राष्ट्रीय जमाता – वाड्रा बाबू

विपिन किशोर सिन्हा

भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। यहां अपने-अपने धर्म की रीति और परंपराओं के अनुसार जीने का हर नागरिक को अधिकार है। अपने देश में जमाता को विशेष दर्ज़ा मिला हुआ है। विवाह के पूर्व भी वह दान-दक्षिणा, जिसे मूर्ख लोग दहेज कहते हैं, लेता है और विवाह के पश्चात भी जीवन भर बर-बिदाई लेना उसका जन्मसिद्ध अधिकार है। इतना ही नहीं, ससुराल में पत्नी की सुन्दर बहनों, सहेलियों और भाभियों से छेड़छाड़ का भी अधिकार उसे परंपरा से प्राप्त है। बारात दरवाजे पर लगते समय बाजा की आवाज़ जहां तक जाती है, वहां तक के लोग स्वतः उसके साले-ससुर और साली-सरहज बन जाते हैं। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, हमारा भारत महान नेहरू परिवार की जागीर है। तभी तो आपातकाल के दौरान तात्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष स्वर्गीय देवकान्त बरुआ जी ने घोषणा की थी – India is Indira and Indira is India. आज की तिथि में भी यह पवित्र घोषणा सोनिया जी पर लागू होती है। उन्हें भारत महान में राजमाता का दर्ज़ा प्राप्त है। राहुल बाबा युवराज हैं, प्रियंका बिटिया राजकुमारी और वाड्रा बाबू कुंवरजी यानि राष्ट्रीय जमाता हैं। जमाता जब भी ससुर गृह, ससुर के भ्राता गृह या ससुर के अभिन्न मित्र गृह में विशेष अतिथि के रूप में पदार्पण करता है, तो उसके स्वागत की विशेष तैयारियां होती है – तरह-तरह के व्यंजन – आमिष-निरामिष बनते हैं, सुन्दर सालियां चुहलबाज़ी और संगीत से मनोरंजन करती हैं, गांव के जवान और बुज़ुर्ग भक्तिभाव से उसका प्रवचन सुनते हैं और विदाई के वक्त अपनी औकात के अनुसार उसकी ज़ेबें नोटों से भर देते हैं। किसी की औकात पांच रुपए की होती है, किसी की ग्यारह, किसी की इक्यावन, तो किसी की एक सौ एक की। लेकिन ज़रा यह भी सोचिए कि हमारा राष्ट्रीय जमाता यदि डीएलएफ़ के मालिक के.पी.सिंह, जिनसे गांधी परिवार के घनिष्ठ संबंध हैं, के घर जाता है, तो क्या वे जमाता की विदाई एक सौ एक रुपए से करेंगे? उनके पास लाखों करोड़ रुपयों की घोषित-अघोषित संपत्ति है। यदि उन्होंने अपनी और राष्ट्रीय जमाता के सोसल स्टेटस को ध्यान में रखते हुए जमाई राजा की विदाई ८५ करोड़ से कर ही दी, तो इसमें शोर मचाने वाली कौन सी बात है? जमाई राजा ने ठीक ही कहा है कि श्री के.पी.सिंह के साथ उनका पारिवारिक उठना-बैठना है। दोनों के बच्चे एक ही स्कूल में पढ़ते हैं। हमलोगों में लेन-देन चलता रहता है। जमाई राजा की इतनी शानदार बर-बिदाई करने वालों में डीएलएफ अकेले नहीं है। उसके साथ बेदरवाला इन्फ़्राप्रोजेक्ट, निखिल इन्टरनेशनल और वी.आर.एस. इन्फ़्रास्ट्रक्चर भी शामिल हैं। केजरीवाल पगला गया है या ईर्ष्या की आग में जल रहा है। हो सकता है ससुराल से उसको एक धेला भी न मिला हो। भाजपा भी अपने हिन्दू परंपराओं से दूर जा रही है। सरकार की आलोचना का मतलब यह तो नहीं कि राष्ट्रीय जमाता को ही कटघरे में खड़ा कर दिया जाय? राबर्ट बाबू जैसे सोनिया जी के दामाद हैं, वैसे ही सुषमा जी के हैं। वे जैसे राहुल बाबा के जीजा हैं, वैसे ही अरविन्द केजरीवाल के भी हैं। रिश्तों की नज़ाकत तो इनलोगों को समझना ही चाहिए। राजनीतिक महत्वाकांक्षा अपनी जगह सही हो सकती है, लेकिन भारत महान की स्वस्थ धार्मिक परंपराओं का अपमान, चाहे वह भाजपा की ओर से हो, अरविन्द केजरीवाल की ओर से हो या स्वयं अन्ना जी की ओर से हो, बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।

राष्ट्रीय जमाता पर कुछ सिरफिरे आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने राजमाता के प्रभाव का अपने हित में उपयोग किया। ये लोग यह भूल जाते हैं कि जनवरी २००२ में राबर्ट बाबू ने सार्वजनिक रूप से यह कहा था कि उनके पिता और भाई, दोनों ही उनके गांधी परिवार का दामाद होने का नाज़ायज़ लाभ उठाना चाहते हैं। नाराज़ पिता ने पुत्र के इस सुकृत्य पर मानहानि का दावा भी किया था। शायद वे यह भूल गए थे कि सोनिया जी ने कन्यादान नहीं किया था बल्कि उन्होंने पुत्रदान किया था। ऐसे सिद्धान्तप्रिय और निष्पक्ष जमाता पर लाभ लेने का आरोप लगाना घोर निन्दनीय कृत्य है।

जिस कार्य के लिए राष्ट्रीय जमाता जी को ‘भारत रत्न’ मिलना चाहिए उसी काम के लिए कुछ असामाजिक तत्त्व उनकी आलोचना कर रहे हैं। यार-दोस्तों से किसी तरह ५० लाख रुपए जुटाकर अपनी कंपनी ‘एरटेक्स’ शुरु की थी जमाई राजा ने। २००७ से २०१० के बीच उन्होंने अपनी प्रतिभा, कुशलता, संपर्क, दूरदृष्टि और कठिन श्रम के बूते स्काईलाइट हास्पीटलिटी, स्काईलाइट रियलिटी, ब्लू ब्रिज ट्रेडिंग और नार्थ इंडिया आई.टी. पार्क जैसी चार बड़ी कंपनियां खड़ी कर दीं। ये सभी कंपनियां २६८, सुखदेव विहार, नई दिल्ली के एक ही मकान से चलती हैं। इन सबकी निदेशक राजमाता की एकमात्र समधिन श्रीमती मारिन वाड्रा हैं। बिना कर्मचारियों के इन कंपनियों ने आशा से अधिक मुनाफ़ा कमाया है। राबर्ट बाबू आजकल ३०० करोड़ रुपए के मालिक हैं। उनके अनुभवों को देशहित तथा युवा उद्यमियों के हित में देश के प्रत्येक व्यक्ति के पास पहुंचाना हम सबका पुनीत राष्ट्रीय कर्त्तव्य है। इंडियन इन्स्टीच्यूट आफ मैनेजमेन्ट, इंडियन इन्स्टीच्यूट आफ टेक्नोलाजी तथा देश के सभी कामर्स कालेजों में राबर्ट बाबू का लेक्चर आयोजित करना चाहिए, उन्हें डाक्टर आफ मैनेजमेन्ट की मानद उपाधि से सम्मानित करना चाहिए। लेकिन हो इसका उल्टा रहा है। नेता और उद्योगपति को भारी छूट प्राप्त है – नेता को सैकड़ों करोड़ का चारा खाने का अधिकार है, कोलटार पी जाने का अधिकार है, कोयला खा जाने का अधिकार है। टाटा, माल्या, अंबानी, जिन्दल………को दोनों हाथों से देश की पूंजी लूटने का अधिकार है। हमारे राष्ट्रीय जमाता ने ३०० करोड़ की पूंजी क्या बना ली, सब की आंख लग गई। बुरी नज़र वाले, तेरा मुंह काला।

दक्षिण भारत से एक समाचार पत्र निकलता है – The Hindu. नाम तो हिन्दू है लेकिन काम है पूरी तरह अहिन्दू का। दिनांक ११.१०.१२ के अंक में अखबार लिखता है – सरकारी कारपोरेशन बैंक, मंगलोर ने राबर्ट बाबू को महज़ एक लाख की जमा राशि पर २००७-०८ में ८ करोड़ रुपया उनकी स्काईलाइट हास्पीटलिटी को हंसते-हंसते दे दिया। अरे भाई! दामाद को कुछ भी देने में दिल हमेशा रोता है लेकिन चेहरे को तो हंसना ही पड़ता है। अखबार आगे लिखता है कि जमाई राजा ने अन्य स्रोतों से भी कुछ इसी तरह १५.३८ करोड़ रुपए जुटाए और मनेसर, हरियाणा में जमीन खरीदी। वही जमीन डीएलएफ को ५८ करोड़ में बेंच दी। दिनांक १२.१०.१२ के अमर उजाला में जमीन-खरीद का एक समाचार ओम प्रकाश चौटाला जी ने दिया है। चौटाला जी कहते हैं कि मेवात जिले में फ़िरोजपुर झिनका के शकरपुरी गांव में २९ एकड़ जमीन, जमाई राजा ने मुख्यमंत्री हुड्डा के आशीर्वाद से सस्ते में खरीद ली है। कलेक्टर रेट १६ लाख रुपए प्रति एकड़ था, मार्केट रेट ४५ लाख रुपए प्रति एकड़ था मगर राबर्ट बाबू ने मात्र २ लाख रुपए प्रति एकड़ की दर से यह अचल संपत्ति खरीदी। इसके बदले अहमद परिवार को उनके मूल गांव खानपुर की जमीन को रेजिडेन्सियल ज़ोन में तब्दील करा दिया गया। भारत की सभ्यता दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता है; लेकिन इस महान सभ्यता और संस्कृति की सही जानकारी न तो अमर उजाला को है, न दि हिन्दू को है, न केजरीवाल को है और ना ही ओम प्रकाश चौटाला को है। इन्हें शर्म भी नहीं आती, दामाद पर उंगली उठाते हुए। इस मामले में भारत सरकार की भूमिका प्रशंसनीय है। सभी मंत्री और सभी कांग्रेसी सियार एक साथ, एक जगह बैठकर, एकजुट हो, मुंह को उपर करके एक स्वर में क्या सुन्दर राग अलाप रहे हैं – हमारा दामाद भ्रष्टाचारी नहीं हो सकता। जय राजमाता! जय राज जमाता!!

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विपिन किशोर सिन्हा
जन्मस्थान - ग्राम-बाल बंगरा, पो.-महाराज गंज, जिला-सिवान,बिहार. वर्तमान पता - लेन नं. ८सी, प्लाट नं. ७८, महामनापुरी, वाराणसी. शिक्षा - बी.टेक इन मेकेनिकल इंजीनियरिंग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय. व्यवसाय - अधिशासी अभियन्ता, उ.प्र.पावर कारपोरेशन लि., वाराणसी. साहित्यिक कृतियां - कहो कौन्तेय, शेष कथित रामकथा, स्मृति, क्या खोया क्या पाया (सभी उपन्यास), फ़ैसला (कहानी संग्रह), राम ने सीता परित्याग कभी किया ही नहीं (शोध पत्र), संदर्भ, अमराई एवं अभिव्यक्ति (कविता संग्रह)

3 COMMENTS

  1. सिंहजी नमस्कार
    आपने बिलकुल सही कहा की यह जो कुंवरजी के आलोचक हैं सब के सब टटपूंजिए ससुरालवाले हैं और वहां से खाली हाथ विदा कर दिए जाने के कारण अपनी भड़ास इस तरह से निकाल रहे हैं. और कुंवरजी को इस मैदान में आये दिन ही कितने हुए हैं ज़रा और मौक़ा दीजिये फिर देखिये कैसे कैसे करतब दिखाते हैं

  2. वह! वाह!! सिन्हा जी क्या बात है. आपने दामाद की महिमा का बखान बडे धाराप्रवाह ढंग से और तथ्यों का पूरा सदुपयोग करते हुए किया है. शायद एक बात रह ग्यी कि हमारे दामाद साहेब का अवमूल्यन किया गया है. वे वास्तव में हजारों करोड के स्वामी हैं. केजरीवाल द्वारा किया वर्णन तो उसका एक अंश मात्र है. हम गर्व से कह सकते हैं कि हमारे राष्ट्रीय जमाई राजा हजारों करोड के स्वामी हैं, केजरीवाल क्या जाने. देश की पुरातात्विक सामग्री को विदेशी बाजारों मे (अपनी सास के पहले से स्थापित इस व्यापार में सहयोगी बन कर ) पहुंचाकर देश की मर्यादा में व्रिद्धी करने का महान कार्य जो वे कर रहे हैं, उसका भी तो ”वाड्रा-वोरुदावली” में वर्णन होना चाहिये.

  3. हा हा हा …. बहुत सुंदर लेख या यों कहें कटाक्ष, बताइए राष्ट्रीय जमाता पर ही आक्षेप लगा दिया, इन निकम्मों के पास और कोई काम ही नहीं है, अरे भाई भाजपाई किसलिए बैठे हैं? जो आक्षेप लगाना हो उन पर लगाओ। गडकरी किसलिए हैं? आडवानी जी किसलिए हैं?


    सादर,
    शिवेंद्र मोहन सिंह

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