाएगा.भारत के अतिरिक्त अन्य कोई देश नहीं है जहां रासायनिक दूध मिलता हो या नकली खोया या नकली औषधियां मिलती हो.मसालों में घोड़े की लीद चाय पत्तियों में चमड़े के टूकडे आदि मिलाया जाना तो आम बात है.
    भारत के लोग जिस तरह विदेशों में अपना व्यापार जमाये हुए हैं ,उससे तो नहीं लगता कि वाल मार्ट जैसी कंपनियों के आने से हमारे ईमानदार व्यापारियों के व्यापार पर कोई असर पड़ेगा,पर बेईमानों का जनाजा अवश्य निकलेगा.

  2. पहले दशक में जब वालमार्ट आयोवा (IOWA) राज्यमें आया था, राज्यसे
    ५५५ किराना दुकाने। 555 grocery stores,
    २९८ अवजारों की दुकाने 298 hardware stores
    २९३ मकान गढने की सामग्री की दुकाने 293 building supply stores
    १६१ विविध वस्तुओं की दुकाने161 variety stores
    १५८ महिला वस्त्र दुकाने158 women’s apparel stores,
    ११६ दवाइ की दुकाने116 drugstores
    १११ पुरूष वस्त्र दुकाने 111 men’s and boys’ apparel stores
    बंद पडी थी।(Source: Iowa State University Study

  3. सीएनबीसी आवाज पर आज एफडीआई के पक्ष में और सरकार के निर्णय के बचाव में सांसद संजय निरुपम का यह तर्क हास्यास्पद है कि (अन अर्गनाईज सेक्टर) खुदरा बाजार के बिचौलिया ९० % मुनाफा हजम कर जा रहे है एफडीआई को लाकर श्री संजय निरुपम और उनकी सरकार इसी को रोकना चाह रहे है. हमारा मानना है कि अगर बिचौलिए ऐसा कर रहे है तो यह संजय निरुपम और उनकी सरकार के नीतियों का दोष है खुदरा व्यवसाय में लगे हुए लोगों का नहीं. मेरा संजय जी से सीधा सवाल है कि मनमोहन सरकार क्यों बिचौलियों के ९०% मुनाफे को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के झोली में डालना चाहती है ? एक बिन माँगी सलाह भी है, निरुपम जी आप मनमोहन सरकार की एफडीआई के मामले में डूबती नाव से उतर कर उन मतदाताओं के बारे में सोचिये जिन्होंने आपको सांसद बनाया है. !!! वर्ना आप भी डूब जायेंगे !!! इक़बाल हिंदुस्तानी
    के जनपक्षधरता युक्त लेख के लिए साधुवाद

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here