नाबार्ड और वित्तीय समावेशन

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निधि चौधरीnabard

पिछले तीन दशकों से राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक अर्थात नाबार्ड वित्तीय समावेशन और समावेशी विकास की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है । वर्ष 1982 में नाबार्ड की स्थापना ग्रामीण विकास और कृषि के संवर्धन की दृष्टि से की गई और नाबार्ड ने ग्रामीण इलाकों में कार्य कर रहे वाणिज्यिक बैंकों की शाखाओं, सहकारी बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, भूमि विकास बैंकों, सूक्ष्म वित्त संस्थानों (Micro Finance Institutions) इत्यादि के लिए एक मार्गदर्शक, नियामक एवं प्रेरक बनकर ग्रामीण वित्तीय समावेशन के लिए अनेक योजनाएं एवं कार्यक्रम संचालित किए हैं । वर्ष 1992 से नाबार्ड के तत्वावधान में लागू एसएचजी-बैंक लिंकेज कार्यक्रम ने देश के गांव-गांव तक स्वयं सहायता समूहों की स्थापना एवं संवर्धन में योगदान दिया है । इसी प्रकार किसान क्रेडिट कार्ड, स्वरोजगार क्रेडिट कार्ड, व्यवसाय प्रतिनिधि इत्यादि के प्रसार में भी नाबार्ड अहम योगदान देता रहा है ।

 

नाबार्ड की स्थापना के उद्देश्य

नाबार्ड की स्थापना मुख्य रूप से कृषि और ग्रामीण विकास के उद्देश्य से की गई थी । इसके अलावा नाबार्ड की ग्रामीण विकास में भूमिका इस प्रकार है-

  • नाबार्ड ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि, लघु उद्योग, कुटीर और ग्रामीण उद्योगों के लिए ऋणों का प्रवाह सुनिश्चित करता है ।
  • नाबार्ड ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण के मामले में नीति, आयोजना और परिचालन से जुड़े सभी मामलों के लिए शीर्ष संगठन के रूप में कार्य करता है ।
  • नाबार्ड ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यकलापों के संवर्धन हेतु दिये जाने वाले संस्थागत ऋण जैसे अल्पावधि और दीर्घावधि ऋण के लिए एक पुनर्वितसंस्था के रूप में कार्य करता है ।
  • नाबार्ड ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न विकासात्मक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए निवेश और उत्पादन ऋण उपलब्ध कराने वाले संस्थानों के लिए वित्तपोषण की एक शीर्ष एजेंसी के रूप में कार्य करता है ।
  • नाबार्ड ग्रामीण इलाकों में विकास के कार्यों में लगी सभी संस्थाओं के कार्यों में समन्वय स्थापित करता है तथा भारत सरकार, राज्य सरकारों, भारतीय रिज़र्व बैंक एवं नीति निर्धारण के मामलों से जुड़ी अन्य राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं के साथा तालमेल स्थापित करता है ।
  • नाबार्ड अपनी पुनर्वित्त परियोजनाओं की निगरानी एवं मूल्यांकन का कार्य करता है ।
  • नाबार्ड ग्रामीण इलाकों में कार्य कर रही सूक्ष्म वित्त संस्थानों, सहकारी बैंकों इत्यादि की निगरानी, पर्यवेक्षण एवं प्रशिक्षण की दिशा में कार्य करता है ।
  • नाबार्ड द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय साक्षरता एवं ऋण सलाह प्रदान करने की दिशा में भी कार्य किया जाता है ।

 

नाबार्ड की वित्तीय समावेशन में भूमिका

नाबार्ड स्वयं सहायता समूहों, किसान क्लबों और अन्य सामुदायिक समूहों के माध्यम से वित्तीय समावेशन की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है । नाबार्ड ग्रामीण इलाकों में कई विकासात्मक और संवर्धनात्मक गतिविधियाँ करता है जिनसे वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिलता है । नाबार्ड द्वारा किए जा रहे कार्य जिनसे वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिलता है, का संक्षेप में विवरण नीचे दिया गया है-

 

नाबार्ड का वित्तीय समावेशन विभाग- वित्तीय समावेशन पर श्री सी. रंगराजन की अध्यक्षता में बनी समिति की सिफारिशों के आधार पर नाबार्ड में वित्तीय समावेशन विभाग की स्थापना की गई है जिसके द्वारा नाबार्ड के वित्तीय समावेशन सम्बन्धी कार्यों का समन्वय एवं निरीक्षण किया जाता है । यह विभाग भारत सरकार द्वारा स्थापित 500-500 करोड़ रुपए के कॉर्पस के साथ बनाई गई वित्तीय समावेशन निधि एवं वित्तीय समावेशन प्रौद्योगिकी निधि का भी संचालन करता है । इन निधियों में भारत सरकार, रिज़र्व बैंक एवं नाबार्ड द्वारा क्रमशः 40:40:20 के अनुपात में राशि दी जाएगी । वित्तीय समावेशन निधि के तहत जहाँ नाबार्ड बैंकिंग सुविधा विहीन लोगों, कम आय वाली निर्धन जनता एवं क्षेत्रों तक वित्तीय समावेशन की पहुंच स्थापित करने के लिए विकासात्मक एवं प्रोत्साहक गतिविधियां संचालित करता है वहीं वित्तीय समावेशन प्रौद्योगिकी निधि का इस्तेमाल वित्तीय समावेशन के लिए नवोन्मेष, नई प्रौद्योगिकी इत्यादि के विकास के लिए किया जाता है । इन निधियों के तहत अब तक नाबार्ड ने 339.61 करोड़ की राशि की परियोजनाएँ मंजूर की है (तालिका 1) ।

तालिका 1- वित्तीय समावेशन निधि एवं वित्तीय समावेशन प्रौद्योगिकी निधि के तहत मंजूरी

2008-09

2009-10

2010-11

2011-12

(सितम्बर 30, 2011)

अब तक कुल मंजूरी

(सितम्बर 30, 2011)

वित्तीय समावेशन निधि

1.30

18.36

19.00

52.37

91.03

वित्तीय समावेशन प्रौद्योगिकी निधि

4.22

17.08

101.11

126.17

248.58

कुल मंजूरी

5.52

35.44

120.11

178.54

339.61

स्त्रोत- नाबार्ड

 

नीति निर्माण- नाबार्ड ऐसी कार्यनीति विकसित करता है जिसमें स्वयं सहायता समूहों के संवर्धन के माध्यम से किफायती रूप से ऋण वितरण संभव हो सकता है ताकि ग्रामीण क्षेत्रों की गरीब और ऋण से वंचित जनता को औपचारिक बैकिंग सेवाएं उपलब्ध करायी जा सके । नाबार्ड ने यह नीति तय की है कि जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और अंडमान निकोबार द्वीप समूह में वित्तीय समावेशन के लिए चलाए जा रही परियोजनाओं को पूरा 100 प्रतिशत आर्थिक सहयोग प्रदान किया जाएगा । सी. रंगराजन समिति द्वारा रेखांकित किए गए 256 वित्तीय रूप से पिछड़े जिलों के अलावा उड़ीसा, आँध्रप्रदेश और झारखंड के दस नक्सल प्रभावित जिलों को भी वित्तीय समावेशन के मामले में प्राथमिकता दी जाएगी ।

 

वित्तीय साक्षरता में योगदान- नाबार्ड द्वारा वित्तीय साक्षरता के प्रसार हेतु लीड बैंकों द्वारा वित्तीय साक्षरता एवं क्रेडिट सलाह केन्द्र (Financial Literacy & Credit Counselling Centre- FLCC) खोलने को प्रोत्साहन दिया जाता है । मार्च 2012 तक देश में 429 एफएलसीसी खोले जा चुके हैं और आसाम, बिहार और राजस्थान के 9 जिलों में 3 लीड बैंकों को एफएलसीसी स्थापित करने के लिए नाबार्ड ने 46 लाख रुपए मंजूर किए हैं । पिछले साल एफएलसीसी का नाम बदलकर केवल वित्तीय साक्षरता केन्द्र (एफएलसी) कर दिया गया है तथा सभी 630 लीड बैंक प्रबंधकों के कार्यालयों पर वित्तीय साक्षरता केन्द्र खोलने का निर्देश दिया है । इसी तरह, नाबार्ड ने पेंशन फंड विनियामक प्राधिकरण (PFRDA) को असंगठित क्षेत्र में कार्य करने वाले कामगरों के लिए बनाई गई नई पेंशन योजना (New Pension Scheme- NPS) का प्रसार करने के लिए 50 करोड़ रुपए का अनुदान दिया है । इसी प्रकार दूरदर्शन पर हिन्दी भाषा में वित्तीय समावेशन के कार्यक्रम हेतु नाबार्ड ने 3.28 करोड़ रुपए का अनुदान दिया है ।

 

 

प्रशिक्षण- नाबार्ड की भूमिका एसएचजी समूहों के प्रशिक्षण में भी काफी महत्वपूर्ण है । इसके अलावा एसएचजी उधारकर्ताओं में भुगतान की नैतिकता के संबंध में जागरूकता पैदा करने के लिए भी नाबार्ड कार्यशालाएं आयोजित करता है । व्यवसाय प्रतिनिधि (business correspondent) को प्रशिक्षण देने के लिए नाबार्ड ने भारतीय बैंकिंग और वित्त संस्थान (आई.आई.बी.एफ.) तथा फिनो फिनटेक फाउंडेशन दोनों द्वारा 20000 व्यवसाय प्रतिनिधियों के प्रशिक्षण की एक-एक परियोजना को मंजूरी दी है ।

 

प्रोत्साहन- नाबार्ड स्वैच्छिक एजेंसियों, बैंक, सामाजिक रूप से उत्साही व्यक्तियों, अन्य औपचारिक एवं अनौपचारिक संस्थाओं तथा सरकारी तंत्र को स्वयं सहायता समूह और सूक्ष्म वित्त संस्थानों को ऋण, प्रशिक्षण इत्यादि देने को प्रोत्साहित करता है । नाबार्ड विकासात्मक गतिविधियों के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में कृषि एवं अन्य कार्यों हेतु ऋण उपलब्ध कराने वाली संस्थाओं को वित्तीय एवं विकासात्मक सेवाएं प्रदान करता है, जिससे वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिलता है ।

 

सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का विकास- नाबार्ड सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की विकास कार्य योजनाएँ तैयार करने में तकनीकी, सांख्यिकीय एवं प्रशिक्षणात्मक सहायता प्रदान करता है । साथ ही, नाबार्ड ग्रामीण बैंकों को उत्कृष्ट प्रबंध सूचना प्रणाली के स्‍थापित करने, परिचालनों के कम्प्यूटरीकरण और मानव संसाधनों के विकास के लिए भी वित्तीय सहायता प्रदान करता है । इसके अलावा, नाबार्ड सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का प्रत्यक्ष निरीक्षण कर उसकी वित्तीय स्थिति की परोक्ष निगरानी करता है और यह सुनिश्चित करता है कि उनके द्वारा वित्तीय समावेशन और स्वयं सहायता समूह को ऋण देने सम्बन्धी दिशानिर्देशों और नियमों की पालना की जाए । नाबार्ड ने सितम्बर 30, 2011 तक 11 राज्यों में कार्यरत 17 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को किसान क्लबों को व्यवसाय सुविधादाता (Business Facilitators) के रूप में नियुक्त करने पर वित्तीय समावेशन निधि में से 1.72 करोड़ रुपए मंजूर किए हैं तथा सूचना प्रौद्योगिकी में सुधार करने के लिए वित्तीय समावेशन प्रौद्योगिकी निधि में से 43.96 करोड़ रुपए की मंजूरी दी है । इसी प्रकार नाबार्ड ने स्वयं सहायता समूहों को व्यवसाय प्रतिनिधि के रूप में प्रशिक्षित करने के लिए 3 राज्यों में 5 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को 32.20 लाख रुपए की सहयोग राशि दी है । नाबार्ड द्वारा 21 कमजोर आर्थिक स्थिति वाले क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को सीबीएस अपनाने के लिए 191.76 करोड़ की राशि की सहायता राशि मंजूर की है ।

 

एसएचजी बैंक लिंकेज कार्यक्रम- वर्ष 1992 में भारत सरकार ने नाबार्ड के तत्वावधान में स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) को बैंकिंग क्षेत्र से जोड़ने के लिए एसएचजी-बैंक लिंकेज कार्यक्रम एक पायलट स्तर पर 500 एसएचजी को बैंकिंग क्षेत्र से जोड़कर शूरु होकर आज देश में वित्तीय समावेशन का सबसे बड़ा कार्यक्रम बन चुका है । नाबार्ड द्वारा प्रकाशित “भारत में सूक्ष्म वित्त की स्थिति 2011-12” के अनुसार वर्ष 2011-12 में 79.60 लाख एचएचजी द्वारा अपनी बचत बैंक में जमा की गई जिसकी कुल राशि 6551.41 करोड़ रुपए थे । इसी अवधि में 11.98 लाख एसएचजी को ऋण दिए गए जिसकी कुल राशि 16534.77 करोड़ रुपए थी जबकि बैंकों में बकाया ऋण की राशि 36,340 करोड़ रुपए थी, जो 43.54 लाख एसएचजी को दिए गए थे (तालिका 1) ।

तालिका 1- मार्च अंत में स्वयं सहायता समूहों की बचत एवं ऋण के मामले में स्थिति

 

2009-10

2010-11

2011-12

संख्या

(लाख में)

राशि

(करोड़ में)

संख्या

(लाख में)

राशि

(करोड़ में)

संख्या

(लाख में)

राशि

(करोड़ में)

एसएचजी द्वारा की गई बचत

69.53

6198.71

74.62

7016.30

79.60

6551.41

बैंक द्वारा वितरित ऋण

15.87

14,453.3

11.96

14547.73

11.98

16534.77

बैंकों में बकाया ऋण

48.51

28038.28

47.87

31221.17

43.54

36340.00

स्त्रोत- भारत में सूक्ष्म वित्त की स्थिति पर रिपोर्ट 2011, नाबार्ड

 

सूक्ष्म वित्त संस्थाओं को सहायता- नाबार्ड द्वारा सूक्ष्म वित्त संस्थाओं को पूंजी सहायता दी जाती है, जिससे वे बैंकों से निधियां प्राप्त कर निर्धनों को कम लागत पर वित्तीय सेवाएं उपलब्ध करा सकें तथा ये सूक्ष्म वित्त संस्थाएं 3 से 5 वर्ष का अवधि में निरंतरता प्राप्त कर सकें । वर्ष 2009-10 के दौरान नाबार्ड ने 10 सूक्ष्म वित्त संस्थाओं के लिए 6.87 करोड़ रुपए मंजूर किए । कुल मिलाकर 33 संस्थाओं को मंजूर संचयी सहायता 27.87 करोड़ रुपए हो गई । हमारे देश में आज भी वाणिज्यिक बैंकों की गांवों तक पहुंच बहुत सीमित है । ऐसी स्थिति में, यह बहुत जरूरी हो जाता है कि सूक्ष्म वित्त संस्थाओं का इस्तेमल वित्तीय समावेशन स्थापित करने में किया जाए और इस दिशा में नाबार्ड का योगदान अब तक सराहनीय रहा है ।

 

माइक्रो पेंशन सेवाओं को सहयोग- नाबार्ड द्वारा 2.25 करोड़ रुपए का अनुदान इन्वेस्ट इंडिया माइक्रो पेंशन सर्विसेज (IIMPS) को दिया गया है जिसके तहत 40,000 निर्धन ग्रामीणों को माइक्रो पेंशन सेवाएं उपलब्ध करवाई जाएगी । यह परियोजना अभी देश के चार राज्यों ओडिसा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में लागू की जा रही है ।

 

स्वरोजगार क्रेडिट कार्ड योजना- नाबार्ड द्वारा स्वरोजगार क्रेडिट कार्ड योजना के तहत ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के छोटे दस्तकारों, हथकरघा बुनकरों, स्वनियोजित व्यक्तियों, स्वयं सहायता समूहों को कम लागत पर कार्यशील ऋण प्रदान करता है, जिससे वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिलता है । मार्च 2010 के अंत तक बैंकों द्वारा 4,254.88 करोड़ रुपए ऋण सीमा सहित 10.48 लाख कार्ड जारी किए गए ।

 

ग्रामीण नवोन्मेष निधि- अक्टूबर 1995 में नाबार्ड के तत्वावधान में गांवों में निर्धनता निवारण के गैर-परंपरागत नवोन्मेष को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीण नवोन्मेष निधि (Rural Innovation Fund) की स्थापना की गई । मार्च 2010 तक नाबार्ड द्वारा ग्रामीण नवोन्मेष निधि के तहत 38 करोड़ रुपए की प्रतिबद्धता युक्त 252 परियोजनाएं मंजूर की गई ।

 

स्वयं सहायता समूह डाकघर कार्यक्रम- इस परियोजना का लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त डाकघरों के विशाल नेटवर्क का उपयोग ग्रामीण स्वयं सहायता समूहों को ऋण वितरित करना है । फिलहाल यह योजना तमिलनाडु एवं मेघालय में कार्यान्वित की जा रही है ।

 

ग्रामीण वित्तीय संस्थागत कार्यक्रम- इस योजना के तहत नाबार्ड 13 प्राथमिकता प्राप्त राज्यों में सूक्ष्म वित्त संगठन के रूप में कार्यरत गैर-सरकारी संगठनों के प्रोफाइल, गतिविधियों की प्रकृति को जानने तथा इनकी क्षमता निर्माण की आवश्यकताओं के आकलन हेतु अध्ययन किया गया । इस प्रकार के अध्ययन ग्रामीण इलाकों में कार्यरत संस्थाओं के सामने आ रही बाधाओं को उजागर करते हैं, जिसके आधार पर वित्तीय समावेशन के लिए उपाय अपनाए जा सकते हैं ।

किसान क्रेडिट कार्ड- किसान क्रेडिट कार्ड योजना का उद्देश्य बैंकिंग व्यवस्था से किसानों को समुचित और यथासमय सरल एवं आसान तरीके से आर्थिक सहायता दिलाना है ताकि खेती एवं जरूरी उपकरणों की खरीद के लिए उनके वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके । मार्च 2012 के अंत तक 2 करोड़ से अधिक किसान क्रेडिट कार्ड जारी किए जा चुके हैं जिसके तहत बकाया ऋण 165.15 करोड़ रुपए है । किसान क्रेडिट कार्ड योजना की वित्तीय समावेशन में भूमिका को देखते हुए इस कार्ड को एटीएम एवं हैंड हेल्ड डिवाइस में भी इस्तेमाल लेने योग्य स्मार्ट कार्ड में बदलने की योजना बनाई गई है ।

 

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम)- जून 2011 में सरकार द्वारा स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना को पुनर्गठित कर राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन का प्रारंभ किया गया जिसके तहत स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से देश की 2.5 लाख ग्राम पंचायतों और छह लाख गांवों के 7 करोड़ ग्रामीण गरीब परिवारों को स्वरोजगार के लिए तैयार किया जाएगा । इस मिशन की सफलता के लिए स्वयं सहायता समूहों के विकास और संवर्धन में नाबार्ड की भूमिका अहम रहेगी ।

 

व्यवसाय सुविधादाता (Business Facilitators)- व्यवसाय सुविधादाता के लिए गैर सरकारी संगठन, किसान क्लब, सहकारी संस्थान, पोस्ट ऑफिस, बीमा एजेन्ट, ग्रामीण विकास केन्द्र, कृषि विकास केन्द्र, कृषि विज्ञान केन्द्र, केवीआईसी या केवीआईबी के संगठन, सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी, भूतपूर्व सैनिक और सामाजिक संगठन व्यवसाय सुविधादाता के रूप में कार्य कर सकते हैं ।

 

व्यवसाय प्रतिनिधि (Business Correspondent)- रिज़र्व बैंक के निर्देशानुसार गैर सरकारी संगठन, सामाजिक या सहकारी संगठन, पोस्ट ऑफिस, किसान क्लब और व्यक्तिगत रूप में रुचि रखने वाले व्यक्ति व्यवसाय प्रतिनिधि के रूप में कार्य कर सकते हैं । व्यवसाय सुविधादाता और व्यवसाय प्रतिनिधि में केवल ऋण सुविधायें प्रदान करने की सुविधाओं को लेकर अंतर है । व्यवसाय सुविधादाता गैर वित्तीय सेवाएं प्रदान करता है जबकि व्यवसाय प्रतिनिधि मध्यस्थ के रूप में कार्य और कुछेक नकदी संबंधी कार्य भी कर सकता है । मार्च 2012 के अंत तक 95,767 व्यवसाय प्रतिनिधि बैंकों द्वारा नियुक्त किए जा चुके हैं जो कि 1.40 लाख से अधिक गांवों तक बैंकिंग सुविधाओं को पहुंचा रहे हैं ।

 

सारांश

सार रूप में, हम कह सकते हैं कि नाबार्ड आज भारत में ग्रामीण इलाकों में वित्तीय समावेशन की पहुंच स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है । नाबार्ड के योग्य निर्देशन में एसएचजी-बैंक लिंकेज कार्यक्रम ने लगभग 80 लाख स्वयं सहायता समूहों को बैंकों से जोड़ा है । अन्य शब्दों में लगभग 10 करोड़ निर्धन लोगों की पहुंच बैंकिंग तंत्र से स्थापित की गई है । नाबार्ड ने सहकारी बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, गैर-सरकारी संगठनों, सूक्ष्म वित्त संस्थाओं को वित्तीय सहायता, प्रशिक्षण, पुनर्वित इत्यादि द्वारा वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दिया जा रहा है । आज आवश्यकता है तो ग्रामीण इलाकों में वित्तीय समावेशन के मद्देनज़र नाबार्ड को और अधिकार और शक्तियां देने की क्योंकि यह संस्था ग्रामीण विकास और कृषि के विकास को प्राथमिक उद्देश्य मानते हुए जमीनी स्तर पर पिछले तीस सालों में अपनी उपयोगिता सिद्ध कर चुकी है वहीं केन्द्रीय सरकार और रिज़र्व बैंक का ढाँचा गांवों से बहुत दूर स्थापित है । यदि नाबार्ड को ग्रामीण वित्तीय समावेशन का पूरा दायित्व दे दिया जाए तो इसके सकारात्मक परिणाम भविष्य में देखने को मिल सकेंगे ।

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निधि चौधरी
तीन विषयों (अंग्रेजी साहित्य 2005, लोक प्रशासन 2007 एवं ग्रामीण विकास 2012) में स्नातकोत्तर की उपाधि । वर्तमान में लोक प्रशासन में पी.एच.डी. कर रही हैं । इसके अलावा यूजीसी-नेट, JAIIB (2008), CAIIB (2009) तथा BJMC (2003) की डिग्री भी रखती हैं ।। रचनाओं का प्रकाशन राष्ट्रीय स्तर के कई अखबार, पत्र-पत्रिकाओं जैसे द इंडियन बैंकर, बैंक क्वेस्ट, द इंडियन इकॉनोमिक जर्नल, द आइमा ई-जर्नल, बैंकिंग चिंतन अनुचिंतन, सीएबी कॉलिंग, राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, दैनिक नवज्योति, मेरी सहेली, गृहलक्ष्मी, गृहशोभा इत्यादि में हो चुका है ।

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