कहा जाता है कि प्रकृति अगर अपना रौद्र रूप धारण कर ले तो फिर मानव जीवन के लिए बहुत बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा। हमारे भारत में प्रकृति को सहेजने वाली कई इकाइयों को पूजनीय माना है। पूजनीय इसलिए भी है, क्योंकि यह जीवन दायिनी हैं। फिर चाहे देश में कल-कल बहती नदियां हों, या फिर हमारे आसपास धरती की शोभा बढ़ाने वाले पेड़ पौधे हों। सब मानव जीवन के लिए अत्यंत ही उपयोगी हैं। सभी जानते हैं कि प्राकृतिक वातावरण जितना मजबूत होगा, उतना ही जीवन के लिए लाभदायक होगा।
बिगड़ते मौसम की चाल को सुधारने के लिए जहां प्रकृति का संरक्षण आवश्यक है, वहीं व्यक्ति को अपनी भूमिका पर विचार करना भी अत्यंत जरूरी है। हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस प्रकार से मन की बात में देशवासियों से आहवान करते हुए कहा है कि जल हमारे जीवन के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण अंग है। यहां पर यह बात गौर करने वाली है कि जल केवल मनुष्य के लिए ही हितकारी नहीं, वरन पृथ्वी पर जितने भी जीवित प्राणी हैं, उन सभी के लिए जल की उपलब्धता बहुत जरूरी है। जल के बिना न तो हमें खाने के लिए भोजन उपलब्ध हो सकता है और न ही पेड़ पौधे जीवित रह सकते हैं। मई के विकराल मौसम में जल का महत्व समझना हो तो व्यक्ति एक या दो घंटे बिना पानी के रह कर दिखाए। उसे स्वत: ही जल का महत्व समझ में आ जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वास्तव में देशवासियों को भविष्य के आसन्न खतरे की आहट से सावधान करते हुए दिखाई देते हैं। परंतु सवाल यह आता है कि सरकारों द्वारा की गई अपील का देश के नागरिकों पर कितना प्रभाव पड़ता है। भारत के नागरिक जिस दिन भी इन गंभीर बातों पर अपना चिन्तन प्रारंभ कर दें तो समस्या का निवारण होते हुए देर नहीं लगेगी। पर विसंगति देखिए हम सभी लोग इतने कर्तव्यहीन हो गए हैं कि हम हर समस्या के लिए देश या प्रदेश की सरकार को आसानी से जिम्मेदार ठहरा देते हैं। ठीक है एक हद तक यह ठीक भी कहा जा सकता है, लेकिन इससे हमारे उत्तर दायित्व की पूर्ति नहीं होती। देश के प्रति हमारे भी कर्तव्य हैं। हम प्रकृति से जितना ग्रहण करते हैं, उसकी तुलना में प्रकृति की तुलना में हमारा योगदान क्या है। जीवन के संचालन का महत्वपूर्ण अंग पानी भी तो प्रकृति की अनमोल देन है। इसके अलावा हम जो सांस लेते हैं, वह भी प्रकृति का महत्वपूर्ण घटक है। हमें इस बात को समझना होगा कि इन प्राकृतिक वस्तुओं से केवल सरकार को ही जीवन नहीं मिलता, बल्कि हम सभी को जीवन प्राप्त होता है, फिर हम प्रकृति की रक्षा के लिए सरकार को ही क्यों कोसते दिखाई देते हैं। जब हम सभी को जीवन मिलता है तो हमारी भूमिका क्या होना चाहिए, इस पर गंभीरता पूर्वक विचार मंथन करने की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक आहवान किया है, उस आहवान का पालन करने की जिम्मेदारी हम सभी देशवासियों की है। आज हमें इस बात को लेकर गौरवान्वित होना चाहिए कि हमें एक ऐसा प्रधानमंत्री मिला है जो केवल देश और समाज के उत्थान की ही बात करता है। स्वयं के हित का परित्याग करते हुए प्रधानमंत्री जो काम कर रहे हैं, वह देश को उत्थान की ओर ले जाने का एक अतुलनीय प्रयास है।
हम जानते हैं कि इससे पूर्व की सरकारों के समय में प्रधानमंत्री और मंत्री एक राजा की तरह से व्यवहार करते दिखाई देते थे और जनता के हितों पर किसी भी प्रकार से कोई ध्यान नहीं दिया जाता था। मंत्री का सारा परिवार ही अपने आपको मंत्री ही समझने लगता था, जबकि इस सरकार में ऐसा कभी भी दिखाई दिया, यहां तक कि प्रधानमंत्री का आवास केवल प्रधानमंत्री के लिए ही है, उसके परिवार के लिए नहीं। इस सरकार ने ऐसा करके दिखाया है। ऐसी सरकार के प्रत्येक कार्य के लिए देशवासियों को आगे आकर समर्थन करना चाहिए। आज प्रकृति प्रदत्त पदार्थों के संरक्षण के लिए प्रधानमंत्री का आहवान देश की जनता के हित के लिए चलाया गया एक अभियान है, जिसे हर देशवासी को समझना चाहिए और प्रकृति के संरक्षण के लिए अपनी भूमिका का पालन करना चाहिए। यही समय की मांग है।
प्रकृति को संवारने की चेतना जगाने की पहल हम सभी को करना चाहिए। हमें जरा इस बात को सोचकर देखें कि आज हम जो भी फल खा रहे हैं, उस फल का उत्पादन करने में हमारा कितना योगदान है। हालांकि सत्य यह भी है कि जिस फल का हम सेवन करते हैं, वह पेड़ भी किसी ने लगाया ही होगा। समाज का कोई भी व्यक्ति जब पेड़ लगाना बंद कर देगा। तब हमारी स्थिति क्या होगी। हमें भोजन तक मिलना बंद हो जाएगा। मुझे दमोह जिले के एक गांव की घटना याद आती है, जिसमें एक व्यक्ति के प्रयासों ने पूरे गांव का नक्शा ही बदल दिया। इस गांव में आज न तो पानी की समस्या है और न ही वायु प्रदूषण की। इस गांव में सबसे बुजुर्ग तीन या चार लोगों ने सभी को इकट्ठा करके गांव को सुधारने की कार्ययोजना बनाई। जिसके तहत गांव में दो बड़े तालाबों का निर्माण खुद गांव के निवासियों ने अपने परिश्रम से किया। गांव के लोग उस तालाब पर हर महीने सफाई अभियान चलाते हैं। तालाब के चारों तरफ तीन लाइनों में लगी पेड़ों की श्रंखला ऐसे लगती है, जैसे किसी मनोरम स्थान पर पहुंच गए हों। अब यहां शहरों के लोग पिकनिक मनाने आते हैं। इन तालाबों के कारण ही गांव में जल की पर्याप्त उपलब्धता हो गई है। इसी गांव में खुद के प्रयासों से सड़क का निर्माण किया गया। यह उदाहरण मैंने इसलिए दिया कि हर व्यक्ति ऐसे काम कर सकता है, इसके लिए व्यक्ति को खुद आगे आना होगा। पहल करने से भारत के गांवों क्रांति का दौर प्रारंभ होगा, जो गांवों को उत्थान के रास्ते पर ले जाने में सहायक होगा।
कहा जाता है कि भारत गांवों का देश है। जरा कल्पना कीजिए कि जब यह वाकई गांवों का देश है, तब इस पर भी चिन्तन करने की आवश्यकता है कि आज हमारे देश के गांवों की हालत क्या है। आज तक किसी भी सरकार ने गांवों के उत्थान के बारे में नहीं सोचा, वह केवल शहरों के विकास तक ही सीमित रही है। भारत में बढ़ रहे शहरीकरण के चलते आज देश के गांव खाली होते जा रहे हैं। जब हम कहते हैं कि भारत गांवों का देश है, तब इस प्रकार से गांवों का उजडऩा क्या भारत को समाप्त करने का प्रयास नहीं है। यकीनन यह सत्य है कि आज हम भारत के मूल को समाप्त करने की दिशा में बढ़ रहे हैं। आज भारत के किसानों ने अपनी जमीन में अनावश्यक रसायनों का उपयोग करके भूमि को बर्बाद कर दिया है। कई स्थानों पर किसानों को इस सत्य से साक्षात्कार हुआ है और आज वह जैविक खेती की ओर अपने कदम बढ़ा चुके हैं। इस सबका संबंध कहीं न कहीं जल से भी जुड़ा हुआ है। जब हमारी खेती और जमीन पर हरियाली सही होगी, तब जल की उपलब्धता भी बनी रहेगी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में हमेशा यह प्रयास किया है कि उनकी बात सीधे किसानों तक पहुंचे। सरकार की योजना सीधे गांवों तक पहुंचेगी, तब किसान जागरुक होगा और भारत के सुखमय भविष्य का मार्ग तैयार होगा।