-पर्यावरणीय दोहे-
वायु, जल और यह धरा, प्रदूषण से ग्रस्त।
जीना दूभर हो गया, हर प्राणी है त्रस्त।।
नष्ट हो रही संपदा, दोहन है भरपूर।
विलासिता की चाह ने, किया प्रकृति से दूर।।
जहर उगलती मोटरें, कोलाहल चहुंओर।
हरपल पीछा कर रहे, हल्ला गुल्ला शोर।।
आंगन की तुलसी कहां, दिखे नहीं अब नीम।
जामुन-पीपल कट गए, ढूंढ़े कहां हकीम।।
पक्षी, बादल गुम हुए, सूना है आकाश।
आबोहवा बदल गयी, रुकता नहीं विनाश।।
शहरों के विस्तार में, खोये पोखर ताल।
हर दिन पानी के लिए, होता खूब बवाल।।
नदियां जीवनदायिनी, रखिए इनका मान।
कूड़ा-कचड़ा डाल कर, मत करिए अपमान।।
ये प्राकृतिक आपदाएं, करतीं हमें सचेत।
मौसम का बदलाव भी, देता अशुभ संकेत।।
कुदरत तो अनमोल है, इसका नही विकल्प।
पर्यावरण की संरक्षा, सबका हो संकल्प।।