नारी का दर्द

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alone-lady
क्यों दर्द हैं उसकी बातों में
हमेशा मुस्कुराती है जो ,
इतना अकेली क्यों हैं वो
जो मर्यादित है ,
जो संयमित है,
जो नाजुक है ,
जो शांत है ,
आखिर एक अबला है वह
उसकी की देह तो सबको
दिखती है।
उसकी आंतरिक सुंदरता क्यों नहीं
दिखती..
कहाँ सुरक्षित है वो
घर -बाहर कहाँ
क्यों शाम ढलते ही सहम जाती है वो,
कदम बढ़ते नहीं,
तलाशती नजरें सुरक्षित जगह।
रुंध जाता है गला, सूख जाते है होठ.
न जाने कब ये डर खत्म होगा।
किसी की बेटी है बहन है
वो,
किसी के आँगन की शोभा है वो,
आखिर एक अबला है वो।
चारु
शिखा

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