नन्हीं जी

आज हमारी नन्हीं जी ने,
रोटी सुन्दर गोल बनाई।

कई दिनों से सीख रही थी,
रोटी गोल बनेगी कैसे।
बन जाता आकार चीन सा,
कभी बना रशिया के जैसे।
बहुत दिनों के बाद अधूरी,
साध आज पूरी हो पाई।

हँसा गैस का चूल्हा,काला,
गूँगा ,गोल तवा मुस्काया।
पटा और बेलन ने उससे,
हलो कहा और हाथ मिलाया।
भौंचक भोजन घर ने उसका,
स्वागत किया ,गीतिका गाई।
ख़ुशी ख़ुशी से उस रोटी के,
माँ ने हिस्से पांच बनाये।
दादा, दादी ,पापा ,खुद ने,
नन्हीं जी ने मिलकर खाये।
फर्श, दीवारों छत ने भी दी,
नन्हीं को भरपूर बधाई।

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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