चीनी ड्रैगन से डरने की नहीं लडने की जरूरत है

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ist2_5569861-china-dragonचीन लगातार भारत के घेरेबंदी में लगा है। इस घेरेबंदी का एकमात्र लक्ष्य भारत को कमजोर करना है। नेपाल में हुरदंगी समूह माओवाद का समर्थन, अरूणाचल पर अधिकार जताना, अरब सागर और बंगाल की खाडी में चीनी हस्तक्षेप यह साबित करने के लिए काफी है कि चीन भारत का हित नहीं सोच रहा है। चीन भारत का हित सोच भी नहीं सकता है क्योंकि वहां दो प्रकार का विस्तारवादी चिंतन हावी है। पहला दुनिया का सबसे खतरनाक अवसरवादी जातीय चिंतन हानवाद का विस्तार और और दूसरा सेमेटिक सोच पर आधारित ईसाइयत से प्रभावित साम्यवादी का प्रभाव। इन दोनों चिंतनों के अबैध संबंधों पर आधारित चीन आज दुनिया के लिए एक नए प्रकार का खतरा उत्पन्न कर रहा है। चाहे वह हानवादी विस्तारवाद हो या फिर साम्यवादी साम्राज्यवाद, दोनों ही चिंतन दुनिया को तीसरे महायुद्ध की ओर ले जाने वाला है।

चीनी रणनीति के जानकारों का कहना है कि चीन इस्लामी दुनिया की ओर हाथ बढ रहा है। इस बात की चर्चा लगभग 90 साल पहले भारतीय स्वातंत्र समर के दौरान महान क्रांतिकारी बिपिन चन्द्र पाल के द्वारा प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक हिन्दू रिव्यू में की गयी है। साथ ही श्री पाल ने अपनी भविष्यवाणी में यह भी जोडा है कि सम्भव है कि आने वाले समय में भारत के लिए यूरप के देश दोस्त की भूमिका में हों लेकिन चीन और इस्लामी दुनिया का गठजोड अन्ततोगत्वा भारत के खिलाफ जाएगा। आज चीन जिस ओर बढ रहा है उससे तो स्व0 बिपिन चन्द्र पाल की भविष्यवाणी सही साबित हाती दिखाई दे रही है। एक बार संयुक्त प्रजातांत्रिक गठबंधन सरकार के प्रतिरक्षा मंत्री और समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडिस ने चीन के चालों का मुखर विरोध करते हुए कहा था कि जिस देश के प्रत्येक चौक चौराहों पर फालतू चीनी व्यंजन बिकने लगा है उस देश को पाकिस्तान से नहीं चीन से सतर्क रहने की जरूरत है।

आज एक बार फिर भारत, चीन के निशाने पर है। चीनी सैनिक भारतीय सीमा का लगातार अतिक्रमण कर रहे हैं। चीनी जासूस पाकिस्तान, श्रीलंका, म्यमार, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान जैसे भारतीय उपमहाद्वीप के देशों में सक्रिय हो रहा है। इन देश में एक नये प्रकार के भारत विरोध को हवा देने की चीनी चाल सफल हो रही है। नेपाल में हिन्दी विरोध को इसी परिप्रेक्ष्य में लिया जाना चाहिए। भारतीय कूटनीति के द्वारा तिब्बत को चीनी साम्यवादी संघ का अभिन्न अंग मान लेने के बाद भी चीन इस बात से सहमत नहीं है कि अरूणाचल प्रदेश भारतीय संघ का हिस्सा है। लेह, लद्दाख, और सियाचीन का हवाई अड्डा चीनी सामरिक रणनीति के जद में है। विगत दिनों चीन ने अन्तरराष्ट्रीय आदर्श का अतिक्रमण करते हुए बयान दिया कि दलाई लामा का अरूनांचल यात्रा चीन में अलगाववाद को हवा देने के लिए एक सोची समझी रणनीति का नतीता है, और दलाई लामा की अरूणांचल यात्रा की छूट देकर भारत ने चीन के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप किया है। चीन जब पाकिस्तान के द्वारा प्रदत्त भारतीय भूमि पर सामरिक उपयोग के लिए सडक बनाता है तो वह अन्तरराष्ट्रीय कानून का उलंघन नहीं होता है लेकिन दलाई लामा एक नेक काम के लिए अरूणाचल जाते हैं तो वह चीन के गृह मामले में हस्तक्षेप की श्रेणी में आता है। यह चीन का कानून है जिसे भारत को मानना पडेगा क्योंकि चीन एक प्रभू राष्ट्र है तथा भारत उसके सामने कमजोर। भारत दलाई लामा को सुरक्षा प्रदान करने का बचन दिया है। यह भारती की विदेश नीति का अंग है। ऐसा भारत का इतिहसा रहा है। दुनिया जब जापान को परेशान कर रही थी तो दुनिया के प्रभू राष्ट्रों का विराध करते हुए भारत ने जापान का समर्थन किया। खुद चीन में साम्यवाद की स्थापना के बाद सबसे पहले भारत ने मान्यता उसे एक देश के रूप में मान्यता प्रदान किया। संयुक्त राष्ट्र संघ में भी भारत के समर्थन से ही चीन सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य बन पाया। पाकिस्तानी अत्याचार से बांग्लादेश को मुक्त कराने में भारत की भूमिका को दुनिया जानती है। नेपाल में बरबर राणाशाही की सामाप्ति में भारत ने अभूतपूर्व भूमिका निभाई । भारत की विदेशनीति है कि दुनिया में किसी भी जाति, धर्म, समूह, संप्रदाय के लोगों पर अत्याचार नहीं होना चाहिए। तिब्बत के लोगों को न्याय दिलाना भारतीय लोकतांत्रिक संघ का घोषित ध्येय है। अब दलाई लामा धार्मिक काम से अरूणाचल जा रहे हैं तो चीन की आपति क्यों? चीन बिना भारत को बताये और विश्वास में लिए भारतीय सीमा पर सैन्य उपयोग के लिए सडक बनाया, पाकिस्तान में बंदरगाह के आधुनीकिकरण में चीन पैसा लगा रहा है, चीन सामरिक उपयोग के लिए बांग्लादेश में बंदरगाह विकसित कर रहा है। यही नहीं क्षद्म रूप से चीन तालिबान, पूर्वोतर के खुंखार आतंकी संगठन एनएससीएन, श्रीलंका तथा दक्षिण भारत में सक्रिय लिट्टे, भाारत के विभिन्न भागों में फैले माओवादी चरमपंथी समूह आदि कई भारत विरोधी आतंकी संगठनों को वित्तीय, हथियार और खुफिया सहायता उपलब्ध करा रहा है। सब कुछ जानते हुए भारत ने कभी चीन को यह नहीं कहा कि वह भारत के खिलाफ षडयंत्र कर रहा है, लेकिन दलाई लामा अरूणांचल जाना चीन को बरदास्त नहीं है।

इन तमाम घटनाओं और चीनी चालों से साबित होता है कि चीन भारत के खिलाफ जंग की तैयारी में लगा है। चीन को यह लग रह है कि भारत को परास्त करने के बाद वह दुनिया को अपनी मुट्ठी में कर सकता है। इसलिए वह भारत पर आक्रमण की रणनीति बना रहा है। भारत को घेरने के लिए चीन न केवल सामरिक संतुलन बैठा रहा है अपितु भारत के अंदर एक ऐसे बुध्दिजीवियों को भी खडा कर रहा जो यह प्रचारित करे कि चीन भारत का नहीं अपितु भारत में सक्रिय प्रभू वर्ग का दुश्मन है। चीन की योजना के आधार पर कुछ बुध्दिजीवी सक्रिय भी हो रहे हैं। यह आज से नहीं चीन में स्थापित साम्यवादी व्यवस्था के समय से ही हो रहा है। पं0 सुन्दरलाल नामक एक कूटनीतिक अपने आलेख में लिखते हैं कि सन 62 की लडाई में चीन ने नहीं अपितु भारतीय सेना ने चीन पर आक्रमण कर दिया। चीनी फौज तो सराफत से भारतीय सेना का सैन्य आयुद्ध छीन उसे बिना कुछ कहे ससम्मान भारत लौट आने दिया था। सुन्दरलाल जो अपने आप को चीनी युद्ध के समय का महान राजनैयिक बता रहे हैं उन्होंने एक आलेख लिखा है। वह आलेख मेनस्ट्रीम नामक पत्रिका में 4 नवम्बर सन 1972 में प्रकाशित हुआ। सुन्दरलाल जी के आलेख को फिर से वीर भारत तलवार ने अपनी पुस्तक नक्सलबाडी के दौर में छापा है। इस आलेख के प्रकाशन का एक मात्र ध्‍येय यह साबित करना है कि चीन तो अपने जगह ठीक ही है भारत पश्चिमी देशों के अकसावे पर एक आक्रामक राष्ट्र की भूमिका अपना रहा है। यही नहीं चीन में नियुक्त भारत के राजदूत का भी सुर बदला हुआ है। भारतीय मीडिया लगातार यह कह रही है कि चीन भारत की ईंच दर ईंच जमीन हथिया रहा है लेकिन भारत के राजदूत इसे सरासर झूठ बता रहे हैं। वे चीन के सुर में सुर मिलाकर कहते हैं कि भारतीय मीडिया पश्चिमपरस्त हो गयी है। यह चीन और भारत को नाहक में लडाना चाह रही है। लेकिन जो लोग चीनी करतूत को देख कर आए हैं। जो लोग सीमा पर चीनी सैन्य हरकतों को पहचान रहे हैं उनकी बातों को कैसे झुठलया जा सकता है।

एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि पाकिस्तानी सीमा पर तैनात सैनिकों को चीनी सीमा पर तैनान करने की रणनीति संयुक्त राज्य अमेरिका की है। इससे पकिस्तान अपनी पूरी ताकत से तालिबान के खिलाफ लड पाएगा। इस तर्क में भी दम है। इसे अगर मान भी लिया जाए तो हर्ज क्या है। मध्य एशिया में सक्रिय पश्चिम की कूटनीति से भारत को फायदा उठाना ही चाहिए। तालिवान के सहयोग का पाईपलाईन काटने के लिए अमेरिका की रणनीति है कि चीन को भारत के साथ उलझाया जाये लेकिन आज न कल तो चीन भारत के साथ उलझेगा ही। अभी अमेरिका के साथ चीन की स्पर्धा शीत युद्ध में बदल की स्थिति में आ गया है। भारत को इसका लाभ उठाकर चीन पर दबाव बनाना चाहिए। मध्य एशिया में पश्चिमी हित से चीनी हित के टकराहत को भारत अपने भविष्य की कूटनीति बना सकता है। हालांकि यह तर्क चीन समर्थित मीडिया के द्वारा फैलाया गया एक भ्रम भी हो सकता है।

चीन भारत के अर्थतंत्र को खोखला करने के लिए जाली नोट के रैकेट को बढावा दे रहा है। चीन तमिल छापामारो के द्वारा चेन्नई में ड्रग हब विकसित करने फिराक में है। इसके कई प्रमाण मिले हैं। तमिल छापामार आजकल चीनी जासूसों के संपर्क में है। भारत के पास इस बात का पक्का प्रमाण है कि चीन दक्षिण पूर्वी एशिया के एक बडे भूभाग में उत्पन्न अफीम को अबैध तरीके से परिशोधित कर ड्रग बनाता है। हालांकि खुलम खुल्ला तो नहीं लेकिन चीनी माफिया इस ड्रग को अफ्रिका और यूराप के देशों में ले जाते हैं। करोडों के इस कारोबार में अब तमिल छापामार भी शमिल हो गया है। चीन ड्रग के द्वारा प्राप्त आमदनी दुनियाभर में अपने हितों के लिए आतंकवादी संगठनों में बांटता है। इसी प्रकार अबैध हथियारों के धंधे में चीन लगा है। भारत या दक्षिण एशिया में सक्रिय आतंकी समूहों को चीन लगातार हथियार उपलब्ध करा रहा है। विगत दिनों नकली दवा की एक बडी खेप चीन से अफ्रिकी देशों के लिए भेजा गया। दवाओं पर मेड इन इंडिया लिखा था। जांच के बाद पता चला कि यह दवा चीन के द्वारा भेजा गाया है। इस प्रकार चीन भारत को घाटा पहुंचाने का कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहता है।

ऐसी पस्थिति में चीन के खिलाफ भारत की क्या रणनीति होनी चाहिए और चीन को किस प्रकार घेरना चाहिए इसकी मुकम्मल योजना तो भारत को बनाना ही होगा। भारतीय कूटनीति वर्तमान चीनी ऐग्रेशन पर चीन के खिलाफ कूटनीतिक मोर्चा नहीं खोला तो चीन भारत को हडप लेगा। तब भारत अन्य चीनी प्रांतों के तरह केवल आंशू बहाने के अलावा और कुछ भी नहीं कर पाएगा। चीन जितना भयावह दिखता है उतना भयावह है नहीं। भारत उसे परास्त कर सकता है। याद रहे ड्रैगन के जबरे और चंगुत जरूर मजबूत होते हैं लेकिन ड्रैगन के रीढ की हड्डी कमजोर होती है। वह जितना देखने में खतरनाक लगता है उतना होता नहीं है। फिर ड्रैगन नामका कोई जीव धरती पर अब जीवित नहीं है। यह एक काल्पनिक अवधारना है। इस काल्पनिक भय को वास्तविक ताकत से ही जीता जा सकता है। भारत कमर कसे ड्रैगनी राक्षस को समाप्त करने के लिए दुनिया भारत के साथ होगी। दावे के साथ कहा जा सकता है कि चीन भारत की लडाई साधारण लडाई नहीं होगी। यह दुनिया का तीसरा महायुद्ध होगा और जिस प्रकार दूसरे महायुद्ध के बाद इजरायल को अपनी खोई भूमि मिली थी उसी प्रकार इस युद्ध में तिब्बत को अपनी खोई भूमि मिलेगी। भारत को तो मात्र इस युद्ध की अगुआई करनी है।

-गौतम चौधरी

फोटो-peterjcooper से साभार

2 COMMENTS

  1. भारत के पड़ोस में चीन भारत को घेरने का प्रयास कर रहा है यह सत्य है या मिडिया क्रिएसन इसे समझने की जरूरत है. नेपाल में पश्चिमी शक्तियां मजबूत है, वे सुनियोजित रूप से भारत और चीन के बीच द्वंद बढ़वाने का काम करते है. यह द्वंद न तो भारत के हित में है, न नेपाल के और न चीन के हित में है. नेपाल में ओली चीन से सट कर भारत को डराता है, और प्रचण्ड भारत से सट कर चीन को डराता है. लेकिन वास्तविकता क्या है इसे ग्राउंड जीरो पर ही समझा जा सकता है.

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