शौर्य और साहस जिसका अद्वितीय है ।
विज्ञान ज्ञान जिसका विश्व में अवर्णनीय है ॥
ताप त्याग साधना भी जिसकी अकथनीय है ।
संदेश सत्य का जिसकी पठनीय है ॥
मेरा वतन वही है ,मेरा वतन वही है …॥ १ ॥
मनु सा संविधानज्ञ जिसकी अमर है ख्याति ।
गौतम कणाद जैसे मुनिवर हैं जिसकी थाती ॥
गुरु वशिष्ठ,द्रोण जैसे जिसके धर्म के साथी ।
ये दुनिया जिनके अब तक झूम-झूम गीत गाती ॥
मेरा वतन वही है,मेरा वतन वही है …॥२ ॥
चाणक्य महामति से जिस पुण्य धरा पै विचरे ।
विदुर की पुण्य वाणी के मोती जहां बिखरे ॥
राम और कृष्ण जैसे महामानव जहां से गुजरे ।
पतंजलि ऋषि के जहां योग मोती बिखरे ॥
मेरा वतन वही है ,मेरा वतन वही है…. ॥३॥
महाराणा प्रताप जैसे हुए वीर जहां नायक ।
छत्रपति शिवाजी जिसकी है ध्वजा के वाहक ॥
ऋषि दयानन्द जैसे यहाँ है वेदो के उद्धारक ।
बुद्ध-गांधी जिसकी शांति के हैं प्रचारक॥
मेरा वतन वही है ,मेरा वतन वही है….॥४॥
कश्मीर जिसका सिर है कन्याकुमारी पग है ।
कंधार जिसकी बाजू कामरूप भी सजग है॥
हिन्दुत्व जिसकी धड़कन आर्यत्व ही धर्म है।
उस पुण्य भारत भू को ‘राकेश’ का नमन है ॥
मेरा वतन वही है ,मेरा वतन वही है… ॥५॥
विद्वान लेखक की कविता ने मुझे मनुस्मृति का बहुचर्चित श्लोक स्मरण करा दिया
” एतद्देशे प्रसूतस्य सकाशादाग्रजन्मनह
स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्प्रथिव्याम सर्व मानवाः ‘
क्या कभी ऐसा समय आयेगा की हम भारतवासी अपनी पुरानी प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त कर सकेंगे