pravakta.com
मेरी परछाईं ! - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
लगता है यूँ कभी मेरी परिमूढ़ परछाईं मेरी सतही ज़िन्दगी के साथ रह कर अब बहुत तंग आ चुकी है। अनगिन प्रश्न-मुद्राएँ मेरी सिकुड़ कर, सिमट कर पल-पल मेरी परछाईं को आकार देती किसी न किसी बहाने कब से उसको अपने कुहरीले फैलाव में बंदी किए रहती हैं जिसके धुँधलके…