रहस्यमयी सूर्य

sunपवन प्रजापति
उदय प्रताप इंटर कालेज, वाराणसी
तीक्ष्ण किरण के आदि अंत में
हे दिनकर! तुम हो अन्नत में
सौर कुटुम्ब के तुम आधार
शून्य जगत में निराकार ।।
अमिट अथाह उर्जाओं का श्रोत
अति उष्मा से ओत प्रोत
दुग्घ्ध मेखला के परितः चलायमान
अन्नत आकाश में उदियमान ।।
अंधकार है शत्रु तुम्हारा
संपूर्ण विश्व के तुम उजियारा
वृत सदृश्य आकार के हो तुम
प्रतिक्षण कम हो तम का अनुपम ।।
स्वर्णरश्मि किरणों का मान
खोजी कर रहे है अनुसंधान
रहस्यमयी है इतिहास तुम्हारा
जहाॅ नहीं हो सकता सुवास हमाारा ।।
पराबैगनी किरणों के श्रोत
प्रज्वलित है सदा एक ज्योति
उर्जा का अक्षय भंडार
नाम सदृश्य है दिव्य आकार ।।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here