नक्‍सलवाद : कल से आज तक

सोनू कुमार

जन आंदोलन से शुरू हुआ नक्सलवाद अब लेवी के रूप में 1500 करोड़ रुपए का संगठित रंगदारी व्यवसाय बन गया है। पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा अधिकारियों ने कहा कि भाकपा (माओवादी) खासकर इससे जुड़े समूह रंगदारी से जो रकम हासिल करते हैं उसका इस्तेमाल वे आंदोलन चलाने के लिए नहीं बल्कि अपने नेताओं की ऐशोआराम वाली जीवनशैली को बरकरार रखने के लिए करते हैं।

भारत-चीन युद्ध 1962 के बाद 1964 में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी साम्यवाद की रूसी और चीनी विचारधारा और रणनीति के मतभेदों के कारण दो गुटों में विभाजित हो गई। चीनी विचारधारा वाले गुट ने मार्क्सिस्ट कम्यूनिस्ट पार्टी के नाम से नई पार्टी बनाकर अनुकूल क्रांतिकारी परिस्थिति के आने तक सशस्त्र संघर्ष को टालकर चुनाव में भाग लेने का तय किया। जब उसने 1967 के चुनाव में भाग लेकर बंगला कांग्रेस के साथ पश्चिम बंगाल में संविद सरकार बनाई तब चारू मजूमदार ने मार्क्सिस्ट कम्यूनिस्ट पार्टी पर क्रांति के साथ विश्वासघात और नवसाम्राज्यवादी, सामंती तथा पूजीवादी व्यवस्था का दलाल होने का आरोप लगाकर मार्क्स-लेनिन-माओ की विचारधारा के आधार पर नया गुट बना लिया। इसी वर्ष दार्जिलिंग जिले के एक गांव नक्सलबाड़ी में जब एक आदिवासी युवक न्यायालय के आदेश पर अपनी जमीन जोतने गया तो उसपर जमीदारों के गुंडों ने हमला कर दिया। आदिवासी किसानों ने कानू सन्याल और चारू मजूमदार के नतृत्व में जमीदारों के कब्जे की जमीन छीनने का सशस्त्र संघर्ष छेड़ दिया।

नक्सलबाड़ी गांव से शुरू होने के कारण इस संघर्ष को नक्सलवाद कहा जाने लगा। लेकिन मार्क्स-लेनिन-माओ के विचार मानने के बावजूद कानू सन्याल और चारू में रणनीति का मतभेद था। कानू सन्याल जनता को विचारों से लैस कर लड़ाई के लिए तैयार करने की बात कहते थे। लेकिन चारू सीधे दुश्मनों की हत्या के पक्ष में थे।

नक्सलबाड़ी का विद्रोह कानू सान्याल के नेतृत्व में किसानों का विद्रोह था। लेकिन पश्चिम बंगाल में नक्सलवाद का विकास चारू के विचारों के आधार पर आगे बढ़ा और गांव से शहरों तक फैल गया। इसमें नक्सलवादियों और शासन द्वारा व्यापक हिंसा हुई। यह आंदोलन पश्चिम बंगाल की सरकार द्वारा निर्ममता के साथ दबा दिया गया।

1980 में आंध्रप्रदेश के तेलंगाना क्षेत्र में पीपुल्स वार ग्रुप के नाम से नक्सलवाद का दूसरा आंदोलन शुरू हुआ जो उड़ीसा, झारखंड और छत्तीसगढ़ तक फैल गया। जिस तरह माओ ने सशस्त्र क्रांति द्वारा चीन की सत्ता हाथ में ली थी, नक्सलवादी उसी तरह नेपाल और भारत की सत्ता हथियाने का सपना देखते हुए पिछले कुछ ही वर्षों में 9 प्रदेशों के 76 जिलों से बढ़कर 12 प्रदेशों के 119 जिलों में फैल गए हैं। नक्सलवाद के जन्म से अबतक विचारधारा और रणनीति के आपसी मतभेदों के चलते उनमें अनेक गुट बने। लेकिन 21 सितंबर 2004 को प्रमुख गुटों पीपुल्स वार ग्रुप और भारतीय माओवादी कम्यूनिस्ट सेंटर ने आपसी समन्वय से एक नई पार्टी कम्यूनिस्ट पार्टी आफ इंडिया (माओवादी) गठित कर ली। लेकिन कानू सन्याल का सीपीआई(माले) लिबरेशन गुट अभी अलग है और वह माओवादी दल की रणनीति को अराजक मानता है।

नक्सलवादी भारतीय संविधान को नहीं मानते। वे भारत की पूरी राजनैतिक व न्याय व्यवस्था को साम्राज्यवाद और सामंतवाद की कठपुतली और भारत के लोकतंत्र को वे छद्म लोकतंत्र कहते हैं। जो भी हो वे नेपाल से बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ़ होते हुए आंध्रप्रदेश तक एक सघन लाल गलियारा बनाने की फिराक में हैं।

विभिन्न अभियानों के दौरान केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों और पुलिस द्वारा जब्त किए गए नक्सल साहित्य और दस्तावेजों से नक्सली समूहों द्वारा वसूली जाने वाली लेवी के बारे में विस्तृत खुलासा हुआ है जिसका हर साल का आंकड़ा करोड़ों रुपयों का है। भाकपा (माओवादी) हालांकि झारखंड में अब भी पमुख नक्सली समूह है लेकिन अन्य भी बहुत से छिटपुट समूह हैं जिन्होंने अपहरण लूटपाट और मादक पदार्थों की तस्करी के अतिरिक्त लेवी लगाने का काम शुरू कर दिया है जिसके तहत राय से सालाना लगभग तीन अरब रुपए की वसूली होती है। यदि नक्सलवाद से सर्वाधिक प्रभावित सात रायों तथा लाल गलियारे के रूप में जाने जाने वाले झारखंड, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, बिहार, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र से लेवी के जरिए हासिल होने वाली रकम के बारे में सुरक्षा एजेंसियों के आंकड़ों पर भरोसा किया जाए तो सालाना लगभग 1500 करोड़ रुपए की आमदनी बैठती है। सुरक्षाबलों द्वारा बरामद किए गए दस्तावेजों से नक्सलियों की आय के बारे में खुलासा हुआ है जिनमें ठेकेदारों, पेट्रोल पंप मालिकों तथा भू स्वामियों से वसूली जाने वाली लेवी राशि के सही आंकड़े स्पष्ट दिखाई देते हैं। सड़कें बनाने की परियोजना में जहां आम तौर पर 10 प्रतिशत लेवी वसूली जाती है वहीं छोटे पुलों और अन्य परियोजनाओं के मामले में पांच पतिशत लेवी वसूल की जाती है। तय लेवी के अतिरिक्त वाम विचारधारा वाले चरमपंथी समूह क्षेत्र में काम करने वाले उद्योगपतियों से भी धन की मांग करते हैं। इतना ही नहीं वे वसूले गए धन के लिए रसीद भी जारी करते हैं। केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के उप महानिरीक्षक (झारखंड) आलोक राज ने बताया कि राय में वाम विचारधारा से जुड़े छह चरमपंथी समूह काम कर रहे हैं जिनमें से पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट आफ इंडिया यादातर अपराधियों से बना है। इस समूह को पहले झारखंड लिबरेशन टाइगर्स कहा जाता था। उन्होंने कहा कि ये समूह लंबे समय तक विचारधारा के लिए नहीं बल्कि रंगदारी के लिए काम करते हैं। रोचक बात यह है कि धन के लिए सिर्फ नक्सली ही ठेकेदारों से संपर्क नहीं करते बल्कि कुछ मामलों में ठेकेदार खुद धन के साथ नक्सलियों से संपर्क साधते हैं। झारखंड के पुलिस महानिदेशक वीडी राम ने कहा कि कुछ मामलों में देखने में आया है कि ठेकेदारों ने अपने द्वारा बनाई गई सड़कों को विस्फोट से उड़वाने के लिए नक्सलियों से खुद संपर्क किया क्योंकि उन्होंने सड़क बनाने में घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया था। ऐसे ठेकेदारों कामानना होता है कि यदि उनके द्वारा बनाई गई सड़कों को नक्सली उड़ा देंगे तो उनमें लगाई गई सामग्री की गुणवत्ता की कोई जांच नहीं हो पाएगी। अधिकारियों ने कहा कि माओवादी नेता सभी तरह की आधुनिक सुख सुविधाओं के साथ ऐशोआराम की जिन्दगी व्यतीत करते हैं। हालांकि वे अपने संगठन में दूसरों के बच्चों की जबरन भर्ती करते हैं लेकिन उनके खुद के बच्चे अच्छे पब्लिक स्कूलों में पढ़ते हैं। माओवादी पूर्वोत्तर रायों के विद्रोहियों की तरह ग्रामीणों को अफीम की खेती करने के लिए भी उकसाते हैं। वर्ष 2007 में देशभर में बरामद किए गए 1.07 लाख किलोग्राम गांजे में से 15 हजार 498 किलोग्राम नगालैण्ड से, 14 हजार 815 किलोग्राम मध्य पदेश से, 12 हजार 551 किलोग्राम महाराष्ट्र से, सात हजार 470 किलोग्राम छत्तीसगढ़ से और सात हजार 59 किलोग्राम गांजा आंध्र पदेश से बरामद किया गया था।

अब फिर पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में ट्रेन पर किये हमले में नक्सलियों ने करीब सौ नागरिकों के परिवार को उजाड दिया है. जब हमले दर हमले करके नक्सली इस लोकतंत्र की चूलें हिलाने में लगे हैं. दांतेवाडा के एर्राबोर से लेकर चिंतलनार और अब पश्चिम बंगाल के मिदनापुर तक में बौखलाहट में जब आम-लोगों, बस और ट्रेन यात्रियों को निशाना बना रहे हैं तब वास्तव में ‘सलवा जुडूम’ की याद आ रही है. जिस तरह से देशद्रोही तत्वों ने दुष्प्रचार कर-कर के, लोकतंत्र के सभी स्तंभों द्वारा क्लीन-चिट मिलने पर भी जिस तरह से आस्तीन के साँपों ने दुष्प्रचार कर के इस महान आंदोलन को कमज़ोर किया, शायद इसी की परिणति है नक्सलियों द्वारा अपने नापाक मंसूबे में कामयाब होते जाना. आदिवासियों के उस स्वतः-स्फूर्त आंदोलन को जिस तरह से दिल्ली के गोरे मीडिया और भाई लोगों ने बेच खाया ऐसा कोई अन्य उदाहरण मिलना असंभव है.

जो लोग हर बार यह तुकबंदी देकर कि यह आंदोलन टाटा के साथ एमओयू होने के अगले दिन ही शुरू होना बताते हैं. इस तुकबंदी के सहारे ही वह नक्सल विरोध को पूजीपतियों का समर्थन ठहराने की कोशिश करते हैं उनके लिए एक तुकबंदी और. कथित एमओयू उस दिन हुआ था या नहीं पता नहीं. लेकिन सलवा-जुडूम के जन्मदिन ही इतिहास में दो और मुख्य घटनाएं दर्ज आहें. एक ऑपरेशन ब्लू स्टार और दुसरे थ्येन-आन-मन नरसंहार. वास्तव में कई बार संयोग भी अपना औचित्य खुद ही साबित कर देता है. ऐसा भी हो सकता है कि प्रकृति कुछ संयोगों के सहारे कोई संदेश देना चाह रही हो। आज से बीस साल पहले की बात है. चीन की राजधानी बीजिंग के थ्येन आनमन नामक चौराहे पर अपने लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग करते हुए कुछ हजार लोग एकत्र हुए और चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने गोलियों की बौछार शुरू कर दी. हजारों लोग देखते ही देखते मांस के लोथड़े में तब्दील हो गये. भारत के जलियावाला बाग जैसा भयानक मंजर था वहाँ भी. दोनों जगह सरकारों ने एक जैसा ही ‘कमाल’ कर दिखाया था, बस फर्क था तो यह कि उस समय भारत एक गुलाम देश था जबकि चाइना में नरसंहार के वक्त उन्हीं कथित सर्वहारा की सरकार थी जिनके लिए चीन ने बंदूक का मुंह खोल दिया था.अब एक दूसरी घटना देखिये……….ये घटित होता है ठीक उसी दिनांक को 15 साल बाद बस्तर के फरसगांव में. वहां के कुछ लोग मिलकर तय करते हैं कि अब किसी भी कीमत पर माओवादियों की नाजायज हुकूमत नहीं चलने दी जायगी, नक्सली कहे जाने वाले लुटेरों को अब किसी तरह का सहयोग नहीं मिलेगा और बस्तरजन लोकतंत्र तथा अपने मानवाधिकार की रक्षा के निमित्त जान की बाजी लगा देंगे, मर जायेंगे लेकिन…………………………..

2 COMMENTS

  1. यह आंकडे दर्शाते है की भारत की वर्तमान संवैधानिक व्यवस्था चरमरा गयी है. संविधान, कानुन और व्यवस्था काम नही कर रहे है. हमे वर्तमान शासन व्यवस्था एवम संविधान के विकल्प के बारे मे अवश्य सोचना चाहिए. सत्य यह है कि 1947 मे भारत ने जो स्वतंत्रता हासिल की थी वह अवास्तविक थी. आज भी भारत की राज्य व्यवस्था फिरंगीयो के ईशारे पर चल्ती है. मै माओवाद को भारतीय शासन व्यवस्था के विकल्प के रुप मे सोचने के लिए तैयार हुं. दीनदयाल उपाध्याय के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अवधारणा विचार परम्परा को आगे बढा कर भी एक अच्छा विकल्प तैयार किया जा सकता है…. बेहतर है की हम खुद को जल्दी बदले…. भारत का वर्तमान संविधान जिसमे एक ईतालवी महिला देश की प्रमुख बन बैठे वह किसी काम का नही है.

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