हिन्दू-मुस्लिम एकता की दिशा में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच

muslim rashtriy manch
वीरेन्द्र सिंह परिहार
भारतीय मुसलमानों को छद्म धर्म निरपेक्षतावादियों के साथ अलगाववादी एवं अराष्ट्रीय तत्वों के संजाल से बाहर निकाल कर उन्हें राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल करने के लिए वर्ष 2002 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की स्थापना की गई। जो कि अब इस दृष्टि से एक राष्ट्रीय आन्दोलन बन चुका है, जो भारत को विश्व-नेता बनाने की दिशा में तो कार्यरत है ही, साथ ही इस बात के लिए भी प्रयासरत है कि इस देश के मुसलमान खुले दिल-दिमाग वाले, संकीर्णताओं और कट्टरता से उबरकर भारतीय मुस्लिम बन सकें। दोनों समुदायों के एक तबके में सदैव ही यह सोच रही कि भारतीय मुसलमानों के पूर्वज संस्कृति, परम्पराएॅ, भाषा और रीति-रिवाज हिन्दुओं की तरह ही हैं। सिर्फ इस देश के मुसलमानों ने कुछ ऐतिहासिक और सामाजिक बाध्यताओं के चलते अपनी पूजा पद्धति को बदल दिया था। लेकिन पूजा पद्धति बदल जाने से वह अपने पूर्वजों और परम्पराओं से पूरी तरह अलग नहीं हो गए। भारत में मुस्लिम शासन का काल मात्र 800 वर्षों का है और यह सभी शासक विदेशी थे, जिन्होंने हिन्दुओं के साथ देशी मुसलमानों पर भी शासन किया।
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच पहला ऐसा संगठन है, जिसने मुसलमानों को इस बात का एहसास कराया कि इस देश में उनका वैसा ही वास्ता है जैसे हिन्दुओं का। इस तरह से उन्हें अपना अल्पसंख्यक चरित्र छोड़कर एक राष्ट्र, एक जन धारणा पर विश्वास करते हुए राष्ट्र की मुख्य धारा में शरीक हो जाना चाहिए। दिसम्वर 2002 में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच द्वारा आयोजित ईद मिलन समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तात्कालिक सरसंघ चालक श्री के.एस. सुदर्शन ने मुस्लिम विद्वानों के समक्ष यह सवाल उठाया था कि इस्लाम का अर्थ शांति एवं सुरक्षा है, लेकिन आज इस्लाम हिंसा, आतंक और कट्टरता से सम्बद्ध हो चुका है। ऐसी स्थिति में क्या हम सबकी यह सामूहिक जिम्मेदारी नहीं कि हम सभी आतंक, हिंसा और कट्टरता का नकाब हटाते हुए इस्लाम का सही चेहरा प्रस्तुत करें। शुरुआती दौर में सुदर्शन जी के मार्गदर्शन के पश्चात् जम्म-कश्मीर में संघ का कार्य करने वाले इन्द्रेश कुमार ने मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का दायित्व संभाला, संक्षेप में एम.आर.एम. को कुशलता पूर्वक निर्देशित करते रहे। जिसका नतीजा यह है कि एम.आर.एम. देश के 25 राज्यों के 325 जिलों में देश और देश के बाहर फैल चुका है, इसकी सदस्यता बीस लाख तक पहंुच चुकी है। इसमें महिला शिक्षा, प्रबुद्ध वर्ग, मीडिया, सेवा, उलेमाओं, गौ-संरक्षण एवं युवकों में केन्द्रित है तथा इन क्षेत्रों में कार्य करने के लिए प्रकोष्ठ गठित हैं।
एम.आर.एम. की ओर से पहला बड़ा कार्यक्रम 2007-2008 में स्वतंत्रता संग्राम की 150वीं वर्षगांठ मनाने का किया गया। इसके साथ ही एम.आर.एम. ने एक नई शुरुआत करते हुए शब-ए-बरात में शहीदों को नमन करने का किया। एम.आर.एम.ने जम्मू-कश्मीर में अमरनाथ आन्दोलन को लेकर एक निश्चित स्टैण्ड लेते हुए हजरत निजामुद्दीन (दिल्ली) से हजरत बल के लिए 2009 में यात्रा निकाली। इसी तरह से आयोध्या में उलझे राम मंदिर आंदोलन को लेकर भी उसके समाधान का प्रयास किया गया। 2009 में 200 इस्लामिक विद्वानों और उलेमाओं की बैठक कर यह तय किया गया कि राम मंदिर का मुद्दा सच्चाई के आधार पर तय किया जाना चाहिए।
जिहाद के नाम पर जैसे विवेकहीन हिंसा हो रही, उसके विरोध में आवाज उठाने के लिए वर्ष 2009 में एम.आर.एम. द्वारा मुम्बई में तिरंगा-यात्रा निकाली गई, जिसमें पूरे देश के मुसलमानों ने शामिल होकर धर्म के नाम पर आतंक के विरोध में आवाज उठाई। अभी हाल में एम.आर.एम. द्वारा युवा जागृति फोरम का गठन इस उद्देश्य से किया गया कि आतंक के खतरों को समझा जा सके और युवकों को आई.एस.आई.एस. तथा आई.एस.आई. से दूर रखा जा सके। ऐसे ही जब जम्मू-कश्मीर को पूरी तरह से स्वायत्तता देने की बात आई तो एम.आर.एम. ने ‘‘हम हिन्दुस्तानी’’ जम्मू-कश्मीर हिन्दुस्तान के बैनर तले इसका विरोध करते हुए देशव्यापी आंदोलन किया। 18 दिसम्वर 2010 को पूरे देश के दस हजार मुसलमानों ने दिल्ली के ‘जंतर-मंतर’ में इस बात को लेकर धरना दिया कि कश्मीर में अलगाववादी धारा 370 समाप्त होनी चाहिए। एम.आर.एम. यहीं नहीं रुका, उसके द्वारा हस्ताक्षर अभियान चलाकर पूरे देश में मुसलमानों के 8-5 लाख हस्ताक्षर इकठ्ठे किए गए और कश्मीर में धारा 370 समाप्त करने के लिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को सौंपे गए। खुद प्रणब मुखर्जी इस बात से आश्चयचकित थे कि मुसलमानों का एक वर्ग कश्मीर में धारा 370 समाप्त करने का इच्छुक है। मुस्लिम बच्चों में शिक्षा का बढ़ावा देने के लिए एम.आर.एम. द्वारा एक आंदोलन की शुरुआत करते हुए यह नारा दिया गया कि ‘‘आधी रोटी खाएंगे, बच्चों को पढ़ाएंगे।’’ इसके द्वारा शहीद अशफाक उल्ला नेशनल मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना की गई, जिससे प्रतिभावान मुस्लिम छात्रों को उच्च शिक्षा में कोई समस्या न आए। एम.आर.एम. द्वारा पर्यावरण की दृष्टि से तुलसी की महत्ता को देखते हुए मुसलमानों को भी अपने घरों में तुलसी के पौधे लगाने के लिए प्रेरित किया गया और इस तरह से मुसलमानों के घरों में लाखों तुलसी के पौधे लगाए गए। अमूमन मुसलमानों को गौवध करने वाला माना जाता है, पर एम.आर.एम. ने पूरे देश में मुसलमानों के बीच इसके लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया कि गौ-बध बंद किया जाना चाहिए और इसके लिए 10-5 लाख मुस्लिमों के हस्ताक्षर जुटाए। वर्ष-2014 में ईद के अवसर पर जब महाराष्ट्र सरकार ने बारह हजार बैलों को काटने का आदेश दिया, तब एम.आर.एम. के गौ-संरक्षण प्रकोष्ठ ने इसे चुनौती देते हुए, इन जानवरों की जान बचायी। अभी हाल में ही एम.आर.एम. द्वारा हरियाणा के मेवात में मुस्लिम गो-पालक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें दस हजार मुसलमानों ने सहभागिता निभाई।
एम.आर.एम. के लिए मुस्लिम महिलाओं की स्थिति सैदव चिंता का विषय रही। इसके लिए एक महिला प्रकोष्ठ का गठन रेशमा हुसैन और शहनाज अफजल के संयोजकत्व में किया गया है। जैसा कि इस्लाम में कहा गया कि माँ के पैरों में जन्नत होती है, उसी के तहत एम.आर.एम. महिलाओं को प्राथमिकता देते हुए उनके सम्मान का पक्षधर है। इसके तहत मुस्लिम महिलाओं का पहला सम्मेलन 2004 में आयोजित किया गया तो दिसम्वर 2015 में अजमेर में आयोजित किया गया, इस सम्मेलन में मणिपुर से लेकर गुजरात, जम्मू-कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक की महिलाएॅ शरीक हुईं। इसमें बच्चियों को बचाने के लिए जागरुकता फैलाना, नारी सम्मान, घरेलू हिंसा समाप्त करने और नारी शिक्षा को महत्व देने के लिए अभियान चलाया जा रहा है। रक्षाबंधन पर्व को विशेष महत्व से मनाने का कार्य शुरू है, वर्ष 2014 में जयपुर के कार्यक्रम में मुस्लिम महिलाओं ने ही नहीं, पुरुषों ने भी इसमें भारी उत्साह दिखाया। ऐसे कार्यक्रमों के बल पर ही हिन्दू-मुस्लिम एकता कायम होने का रास्ता सच्चे अर्थों में खुलता है।
एम.आर.एम. के उलेमा सेल द्वारा लखनऊ में एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें 1500 उलेमाओं, मौलवियों, मुफ्तियों और इमामों ने भाग लेते हुए यह शपथ लिया कि भारत को दंगामुक्त, हिंसामुक्त और आतंक से मुक्त कर शांति, मातृत्व, प्रगति एवं समृद्धि की भूमि बनाएंगे। 2015 में दिल्ली में एम.आर.एम. द्वारा पहली अंतर्राष्ट्रीय रोजा इफ्तार पार्टी आयोजित की गई थी, जिसमें दिल्ली में रहने वाले सभी मुस्लिम देशों के प्रतिनिधि और राजदूत शामिल हुए थे। इस वर्ष भी 2 जुलाई को दिल्ली में रोजा इफ्तार पार्टी दी गई, जिसमें पाकिस्तान के राजदूत शरीक हुए। निस्संदेह इस तरह से एम.आर.एम. राष्ट्रीय विमर्ष में शरीक हो चला है। एम.आर.एम. के संयाजक मोहम्मद अफजल कहते हैं- ‘‘हमारा डी.एन.ए. हिन्दुस्तानी डी.एन.ए. है, हमारा बाबर, गजनी, गौरी सबसे कोई लेना-देना नहीं है। हम तो राम को मानने वाले हैं।’’ इस संबंध में एम.आर.एम. का कार्य देख रहे इन्द्रेश कुमार का कहना है- ‘‘मुसलमानों में देश में आने के साथ ही देशभक्त मुसलमानों की परंपरा है। जब बाबर ने राणा सांगा पर हमला किया तो हसन खाॅ मेवाती उनका प्रमुख सिपहसालार था, जो खानवाॅ की जंग में लड़ा। इसी तरह से जब अकबर ने राणा प्रताप पर हमला किया तो हाकिम खाॅ सूर हल्दी घाटी के युद्ध में हरावल दस्ते पर लड़ने वाला सेनापति था। औरंगजेब की कैद से शिवाजी की जान बचाने वाला एक मुस्लिम मदारी ही था। पहली गुरुवानी गाने वाला मर्दाना भी मुस्लिम था। श्री कृष्ण पर सबसे ज्यादा गीत रसखान द्वारा लिखे गए।’’ इन्द्रेश कुमार का यह भी कहना है- ‘‘बहुत से मुस्लिम 15 अगस्त और 26 जनवरी को मदरसों में राष्ट्रीय झंडा फहराते और राष्ट्रगान का गायन करते हैं।’’ वस्तुतः इन्द्रेश कुमार ने इस तरह से सांस्कृतिक आधारों पर हिन्दू-मुस्लिम एकता का जो पुल तैयार किया है, उसे अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिल रही है। इसी के तहत उन्हें स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय द्वारा वैष्विक शांति नेता बतौर सम्मानित किया गया। ऐसी स्थिति मे जब कामन सिविल कोड एक बड़ा मुद्दा बन चुका है और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष और अलगाववादी एवं कट्टरपंथी तत्व उसे मुसलमानों की पृथक पहचान से जोड़ते हैं, वहां मुस्लिम राष्ट्रीय मंच वास्तविक राष्ट्रीय एका की दृष्टि से कामन सिविल कोड का मुखर पक्षधर है।

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