नेशनल कांफ्रेंस का अपना नागरवाला सैय्यद मोहम्मद युसूफ

डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री 

सैय्यद मोहम्मद युसूफ की मौत हो गई। कश्मीर में शासन कर रहे नेशनल कांफ्रेंस दल का नेता था। कश्मीर में आतंकवादियों ने उसे मारने के लिए अरसा पहले उसके घर पर बम से आक्रमण भी किया था। आतंकवादियों के हमले से तो वह ईश्वर की कृपा से बच गया। लेकिन अपनी ही पार्टी नेशनल काँफ्रेंस के नेताओं से बच नहीं पाया। कश्मीर के दूसरे प्रभावशाली राजनैतिक दल पी. डी. पी. को शक है कि राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के इशारे पर पुलिस ने उसकी हत्या कर दी। उमर अब्दुल्ला इससे इनकार तो करते ही हैं साथ ही गुस्से में भी आ नजर आते हैं। उनका कहना है कि पूरी कहानी तो जांच के बाद ही पता चलेगी। लेकिन फिलहाल इतना तय है कि युसूफ की मौत सामान्य ढंग से दिल की धड़कन रूक जाने से हुई है। उधर युसूफ का बेटा यह बताते हुए हलकान हो रहा है कि उसके पिता को कम-से-कम दिल की कोई बीमारी नही थी। लेकिन वह इतना तो जानता ही होगा कि जब हुक्मरानों की नजरे टेढ़ी हो जाती है तो बड़े-बड़ों की दिलों की धड़कने बंद हो जाती है। अब प्रश्न केवल इतना ही है कि क्या सैय्यद मोहम्मद युसूफ के दिल की धड़कन उमर अब्दुल्ला की नजरे टेढ़ी हो जाने के कारण हुई है?

कश्मीर में बच्चा-बच्चा जानता है कि युसूफ साहेब, जो अब सुपर्दे खाक हो चुके हैं, एक प्रकार से अब्दुल्ला परिवार के ही सदस्य थे। लेकिन कश्मीर में लोग ये भी जानते हैं कि युसूफ सत्ता के गलियारो में एक कुशल प्रकार के दलाल थे। श्रीनगर में कहा जाता है कि शायद ही कोई ऐसा काम हो जिसे वे सही कीमत लेकर ठीक ढंग से करवा न सकते हों। उनके इन कर्मों का हिसाब तो कयामत के दिन ही होगा परंतु उनके इन कर्मों ने श्रीनगर में जो गर्मी पैदा कर दी है उससे अब्दुल्ला परिवार को सर्द हवाओं में भी पसीने आ रहे हैं। हालिया किस्सा यह था कि युसूफ भाई ने दो लोगों से एक करोड़ से भी ज्यादा पैसे वसूल लिए। काम भी छोटा-मोटा नहीं था। एक विधायक को मंत्री बनवाना था और दूसरे को विधान परिषद् में पहुंचाना था। बड़ा काम बड़ी फीस। युसूफ का बेटा मानता है कि हो सकता है अब्बा ने पैसे ले लिए हों। लेकिन वे पैसे न तो उनके किसी बैंक खाते में है और न ही घर में। तो आखिर इस पैसे को जमीन निगल गई क्या? उसको पक्का यकीन है कि यदि अब्बा ने ये तो पैसे लिए होंगे तो यकीनन फारुख अब्दुल्ला को दिए होंगे। पैसे कहां गए – यह सवाल युसूफ के बेटे के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है लेकिन जिन सज्जनों ने अपनी जेब से एक करोड़ रूपये निकाला था उनके लिए तो शर्त केवल काम होने की थी। जब काम नहीं हुआ तो उनका धैर्य जबाब देने लगा तो उन्होंने उमर अब्दुल्ला के पास शिकायत कर दी। पार्टी का मसला गलियों मे आए तो मु’यमंत्री उमर अब्दुल्ला को चिंता होना स्वाभाविक ही था जो पार्टी पिछले पांच-छ: दशकों से यह दावा कर रही है कि उसने कश्मीरियों के हित के लिए दिन-रात एक किया है, अब यदि पता चले कि मामला कश्मीरियों के हित का कभी नहीं रहा बल्कि करोड़ों के इधर-उधर होने का ही था तो जाहिर है नेशनल कांफ्रेंस दिन-दहाड़े बेनकाब हो जाएगी। अब्दुल्ला परिवार राजनीति में कई दशकों से अंगद की तरह पैर जमाए हुए हैं इसलिए परिवार के वृद्धों से लेकर बच्चों तक बखूबी जानते हैं कि ऐसे मामलों में जांच कैसे करवाई जाती है और केस कैसे निपटाया जाता है? उमर अब्दुल्ला ने युसूफ द्वारा गैरकानूनी तरीके से पैसे लिए जाने की शिकायत मिलने पर, शिकायत पुलिस को नहीं सौंपी बल्कि अपने गृह राज्यमंत्री नासिर असलम बानी को बुलाकर कहा कि युसूफ को किसी तरह मेरे घर में लेकर आओं। अब्दुल्ला के घर में जाना युसूफ के लिए कोई नई बात नहीं थी क्योंकि उसी के बेटे के अनुसार, इतने दशकों में अब्बा हजूर ने इतना समा घर में नहीं बिताया जितना अब्दुल्ला परिवार के साथ। लेकिन बद-किस्मती से युसूफ इस बार धोखा खा गया। इस बार सारा मंजर बदला हुआ था। नेशनल काँफ्रेंस का एक बड़ा नेता, जो एक प्रकार से अब्दुल्ला परिवार का सदस्य ही था, की करतूत श्रीनगर में चर्चा का विषय था। नेशनल काँफ्रेंस की भद पीट रही थी। युसूफ उमर अब्दुल्ला के घर में तो आया पर जब वहां से गया तो ज्यादा देर तक उसके दिल की धड़कन काम न कर सकी। उमर का तो यह कहना है कि उन्होंने युसूफ को पुलिस के हवाले कर दिया था। शायद उमर सच कह रहे हों। लेकिन युसूफ के दुर्भाग्य से पुलिस ने उसे एक और नागरवाला समझकर निपटा दिया। पुलिस ने उसे पीटा या फिर हालात के सामने उसने दम तोड़ दिया, इसका खुलासा तो पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से ही होगा। परंतु उस पोस्टमार्टम रिपोर्ट से नेशनल कांफ्रेंस के भीतर से उठ रही बदबू को रोका नहीं जा सकेगा।

इस प्रकार के दुर्भाग्य का साथ अब्दुल्ला परिवार के साथ शुरू से ही रहा है। शेख अब्दुल्ला के वक्त में भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जेल में मृत्यु हो गई थी। तब से लेकर अब तक यह आरोप लगता रहा है कि यह हत्या शेख अब्दुल्ला के इशारों पर की गई थी। दावा उस समय भी पुलिस ने यही किया था कि बीमारी के कारण डॉ. मुखर्जी की मृत्यु हुई है। पिछले दिनों उमर अब्दुल्ला के परिवार में विवाद पैदा हुआ था। तब ये खबरें छनकर आने लगी थी कि उमर की पत्नी मानसिक यातनाएं भोग रही है। तब उमर अब्दुल्ला ने मीडिया से दरख्‍वास की थी कि कम-से-कम उनके परिवारिक मसलों पर सार्वजनिक चर्चा न की जाए। और वह चर्चा बंद भी हो गई। अब सैय्यद मोहम्मद युसूफ की मौत का किस्सा एक बार फिर उभर कर समाने आया है। यद्यपि युसूफ भी अब्दुल्ला परिवार के सदस्य ही माने जाते थे परंतु फिर भी इस किस्से को उनका परिवारिक मसला नहीं माना जा सकता। आखिर अपने विरोधियों से निपटने का अब्दुल्ला परिवार का यह तरिका कितना लोकतांत्रिक कहा जा सकेगा? युसूफ की मौत तो नेशनल काँफ्रेंस के भीतर की उठापटक की मिसाल है। पार्टी के भीतर ही अपने नेताओं को निपटाने का यह कौन सा तरीका है? पहली बार नेशनल कांफ्रेंस श्रीनगर में अपने असली रूप में पकड़ी गई है जो आज तक कश्मीरियों के राजनैतिक हितों की आढ़ में अपने परिवारिक हितों की पूर्ति करती आ रही थी। उमर अब्दुल्ला कहने को तो जांच की बात कर रहे हैं लेकिन वे खुद भी जानते हैं कि यदि सही ढ़ंग से जांच हो गई तो नेशनल कांफ्रेंस एक बड़े सुनामी की शिकार हो जाएगी।

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