रहस्मय बीमारी की सुनामी में फंसा मुजफ्फरपुर

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सुशासन का दंभ भरने वाली नीतीश कुमार की सरकार बिजली के मुद्दे पर पहले ही असफल हो चुकी है और अब स्वास्थ के मामले में भी नाकारा साबित हो रही है।
विगत 13 दिनों में बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में 59 बच्चों की मौत एक अज्ञात बीमारी से हो चुकी है। पहले इस बीमारी को जापानी इंसेफ्लाइटिस माना जा रहा था।
अब तक 62 सैंपल पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी को भेजे गए हैं। 22 सैंपलों की जाँच की जा चुकी है। गौरतलब है कि विशोषज्ञों ने जापानी इंसेफ्लाइटिस की पुष्टि नहीं की है। जाँच किये गये नमूनों से यह भी पता चला है कि बच्चे नीपा वायरस और चंदीपुरा वायरस से भी पीड़ित नहीं हैं।
शोष 40 सैंपलों के जाँच का काम अभी भी जारी है। कई तरह के सैंपल पुणे भेजे गए हैं, मसलनसीएसएफ (री़ की हड्डी की जाँच), ब्लड सैंपल इत्यादि। प्रभावित क्षेत्र के जद में रहने वाले पशु, चमगादड व मच्छड़ों के ब्लड सैंपल की भी जाँच की जा रही है।
स्वास्थ विभाग के प्रधान सचिव श्री सी के मिश्रा ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के विशोषज्ञों से मदद माँगी है। वहाँ के विशोषज्ञ अपनी तरफ से हर तरह की मदद भी मुहैया करवा रहे हैं। फिर भी अभी तक इस मामले की तह तक नहीं पहुँचा जा सका है।
हो सकता है कि ब्रेन टिश्यू के सैंपल की जाँच करने से इस बीमारी का पता चल जाए, पर इसके लिए सरकार को बीमारी को महामारी घोषित करना पड़ेगा। भारत में महामारी एक्ट सन् 1897 में भयावह व विकराल प्लेग को काबू में करने के लिए बनाया गया था। इस एक्ट के तहत सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वह रोग के रोकथाम के लिए रोगी के किसी भी अंग का सैंपल लेकर उसका जाँच करवा सकती है।
इस एक्ट में यह भी प्रावधान है कि बीमारी के संक्रमण को रोकने के लिए पीड़ित रोगी को अलग रखा जाए तथा उस स्थान पर विशोष साफसफाई का भी ध्यान रखा जाए।
उल्लेखनीय है कि जिले के कलेक्टर श्री संतोष कुमार मल्ल ने राज्य के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के पास इस आशय का प्रस्ताव भेजा है। श्री मल्ल मानते हैं कि इस अज्ञात बीमारी को महामारी घोषित करने से बीमारी के रहस्य को समझने में आसानी होगी।
फिलहाल डॉक्टर अशोक कुमार, डॉक्टर कृष्ण कुमार, डॉक्टर ब्रज मोहन, डॉक्टर अरुण साह और डॉक्टर राजीव कुमार जोकि शिशु विशोषज्ञ हैं एक टीम के रुप में पूरे जिले में अज्ञात बीमारी से लड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
जिलाधिकारीश्री संतोष कुमार मल्ल के अगुआई में 26 जून से 63 पीड़ित गाँवों में जबर्दस्त सफाई अभियान चलाया जा रहा है। इस तारतम्य में प्राथमिक स्वास्थ केन्द्रों में पदस्थापित बी ग्रेड की नर्सों व इलाके के सीडीपीओ को विशोष तौर पर पूरे घटनाक्रम पर निगाह रखने की हिदायत दी गई है। उल्लेखनीय है कि इन कवायदों की श्रंखला की अगली कड़ी के रुप में बुजुर्गों के स्वास्थ की जाँच भी करवाई जा रही है।
भले ही अभी तक अज्ञात बीमारी का पता नहीं चल सका है। लेकिन इस बात के कयास लगाये जा सकते हैं कि इस बीमारी का तार कहीं न कहीं गंदगी से जरुर जुड़ा हुआ है, क्योंकि अब तक सबसे अधिक मरीज मुसहरी से आये हैं। (मुसहरी उस स्थान को कहा जाता है, जहाँ मुसहर जाति के लोग निवास करते हैं) इस जाति के सदस्यों का रहनसहन बहुत ही गंदा रहता है। इनका मुख्य आहार चुहा व सुअर का माँस है। ये मूल रुप से मजदूरी व देशी शराब बेच करके अपना पेट पालते हैं।
यहाँ पर यह सवाल उठता है कि हर बार जिला प्रशासन पानी के सिर के ऊपर से गुजरने के बाद ही क्यों हरकत में आता है ? अगर प्रशासन अपने काम को सुनियोजित तरीके से करेगा तो इस तरह की महामारी से हमें शायद ही कभी रुबरु होना पड़े।
मुजफ्फरपुर को छोड़ दीजिए, राज्य की राजधानी पटना में भी सफाई की स्थिति दयनीय है। बेली रोड में ही दो मुसहरी स्थित हैं। पटना से दानापुर जाने के क्रम में एक आशियाना  मोड़ से 10 कदम आगे दायीं ओर है और दूसरा जगदेवपथ से पहले बायीं तरफ। दोनों जगह गंदगी का साम्राज्य है। बेली रोड पर ही अवस्थित खाजपुरा मोहल्ला में सत्तार मियाँ के कोल्डस्टोर के पीछे एवं बांसवाड़ी के पास कचड़ों का अंबार इस कदर से लगा हुआ है कि वहाँ कभी भी महामारी फैल सकती है। इनका जिक्र तो बानगी भर है। पटना नगर निगम टैक्स की वसूली करने में तो आगे है, किन्तु सफाई के मामले में पूरी तरह से फिसड्डी।
आज बिहार के किसी भी जिले के प्राथमिक स्वास्थ केन्द्रों पर, प्रखंड में या अनुमंडल स्तर पर पदस्थापित नर्स या डॉक्टर क्या ईमानदारी पूर्वक अपना काम कर रहे हैं ? काम तो दूर की बात है जनाब उनके पास जॉब नॉलेज तक नहीं है। कुछ स्वास्थकर्मियों को तो सूई तक लगाना नहीं आता है। वे दवाई का नाम न तो पॄ सकते हैं और न ही लिख।
इस तरह की नेगेटिव तस्वीर को पॉजिटिव में तब्दील करना नीतीश सरकार के लिए चुनौती के समान है। मुजफ्फरपुर में फैले अज्ञात बीमारी के फ्रंट पर फिलवक्त राज्य सरकार गंभीर नहीं लग रही है। सरकार के द्वारा इस अज्ञात बीमारी को महामारी घोषित करने से संभवत इस अज्ञात बीमारी के ईलाज में डॉक्टरों को मदद मिल सकती है। सुशासन बाबू को वाजिद अली शाह और नीरो बनने से बचना चाहिए, तभी जनता का विश्वास उन पर बना  रहेगा

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