राजनीति का शिकार मुसलमान

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अब्दुल रशीद 

यूं तो उत्तर प्रदेश का चुनावी मुद्दा भ्रष्टाचार सुशासन और विकास कहा गया लेकिन अक्सर राजनीति में होता वही जो कही नहीं जाती हुआ भी वही उत्तर प्रदेश के चुनाव में भ्रष्टाचार सुशासन और विकास जैसे आम जनता के ज्वलंत मुद्दे पर अपने को खड़ा करने में असफल राजनैतिक दलों का सुर बदल गया। और शूरू हो गया पुराना राग। अब राजनैतिक दल सांम्प्रदायिक भावनाओं को कुरेद कर अमानवीय राजनैतिक खेल खेलने का ताना बाना बुन रही है। सबसे दुःखद और चौकाने वाली बात यह है की स्वयं को धर्मनिरपेक्ष पार्टी का दावा करने वाली कांग्रेस के युवराज ने बाबरी मस्जिद पर बयान दे कर इस अमानवीय खेल कि शुरुआत की है। वहीँ भ्रष्टाचार पर बैकफुट पर पहंची बीजेपी मुसलमानों के आरक्षण के मामले को भुनाने को उतावली है।

भारत में मुसलमानों की हालत बद से बद्तर क्यों न हो लेकिन चुनाव के दौरान मुसलमान खास हो जाते हैं उत्तर प्रदेश के चुनाव के लिए तो बेहद खास। सबसे अहम सवाल यह है कि जब मुसलमानों के हालत पर दो रिपोर्ट आ चुकी है एक सच्चर कमेटी की रिपोर्ट जिसमें मुसलमानों के बद्दतर हालत को बताया गया है वहीँ दुसरी रिपोर्ट में उपाय बताया गया है। और यह रिपोर्ट सालो पहले आई है ऐसे में आज जब चुनाव सर पे है तब केन्द्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद का बयान कि सत्ता में आने के बाद मुसलमानों को 9फीसदी का आरक्षण दिया जाएगा का मतलब क्या? क्या वह अब तक सत्ता के बाहर थे? दरअसल यह युवराज और केन्द्रीय मंत्रि का ढोंग है मुसलमानों को ठगने का। जो आजादी के बाद वे अब तक करते आए हैं।

भारतीय राजनीति में राजनैतिक दल मुसलमानों को वोट बैंक के सिवा कुछ समझते ही नहीं चुनाव आते खास बना कर वोट ले लेते हैं और फिर अछूत समझकर दरकिनार कर देते हैं। लेकिन इन सबके लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो वे खुद हैं और उनके नाम पर राजनीति करने वाले नेता जिन्होनें कभी भी उन्हें देश कि मुख्यधारा से जुड़ने ही नहीं दिया, रही सही कसर कठमुल्लाओं ने पूरी कर दी उनका फतवा मानो पूरी कौम आजाद भारत में फतवे का गुलाम है। मुसलमानों को अगर इस तंग हाली से बाहर निकालना है तो खुद से सवाल करना होगा के क्या वे भीख लेना चाहते हैं या हक़। अगर हक़ लेना चाहते हैं तो उन ठग राजनेताओं को पहचानना होगा जो मजहब के नाम पर भाई को भाई से बांटते हैं और लालच देकर वोट खरीदने का अमानवीय खेल खेलते हैं।

चुनाव के बाद परिणाम क्या आएगा यह तो भविष्य के गर्भ में छुपा है लेकिन जरा सोंचिए अगर सत्ता ठगों के हाथ में चला जाएगा तो फुटपाथ पर बसेरा करने वालों का बसेरा कहां होगा?

4 COMMENTS

  1. एक शानदार लेख उस पर भाई इकबाल की टिप्पणी सोने पे सुहागा है.
    दर असल मुसलमानों के रहनुमा और उनके सेकुलर बिरादर चाहते ही नहीं है मुसलमान अपने दबदो से बाहर निकले. एक जमाने में मुसलमानों ने हिन्दुस्तान पे राज किया था. और सच्चर साहब की माने तो आज मुसलमानों के हालात अति पिछड़े लोगो से भी गए गुजरे हैं. पहला कारण: अपनी मजहबी सोच से बाहर नहीं निकलना, दूसरा कारण उसे वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करके दिल्ली की सत्ता हथियाने वाली कोंग्रेस खुद है.

  2. यूपी के चुनाव में मुसलमानों के ज़ख़्मों को कुरेदकर वोट लेने के लिये कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने फिर नाटक शुरू कर दिया है। 19 सितंबर 2008 को दिल्ली के बटला हाउस में पुलिस के साथ हुयी मुठभेड़ में वास्तव में हुआ क्या था? इस मामले की जांच को उलेमा काउंसिल के बैनर तले हज़ारों लोग दिल्ली के जंतर मंतर पर जमा हुए थे। इस मौके पर प्रदर्शनकारियों ने कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह को खूब खरी खोटी सुनाई। कुछ महीने पहले दिग्विजय सिंह ने यूपी के आज़मगढ़ ज़िले के संजरपुर गांव का दौरा किया था।
    0इसी दौरान उन्होंने बटला हाउस मुठभेड़ पर सवाल खड़े किये थे। आपको याद दिलादें कि इस एंकाउंटर मंे मारे गये दो संदिग्ध युवकों आतिफ़ अमीन और मौ0 साजिद का सम्बंध इसी गांव से हैं। पुलिस का दावा रहा है कि ये दोनों आतंकवादी थे और इनका तआल्लुक़ इंडियन मुजाहिदीन से था। पुलिस इनके तार 13 सितंबर 2008 के दिल्ली बम विस्फोट से भी जोड़ती रही है।
    0उलेमा काउंसिल के नेशनल प्रेसिडेंट मौलाना आमिर मदनी का आरोप है कि यह बात समझ से बाहर है कि सत्ताधरी दल का एक बड़ा नेता संजरपुर जाकर बटला हाउस मुठभेड़ पर सवाल खड़े करता है और यहां तक कहता है कि यह मुठभेड़ वास्तव में फर्जी़ ही थी, लेकिन दिल्ली में अपनी सरकार होने के बावजूद वह इस कांड की जांच तक नहीं करा पाते। उनका यह भी दावा रहा है कि उन्होंने अपनी हाईकमान सोनिया गांधी और पीएम मनमोहन सिंह को भी यह बात बता दी है लेकिन उनकी बात कोई सुनने को तैयार नहीं है।
    0 उलेमा काउंसिल ने इसका मतलब यह निकाला कि दिग्विजय सिंह केवल मुसलमानों का हमदर्द होने का ढोंग करते हैं। मदनी का सवाल है कि जो नेता मुसलमानों को खुश करने के लिये सिर्फ बयानबाजी करता हो उसके नाटक को क्या नाम दिया जा सकता है।
    0 उलेमा काउंसिल के जंतर मंतर पर प्रदर्शन मंे इस बार खास बात यह रही कि इसमें बड़ी तादाद में मुस्लिमों के साथ साथ हिंदुओं ने भी हिस्सा लिया। उनका यह दावा नहीं था कि बटला हाउस की मुठभेड़ को फर्जी माना जाये बल्कि उनकी यह मांग काफी लंबे समय से रही है कि इस कांड की न्यायिक जांच कराई जाये। इस मुठभेड़ में एक पुलिस इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा भी शहीद हुए थे। आज तक यह भी रहस्य ही बना हुआ है कि शर्मा की शहादत कैसे हुयी?
    0जब तक इस मामले की निष्पक्ष जांच न हो जाये यह दावे से नहीं कहा जा सकता कि यह मुठभेड़ फर्जी थी लेकिन यह भी सच है कि हमारी पुलिस की विश्वसनीयता भी ऐसी नहीं है कि उसके इस दावे को जैसा का तैसा मान लिया जाये कि मरने वाले दोनों युवक आतंकवादी ही थे। सब जानते हैं कि हमारी पुलिस अकसर किस तरह की मुठभेड़ें करती है और उनमंे से कितनी सच्ची होती हैं और कितनी झूठी? जहां तक सरकार के रिकार्ड का सवाल है उसके हिसाब से यह नहीं माना जा सकता कि वह ऐसे मामलों को दबाने का प्रयास नहीं करती।
    -इक़बाल हिंदुस्तानी, संपादक, पब्लिक ऑब्ज़र्वर, नजीबाबाद

  3. आरक्षण से पिछले छह दशक में दलितों का उद्दार नहीं हुआ … मुस्लिम तो इनकी नज़र में महज़ वोट बैंक हैं… आप ने बिलकुल ठीक कहा. .. काफी हद तक मुसलमान के पिछड़ेपन का कारन इनकी दकियानूसी सोच है. .. मुस्लिम समाज में कोई राजा राम मोहन राय या दयानंद सरस्वती नहीं हुआ जो इस समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ इन्हें जागृत कर स्वस्थ प्रगतिशील समाज बना दे.

  4. लेखक ने ठीक लिखा है की मुसलमानों की आज की हालत के लिए मुस्लमान खुद तथा उनका राजनीतिक शोषण करने वाले नेता जिम्मेदार हैं जो उन्हें ” मुख्यधारा” में नहीं आने देना चाहते. एम् एस सतयु की सत्तर के दशक में “गर्म हवा” फिल्म में एक शेयर था “साहिल से जो करते हैं मौजों का नजारा, उनके लिए तूफ़ान यहाँ भी हैं वहां भी हैं; मिल जाओगे धारा में तो बन जाओगे धरा, ये वक्त का ऐलान है जो यहाँ भी है वहां भी है”.बात पाकिस्तान और हिंदुस्तान के सन्दर्भ में थी लेकिन आज भी हिंदुस्तान के मुसलमानों की समस्या इसी बात से जुडी है की उनके रहनुमा उनको मुख्यधारा में मिलने से रोकते हैं जिसके कारण आलोचकों को उनकी अलगाववादी सोच का मुद्दा उठाने का मौका मिलता है.लगभग चालीस साल पहले उस समय के आर एस एस के सरसंघचालक श्री गोलवलकर जी (श्री गुरूजी) ने डॉ.सैफुद्दीन जिलानी से वार्ता में कहा था की वो ज्यादा से ज्यादा मुस्लिम लीडर्स से बातचीत का स्वागत करेंगे. लेकिन मुसलमानों के झूठे हमदर्दों ने उन्हें नजदीक नहीं आने दिया. यहाँ तक की पिछले कुछ सालों से संघ के वरिष्ट प्रचारक श्री इन्द्रेश जी मुस्लिम नेताओं से संवाद स्थापित करने का कार्य कर रहे है ताकि दोनों के बीच की गलतफहमियां दूर हो जाएँ और दोनों मिलकर मुल्क और अपना विकास कर सकें. लेकिन उनके मुसलमानों के नजदीक आने से बौखलाई केंद्र सर्कार ने हिन्दू आतंकवाद का झूठा हौवा खड़ा करके दोनों को दूर करने का षड़यंत्र किया है. अब ये मुस्लिम भाईयों को तै करना है की वो मुख्यधारा में मिलकर हिंदुस्तान की तरक्की में साझेदारी करते हुए अपने विकास के रस्ते पर आगे बढ़ना है या स्वयं को इन वोट बेंक के लालची नेताओं के हाथों धोखे का शिकार बनना है.

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