उदारता और मूर्खता में बहुत बड़ा अंतर होता है । ये सामान्य सा तथ्य है जिससे शायद देश का आम आदमी भी बखूबी परीचित है । किंतु जहां तक राजनेताओं का प्रश्न है शायद वो इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं या इसे स्वीकार नहीं करना चाहते ? पता नहीं जो भी पर हमारी सरकारों द्वारा इस प्रकृति की मूर्खता की पुनरावृत्ति का सिलसिला बदस्तूर चलता जा रहा है । जिसका परिणाम आज पाकिस्तान और कट्टरपंथी इस्लामिक ताकतों के उच्च मनोबल के रूप रोजाना ही हमारे सामने आ रहा है । एक हम हैं जो पड़ोसी धर्म निर्वाह पर देशहितों की तिलांजली देने पर अमादा हैं एक पाक है जो हमारी कायरता का पूरा लाभ उठा रहा है । जी हां हमारी सरकारों के तुच्छ रवैये को उदारता नहीं वरन कायरता ही कहना ज्यादा मुफीद होगा । इस पूरी प्रक्रिया की गाज रोजाना ही सीमाओं की निगहबानी करने वाले जवानों पर गिरती है । इस सबके बावजूद भी हमारे नेताओं का पाक प्रेम घटता नहीं बल्कि दिन प्रतिदिन की दर से बढ़ता चला जा रहा है । आखिरी नेताओं की मानसिक क्षुद्रता की बलिवेदी पर कब चढ़ते रहेंगे जवान ? ये एक प्रश्न है जो आजादी के बाद से आज तक अनुत्त्रित बना हुआ है ।
जहां तक पाकिस्तान का प्रश्न है तो एक बात साफ तौर समझ लेनी चाहिए कि पाक कोई लोकतंत्र में यकीन रखने वाला राष्ट्र नहीं है बल्कि जन्म से आतंक एवं कठमुल्लों से संचालित होने वाला देश रहा है । इसी कारण पाक का नियंत्रण वहां के नेताओं के हाथ में नहीं बल्कि सेना के हाथ में रहा है । अब हाल ही की घटनाओं पर गौर करें तो बहुत सी बातें सामान्य रूप से हमारी समझ आ जाएंगी । यथा चुनाव से पहले नवाज शरीफ भारत के साथ मधुर संबंधों की वकालत करते थे,किंतु चुनावों के बाद उनका रूख अब इसके ठीक उलट हो चुका है । अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान नवाज शरीफ ने दोबारा कश्मीर मामले के अंतर्राष्ट्रीयकरण करने का प्रयास किया है । दूसरी ओर पाक सेना द्वारा संघर्ष विराम के समझौते का उल्लंघन लगातार जारी है । पाक सेनाएं रोजाना की दर से घाटी में भारी गोलीबारी कर रही हैं । हालात ये है कि वार्ता की मेज पर हमारे नेता शांति वार्ता का क्षुद्र राग अलाप रहे हैं तो दूसरी ओर सीमाओं पर ठीक उसी समय गोले दागे जाते हैं । इस तरह तो कभी शांति नहीं आ सकती है । आपको क्या लगता है ?
अपने लंदन दौरे के दौरान नवाज शरीफ ने कहा कि भारत और पाकिस्तान दोनों के पास परमाणु हथियार हैं और यह क्षेत्र परमाणु हथियारों के ज्वालामुखी पर बैठा है । इस मामले के और बिगड़ने के पहले अमेरिका को दखल देकर कश्मीर समस्या को हल करना चाहिए । इस वकत्व्य से कई प्रश्न उठते हैं । यथा क्या नवाज के इस वकतव्य में आपको कोई शराफत नजर आती है ? या कश्मीर समस्या क्या है और किसके द्वारा है ? इन सभी प्रश्नों के उत्तर में हैं पाक की विभत्स नीतियां और नवाज शरीफ की घटिया सोच । क्या ऐसा नहीं है ? यदि ऐसा है तो ये सत्य हमारी सरकारों की समझ में कब आएगा,पता नहीं । पर एक बात तो साफ है कि कश्मीर समस्या में पाक की घृणित नीतियों और भारत के नेताओं की तुच्छ सोच दोनो बराबर की जिम्मेदार हैं ।
इतिहास गवाह है कि महाराज हरिसिंह की इच्छानुसार कश्मीर के भारत के विलय की घोषणा के बाद से ही हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं । सर्वप्रथम पाक द्वारा अतिक्रमण और उसके बाद हमारे नेताओं के दयनीय समर्पण ने कश्मीर की घाटी को विवादित कर डाला । इस विवाद की परछाईं युद्ध के रूप में रोजाना ही घाटी को अशांत कर रही है । जहां तक युद्ध का प्रश्न है तो इसके पीछे का मूल कारण है कूटनीतिक विफलता । भारतीय नेताओं को स्वीकार करना होगा कि उनकी इस भूल का खामियाजा आज पूरा देश उठा रहा है । विशेषकर घाटी के हिन्दू जो दर-बदर की ठोकरे खाने पर विवश हैं । याद रखिए ये नवाज वहीं हैं जिनके शासन काल में भारत को कारगिल युद्ध का सामना करना पड़ा था । एक ओर तात्कानील प्रधानमंत्री अटल जी पाक में शांति सद्भाव का संदेश दे रहे थे तो दूसरी ओर पाक सेनाएं धोखे से युद्ध का ताना-बाना बुन रही थीं । अटल जी की नाकामी से ये बात साफ हो जाती है कि पाक समस्या का अंत शांति से तो कत्तई नहीं हो सकता है । इस पूरे प्रकरण में भारत को अपने हितों के लिये तटस्थ रूख भी अपनाना पड़ेगा । अन्यथा नतीजे वही ढाक के तीन पात होंगे । ऐसे में ये कहना गलता न होगा कि नवाज से शराफत की उम्मीद बेवकूफी से ज्यादा कुछ नहीं है । अंत में मिर्जा गालिब का ये शेर और बात खत्म –
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत गालिब,
खुश रहने को ये ख्याल अच्छा है ।