किसी भी देश का स्वाधीनता दिवस उस देश के नागरिकों को अपनी अपनी राष्ट्रभक्ति व देश प्रेम प्रकट करने का एक सुअवसर होता है और वे सब इसको बड़े उल्लास के साथ बनातें है। हम भारतवासी भी 15 अगस्त को एक राष्ट्रीय पर्व के रुप में अत्यधिक उत्साह व जोश के साथ प्रतिवर्ष बनाते है और देश के प्रधानमंत्री का लालकिले से संबोधन अपने अपने रेडियो व टी.वी.सेट पर बड़ी उत्सुकता से सुनते है । यही परम्परा पिछले 70 वर्षो से चली आ रही है । उसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए इस बार भी 71 वें स्वतंत्रता दिवस पर अपने कार्यो की एक प्रगति रिपोर्ट हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी ने राष्ट्र के सामने रखी ।गुजरात के मुख्य मंत्री के रुप में श्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त 2013 में लालन कालिज,कच्छ (गुजरात) जोकि भारत-पाक सीमा क्षेत्र से कुछ किलोमीटर पहले स्थित है में जो आक्रामक भाषण दिया था वैसा उत्साहवर्धक भाषण दिल्ली के लालकिले से 2014 से 2017 तक दिये गये मोदी जी के चारों भाषणों में पुनः सुनने को नहीं मिला , क्या कारण रहा पता नहीं ? परन्तु इतना अवश्य प्रतीत होता है कि मोदी जी को भाषण की शैली प्रधानमंत्री पद की गरिमा को ध्यान में रखकर ही अपनानी होती होगी ।
वैसे तो ऐसे अवसरों के संबोधनों पर देशवासियों का उत्साहवर्धन और शत्रुओं को हतोत्साहित करते हुए चेतावनी देने की प्रमुखता रहती है।परंतु क्या स्वतंत्रता दिवस पर देश के शत्रुओं को ललकारने की परम्परा को भुलाना महात्मा गांधी की नीतियों का ही तो एक भाग तो नहीं ? अतः क्या मोदी जी ने चीन और पाकिस्तान के द्वारा हमारे विरुद्ध निरंतर अपनाई जा रही शत्रुतापूर्ण नीतियों पर कोई आक्रामक संदेश न देकर देशवासियों को निराश तो नही किया ? परन्तु उन्होंने यह स्पष्ट करके कि आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में विश्व एकजुट हो रहा है , पाकिस्तान व चीन को अपनी कूटनीतिज्ञता का परिचय अवश्य करा दिया । उन्होंने अपने सारगर्भित उदबोधन में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से लेकर संविधान की विशेषताओं का विशेष उल्लेख करके अपनी सराहनीय व प्रशंसनीय भाषण शैली को बनाये रखा है। स्वतंत्रता दिवस के साथ साथ श्री कृष्ण जन्माष्ट्मी के अवसर पर सभी को शुभकामनायें देते हुए उन्होंने बड़े सुंदर शब्दों में कहा कि सुदर्शन चक्रधारी मोहन से लेकर चरखाधारी मोहन की हमारी परम्परा है । इस संदेश का गहराई से विश्लेषण किया जाये तो समझ आयेगा कि भगवान श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र जो शौर्य , पुरुषार्थ व वीरता का प्रतीक है और हमें स्वाभिमान के साथ धर्म की रक्षार्थ जीने का संदेश देता है वही स्व.मोहनदास करमचंद गांधी का चरखा चलाने का संकेत स्वावलम्बी बनाकर आत्मनिर्भर बनने को प्रेरित करता है। बड़ी आत्मीयता से मोदी जी ने जनवरी 2000 में जन्म लेने वाले युवा देशवासियों को भी आकर्षित किया। उन्होंने 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों में प्रथम वार मतदाता का संवैधानिक अधिकार पाने वालों को राष्ट्रीय कार्यो में भागीदार बनकर न्यू इंडिया के निर्माण का आह्वान भी किया। अनेक अवसरों पर “चलता है” जैसे टालने वाली कार्यप्रणाली पर उन्होंने आपत्ति करते हुए उसमें अपनी नई सोच से “बदल सकता है” और “बदलना होगा” का भी सुझाव दिया। वही कश्मीर में जब ‘ऑपरेशन ऑल आऊट’ के कारण हमारे सुरक्षा बलों को कश्मीर के आतंकवादग्रस्त क्षेत्रो व भारत-पाक सीमांत स्थानों पर निरंतर आतंकियों का शिकार करने में सफलता मिलने पर भी प्रधानमंत्री जी का यह कहना कि “कश्मीर की समस्या न गाली से , न गोली से , यह सुलझेंगी तो केवल कश्मीरियों को गले लगाने से” अपने आप में एक असाधारण कूटनीतिज्ञता का परिचय करा रही है। इसपर भी यहां हमें यह नही भूलना चाहिये कि कश्मीर के अलगाववादियों पर भी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एन.आई.ए.) द्वारा चल रही विशेष जांच-पड़ताल से भी शत्रुओं के अनेक षड्यंत्रों का पता चल रहा है। फिर भी मोदी जी ने 1947 में पश्चिमी पाकिस्तान से जम्मू कश्मीर में आये हुए दंगा पीड़ित हिंदुओं और कश्मीर घाटी से 1990 में विस्थापित हिंदुओं की दशकों पुरानी समस्याओं के लिये सरकार की योजनाओं को अभी स्पष्ट नही किया ? क्योंकि अनुच्छेद 370 को हटाने की स्थिति में 35(क) के लिये एक जनहित याचिका सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है। अतः इन संविधानिक विभाजनकारी अनुच्छेदों के हटने से ही संभवतः लाखों हिन्दू कश्मीरियों की समस्या कुछ सीमा तक सुलझ सकती है ? अपनी कार्यकुशलता व प्रशासनिक निर्णयों के धनी मोदी जी ने स्वतन्त्र भारत की आरंभिक जातिवाद व सम्प्रदायवाद की समस्याओं पर कठोर होने का संदेश देकर आस्था के नाम पर हिंसा करने वालों को पुनः सावधान किया है । इसके अतिरिक्त उन्होंने अपने संबोधन में कुछ पूर्व वक्तव्यों की पुनरावृति करते हुए जैसे नोटबंदी व उससे लाभ , कालाधन व भ्रष्टाचार एवं तीन तलाक़ आदि पर भी विचार रखें।
वैसे यह अत्यंत शुभ संकेत है कि गत वर्ष की भांति इस बार भी स्वतंत्रता दिवस पर अत्यधिक उत्साह देखने को मिला, नगर -नगर में तिरंगे लहराते हुए अनेक रैलियां निकाली गई । युवाओं में राष्ट्रभक्ति का बीज निरंतर अंकुरित होता दिख रहा था । ऐसा सुखद व राष्ट्रभक्तिपूर्ण वातावरण का निर्माण वस्तुतः वर्तमान केंद्रीय व कुछ प्रदेशीय सरकारों के राष्ट्रवाद की सर्वोच्चता को बनायें रखने का सफल परिणाम है । लेकिन अपवाद स्वरुप कुछ अराष्ट्रीयता भी देखी गई। मुख्यरुप से केरल के एक विद्यालय में सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी का ध्वजारोहण करना वहां के प्रशासन के अनुसार अशोभनीय रुप से विवादित माना जा रहा है।जबकि अनेक मदरसों में तिरंगा लहराने व राष्ट्रगान गाने के शासकीय आदेशों का पालन किया गया। परन्तु कुछ अधिक कट्टर सोच वाले मदरसों ने अपनी दूषित मानसिकता का परिचय देते हुए तिरंगा तो फहराया लेकिन राष्ट्रगान के गायन का विरोध किया।
इस प्रकार के विरोधाभासों के उपरांत भी स्वतन्त्रता दिवस के राष्ट्रीय पर्व पर वर्षो बाद इतना उत्साह देखकर, पढकर व सुनकर अपना बचपन याद आ गया । वे उमंग और उत्साह के दिन भूली-बिसरी यादें बन कर रह गयी थी। जब हम छोटे थे तो स्कूल-कालेज में स्वतंत्रता-दिवस व गणतंत्र-दिवस धूमधाम से मनाया जाता था। खेल होते थे , बैंड बजते थे , मार्च-पास्ट होता था और एन.सी.सी की परेड होती थी । कही कही स्कुलो में क्रांतिकारियों के जीवन से सम्बंधित नाटक व वीर रस के कवि सम्मलेन भी होते थे जिसके लिए कुछ दिन पूर्व तैयारियां की जाती थी । एक-दो दिन पहले से ही देशभक्ति के गीत गूंजने लगते थे। उत्सव के बाद स्कुल-कालिज में छात्र-छात्राओं के हाथों में मिठाइयां होती थी जिसमें से कुछ खाते थे और कुछ घर ले आते थे। यह परम्परा अभी भी कुछ स्कूलो में चली आ रही होगी , पर अधिकाँश विद्यालय अब “पब्लिक स्कूल” ( Public School ) बन गए है । वहां अब इन राष्ट्रीय पर्वो पर “अवकाश” रहता है परन्तु बच्चों को पहले दिन इन पर्वो का संभवतः थोडा ज्ञान अवश्य करा देते है । लेकिन यहां एक बात अवश्य कटोचती है कि इन पब्लिक स्कुलो में नेशनल कैडेट कॉर्प्स (एन.सी.सी.) या तो है ही नहीं या इसकी अनिवार्यता को हटा लिया गया । इन राष्ट्रीय पर्वो पर विद्यालयों और महाविद्यालयों में अवकाश नही होना चाहिये , क्योंकि ऐसे ही अवसरों पर बालक-बालिकाओं व युवा पीढ़ी के अंदर राष्ट्रीयता का बोध होने से उनमें देश के प्रति समर्पण की भावना जागती है। साथ ही एन.सी.सी जो युवाओं को शत्रुओं के प्रति एक सैनिक के भांति युद्ध करने का प्रशिक्षण देती है को भी अनिवार्य करना चाहिए । इस प्रकार बालक व बालिकाओं और युवाओं में राष्ट्र के लिये बलिदान हुए महान क्रांतिकारियों को स्मरण करने से उनसे प्रेरणा मिलती है और राष्ट्रीय भाव जागृत होने से मातृभूमि के प्रति समर्पण का आत्मबोध होता है। ये राष्ट्रीय पर्व सांस्कृतिक धरोहरों के समन्वय के साथ राष्ट्र की सुरक्षा व अखंडता के लिए भी आवश्यक भूमिका निभायें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ।