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बडबडाहट......गाँधीजी कि पुण्यतिथि पर मेरी दो कड़वी कविताएँ - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
कई बार आदमी कुछ कहना चाहता है पर कुछ कह नहीं पाता,ये कुछ न कह पाना उसे बहुत कुछ कहने के लिए मथ देता है,उस वक़्त उस आदमी की स्तिथि त्रिसंकू की तरह होती है वो ''कुछ'' और ''बहुत कुछ'' के बीच ''कुछ नहीं'' को नकार कर खुद से ''कुछ-कुछ''…