मोदी के दर्द को समझिए

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-अभिषेक रंजन-
modiji

जिधर देखो, उधर ही मोदी की चर्चा। विरोधी गाली दे रहे हैं, तो समर्थक सर पर चढ़ाए घूम रहे हैं। लोकसभा चुनाव का परिणाम चाहे जो हो, यह चुनाव सिर्फ मोदी के नाम से ही जाना जाएगा। चुनाव समाप्त होने की अंतिम घड़ी जैसे जैसे नजदीक आती जा रही है, मोदी पर व्यक्तिगत हमले तेज हो गए हैं। कोई बोटी-बोटी काटने की बात कर रहा है तो कोई ज़मीन में गाड़ देने की खुलेआम धमकी दे रहा है। हत्यारा, मौत का सौदागर, गुंडा, अपराधी, पता नहीं कौन-कौन से उपनाम से नवाजे गए मोदी। पर मोदी फिर भी सीना ठोककर ललकार रहा है। अपनी चुनावी रैली में जमकर दहाड़ रहा है।

इसका मतलब यह नहीं है कि मोदी इतने कठोर हो गए हैं कि उन्हें अब आलोचनाओं से दुःख नहीं पहुंचता। गुजरात में हैट्रिक लगाने के बाद मोदी ने जो भाषण दिया था, वह महज विजयी नेता का जनता से संवाद मात्र नहीं था। उसमें उस दर्द की भी झलक दिखी थी, जो एक इंसान के नाते मोदी ने सहा था। मोदी ने तब कहा था- “मैंने कोई गलत काम नहीं किया। लोग मुझे पत्थर मारते हैं तो मैं उससे भी सीढ़ी बना लेता हूं। उन्हीं पत्थरों से सीढ़ी बनाकर मैंने हैट्रिक बनाई है।“ पानी पी-पीकर कोसने वाले और हर बात में मिन-मेख निकालने वाले राजनीतिक समीक्षकों पर कटाक्ष करते हुए तब मोदी ने कहा था कि “वे अभी भी गुजरात की विजय को पचा नहीं पा रहे हैं। पता नहीं आज रात को उनका क्या होगा। नींद आएगी या नहीं आएगी। गुजराती उनके लिए प्रार्थना करें ताकि उन्हें नींद आए और वे निर्मल मन से सुबह उठें। हम किसी का बुरा नहीं चाहते। मैं उनसे पूछता हूं कि गुजरात को नीचा दिखाने के लिए इतनी मेहनत क्यों कर रहे हो हो। कुछ तो शर्म करो। जीत तो जीत ही होती है। भाजपा की 93 सीट भी होतीं तो भी शपथ भाजपा की होती। यह हैट्रिक है। दरअसल गुजरात विरोधी टोली का मन नहीं मान रहा। मुझे उन पर दया आ रही है। काउंटिंग होने तक गुजरात को ‍नीचा दिखाने की कोशिशें जारी रहीं। हिन्दुस्तान के लोकतंत्र की यह बड़ी घटना है। अपने समर्थकों का आभार करते हुए मोदी ने आगे कहा था कि चुनाव के दौरान झूठ को खूब फैलाया गया, लेकिन मतदाताओं ने आपने सत्य को खोज निकाला। यह निश्चित ही कठिन काम है। आप अभिनंदन के पात्र है।

हाल के दिनों में दिए कई मीडिया इंटरव्यू में मोदी ने सीधे सीधे भले न कुछ कहा हो, लेकिन वर्षों से चलाए जा रहे एकतरफ़ा विरोध से हुई पीड़ा की झलक देखने को मिली। गुजरात के दंगों पर हजारों बार सफाई दे चुके मोदी से मोदी-विरोधी केवल दिन-रात दंगों पर ही बात करते देखना चाहता है। दंगों से बचता है तो बात तानाशाही प्रवृति का होने पर आ जाता है। उससे से भी बात आगे बढ़ती है तो कभी पत्नी को लेकर तो कभी वरिष्ठ नेताओं से संबंधों को लेकर कोसने, गलियाने का दौर जारी रहता है। एक व्यक्ति को इतनी आलोचना शायद मानव इतिहास में पहली बार सहना पड़ा हो।
यह मानवीय प्रवृति है कि व्यक्तिगत तौर पर किसी भी आदमी को अपनी आलोचना सुनना पसंद नहीं होता। लेकिन आलोचना की जगह घृणा ले ले, मानवीय संवेदनाओं के परे जाकर किसी को दिन-रात गालियां दी जाए तो बड़ा मुश्किल होता है एक व्यक्ति का जीना। इन सब परिस्थितियों में किसी भी व्यक्ति के लिए बिना चेहरे पर कोई शिकन लाए जीना कितना कठिन होता होगा, यह सोचकर ही रूह कांप उठता है। नरेंद्र मोदी से नफरत करने की बहुत सारी वज़हें हो सकती है। लेकिन यदि सिरे से नकारने की प्रवृति, अस्पृश्यता और पूर्वाग्रह का भाव त्याग दे तो मोदी को पसंद करने की वजहें ज्यादा मिलेंगी! हो सकता है, उस आदमी के अंदर कुछ कमियां हो। यह भी हो सकता है कि वह बहुत सारी सच बातों में कुछ झूठ भी घुसेड़ देता हो। लेकिन कल्पना करिए इस आदमी की मनःस्थिति की, जो अपने कंधे पर करोड़ों लोगों की बड़ी अपेक्षाओं के दबाब तले जी रहा हो, जिसे उसके अंध-समर्थकों ने हर मर्ज की दवा घोषित कर रखा हो, जो अपने विरोधियों के लिए जानी दुश्मन हो और दिन-रात उसकी कटु आलोचनाओं के बाउंसर झेलता रहता हो! जिसके न केवल बाहरी दुश्मन की लंबी लिस्ट है, बल्कि अपने भी है, देश-विदेश तक में फैलें हुए है! लेकिन दाद देना पड़ेगा, इन सबके बावजूद वह डटा है! ऐसा लगता है, मानो अकेले पूरी कायनात से लड़ रहा हो! कितने मानसिक तनाव से गुजरता होगा वह शख्स! लाखों समर्थक मर-मिटने के लिए तैयार है, लेकिन मोदी को परवाह सिर्फ और सिर्फ देश की है। अगर प्रधानमंत्री बनने की महत्वकांक्षा भी है तो क्या बुरी है। नेत्रित्वकर्ता की सबसे बड़ी पहचान तो यही है न कि लोगों को खुद से जोड़े और लोग अपनी अपेक्षाओं से उस नेतृत्व से जोड़ लें।

राजनीतिक शोर-गुल में, विचारधाराओं से ऊपर उठकर इस व्यक्ति के जज्बें की सराहना की जानी चाहिए. कोर्ट से क्लीन चिट मिलने के बाद भी जो आदमी गलत साबित होने पर खुलेआम फांसी चढ़ाने की बात ताल ठोककर करता हों, उसके धैर्य की अवहेलना कर, निंदनीय शब्दों में आलोचना की सारी हदें पार करना मानवीय क्रूरता है। मोदी से घृणा करने वाले आलोचकों को चाहिए कि वह खुले दिमाग से मोदी को हैवान मानने की वजाए उसके सही कामों को समझे। गूगल पर मोदी के अच्छे-बुरे कामों की लंबी गाथाएं मिल जाएगी, लेकिन मोदी की पीड़ा को ऐसे नहीं महसूस किया जा सकता। आलोचकों को चाहिए कि इंसान के नाते कभी मोदी के दर्द को समझे! कभी खुद को मोदी की जगह रखकर देखिए और फिर ईमानदारी से सोचिए, आप अगर मोदी की जगह होते तो क्या करते! मोदी नालायक रहते तो नही टिकते। मोदी अपराधी रहते तो विपक्षी दलों के दस वर्षों के शासनकाल में जिंदा दफना दिए गए होते। खुले दिमाग से जब सोचेंगे तो शायद तब असली जबाब मिल जाएगा। विपरीत से विपरीत स्थितियों में शेर की तरह दहाड़ने वाला व्यक्तित्व कोई मामूली आदमी नही हो सकता। मोदी देश का भविष्य है। भविष्य को कोसने से न तो वर्तमान का भला हो सकता है, न ही भविष्य में कोई फायदा। वैसे मोदी कैसे खुद को मजबूत रखते है, कैसे अपने दिलो-दिमाग पर लाख आलोचना सुनकर भी कोई प्रभाव नही पड़ने देते है, यह मनोविज्ञान के विद्यार्थियों के लिए शोध का अच्छा विषय है। मोदी के नाम पर शोधार्थी भी चर्चित हो सकता है, लेकिन इस बहाने उस व्यक्ति की मानसिक ताकत का भी एहसास दुनिया को हो जाएगा।

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