क्या नेहरू लोकतांत्रिक तानाशाह थे?

 आधुनिक भारत के निर्माता जवाहरलाल नेहरू एक स्वप्नदृष्ठा राजनीतिज्ञ के तौर पर विश्वभर में जाने जाते है, वे बीसवी शताब्दी के लोकप्रिय नेताओं में से एक थे और संभवतः उनकी महानता तक लेनिन, जोसेफ स्टालीन या माओत्सेतुंग नहीं पहुँच पाये। लेकिन इस समाजवादी और नैतिक जनतंत्र के पुरोधा समझे जाने वाले नेहरू ने भारत के पहले आम चुनाव का घोषणापत्र अपने हाथ से लिखकर कांग्रेस को यह एहसास करा दिया था कि स्वतंत्र भारत में उनकी श्रेष्ठता बनी रहेगी। यही नहीं, भारत के विभाजन को लेकर जिन्ना की रक्तपात की नीति के बावजूद गाँधी ने वायसराय से कहा- ‘‘अगर भारत खून से नहाना चाहता है, तो यही होगा‘‘ लेकिन विभाजन नहीं होगा। दूसरी ओर गाँधी के विश्वसनीय सहयोगी नेहरू विभाजन को स्वीकार कर रहे थे, उन्होने गाँधी की भावनाओं को दरकिनार कर दिया जिससे उन पर यह आरोप भी लगा कि नेहरू के लिए सत्ता का इंतजार असहाय हो गया था। नेहरू ने विभाजन को स्वीकार करते हुए करिअप्पा से कहा ‘‘हमें आलोकित पर्वत शिखरों तक पहुँचने के लिए अकसर अँधेरी घाटियों से गुजरना पड़ता है।‘‘ विभाजन के पहले और बाद की स्थिति गाँधी के लिए अप्रसन्न और असहज थी लेकिन उनके अपने शिष्य ने इसे परिस्थिवश, अनिवार्य विवशता या महत्वाकांक्षावश स्वीकार कर लिया था। आजादी की सुबह को लेकर गाँधी अपनी प्रार्थना के जरिए अँधेरे में हो रही हलचल, हत्याओं, अपहरणों ओर बलात्कारों का प्रतिकार कर रहे थे, तो नेहरू की आँखे क्षितिज पर उभर रहे प्रकाश पर टिकी थी। 1937 के आस-पास माडर्न रिव्यु में स्वयं नेहरू ने अपनी आलोचना चाणक्य के छद्म नाम से लिखी थी – उस लेख में उन्होंने जनता को जवाहरलाल नेहरू से सावधान रहने की चेतावनी दी थी, उन्ही के शब्दों में – ‘‘ जवाहरलाल के सारे ढंाचे तानाशाह के है, वह भयानक रूप से लोकप्रिय है, उसका संकल्प कठोर है, उसमें ताकत और गुरूर है, भीड़ का वह प्रेमी और साथियों के प्रति असहनीय है तथा ऐसे आदमियों से वह घृणा करता है, जिनमें कभी किसी भी तरह की कमजोरी हो या जो अपनी जवाबदेही को मुस्तैदी से अॅजाम नहीं दे सके। सारी दुनिया जानती है कि वह क्रोधी स्वभाव का है। काम करवाने की उसकी आतुरता इतनी प्रखर है कि थोड़ी सी भी देर उसे गवारा नही होती। नए अभियानों के लिए उसके भीतर बैचेनी है कि जो भी चीज उसे पसंद नहीं है, उसे वह तोड़-मरोड़ कर फेंक देगा। जवाहरलाल एक ऐसा आदमी है, जो प्रजातंत्र की प्रक्रिया को ज्यादा दिन तक बर्दाश्त नहीं कर सकता।‘‘ स्वतंत्र भारत के प्रथम तीनो आम चुनाओं पर नेहरू का जबरदस्त प्रभाव था, चुनावी घोषणा पत्र से उनकी अधीरता और आगे बढ़ने की जिद का पता चलता था। इस घोषणा पत्रों से भारत के आगामी भविष्य की रूपरेखा प्रतिबिम्बित हुई, इसमे वैदेशिक नीति, धर्म-निरपेक्षता, सामाजिक सुधार और आर्थिक विकास की झांकी समाहित की गई। चुनावी फतह पाने की लालसाओं के कारण कांग्रेसी नेहरू की लोकप्रियता भूनाते थे। वास्तव में नेहरू कांग्रेस की राजनीतिक पहचान के लिए वरदान साबित हुए। जवाहरलाल नेहरू गाँधी के उत्तराधिकारी थे तो भारत का भविष्य बनकर उभरे भी। उन्होंने जर्जर अवस्था से निकालकर सशक्त और आधुनिक भारत बनाने का सपना संजोया। उन्होंने पूँजीवाद को कठिन समय में अंगुली दिखाई और सोवियत माडल को अपनाने का साहस दिखाया। नियोजित विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाएॅ, हरित क्रांति, औद्योगीकीकरण और वैज्ञानिक प्रगति की नेहरू की जिद ने भारत को विश्वभर में पहचान दी। इसे नेहरू की तानाशाही समझे या राष्ट्र को मजबूत बनाने की अधीरता, भीड़ नेहरू की नितांत ईमानदारी से अधिक प्रभावित थी। एक महान अभिनेता के समान नेहरू जनसमुदाय का उत्तर देते थे। स्वयं नेहरू के शब्दों में – ‘‘जब कभी मैं उदास और थकान अनुभव करता हूँ, मैं व्यक्तियों के बीच चला जाता हूँ और वहां से ताजगी लेकर लौटता हूँ।‘‘ जन शक्ति को प्रेरणा मानने वाले नेहरू की तानशाही राष्ट्र के लिए असीम ऊर्जा का संचय भी बनी तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर समस्या और चीन से मात अभी भी राष्ट्र के लिए समस्या का कारण बने हुए हंै ।

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