नेपाल एक बार फिर गृहयुद्ध की ओर

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निर्भय कर्ण

नेपाल में स्थानीय निवार्चन के तारीख की घोषणा होते ही राजनीतिक पार्टियां सहित आम जनता में हलचल तेज हो गई। मधेशी मोर्चा और संघीय गठबंधन ने ऐलान किया कि जब तक संविधान संशोधन नहीं हो जाता, तब तक हम न केवल इस चुनाव का बहिष्कार करेंगे बल्कि चुनाव को रोकने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।  दूसरी ओर मधेशी मोर्चा और संघीय गठबंधन को छोड़कर अन्य दल जैसे एमाले, माओवादी, कांग्रेस,राप्रपा आदि दलों ने चुनाव के लिए कमर कसना शुरू कर दिया। इस सिलसिले में एमाले ने ‘मेची-महाकाली राष्ट्रीय अभियान’ की घोषणा की और 4मार्च, 2017 को झापा के बिर्ता मोड़ से इसकी शुरुआत हुई। सबसे पहले एमाले द्वारा तराई-मधेश स्थान को चूना जाना इस बात का संकेत है कि एमाले अपने आपको मधेश में कमजोर स्थिति में पाती है। वास्तविकता भी यही है। क्यूं कि जिस प्रकार एमाले के प्रमुख एवं पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली का मधेश विरोधी बयानबाजी और व्यवहार रहा है उससे पूरा मधेश ओली को मधेश विरोधी मानता है। और इसी मधेश विरोधी छवि को साफ करने के उद्देश्य से एमाले ने एकता अभियान के लिए मधेश को ही सर्वप्रथम चुना। उधर मधेशियों ने भी ठान लिया कि जो भी हो एमाले के इस अभियान को सफल होने नहीं दिया जाएगा। कुल मिलाकर एमाले को मधेश में निषेध कर दिया जाए। लेकिन लोकतांत्रिक में ऐसा संभव नहीं है।

एमाले ने भी मधेशियों के इस चेतावनी को अपनी शान और शक्ति के खिलाफ मानते हुए कड़े विरोध के बीच ‘मेची-महाकाली राष्ट्रीय अभियान’ की शुरुआत कर दी। इस अभियान के अभी दो दिन भी नहीं बीते थे और जैसे ही यह अभियान 6 मार्च को सप्तरी जिला पहुंचा कि मधेशियों की शांत ज्वाला एकाएक भभक उठी। ऊपर से एमाले के कार्यकर्ताओं द्वारा उकसावे ने आग में घी का काम कर दिया। फलस्वरूप प्रहरी और मधेशी के बीच झड़पें शुरू हो गयी। और इस झड़प ने करीब आधे दर्जन लोगों की जान ले ली और सैकड़ों घायल हो गए। इसके बाद तो पूरा मधेश ही आंदोलन के आगोश में चला गया और जगह-जगह विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। साथ ही एमाले कार्यकर्ता एवं नेताओं का बहिष्कार किया जाने लगा है। अब सवाल उठता है कि आखिर सप्तरी कांड क्यों हुआ? दूसरा, क्या यह कांड सोची-समझी रणनीति का कारण था? तीसरा, नेपाल में क्या मानवाधिकार नाम की चीज नहीं रह गयी है या फिर यहां की पुलिस नियम-कानून कुछ समझती ही नहीं?

इन सवालों का जवाब ढूंढने की कोशिश की जा रही है? सप्तरी कांड एमाले व मधेशवादी दलों के बीच के अहंकार का नतीजा था, जिसमें दोनों ही एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए आतुर थे। जहां एमाले किसी भी हाल में अपना कार्यक्रम कर शक्ति प्रदर्शन करना चाहती थी तो वहीं मधेशी एमाले के कार्यक्रम को किसी भी सूरत में रोकना चाहते थे । इस बारे में नयॉं शक्ति पार्टी के संयोजक डॉ. बाबुराम भट्टराई का कहना है कि‘‘दलीय उत्तेजना, एमाले का अहंकार और सरकारी लाचारी के कारण ही सप्तरी कांड हुआ। एमाले को हठ और अहंकार त्याग कर जिम्मेवारीपूर्वक संवाद में आकर संविधान संशोधन के लिए सहमति का वातावरण बनाना चाहिए।’’ वहीं नेपाली कांग्रेस के केन्द्रीय सदस्य महेन्द्र यादव का भी कुछ ऐसा ही बयान है कि ‘‘एमाले के हठ और जिद् ने सप्तरी घटना को अंजाम दिया’’। जबकि एमाले इसका ठीकरा गृहमंत्री विमलेन्द्र निधी के ऊपर फोड़ कर उसे इस कांड का दोषी मान रही है।

एमाले यह भूल गयी कि वो बड़ी पार्टियों में से एक है। ऐसे में उसका दायित्व बनता है किस प्रकार देश में शांति का माहौल बने और जहां उसके खिलाफ वातावरण है वहां कोई कार्यक्रम न करके आग में घी डालने का काम न किया जाए। इसके बावजूद एमाले ने सप्तरी में कार्यक्रम करके मधेशियों के गुस्से को विस्फोटक बना दिया। यहां यह सवाल भी महत्वपूर्ण है जब ओली के सप्तरी पहुँचने से पहले ही वहां अधिक तनाव था तो सरकार ने सप्तरी में एमाले की सभा पर रोक क्यूँ नहीं लगाया ताकि वहां सुख-शांति बनी रहे। लेकिन ऐसा कदम प्रशासन द्वारा नहीं उठाया गया और एमाले को पूरी सुरक्षा देकर सप्तरी की सुख-शांति को ताक पर रख दिया गया। गृहमंत्रालय के विज्ञप्ति में कहा गया कि प्रदर्शनकारियों पर पहले पानी का फौव्वारा फेंका गया। उसके बाद रबड़ गोली आदि, हालांकि ऐसा कुछ घटनास्थल पर नहीं हुआ था। लेकिन प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो एमाले का कार्यक्रम लगभग समाप्त हो गया था कि तभी एमाले के कुछ नकाबधारियों ने प्रदर्शनकारियों पर सभास्थल के भीतर से पथराव शुरू कर दिया। लगातार कुछ मिनटों तक पथराव होने के बाद मोर्चा के प्रदर्शनकारियों ने जवाबी पथराव शुरू किया, जिसके तुरंत बाद पुलिस ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। हालांकि नेपाल पुलिस ने सभा स्थल पर भीड़ को नियंत्रण करने के लिए पानी के बौछार वाली गाड़ी भी मंगवाई थी । लेकिन यह महज शोपीस बन कर खड़ी रही। गोली चलने से पहले जरा भी पानी के बौछार का प्रयोग नहीं किया गया। नेपाल पुलिस ने केपी ओली की सुरक्षा के लिए पहले तो प्रदर्शनकारियों पर जमकर गोलियां चलाई और घटना को दूसरा रूप देने के लिए बाद में 200 राउंड आंसू गैस के गोले दागे और करीब 100 राउंड हवाई फायर किया।

दूसरा, अब सवाल उठता है क्या यह कांड पहले से नियोजित कांड था। घटनाक्रम को देखकर तो ऐसा ही प्रतीत होता है। सूत्रों और लोगों की मानें तो इस कांड के दो बड़ी वजह हो सकती है। पहला यह कि संविधान संशोधन के मुद्दे से जनता का ध्यान भटकाकार स्थानीय चुनाव करवा लिया जाए। इसके बाद संविधान संसोधन की प्रक्रिया आगे बढ़े। दूसरा बिंदू यह भी हो सकता है कि एमाले की स्थिति को मधेश में और भी कमजोर करने के लिए इस घटना को अंजाम दिया गया। वैसे आगामी वक्त और सबूत से ही वास्तविकता का पता चल पाएगा कि सप्तरी कांड वास्तव में नियोजित था या नहीं।

तीसरा, नेपाल में मानवाधिकार बार-बार आरोपों के घेरे में घिरती रही है। और एक बार फिर सप्तरी कांड से मानवाधिकार के ऊपर प्रश्नचिह्न खड़ा हुआ है। सप्तरी कांड में जिस प्रकार शहीदों व घायलों को गोली लगी है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि नेपाली पुलिस नियम-कानून जानती ही नहीं है। या जानती है तो नियम-कानून को ताक पर रखकर वहां काम करती है। अधिकतर को कमर के ऊपर पेट, छाती, गर्दन, मस्तिश्क में गोली व चोट लगा है। क्या नेपाल पुलिस को यह समझ नहीं है कि किसी भी सूरत में प्रदर्शनकारियों के ऊपर गोली कमर के नीचे ही चलाया जाता है न कि ऊपर? इसके अलावा पुलिस ने पहले आंदोलनकारियों को खदेड़ा और बाद में पास के एक घर में घुस कर लोगों को बाहर निकाल कर दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। अब चूंकि यह घटना घट चुकी है ऐसे में क्या मानवाधिकार आयोग ऐसे पुलिस के ऊपर एक्शन लेगी, तो उसका जवाब शायद ना ही में है। क्यूंकि इससे पहले भी जब 6 महीने का मधेश आंदोलन हुआ था तो उस समय भी अधिकांश प्रदर्शनकारियों को कमर के ऊपर ही गोली और डंडे बरसाए गए थे। ऐसे में सप्तरी कांड में प्रहरी पर कोई कार्रवाई हो, ऐसी कोई संभावना ही नजर नहीं आती।

प्रधानमंत्री प्रचंड के गोली न चलाए जाने के चेतावनी के बावजूद सप्तरी में इतना बड़ा कांड हो गया। इससे भी कहीं न कहीं शक की सूई घूम रही है और लोगों के मन में बार-बार यह सवाल उठ रहा है कि आखिर प्रधानमंत्री के बारंबार चेतावनी के बाद भी गोली क्यों चलायी गयी और इसके लिए आदेश किसने दिया। हालांकि यह जांच का विषय है। और जांच के बाद ही यह सामने आ पाएगा कि इस कांड का मुख्य दोषी कौन है। फिलहाल सप्तरी में हुए घटना की नैतिक जिम्मेदारी गृहमंत्री की बनती है। इसमें कोई शक नहीं है। अब तक हुए मधेश आन्दोलन में  सैकड़ों मधेशी पुलिस की गोली से मारे जा चुके हैं। लेकिन कभी भी वहां के सीडीओ, एसपी को नहीं हटाया गया। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि मधेशी गृहमंत्री के ही कारण घटना के 15 घंटे के भीतर ही सीडीओ और एसपी को हटा दिया गया।

मधेश नजरिए से देखा जाए तो, सप्तरी कांड ने जहां एमाले को सबक सिखाया है वहीं सरकार और बांकी दलों के लिए भी चेतावनी है कि संविधान संशोधन के विरोध में जो भी दल या नेता रहेंगे उनका हश्र एमाले जैसा ही होगा। संविधान संशोधन के बिना मधेश में चुनाव संभव नहीं है। संविधान संशोधन और मधेश मुद्दे पर यदि कांग्रेस और माओवादी ने भी बेईमानी किया तो मधेश में उनके सभा सम्मेलनों को भी निषेध किया जा सकता है। वैसे लोकतांत्रिक पद्धति में ऐसा करना गैरकानूनी है और आप किसी भी राजनीतिक दलों को सभा या कार्यक्रम करने से रोक नहीं सकते।

सप्तरी कांड का व्यापक असर दिखाई पड़ रहा है। जहां एमाले ने अपने कार्यक्रम को तत्काल स्थगित कर दिया है वहीं राप्रपा ने अपने आगामी एकता यात्रा को रद्द कर दिया। पूरा मधेश जल रहा है और लोगों में गुस्से की लहर है। मधेशी मोर्चा ने सरकार को 7 दिन का अल्टीमेटम दिया है और अपनी मांग रख दी है। इन मांगों में शहीदों व घायलों को क्षतिपूर्ति, संविधान संशोधन आदि है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि आखिर सरकार मधेशी मोर्चा के किन-किन मांगों को पूरा करती है और 7 दिन बाद मोर्चा क्या कदम उठाती है। और इसका असर जनता पर क्या पड़ता है? फिलहाल पूरा नेपाल गृहयुद्ध की ओर अग्रसर है।

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  1. पिछले १ दशक से भारत द्वंद को सुलझाने में नेपाल की मदद कर रहा है. नेपाल की मधेसी, जनजाति, थारु एवं दलितों को आश्वस्त किया गया की उनका उत्पीडन बंद होगा तथा राज्य में उन्हें सामान अधिकार मिलेगा. लेकिन आज नेपाल में मधेसी-जनजाति-थारु-दलित खुद को ठगा सा महसूस कर रहे है. उन्हें क्या मिला? भारत को क्या मिला? आज नेपाली की सत्ता में बैठा वर्ग बात बात पर भारत का मानमर्दन कर रहा है. उच्चतर सदन (राज्य सभा) में प्रतिनिधित्व, समानुपातिक समावेशिता, प्रदेशो के सीमांकन, नागरिकता और भाषा के सम्बन्ध में जो वायदे किए गए उसे पूरा नहीं किया गया बल्कि अन्तरीम संविधान में जो अधिकार थे उन्हें भी समाप्त कर दिया गया. नेपाल की आज की सत्ता में बैठे लोगो को ही जवाब नहीं देना है, बल्कि उनलोगों को भी जवाब देना है जो भारत की नेपाल निति बनाने की ड्राइविंग शीट पर बैठे है. नए संविधान से नेपाल में सिर्फ एक परिवर्तन आया है की वहा धर्मान्तारण सहज हो गया है, आई.एन.जी.ओ. देश चला रहे है, हिन्दू राष्ट्र समाप्त हो गया है. क्या १ दशक के संघर्ष से यही मिलना था.

  2. १) भारत अपनी आजादी के बाद दक्षिण अफ्रिका में रंगभेद के खिलाफ लगातार खडा रहा. लेकिन रंगभेद समाप्ति के बाद नेल्सन मंडेला ने भारत का कभी साथ नही दिया.
    २) चीन के तिब्बत अतिक्रमण के बाद भारत ने दलाई लामा को शरण दिया लेकिन दलाई लामा आज भारत से अधिक अन्य मुलुको को अधिक महत्व देते है.
    ३) बंगलादेश में पाकिस्तान ने ३० लाख लोगो का क़त्ल किया. शेख मुजीब की लड़ाई को भारत ने नैतिक समर्थन दिया और बंगलादेस आजाद हुआ और आज प्रगति के राह पर अग्रसर है. लेकिन वहाँ समय समय पर भारत विरोधी शक्तिया हावी रहती है.
    ४) नेपाल में राणा शाशन से मुक्ति दिला कर शाहवंश और प्रजातंत्र की स्थापना में भारत ने मदद की. लेकिन उसके तुरंत बाद बीपी कोइराला और राजा महेंद्र ने नेपाल की भूमि चीन को उपहार में दे दिया और भारत के साथ दुश्मनों सा व्यवहार करने लगे.
    ५) भारत नेपाल में मधेसी तथा जनजातियो को समान अधिकार देने की वकालत करता रहा है. और इस वजह से नेपाल का शासक वर्ग (पहाड़ में रहने वाले उच्च वर्गीय बाहुन जाती) भारत के प्रति बेहद खफा है. इस नाराजगी के कारण नेपाल का शाषक वर्ग भारत विरोधी शक्तियों को प्रश्रय दे रहा है. यहाँ भी भारत अपना नुक्सान कर रहा है.
    ६) मधेसी और जनजाति यदि अपने अधिकारों के प्रति सचेत रहते तो दुसरे संविधान सभा के निर्वाचन में मधेसी और जनजाति हित की बात करने वाले दलों की इतनी दुर्गति नहीं होती. मधेसी और जनजातियों को भारत पर आश्रित न रह खुद अपने देश में लोकतांत्रिक तरीको से अपने अधिकारों के लिए पर्यत्न करना होगा.
    ७) भारत में S.D. Muni, Shivashanker Mukherjee और Rakesh Sood जैसे लोगो ने मधेस विषय पर आवश्यकता से अधिक बोल कर नेपाल के सत्ता पक्ष को खासा नाराज कर लिया है. मिडिया में भी प्रशांत झा जैसे लोग यह भूल जाते है की नेपाल एक सार्वभौम सत्ता सम्पन्न देश है. आवश्यकता से अधिक बोलना भारत के लिए प्रत्युत्पादक रहा है. हालाकि इससे मधेस और जनजातियो के अधिकार प्राप्ति के संघर्ष को बल मिला है.
    ८) अब भारत की विदेश निति को कल्पना लोक से निकल कर यथार्थ पर आना होगा.
    ९) हमें यह नहीं भुलाना चाहिए की भारत और नेपाल की मिडिया में पश्चिमी तंत्र की गहरी घुसपैठ है और वह हमारे पड़ोसियों से सम्बन्ध खराब कराने का कोई मौका नहीं चुकना चाहती है.
    १०) मधेस और जनजाति अधिकार प्राप्ति के संघर्ष के मुद्दे पर भारत को सम्भल के कदम चलने चाहिए. हमें यह नहीं भुलाना चाहिए की नेपाल में कोई भी हमारा पराया नहीं है. सभी अपने ही है.

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