नागरिक आंदोलन पर राजनीति

बातचीत का सिलसिला जारी रहना चाहिए

बाबा रामदेव द्वारा अपने आदोंलन की घोषणा करने के तुंरत बाद ही केन्द्र सरकार हरकत में आ गई थी। आदोंलन की शुरूआत से पहले ही सरकार ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए बाबा रामदेव के साथ अपनी बातचीत शुरू कर दी थी। दिल्ली हवाई अड्उे पर भारत सरकार के चार मंत्रियों और कुछ वरिट नौकरशाहों द्वारा बाबा रामदेव द्वारा उठाये जाने वाले मुद्दों पर लम्बी बात की। सरकार ने बाबा के साथ उनका सत्यग्रह शुरू होने के बाद भी दूसरे दौर की बात की थी। बाबा और सरकार के बीच हुई बातचीत में दोनों तरफ से यह दावा किया गया कि 90 प्रतिशत से ज्यादा मॢद्दों पर सहमति बन गई है।

सहमति के करीब करीब पहुचें आंदोलन के संयोजकों और सरकार के बीच अचानक तनाव इस कदर बड़ा कि सरकार ने शांतिपूर्वक चलने वाले इस आदोंलन को दमनचक्र चला कर कुचल दिया। इस दमन के विरुद्व संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट और राट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सरकार से जवाब मांगा है।

अन्ना हजारे और उसके बाद बाबा रामदेव द्वारा भ्रटाचार के विरुद्व छेड़े गये इस आदोलन के चलते देश में भ्रटाचार विरोधी महौल बनने लगा था इसी से ध्यान हटाने के मकसद से कांग्रेस पार्टी और सरकार से जुडे कुछ लोगों ने एक गैर राजनीतिक आंदोलन को राजनीतिक रंग देने में कोई कसर नही छोड़ी। कभी इसे भाजपा और कभी राट्रीय स्वय सेवक संघ के साथ जोड़ा गया। संघ एक सामाजिक संगठन है और अगर वह इस तरह के किसी आभियान को अपना समर्थन देता है तो उसमें परेशानी क्या है?

संघ जयप्रकाश नारायण की संर्पूण क्रांति और वीपी सिंह के भ्रटाचार विरोधी आदोंलनों को समर्थन दे चुका है। संघ ने समाजसेवी अन्ना हजारे के आदोंलन को भी अपना समर्थन दिया था इसका मतलब यह तो नही कि इन आदोलनों का नेतृत्व करने वाले लोग संघ के स्वयसेवक हो गये? सरकारी डडें की ताकत से दिल्ली से खदेड़ दिये गये बाबा रामदेव हरिद्ववार से ही अपना अनशन जारी रखे हुए है। सरकार और बाबा के बीच तनाव बना हुआ है और बातचीत का सिलसिला रुक गया है।

आज सुबह कुछ आंग्रेजी न्यूज चैनल पर राट्रीय स्वयसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बाबा रामदेव द्वारा शुरू किये गये भ्रटाचार विरोधी आंदोलन पर बोलते हुए कहा कि बातचीत दुबारा शुरू होनी चाहिए। संघ की यह सोच सरहनीय है।

सरकार भी बार बार यह कह रही है कि वह भ्रटाचार पर गंभीर है अन्ना हजारे के साथ वह लोकपाल बिल बना रही है। कालेधन को वापिस लाने के प्रयास हो रहे है। बाबा रामदेव के साथ उनकी मांगों पर लगभग सहमति बन गई थी। फिर समास्या क्या है कि बाबा को अपना अनशन जारी रखना पड़ रहा है। आदोंलनकारी निर्दोा लोगों पर हुई दमनत्मक कार्यवाही पर सुप्रीम कोर्ट संज्ञान लेगा ही। बाबा ने भी क्षमा की बात करके सकरात्मक संकेत दिये है। इसका लाभ उठाते हुए बातचीत दुबारा शुरू की जानी चाहिए। बातचीत का सिलसिला रुकना नही चाहिए क्योंकि इस मुद्दे का समाधान बातचीत से ही निकलेगा।

आऱ एल़ फ्रांसिस

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