कहते हैं कि सियासत में दोस्ती और दुश्मोनी कुछ भी स्थायी नहीं होती । बात चाहे समर्थन की हो या गठबंधन की सियासत में सब मतलब के यार होते हैं । भारतीय राजनीति की विषम परिस्थितियां कई बार इस जुमले को सत्यन सिद्ध कर चुकी हैं । इस परिप्रेक्ष्य में अगर भाजपानीत राजग गठबंधन को देखें तो बात और भी स्पष्ट हो जाती है । भाजपा में नरेंद्र मोदी के बढ़ते कद से जद-यू विशेषकर नीतीश कुमार की नाराजगी साफ समझी जा सकती है । बहरहाल इस पूरे मामले के चुनावी नतीजे जो भी हों लेकिन एक बात पूरी तरह स्पष्टं है कि राजग के बंधन की गांठें अब खुल चुकी हैं ।
जहां तक प्रश्न है गठबंधन के टूटने का तो इसके लिए सिर्फ और सिर्फ जद-यू ही जिम्मेदार है । इस बात को जदयू नेताओं के मीडिया में दिये बयानों से समझा जा सकता है । अभी हाल ही में एक बड़े जदयू नेता ने नरेंद्र मोदी को दंगाई कहकर उनके चुनावी नेतृत्व को अस्वी कार कर दिया । विचारणीय प्रश्ने है कि विगत दशक में केंद्र समेत बिहार में भाजपा के सहयोग से सरकार चला रही जदयू क्या अब तक इस सत्य से अंजान थी ? अथवा ये जदयू की कोई नयी खोज है ? इस मामले में सबसे बड़ी बात है मानहानि की,ज्ञात हो गुजरात दंगों के मामलों में माननीय न्यायलय भी नरेंद्र मोदी को दोषी सिद्ध नहीं कर सकी है । ऐसे में जदयू नेताओं की ये बयानबाजी क्या न्यायसय की अवमानना नहीं है ? अथवा आज मोदी विरोधी राग अलाप रहे नीतीश ने घटना के तत्काल बाद रेलमंत्री पद से इस्तीफा क्यों। नहीं दिया? इसके अतिरिक्त भी कई अन्य प्रश्ने हैं जिनके जवाब हम सभी के पास हैं । इन तमाम बातों से एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि राजग गठबंधन टूटने के लिए सौ फीसदी जिम्मेमदारी नीतीश के बुढ़भस की है । वही बुढ़भस जिसके तहत आडवाणी जी ने इस्तीफा दिया और वापस लिया । इस पूरे मामले को भले ही जदयू नेताओं द्वारा नीतिगत मामले का लिबास पहनाया जा रहा है लेकिन अंतरीम रूप से ये विवाद सिर्फ कुर्सी और महत्वकांक्षाओं का है ।
जहां तक प्रश्न है निष्कार्षों का तो भाजपा इस पूरे विवाद को चाह कर भी हल नहीं कर सकती । दूसरी ओर जदयू भी मोदी विरोध की रौ में इतनी आगे बढ़ चुकी है कि वापस आने का रास्ता शेष नहीं है । ऐसे में एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप उछालने के स्थान पर सम्मानजनक संबंध विच्छेयद इस प्रकरण का सबसे सुखद हल होगा । हां इस पूरे मामले में दोनों दलों को अपनी बयान बाजी में एक दूसरे की गरिमा और राजनीति के गौरव का ध्याजन अवश्यी रखना चाहिए । विशेषकर जदयू को क्योंककि दस वर्षों से भाजपा के अभिन्नि घटक दल बने रहने के बाद भाजपा को धर्मांध बताना अपनी ही साख पर बट्टा लगाने जैसा है ।
JDU ka NDA ko alvida kehna bhajpa ke baaNgi hai k bahut kathin hai dgr pnght kee.