मोदी की जनसभा के मायने

–डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री-
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पिछले दिनों मैं तीन दिन के लिये उत्तर बंगाल के प्रवास पर था। सिलीगुड़ी अघोषित रूप से उत्तर बंगाल की राजधानी कही जाती है । दस अप्रेल को मैं सवा दस बजे के लगभग सिलीगुड़ी के हवाई अड्डे बागडोगरा पर उतरा और लगभग उसी समय नरेन्द्र मोदी भी एक अन्य जहाज़ से वहां उतरे। मैंने सिद्धार्थ कुमार सिंह को फ़ोन किया। वे मोदी जी को ले जाने के लिये अति विशिष्ट कक्ष में प्रतीक्षा कर रहे थे। मोदी जी को हेलीकॉप्टर में जनसभा के लिये पहुंचना था। आज सिलीगुड़ी में मोदी की जनसभा हो रही थी। हवाईपत्तन के बाहर निकल कर मैं भी समीर कुमार घोष और रजनीश के साथ इस जनसभा को देखने के लिये भागा। दरअसल इन दोनों ने अपने एक मित्र निख़िल को कह कर मंच के ठीक सामने मेरे लिये एक कुर्सी सुरक्षित करवाई हुई थी, जिस पर बाक़ायदा मेरे नाम की एक स्लिप भी लगा दी गई थी। लेकिन अब निख़िल का बार बार फ़ोन आ रहा था कि उस कुर्सी को नियंत्रण में रखना मुश्किल होता जा रहा है, क्योंकि रैली में भीड़ बेहिसाब बढ़ रही है। लेकिन समीर घोष और रजनीश कुछ भी कर पा नहीं रहे थे क्योंकि रैली में जाने के लिये भीड़ इतनी ज़्यादा उमड़ रही थी कि सब सड़कों पर जाम लग गया था। वैसे अपनी ओर से योजना बनाने में दोनों ने कोई कोशिश नहीं छोड़ी थी। रास्ते में नाश्ते के लिये रुकना न पड़े, इसलिये पैक करके वे नाश्ता भी साथ ही ले आये थे। यदि हवाई अड्डे से मुझे लेने की विवशता न होती तो शायद दोनों ही अपने साथियों समेत मंच के सामने डटे होते।

मोदी की इस रैली की एक और भी विशेषता थी। रैली सिलीगुड़ी से दस किलोमीटर दूर खपरैल में पाचकलगुडी में हो रही थी। इस विशाल स्थान पर सिलीगुड़ी के इतिहास में आज तक रैली करने का साहस कोई नहीं कर पाया था। सत्ता के दिनों में ज्योति बसु ने भी कभी यहां जनसभा करने के बारे में नहीं सोचा था। वर्तमान में पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी यहां कभी जनसभा नहीं की। न अपने संघर्ष के दिनों में और न ही सत्ता संभालने के बाद। उसके दो कारण हैं। एक तो यह स्थान शहर से दस किलोमीटर दूर है और दूसरा इतना विशाल है कि इसे कोई भर पाने की कल्पना ही नहीं कर सकता। लेकिन यह तो आख़िर नरेन्द्र मोदी की रैली थी। इससे छोटे स्थान पर यह हो ही नहीं सकती थी। सिलीगुड़ी में जिन स्थानों के बारे में माना जाता है कि यदि किसी जनसभा में वे भर जायें तो सफल जनसभा की चर्चा कई दिन तक अख़बारों में रहती है, वे स्थान प्रत्येक आकलन में मोदी की रैली के लिये छोटे पड़ रहे थे। जब मोदी की रैली वहाँ करने के बारे में सोचा तो सभी ने कहा कि इतने छोटे से स्थान पर भला मोदी की रैली कैसे हो सकती है? जो स्थान दूसरे दलों की रैलियों के लिये जरुरत से बड़े माने जाते हैं और उन्हें भरने में आयोजकों के पसीने छूटते हैं, वही स्थान मोदी की रैली के लिये हर लिहाज़ से छोटे पड़ते नज़र आ रहे थे। लेकिन इस रैली की तो और समस्याएं थीं। मोदी का कार्यक्रम केवल तीन चार दिन पहले ही निश्चित हुआ और ऊपर से प्रशासन इस स्थान पर पर जनसभा की अनुमति देने में आनाकानी कर रहा था। जब तक सभा का स्थान तय नहीं हो जाता तब तक भला इस विजय संकल्प रैली का विज्ञापन कैसे दिया जा सकता था? सब बाधाओं से पार पाकर रैली का समय कौन सा हो, इसकी चर्चा शुरु हुई। लेकिन इसमें स्थानीय आयोजकों की कोई भूमिका नहीं हो सकती थी। समय का निर्णय देशभर में मोदी की रैलियों की योजना बनाने वालों ने तय करना था। वह समय तय हुआ प्रातः दस बजे, क्योंकि इस रैली के तुरन्त बाद मोदी को झारखंड के लिये निकलना था। स्थानीय आयोजकों को यह समय जंच नहीं रहा था। शहर से दस बारह किलोमीटर बाहर लोग आने की मानसिकता बना भी पायेंगे या नहीं? या फिर शहर के तो वही लोग या पायेंगे जिनके पास अपना वाहन होगा। केवल तीन दिनों में गांव-गांव में रैली की ख़बर भी कैसे पहुंचा पायेंगे? ज़्यादातर लोग रेलगाड़ी से आते हैं और रेलगाड़ी दो बजे पहुंचती है।

सोनिया गान्धी पूछ रहीं हैं कि नरेन्द्र मोदी क्या कोई जादूगर है जो देश की सभी समस्याएं हल कर देगा? लेकिन यहाँ सिलीगुड़ी में तो लगता है सचमुच ही जादू हो गया है। हवाई अड्डे से सभा स्थल तक आना मुश्किल है, ख़ास कर उस मोड़ से आगे जो पाचकेलगुडी को जाता है। लगता है सब लोग मोदी को सुनने जा रहे हैं। समीर घोष मुझसे पूछते हैं कि क्या आप मोदी से मिले हो और उनको व्यक्तिगत रूप से जानते है? मेरी महत्ता इसलिये भी बढ़ जाती है कि मैं मोदी को व्यक्तिगत रुप से जानता हूं। पूरा सभास्थल नरमुंडों से भरा पड़ा है। मैं महिलाओं और युवतियों की संख्या देखकर हैरान हूं। लगता है रैली में भाग लेने के लिये वे पुरुषों से होड़ ले रही हैं। एक समाचारपत्र ने लिखा है कि जिन लोगों के रिश्तेदार सिलीगुड़ी में हैं वे तो दार्जिलिंग, कालिम्पोंग और कुर्सियांग से रात को ही शहर में पहुंच गये थे। दूर-दूर के गांवों से लोग झुंड के झुंड बनाकर आ रहे हैं। जहां रैली हो रही है, वह कोई पारम्परिक रैली स्थल तो है नहीं, इसलिये अचानक लाखों की संख्या में लोगों के आ जाने से धूल उड़ रही है। लेकिन यहां धूल की चिन्ता किसको है? मोदी-मोदी की लहरें उठ रही हैं। दूर गान्तोक तक से लोग आये हुये हैं। सिलीगुड़ी से ही गौतम देव ममता बनर्जी के मंत्रिमंडल में मंत्री हैं और ममता ने उन्हें विभाग भी उत्तरी बंगाल के विकास का ही दिया हुआ है। जब से मोदी की जनसभा की तिथि निर्धारित हुई है तब से ही उनकी रातों की नींद हराम हो गई है। दिन रात दौड़ रहे हैं कि लोग मोदी की सभा में न आयें और उन की लाज बच जाये। उनको लगता था कि आज दस तारीख़ को लोग रैली में उतनी संख्या में नहीं पहुंचेंगे। जनसभा स्थल आधा भी ख़ाली रह गया तो गौतम की इज़्ज़त बच जायेगी। अपने अंतरंग साथियों में उनका एक ही तर्क था कि सिलीगुड़ी में तो भाजपा का कोई बहुत बड़ा आधार नहीं है, लेकिन गौतम देव के सब तर्क धरे धराये रह गये। आज सभा स्थल पर नर मुंड ही नर मुंड दिखाई दे रहे हैं। सिलीगुड़ी में भाजपा है या नहीं है, इसे कौन पूछता है? मोदी तो सिलीगुड़ी आ ही रहे हैं। सब लोग मोदी की एक झलक भर देख लेना चाहते हैं।

मोदी का हेलीकॉप्टर सभास्थल के दो चक्कर लगाता है और उतर जाता है। मोदी बाहर निकलते हैं। उनके सुरक्षाकर्मी उन्हें सीधे सभास्थल की ओर ले जाना चाहते हैं, लेकिन मोदी रास्ते में रुककर जनता का अभिवादन करते हैं। लोग उत्साह से मोदी-मोदी समवेत स्वर में चिल्लाते हैं। मंच पर पहुंचते ही मोदी उपस्थित जनसमूह का हाथ हिला-हिलाकर अभिवादन करते हैं। मंच पर सतपाल महाराज भी उपस्थित हैं। सतपाल जी के अनुयायी उत्तरी बंगाल में भी बहुत बड़ी संख्या में हैं। लेकिन मोदी के मंच पर पहुंचने पर जैसे उपस्थित लोगों में कोई करंट दौड़ने लगा हो। मोदी-मोदी का राग एक ओर बंद होता है तो दूसरी ओर शुरू हो जाता है। युवकों ने मोदी के मुखौटे पहन रखे हैं। मोदी केवल भाषण नहीं करते। वे उपस्थित लोगों से संवाद स्थापित करते हैं। उनका भाषण नहीं है बल्कि उपस्थित लोगों के साथ वार्तालाप है, जिसमें उपस्थित जनसमूह की बराबर की हिस्सेदारी है। वे प्रश्न पूछते हैं और लोगों उतने ही उत्साह से जबाव देते हैं। सोनिया गान्धी ने मोदी को जादूगर कहा था। मोदी इस सभा में उसका जबाव देते हैं। उनका कहना है कि देश को ख़तरा इस जादूगर से नहीं है बल्कि उस काले जादू से है, जिसका इस्तेमाल इस देश में सोनिया गान्धी की पार्टी कर रही है। इस काले जादू के चलते ही देश का धन धान्य ग़ायब हो रहा है। दार्जिलिंग और सिलीगुड़ी क्षेत्र में नेपाली भाषी लोग निर्णायक स्थिति में हैं। मोदी गोरखा लोगों के शौर्य और ईमानदारी की तारीफ़ करते हैं। छोटे राज्य विकास में सहायक होते हैं। मोदी कहते हैं, गोरखा लोगों का सपना मेरा सपना है। जनसमुदाय की स्थिति उत्साह से ऐसी हो रही है मानों सागर में ज्वारभाटा आ गया हो। मोदी मंच पर से कुछ नारे लगाते हैं और लोग उससे भी दोगुनी आबाज में प्रत्युत्तर देते हैं। मोदी पूछते हैं कि क्या भी वैसी ही ज़िन्दगी जीना चाहते हो जैसी अभाव की ज़िन्दगी आप के मां बाप जीते रहे हैं ? नकारात्मक उत्तर से गगन गूंजता है। मोदी नये भारत के लिये बेहतर ज़िन्दगी का वायदा करते हैं।

पश्चिमी बंगाल ने तीन दशकों का साम्यवादियों का सत्ता सिंहासन हिलाकर एक बहुत बड़ा परिवर्तन किया है। मोदी का कहना है कि अब ऐसा ही परिवर्तन केन्द्र में भी करना है जहां पिछले दो दशकों से भ्रष्टाचारियों की सरकार कुंडली मार कर बैठी है। हाल का चुनाव उसी परिवर्तन के लिये है। फिर वे भाजपा के प्रत्याशियों को मंच पर बुला कर जनता से उन्हें वोट देने के लिये अपील करते हैं। वे लोगों से वंदे मातरम के जय घोष करवाते हैं। सिलीगुड़ी की यह जनसभा समाप्त होती है। मोदी हेलीकॉप्टर में बैठते हैं। ऐसे मौक़ों पर आम तौर लोग हेलीकॉप्टर की ओर भागते हैं, लेकिन यहां ऐसा नहीं होता है क्योंकि लोग हेलीकॉप्टर देखने के लिये नहीं बल्कि मोदी को सुनने के लिये आये थे। मोदी ने लोगों में भविष्य के प्रति आशा जगा दी है। भीड़ अब छंटने लगी है लेकिन मोदी का उन्माद अभी उतरा नहीं है। हर हर मोदी घर घर मोदी का घोष बार बार हवा में तैर रहा है। मेरी हिमाचली टोपी देख कर एक अधेड़ सा व्यक्ति मेरे पास आ जाता है। वह मुझसे कह रहा है या अपने आप से मैं समझ नहीं पाता। एक आदमी गुजरात से यहां सिलीगुड़ी में आधे घंटे के लिये आता है। इतने दूरस्थ स्थान पर लाखों की भीड़ उसको देखने सुनने के लिये व्याकुल हो जाती है। यह सचमुच कोई ईश्वर का संकेत है। देश में कोई बहुत बड़ा परिवर्तन होने वाला है। वह एक बार मेरी ओर देखता है और चुपचाप चला जाता है। वह मुझसे उत्तर की आशा भी नहीं रखता। शायद वह स्वयं भी उस उत्तर का हिस्सा है। लोग वापस उसी रास्ते पर जा रहे हैं जिस रास्ते से आये हैं लेकिन अब वे नये भारत के भविष्य के प्रति आशान्वित हैं। नमो नमो।

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डॉ. कुलदीप चन्‍द अग्निहोत्री
यायावर प्रकृति के डॉ. अग्निहोत्री अनेक देशों की यात्रा कर चुके हैं। उनकी लगभग 15 पुस्‍तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। पेशे से शिक्षक, कर्म से समाजसेवी और उपक्रम से पत्रकार अग्निहोत्रीजी हिमाचल प्रदेश विश्‍वविद्यालय में निदेशक भी रहे। आपातकाल में जेल में रहे। भारत-तिब्‍बत सहयोग मंच के राष्‍ट्रीय संयोजक के नाते तिब्‍बत समस्‍या का गंभीर अध्‍ययन। कुछ समय तक हिंदी दैनिक जनसत्‍ता से भी जुडे रहे। संप्रति देश की प्रसिद्ध संवाद समिति हिंदुस्‍थान समाचार से जुडे हुए हैं।

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