मुरारी बापू का जादू मुसलमानों के सिर चढ़ा

0
642

murati-bapuललित गर्ग-

भारत की राजनीति के शीर्ष व्यक्तित्व श्री नरेन्द्र मोदी जिस तरह दुनियाभर में भारत को एक नई पहचान देने के लिये प्रयत्नशील है उससे भारत राजनीतिक दृष्टि से एक महाशक्ति बन कर उभर रहा है। इनदिनों राजनीतिक ही नहीं, आध्यात्मिक जादू भी दुनिया के सर चढ़कर बोल रहा है। ऐसा लग रहा है भारत दुनिया का आध्यात्मिक नेतृत्व करने की अपनी पुरानी छवि को वापिस पाने के लिये तत्पर है और इसका ताजा उदाहरण है श्री मुरारी बापू की हाल की युनाइटेड अरब अमीरात में हुई श्री राम कथा का प्रसंग। जब मुस्लिम देश में न केवल श्री राम के जयकारे लगे, बल्कि समूचा परिवेश श्री राममय हो गया। यह एक अद्भुत एवं चमत्कारी घटना ही कहा जायेगा, जब मुसलमानों के सिर पर भारत के श्रीराम की भक्ति के निराले और अनूठे रंग उभरे।
आजकल मुरारी बापू आबू धाबी में राम कथा कर रहे हैं और कुछ दिन पहले उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था जब उनको धन्यवाद देने से पहले आबूधाबी के शेख ने मजहब के सारे नियम ताक पर रखकर कहा था – जय सिया राम। धार्मिक जगत के इतिहास में संतश्री मोरारी बापू इन शताब्दियों का एक दुर्लभ व्यक्तित्व है। उनकी जीवनगाथा भारतीय चेतना का एक अभिनव उन्मेष है, आश्चर्यों की वर्णमाला से आलेखित एक कालजयी अभिलेख है। उसे पढ़कर हर कोई नये उच्छवास, नई प्रेरणा और नई प्रकाश शक्ति का अनुभव करता है और इसका उदाहरण है मुसलमानों की रामभक्ति ।
मुरारी बापू का जीवन और उनके उपदेश तनावों की भीड़ में शांति का संदेश हैं। अशांत मन के लिए समाधि का नाद हैं। चंचल चित्त के लिए एकाग्रता की प्रेरणा हैं। विचारों में द्वैत में सापेक्ष दृष्टिकोण हंै। संघर्ष के क्षणों में संतुलन का उपदेश हैं। मोरारी बापू ऐसी संत चेतना है जो स्वयं जागृत है और सबके भीतर सत्य का आलोक बिखेरने का प्रयास करते हैं। वे जगत को श्रीराममय बनाने में जुटें हैं। ये मुरारी बापू का जादू ही है जो उन्हें राम कथा के लिए इस्लामिक देश में भी बुलाया जाता है। ये कुछ मुट्ठीभर संत ही है जो भारत की वसुधैव कुटुम्बकम की परंपरा को जीवित रखे हुए हैं। सोशल मीडिया पर वायरल हुए हाल के चित्र में युनाइटेड अरब अमीरात के सुल्तान जनाब अब्दुल बिन जायद की बेगम साहिबा के सर पर श्री रामचरित मानस हैं। दुबई में श्री मोरारी बापू की राम कथा के दौरान खुद शाही खानदान ने इस ग्रन्थ का पूजन किया हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव का इससे आदर्श, प्रेरक और चमत्कारी उदाहरण और क्या होगा।
इस चमत्कार को घटित करने वाले एवं सम्पूर्ण मानवता के सामने अपने अप्रतिम, अलौकिक व अखण्ड ज्ञान की पताका फहराने वाले मोरारी बापू अपने विशिष्ट अंदाज में रामकथा का रसास्वादन करवाते हैं। देश-विदेश के लाखों लोगों को जीवनदर्शन का सही मार्ग बताने वाले बापू का जन्म 25 सितम्बर, 1946 के दिन महुआ के समीप तलगारजा (सौराष्ट्र) में वैष्णव परिवार में हुआ। तलगारजा से महुआ वे पैदल विद्या अर्जन के लिए जाया करते थे। 5 मील के इस रास्ते में उन्हें दादाजी द्वारा बताई गई रामायण की 5 चैपाइयाँ प्रतिदिन याद करना पड़ती थीं। इस नियम के चलते उन्हें धीरे-धीरे समूची रामायण कंठस्थ हो गई। यही कारण है कि रामचरित मानस बापू के जीवन में रच-बस गयी। विद्यार्थी जीवन में उनका मन पढ़ाई के अभ्यास में कम, रामकथा में अधिक रमने लगा था। बाद में वे महुआ के उसी प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक बने, जहाँ वे बचपन में विद्यार्जन किया करते थे, लेकिन बाद में उन्हें अध्यापन कार्य छोड़ना पड़ा, क्योंकि रामायण पाठ में वे इतना डूब चुके थे कि समय मिलना कठिन था।
रामचरित मानस को सरल, सहज और सरस तरीके से प्रस्तुत करने वाले 62 वर्षीय बापू की सादगी, रामभक्ति एवं आध्यात्मिक निष्ठा का कोई सानी नहीं है। उन्हें हम वर्तमान का तुलसीदास कह सकते हैं। पूरे विश्व में श्रीराम का धुआंधार प्रचार किया एवं सुमधुर राम नाम को विश्वव्यापी बना दिया है। वे भारतीय दर्शन, अध्यात्म, संस्कृति के संरक्षक एवं ऋषि परम्परा के जीवंत स्वरूप, उसके प्रतिनिधि, शाश्वत दिव्य शक्ति हैं। वे वैदिक संस्कृति के शाश्वत मूलाधार है।
श्रीराम का चरित्र भारतीय जनमानस के बहुत करीब रहा है, लेकिन मोरारी बापू की वाणी में सुनते हुए यह कथा और भी अद्भुत और हृदयग्राही बन जाती है। उनके मुख से श्रीराम के गुणगान सुनना साक्षात् राम के चरित्र का साक्षात्कार करने जैसा है। राम के जीवन के बारे में तो सब जानते हैं, लेकिन पता नहीं बापू की वाणी में ऐसा कौन-सा जादू है, जो श्रोताओं और दर्शकों को बाँधे रखता है। वे कथा के जरिये मानव जाति को सद्कार्यों के लिए प्रेरित करते हैं। सबसे बड़ी खासियत तो यह है कि उनकी कथा में न केवल बुजुर्ग महिला-पुरुष मौजूद रहते हैं, बल्कि युवा वर्ग भी काफी संख्या में मौजूद रहता है। न केवल हिन्दू बल्कि विभिन्न सम्प्रदाय के लोग भी बडे़ चाव से इसका रसास्वादन करते है। वे न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी मानव उत्थान और उन्नयन के लिए रामकथा की भागीरथी को प्रवाहित कर रहे हैं। वे समस्त उपनिषदों, भगवतादि पुराणों, ब्रह्मसूत्र, रामायण आदि के बारे में धाराप्रवाह बोलते हैं तो सभी श्रोता उनके प्रवचन सुनकर- चाहे टी.वी. के माध्यम से, चाहे व्यक्तिगत रूप से वे हृदय से स्वीकार करते हैं कि ऐसी अलौकिक प्रतिभा संपन्न विद्वान आज तक नहीं हुआ।
भारत सदा से विश्व का आध्यात्मिक गुरु रहा है और आज भी है। समस्त महान मनीषी, साधु-संत, त्रिकालदर्शी ऋषि और मुनियों को जन्म देने का सौभाग्य भारत को ही मिला है। इसी शृंखला में बापू एक ऐसा व्यक्तित्व है जो व्यष्टि और समष्टि को प्राण देने में समर्थ है। उन्होंनेे कभी स्वयं में कार्यक्षमता का अभाव नहीं देखा। क्यों, कैसे, कब, कहां जैसे प्रश्न कभी सामने आए ही नहीं। हर प्रयत्न परिणाम बन जाता कार्य की पूर्णता का, इसीलिए उनका जीवनवृत्त कहता है कि श्रीराम की भक्ति संकल्प देती गई और मुरारी बापू उन्हें साधना में ढालते रहे। उनके पुरुषार्थ ने उन लोगों को जगाया है जो सुखवाद और सुविधावाद के आदी बन गये हैं और संबोध दिया है उन लोगों को जो जीवन के महत्वपूर्ण कार्यों को कल पर छोड़ देने की मानसिकता से घिरे हैं जबकि जीवन का सिर्फ सच यही क्षण है, जीवन का सत्य पुरुषार्थ है। वे श्रीराम को जीवनशैली बनाने के अभियान पर हैं, वे रामराज्य चाहते हैं । उनका मानना है कि श्रीराम ईश्वर हैं, पर उससे पहले सफल, गुणवान और दिव्य मनुष्य है। संयत, संतुलित और निजी सुखों को त्याग कर न्याय और सत्य का साथ देने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम का सम्पूर्ण जीवन अनुकरणीय है। केवल श्रीराम को उपदेश तक सीमित करना बापू के प्रवचनों का ध्येय नहीं है। वे चाहते हैं कि हम रोजमर्रा का कामकाज किस तरह मैनेज करते हैं, उसमें श्रीराम झलकने चाहिए। हमारा नेतृत्व कैसा है, रिश्तों पर हमारा कितना यकीन है, दूसरों की भावनाओं को हम कितनी तवज्जों देते हैं- इन सबमें श्रीराम का जीवन सामने आना चाहिए। खुद में सिमटे रहे तो ‘राम’ की तरह देवत्व प्राप्त करना छोडिये, ‘आम’ आदमी भी न रह सकेंगे।
मोरारी बापू का जीवन संयम, सादगी, त्याग और समर्पण का विलक्षण उदाहरण है। उनका दिखावा और प्रदर्शन में विश्वास नहीं है। कथा करते समय वे केवल एक समय भोजन करते हैं। उन्हें गन्ने का रस और बाजरे की रोटी काफी पसंद है। वे वसुधैव कुटुम्बकम एवं सर्वधर्म समन्वय के प्रेरक है। आप समस्त धर्मों, परम्परपराओं एवं संस्कृति के समन्वय को महत्व देते हैं। भौतिकवाद एवं अध्यात्मवाद के समन्वय के सिद्धांत में भी आपका पूर्ण विश्वास था। सर्वधर्म सम्मान की लीक पर चलने वाले मोरारी बापू की इच्छा रहती है कि कथा के दौरान वे एक बार का भोजन किसी दलित के घर जाकर करें और कई मौकों पर उन्होंने ऐसा किया भी है। बापू ने जब महुआ में स्वयं की ओर से 1008 रामायण का पाठ कराया तो पूर्णाहुति के समय हरिजन भाइयों से आग्रह किया कि वे निःसंकोच मंच पर आएँ और रामायण की आरती उतारें। तब डेढ़ लाख लोगों की धर्मभीरु भीड़ में से कुछ लोगों ने इसका विरोध भी किया और कुछ संत तो चले भी गए, लेकिन बापू ने हरिजनों से ही आरती उतरवाई। सौराष्ट्र के ही एक गाँव में बापू ने हरिजनों और मुसलमानों का मेहमान बनकर रामकथा का पाठ किया। वे यह बताना चाहते थे कि रामकथा के हकदार मुसलमान और हरिजन भी हैं। बापू की रामकथाओं का उद्देश्य है- धर्म का उत्थान, उसके द्वारा समाज की उन्नति और भारत की गौरवशाली संस्कृति के प्रति लोगों के भीतर ज्योति जलाने की तीव्र इच्छा।
मुरारी बापू असाम्प्रदायिकता के प्रेरक एवं आध्यात्मिक मूल्यों के अधिष्ठाता हैं। सृजनात्मक दृष्टि, सकारात्मक चिन्तन, स्वच्छ भाव, शिवंकर शक्ति एवं क्रांतिकारी दृष्टिकोण से प्रभावित करने वाले युगद्रष्टा ऋषि है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here