कभी न खाना तंबाकू

किसी किराने की दुकान से

तंबाकू के पाउच ले आते,

गली गली में बच्चे दिखते

खुल्ल्म खुल्ला गुटखा खाते।

 

बाली उमर और ये गुट्खा

कैसे कैसे रोग बुलाते,

तड़प तड़प कर निश्छल नन्हें

हाय मौत को गले लगाते।

 

ढेरों जहर, भरे गुटखों में

टी बी का आगाज कराते,

और अस्थमा के कंधे चढ़

मरघट तक का सफर कराते।

 

मर्ज केंसर हो जाने पर

लाखों रुपये रोज बहाते,

कितनी भी हो रही चिकित्सा

फिर भी प्राण नहीं बच पाते।

 

सरकारी हो हल्ले में भी

तम्बाकू को जहर बताते,

पता नहीं क्यों अब भी बच्चे

गुटखा खाते नहीं अघाते।

 

वैसे बिल्कुल सीधी सच्ची

बात तुम्हें अच्छी बतलाते,

जो होते हैं अच्छे बच्चे

तम्बाकू वे कभी न खाते।

 

 

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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