राष्ट्रीय एकता और हिन्दी अनुवादक

क्षेत्रपाल शर्मा

(केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो(भारत सरकार), बालीगन्ज,कोलकता में 05.09.11 को दिया गया भाषण).

विषय :अनुवाद के सिद्दांत एवं राजभाषा कार्यान्वयन की प्रणाली

 

मूर्धन्य कवि पं. भवानी प्रसाद मिश्र ने कहा है कि

कुछ लिखकर सो , कुछ पढ़कर सो

जिस जगह सुबह जागा था , उससे बढकर सो.

उपरोक्त ही प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का दैनिन्दिन होना चाहिए.अब तक सरकार के दफ़्तरों में अंग्रेजी का बोलबाला रहा, पचासी के दशक के बाद अनुवादकों की नियुक्तियां शुरू हुईं.अनुवादक सरकारी काम हिन्दी में करने में रीढ़ की हड्डी हैं. अनुवादक का काम बेहद हुनर और कशीदाकारी का काम है.

हो सकता है कि ऊपर बैठे व्यक्ति को हिन्दी भाषा की समुचित जानकारी भी न हो तब उन्हैं मार्गदर्शन भी न मिलेगा.अनुवाद अत्यन्त जटिल और श्रम साध्य काम है. सरकारी दफ़्तरों में अब अच्छे अनुवादकं की विशेष मांग है.

अ. गुर ( तरकीब)

1. अनुवाद शब्द का नहीं ,भाव का होता है . संदर्भ से शब्द अर्थ ग्रहण करता है जैसे चार्ज, इसके प्रशासन इन्जीनिअरी,पुलिस, फ़िजिक्स,सब में अलग अलग अर्थ हैं.

2.सटीक और समुचित शब्द का प्रयोग हो. विधि शब्दावली,आकाश वाणी शब्द्कोश, पारिभाषिक शब्द संग्रह, एवं रिजर्व बैंक की वित्त शब्दावली से मदद लें . हरदेव बाहरी का शब्दकोश भी देखें.

3. पारिभाषिक शब्द वे शब्द हैं , जिनकी किसी कानून में परिभाषा दी गई हो जैसे बच्चे की परिभाषा भारतीय दंड संहिता,एप्रेन्टिस ऎक्ट,ईएस.आई एक्ट में आयु पर निर्भर करते हुए अलग अलग है.

4.अपने किए अनुवाद को अंत में अर्थ की दृष्टि से पढ़ जरूर लें. जल्दबाजी न करें.

5.अपरिचित शब यदि कोई हो तोपेज के अंत मे फ़ुट्नोट देकर उसे स्पष्ट कर दें.

आ . अध्येता .

अनुवादकों को अपने कार्यालयों में राजभाषा कार्यान्वयन के अन्य जरूरी कामों पर भी ध्यान देना होता है . यह काम बेहद तकनीकी एवं पर्यवेक्षीय ज्यादा है.जैसे

क. राजभाषा पक्ष के कार्यान्वयन के लिए हर तीन माह में बैठक करना, कार्यसूची, और कार्यवृत्त बनाना . प्रशिक्षण के लिए रोस्टर बनाना, ह्न्दी शिक्षण की तिमाही अर छमाही रिपोर्ट भेजना

ख. अधिकारी और कर्मचारी दोनों की हिन्दी कार्यशालाएं चलाकर व्यावहारिक प्रशिक्षण देना.

ग. सहायक शब्दावली साहित्य तैयार करना.

घ. विभिन्न प्रभागों में स्थल पर मार्गदर्शन देना

नगर समितियों से समन्वय और संपर्क रखना

इ . मानवीय पक्ष

अनुवादकों को दफ़्तरों में जो बाबूगीरी के लक्षण दिखते हैं, वे प्राय: जडता के होते हैं, इस पर पारकिन्सन के नियम लागू होते हैं , समय की बरबादी, निकम्मापन,दोषारोपण आदि. कभी कभी लगता है कि इनकी इस कल्चर से अपनी एग्रीकल्चर अच्छी है . फ़्रान्सिस बेकन ने लिखा कि फ़्राम पेन, मेन कमटू ग्रेटर पेन- तो प्रतियोगी परीक्षा पास करने में मेहनत ,फ़िर आप नौकरी में आए तो दायित्व के साथ साथ…. , अपढ और गंवार आप का कोलर पकड़ ले तो इसे आप क्या कहेंगे. जड़ता से मेरा आशय बाबुओ की एसी मनोवृत्ति से है जिसे यों समझें कि पशुता के निकट का व्यवहार अपने अधीनस्थ से करना, जैसे कि खूंटे ( सीट) से बंधे रहो, कहां गए थे सेट पर नहीं थेआदि आदि.इसे यूं समझें कि प्यादे से फ़र्जी भयो टेढो टेढो जाय..इस पर ज्यादा जानकारी के लिए ईलियट का वेस्टलेन्ड देखना है.

कम ही व्यक्ति अच्छे मन और तरोताजा भाव् से दफ़तर जाते हैं. यह भी कि ईमानदारी आप कानून से लागू नहीं कर सकते.वही एक घिसापिटा वातावरण.इसमें नए अनुवादक को तारतम्यता , वह भी भाषा की अस्मिता,स्वाधीनता जैसे संकल्पों के साथ बनाए रखनी पड़ती है.वरना अलग थलग पड़ जाने का खतरा.हालात यहा तक पहुंचते हैं जो कभी हरिवंश राय बच्चन जी ने कहे कि मैं अपने किए अनुवाद का पहला और अंतिम पाठक हूं.जैसे यह शेर

असीरे कुन्जे कफ़स का यह हाल है अब तो ,

खुद अपने जमजमे सुनता है खुद फ़ड़कता है .

इस तरह भारी भरकम रिपोर्टों का अनुवाद पिष्ट पेषण और बरबादी जैसा लगने लगता है.

इस विधेयक का उद्देश्य सरकारी काम में मौलिक रूप से हिन्दी में काम बढाना है.जो अब इतने सालो बाद खुले मन और साफ़ नीयत से किया जाना अपेक्षित है.तभी भारत के विभिन्न सूबों के बीच हन्दी राष्ट्रीय एकता की कड़ी केरूप में उभरेगी. .जैसा धार्मिक मठ स्थापनाओ में हुआ, स्वाधीनता आन्दोलन में हुआ.

ई टिप्पणी लेखन

क. यह सरल भाषा व अन्य पुरुष मे हो ( गालिब का शेर अपने कहे को खुद समझे तो क्या समझे , मजा कहने का तब है जब एक कहे दूसरा समझे)

विचाराधीन पत्र को सही सही रिफ़्लेक्ट करे.

नियमों पर आधारित हो. नज़ीर हों तो दें

मामला जटिल हो तो सार दिया जाए.

मामला अंतिम रूप से निर्णीत हो जाए तो तदनुसार सूचित किया जाए.

उ अद्यतन जानकारी

पाणिनी की अष्टाध्यायी के बाद हिन्दी के वैयाकर्णाचार्य किशोरी दास वाजपेयी और कामता प्रसाद गुरु , से आगे बढकर इसकी ग्रामर को सरल करने की जरूरत है.विदेशी शब्दों और कंप्यूटर कीअच्छी जानकारी से अपने को युक्त रखें. हिन्दी की वृद्धि के नाम पर ढोंग और आडम्बरवाद को न पनपने दें.मूल काम हिन्दी में करना सबका संवैधानिक कर्तव्य है.

कर्यालयों की ओर उशारा करते हुए एक कवि ने लिखा था कि वैसे तो सब खूंटी से बंधे हैं लेकिन एक गधा यह समझता है कि वह घोड़ा है बाकी सब गधे हैं.

जो उच्चाधिकारी समझदार हैं वह एसे गुणी, कर्मठ अनुवादकों की प्रतिभा को कभी भी कुंठित होने देने की बजाए उनकी होसला अफ़जाई करते रहते हैं

कुछ इस तरह

माना कि तुम को अपनी बुलन्दी पे नाज़ है

दिल में कभी किसी के उतरना भी चाहिए.

1 COMMENT

  1. shri kshetrapal sharma ka “rashtreey ekta aur hindi anuvaadak vishay par vicharottejak aalekh / vyaakhyaan se rubru hua.umda aalekh ke lie dhanyavaad.Aaj bharat sarkar bhram kee sthiti main hai.Use yah nahee pata ki use hindi ke rup main anuvaad chahie ya hindi main maulik lekhan ? kya vartmaan rajbhasha-neeti ise poora kartee hai ?Kya saath baras se chalee aa rahee maujooda neeti main parivartan kee jaroorat hai ? Hindi ke maujooda svanyamsevee sangathano kee bhumika kee padataal kee janee
    chahie. Vaigyanik shabdavali Aayog ke kiye gaye sare kamkaaj ko Online sarvjanik kiya jaana chahie, jisase aam
    janta ise samajh sake .bhavishy ke lie hindi main kiye jaane vaale ati jarooree 100 karyon kee shinakht kee jaanee chahie aur is par bharat sarkaar samaybaddh kary kare.Hindee kee sabhee samition main naakara longo kee pahachaan kar unkee chhuttee kee jae.Vartamaan kenrdeey hindi samiti ko bhang kiya jae.ye hindi ke thhaluaa longo ka club hai.isaka koi saarthak yogdaan filhaal soonya hai..Hindi ke mamle main vartmaan dhharra badalaa jaanaa chahie. Khuda haafij.
    -Dharmendra kumar Gupta
    Indore.
    16/09/2011

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