मुझे नहीं मालूम कि इस विवाद में मैने जो हिस्सा लिया वह किसी के लिए ढाल सिद्ध हुआ या नहीं. मुझे यह भी नहीं मालूम कि मुझे सफलता हाथ लगी या असफलता. व्यंग कार को व्यंग लिखने की अभिप्रेरणा कहाँ से मिलती है, यह विचारणीय प्रश्न है.व्यंगकार भी पूर्वाग्रह से ग्रसित हो सकता है,पर ज़्यादातर ऐसा होता नहीं है. ऐसे हऱी शंकर परसाई हिन्दी के प्रसिद्ध व्यंगकार के रूप में गिने जाते हैं,पर उनको भी वाम पंथी विचार धारा वाले होने के कारण उनके व्यंगों में भी लोग पूर्वाग्रह ढूँढते हैं. हर रचना में पूर्वाग्रह ढूँढने वालों के रोग का कोई इलाज नहीं है.
अब बात आती है नरेंद्र मोदी पर तो,मेरे विचार से आज के वर्तमान राज नेताओं में मोदी व्यंगकार के लिए एक बहुत उपयुक्त पात्र है. कारण है,उनका बड़बोलापन और हर बात में अपने को सर्वोतम सिद्ध करने की लालसा. वह भी अपने को अकेले के लिए,अपनी टीम के लिए नहीं(अगर उनकी कोई टीम है तो).मैने यह कभी नहीं कहा क़ि नरेंद्र मोदी ने गुजरात में कुछ नहीं किया या राहुल गाँधी उनके मुकाबले में खड़ा होने के योग्य है. राहुल गाँधीं ऐसे युवराज भले ही घोषित हो, पर मेरे जैसे उसको कोई महत्व नहीं देते. गुजरात को मैने नरेंद्र मोदी के शासन के पहले देखा है.गुजरात उस समय भी दूसरे राज्यों की अपेक्षा अधिक समुन्नत था. नरेंद्र मोदी के शासन काल में गुजरात की और उन्नति हुई है,इसमे कोई संदेह नहीं है,पर सबसे बड़ी जो ध्यान योग्य बात हैं वह यह है कि जो राज्य पहले से तरक्की कर रहा है,उसके उन्नति की गति को बढ़ा देने में (नरेंद्र मोदी ने उस गति को बढ़ाया भी हो तब भी) उतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती,जितना किसी गिरते हुए राज्य को संभाल कर उसको तरक्की के रास्ते पर ला देना. फिर भी अगर नीतीश कुमार बिहार् की तरक्की का सेहरा अपनी टीम को न देकर अपने को देते हैं और उसको बढ़ा चढ़ा कर बयान करते हैं,तो उनको भी बड़बोला की श्रेणी में ही रखा जाएगा.
अब एक प्रश्न सामने आता है प्रचार तंत्र का ,जिसका सीधा मतलब है,उस प्रचार तंत्र का जिसको इसी काम के लिए नियुक्त किया गया है. अमेरिका में शायद इसे लौबिष्ट कहा जाता है,जिसका हिन्दी में मतलब प्रचारक है,पर प्रचारक शब्द से एक ख़ास मतलब नहीं निकल रहा,अतः आगे भी मैं लौबिस्ट शब्द का ही प्रयोग करूँगा. अमेरिका में करीब करीब प्रत्येक राष्ट्र के लौबिस्ट हैं, भारत के भी हैं,पर गुजरात को छोड़ कर भारत के किसी अन्य राज्य के लौबिस्ट भी वहाँ हैं,यह मुझे नहीं मालूम. उस लौबिस्ट का काम मेरे अनुसार पुराने जमाने के चारण या आधुनिक युग के चमचो से मिलता जुलता है,पर जहाँ तक मेरा विचार है,उनको अपनी विश्वसनीयता भी बनाए रखना आवश्यक है,अतः वे ऐसा कोइ शगूफा तो नहीं छोड़ते होंगे,जिससे उनकी विश्वसनीयता पर संदेह उत्पन्न हो.
वर्तमान में विवाद उठा है नरेंद्र मोदी के प्रचार तंत्र या लोबिस्ट के उस समाचार पर जिसके द्वारा कहा गया था कि नरेंद्र मोदी ने एक दिन में १५००० गुजरातियों को उतराखंड से निकाल कर गुजरात की ओर रवाना किया. अब यह बात तो जाहिर हो गयी है कि नरेंद्र मोदी ने स्वयं ऐसा कभी नहीं कहा,तो क्या उनके लौबिस्ट ने सीमा का उलंघन करके ऐसा समाचार दिया? अगर ऐसा है तो मोदी जी को आगे के लिए सावधान हो जाना चाहिए,क्योंकि यह तो प्रचार के बदले दुष्प्रचार हो गया.
ऐसे कुछ लोगों का यह भी कहना है कि अंत में इससे वहाँ फँसे हुए लोगों का भला ही हुआ,क्योंकि अगर यह प्रचार नहीं होता तो कांग्रेस सरकार ने ,जो ढीले ढाले रूप में काम कर रही थी, इतनी सक्रियता न दिखाई होती. यह इस प्रचार का एक ऐसा सकारात्मक पहलू है,जिसको नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता. तो क्या नरेंद्र मोदी के इशारे पर उनके लौबिस्ट ने ऐसा किया, जिसके प्रतिक्रिया के चलते अन्य लोगों में इतनी सक्रियता आ गयी?अगर ऐसा है तो इसे मोदी जी की दूरदर्शिता ही कही जाएगी. हो सकता है कि ऐसा ही हो.
ऐसे टाइम्स आफ इंडिया में आए एक लेख के अनुसार ऐप्को जो वाइब्रन्ट गुजरात के लिए काम करती है वह कोइ साधारण लौबिस्ट नहीं है. उसने बहुत राष्ट्रों के लिए काम किया है. सभी जानते हैं कि सिगरेट बीड़ी या अन्य तंबाकू उत्पाद जानलेवा हैं,पर इस कंपनी ने तंबाकू कंपनियों का प्रचार करते हुए,इस सत्य को भी बकवास करार दिया और उसके लिए भी उसने प्रमाण प्रस्तुत कर दिए. इसीसे समझा जा सकता है कि मोदी जी के व्यक्तित्व और छवि को निखारने के लिए वह कंपनी (ऐप्को )क्या कर सकती है.
यह भी कहा गया है है कि ऐप्को ने वाइब्रन्ट गुजरात और साथ ही नरेंद्र मोदी के अभियान का हुलिया ही बदल दिया. गुजरात में निवेश के वादे पर वादे होने लगे और साथ साथ बढ़ने लगीं मोदी जी की .ख्याति यह तो समय ही बताएगा कि इन वादों में कितने कार्यान्वित हुए,पर प्रचार तो हो ही गया.
किसी कार की रफ़्तार 0 से 60 या 80 करना बहुत आसन होता है लेकिन यदि किसी कार की रफ़्तार 100 से 120 करनी हो तो बहुत बड़ा दिल चाहिए, कलेजा मूंह को आने लगता है | मेरी इशारा आप समझ ही गए होंगे !!!!!!!
कार की रफ़्तार और गिरते हुए ग्राफ की दिशा को मोड़ने में बहुत अंतर है,इसलिए मेरे विचार से यह तुलना यहाँ ठीक नहीं है.
आ. सिंह साहब–अभिनन्दन।
चर्चा के लिये अच्छा आलेख है, आपका। चर्चा होगी, तो सच्चाई सामने आयेगी।
(१)प्रत्येक व्यक्तिका व्यक्तित्व तो होता ही है। इस धरापर कोई भी व्यक्ति परिपूर्ण नहीं होता।प्रकृति में भी यही देखा जाता है। लोहा कठोर होता है, इसी लिये सक्षम शक्तिशाली होता है। उसी लोहे के गुण का दूसरा पहलु –> वह मृदु नहीं होता। दोनो गुण साथ नहीं होते।
(२)प्रचारक विना वेतन, २४ घंटे ७ दिन राष्ट्र कार्य में रत होता है।पर, आपका लॉबीस्ट धन ले कर काम करता है। आज की स्थिति में, दोनों प्रकार के प्रचार कार्य आवश्यक है। २५००० डॉलर कोई बडा खर्च नहीं है।
(३) आज प्रचार किए बिना, यदि आप चाहेंगे, कि कोई सज्जन यशस्वी हो, तो मुझे लगता है; मोदी क्या, कोई भी सफल नहीं होगा।
(४) आवश्यकता है, चाणाक्ष चालाक राजनीतिज्ञ की, जो शठ लोगों को उन्हीं के शाठ्य के बल पर टक्कर दें। ऐसा नेता फिर भी फँसा दिया जाता है। लाख लाख प्रयास चल ही रहे हैं। आप जानते भी होंगे।
(५) यह कभी सोचा आपने, कि, गुजरात यदि पहले से ही समुन्नत था, तो उसी गुजरात नें, जो गांधीका गुजरात है, जो प्रचुर सम्पन्न वैष्णव-जनों का गुजरात है, जो प्रचुर सम्पन्न जैनियों का गुजरात है, जो गांधी का जन्म स्थान है, —-उसने क्या अंधे हो कर आर एस एस वाले मोदी को मुख्य मंत्री बना दिया? क्या आपको पता नहीं, कि नेहरूने बिना प्रमाण आर एस एस को गांधी हत्यारा घोषित कर कितना विषैला प्रचार किया- करवाया था?
(६) आज के बहुसंख्य मतदाता,(मैं भी) गांधी प्रभावित परिवारों में ही जन्मे और बडे हुए हैं।
उदाः सुमित्रा गांधी कुलकर्णी, डॉ, वीणा गांधी, शरद गांधी ऐसे गांधी परिवार के ही सदस्य जब मोदी जी के साथ है, तो क्यों? और, ऐसे, अगणित उदाहरण मिल जाएंगे।
(७) संदेह नहीं, –सिंह साहब आप भी तो भारत का भला ही चाह्ते हैं।
व्यक्ति व्यक्ति अलग ही होता है। सभी समान नहीं होते। जब एक वीर डटके गोवर्धन परबत उठाने का प्रयास कर रहा है, तो उसका साथ देना उचित मानता हूँ। छोटी बडी आदतें व्यक्तित्व होती है।
॥सर्वज्ञः स हि, माधवः॥
आपने अच्छा विषय उठाया, चर्चा होगी, तो आप ही सच्चाई सामने आएगी।
वंदे मातरम