खुशहाली के नये आयाम, विकास का स्पंदन म.प्र. की पहचान

– भरतचंद्र नायक

अयोध्या में ढांचा गिरने के बाद 1992 में मध्यप्रदेश सहित चार राज्‍यों की भारतीय जनता पार्टी की सरकारों को तत्कालीन नरसिंहराव सरकार ने भंग कर एकतरफा कार्यवाही का संकेत दिया। बाद में हुए चुनावों में मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में बनी और दस वर्षों में इतनी निरंकुश हो गयी कि बिजली, सड़क और पानी के लिए हुए हा-हाकार ने बीएसपी मुद्दा बना दिया। वर्ष 2003 में हुए विधानसभा में जनता ने भारी बहुमत देकर भारतीय जनता पार्टी को सत्ता सौंप दी और उमा भारती के नेतृत्व में पंच-ज अभियान के साथ नयी पारी आरंभ हुई। लेकिन तिरंगा यात्रा से उत्पन्न गतिरोध के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता बाबूलाल गौर ने पार्र्टी सरकार का नेतृत्व करते हुए शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के समग्र विकास के लिए अयोध्या बस्ती और गोकुल ग्राम की कल्पना को साकार किया। किसान के बेटे शिवराज सिंह चौहान ने बाद में मध्यप्रदेश में सरकार की बागडोर संभालते हुए भारतीय राजनीति के कई मिथक ध्वस्त कर दिये। कहा जाता था कि भारतीय जनता पार्टी की राज्‍य सरकार अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाती है। दूसरा मिथक था कि राज्‍य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार दोबारा नहीं बनती। शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता संभालते ही विकास का ताना-बाना बुनकर गांव के ठेठ चौपाल तक पैठ बनायी। उनकी सांसद जीवन में पांव-पांव वाले भैया की पहचान थी। मुख्यमंत्री बनने के बाद शिवराज ने जिस तरह प्रदेश के किशोरों, युवकों, छात्राओं और छात्रों को राहत देने का सिलसिला शुरु किया, उनकी पहचान सार्वजनिक मामा की बन गयी। महिलाओं के विकास की जो योजनाएं उन्होंने आरंभ कर सफलतापूर्वक क्रियान्वित कर दिखायी, तो उन्हें गांवों में भैया को संबोधन प्राप्त हो गया।

भारतीय जनता पार्टी सरकार प्रदेश में उल्लेखनीय उपलब्धियां अंकित कर विकास के नये आयाम तय करने में सफल हुई है। गत छ: वषोँ में 3152 मेगावाट बिजली का अतिरिक्त उत्पादन करने का क्षमता का सृजन किया जा चुका है जिसे 2013 तक 4796 मेगावाट तक पहुंचाने की रणनीति पर कदम बढ़ रहे हैं। ट्रांसमीशन प्रणाली की क्षमता 6493 मेगावाट से बढ़ाकर 8050 मेगावाट पहुंचा दी गयी है। परिषण हानिया 8 प्रतिशत से घटकर 4.09 प्रतिशत रह गयी है। गांवों में नियमित 24 घंटा और खेतों की सिंचाई के लिए प्रतिदिन आठ घंटा बिजली की सुनिश्चितपूर्ति के लिए फीडरों का विभक्तीकरण करने की योजना 5 हजार करोड़ रु. लागत की दो चरणों में पूरी का जा रही है। प्रदेश में घरेलु उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण बिजली पूर्ति के साथ औद्योगिक इकाईयों को बिना इंटरपसन के 24 घंटा बिजली पूर्ति की व्यवस्था की जा चुकी है।

2003 तक सड़क परिवहन के क्षेत्र में मध्यप्रदेश की सड़कों की पहचान गङ्ढे के रूप में बन चुकी थी। सत्ता में आते ही भाजपा सरकार ने भगीरथ प्रयास आरंभ किये। राजधानी भोपाल से संभागीय मुख्यालयों को जोड़ने वाली, सँभाग से जिला और जिला से अनुविभाग को जोड़ने वाली सड़कों पर युh स्तर पर कार्य किया गया और अब मध्यप्रदेश में सड़क यात्रा सुहावने सफर और निरापद यात्रा बन चुकी है। 34 हजार किलोमीटर सड़कें

बनायी जा चुकी है।

मुख्यमंत्री सड़क योजना वरदान बनी

शिवराजसिंह चौहान ने महसूस किया कि प्रदेश के सुदूर अंतवर्ती गांवों में सड़क का अभाव अभिभाष है। मुख्यमंत्री सड़क योजना में 500 आबादी वाला प्रत्येक गांव जोड़ने की महत्वाकांक्षी योजना तैयार की गयी और अप्रैल

2010 से उस पर अमल शुरु हो चुका है। जनजातीय क्षेत्रों में अढाई सौ आबादी के गांवों और टोलों को भी शामिल किया गया है। इस तरह अगले तीन वर्षों में प्रदेश में 2013 तक 9338 गांव मुख्यमंत्री सड़क योजना से जुड़ जावेंगे। तीन चरणों में 19386 किलोमीटर लंबी ग्रेवल रोड का निर्माण किया जावेगा। इस परियोजना पर करीब 3300 करोड़ रु. की लागत आवेगी। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के गुणवत्तापूर्ण अमल में देश में मध्यप्रदेश को सराहा गया है। इसके तहत 34719 कि.मी. लंबी सड़कें पूर्ण हो गयी है। सड़क निर्माण की प्राथमिकता के पीछे उद्देश्य गांवों, मंडियों और शहरों के बीच कनेक्टिविटी को बेहतर बनाकर गांवों में आर्थिक क्रांति लाना है। प्रदेश की 73.54 प्रतिशत जनता गांवों में रहती है। कहा तो जाता है कि भारत की आत्म गांवों में बसती है। लेकिन आजादी के बाद गांवों के आर्थिक पोषण के लिए संचार वाहनी सड़कों की ओर ध्यान नहीं गया। अब यह काम प्राथमिकता से हो रहा है।

सूखे कंठ को पानी, हर खेत को पानी

प्रदेश में निरंतर विकास के चलते बढ़ती जल किल्लत से निपटने के कार्य को चुनौती के रूप में स्वीकार किया गया। चौंतीस हजार बसाहटों में पेयजल की व्यवस्था करने के साथ सवा नौ हजार शालाओं में भी पीने के पानी का बंदोबस्त किया गया। 58 नगरीय क्षेत्रों में जल योजनाएं पूर्ण कर सूखे कंठों को गीला किया गया। प्रदेश में साढ़े सात लाख हेक्टर अतिरिक्त सिंचन क्षमता का सृजन करते हुए अतिरिक्त भूमि पर सिंचाई की व्यवस्था की गयी। प्रदेश के पश्चिमी अंचल में सिंचाई और बिजली की पूर्ति बढ़ाने के लिए नर्मदा घाटी विकास परियोजना के क्रियान्वयन में गति लायी गयी। इससे 1 लाख 18 हजार हेक्टर सिंचन क्षमता का सृजन हुआ। मान, जोबट, परियोजना की क्षमता का दोहन करते हुए पच्चीस हजार हेक्टर भूमि की व्यास बुझायी गयी।

जलाभिषेक अभियान में हो रही नदियों को पुनजीर्विन प्रदान करने का बीड़ा उठाया। ऐसी 133 नदियों को चिन्हित कर कार्य आरंभ हो चुका है। जल विरासत और धरोहरों के प्रति चेतना जगायी गयी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल के बड़े तालाब से जल नायक के रूप में खुदायी का जो अभियान चलाया, उसने प्रदेश के जिलों में हजारों जल नायकों को विरासत को सहेजने के काम में लगा दिया है। कुएं, बावडियों, पोखर नदी सज-धज के साथ जल संग्रहण के रूप में वाटर बाडीज की गणना में शामिल होकर निस्तार के काम आ रहे हैं।

सीहोर जिले के जैतगांव में मध्यम वर्गीय किसान परिवार के यहां जन्म लेने वाले शिवराज सिंह चौहान में परिवर्तन के लिए क्रांति की आग शैशव से थी। गांव में मजदूरी करने वालों के परिवारों की बेहतरी की चाह ने दस वर्ष के शिवराज को मजदूरों का नेता बना दिया। उन्होंने चौपाल पर मजदूरों को जमा किया और कहा कि जब तक गांव वाले मजदूरी नहीं बढ़ाते, काम से गैर हाजिर रहो। अगले दिन जब परिवार का चरवाहा, हलवाला काम पर नहीं आया तो शिवराज की घर वालों ने मरम्मत की और परिवार के जानवर उनके मत्थे मढ़ दिये। शिवराज उन्हें जंगल ले गये और घर का काम निपटाया। लेकिन मजदूरों की मजदूरी बढ़ गयी। पाठशाला में पढ़ने गये और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बन गये। सोलह वर्ष की आयु में छात्र संघ के अध्यक्ष चुन लिये गये। आपातकाल में जब उन्हें मीसा में निरुh किया गया वे भोपाल सेंट्रल जेल में सबसे कम किशोरवय के मीसाबंदी थे और उन्हें जेल में सभी का खूब स्नेह मिला और संस्कार भी मिले। इसी बीच उनकी दादी का निधन हो जाने पर उन्हें क्षमा याचना की सलाह मिली जिससे वे अंतिम संस्कार में भाग ले सकें। लेकिन उन्होंने माफी से इंकार कर दिया। भारतीय दर्शन, गीता और पं.दीनदयाल के एकात्म मानव दर्शन में वे रम गये। बाद में जब लोकसभा के चुनाव आये तो शिवराज सिंह चौहान ने चुनाव प्रचार में वक्ताओं में सबसे कम उम्र के वक्ता के रूप में अपनी पहचान बनायी। उन्होंने विद्यार्थी परिषद में संगठन मंत्री, संगठन महामंत्री और बाद में 1984 में युवा मोर्चा के गठन के बाद प्रादेशिक संयुक्त सचिव का दायित्व संभाला। तत्पश्चात 1988 में उनके नेतृत्व के जादू ने उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष पद से गौरवान्वित किया। 1990 के विधानसभा चुनाव में बुधनी विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुन लिये गये। सबसे कम उम्र के विधायक थे। उन्हें मंत्रिपद का प्रस्ताव आया तो उन्होंने नम्रतापूर्वक ठुकरा दिया। लेकिन जल्दी ही जब विदिशा संसदीय क्षेत्र से उपचुनाव लड़ने का

प्रस्ताव आया शिवराज सिंह चौहान ने चुनौती स्वीकार की। अटलजी दो संसदीय क्षेत्रों से विजयी हुए थे। तब उन्होंने विदिशा से इस्तीफा दे दिया था। चुनाव जीतकर सांसद बन गये। शिवराज सिंह चौहान ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और जिम्मेदारियां ओढ़ते गये। सफलता के झंडे गाढ़ते गये इसी बीच उन्हें युवा मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेवारी भी मिल गयी। जिस तरह स्नातकोत्तर शिक्षा (दर्शन शास्त्र) में उन्हें स्वर्ण पदक मिला, वे राजनीति के क्षेत्र में भी शिखर की ओर बढ़ते गये। आंदोलन को सफल बनाना, नई क्रांति करना शिवराज का शगल बन गया है। उन्होंने 1988 में क्रांति मशाल यात्रा निकालने की ठानी और राजमाता विजयाराजे सिंधिया क्रांति मशाल यात्रा में शामिल हुई तो 40 हजार की भीड़ देखकर दंग रह गयी। बोली बेटा हो तो शिवराज जैसा, शिवराज विदिशा संसदीय क्षेत्र से अनवरत पांच बार सांसद के रूप में विजयी हुए।

जहां चाह है, वहां राह है। शिवराज के विधानसभा क्षेत्र में एक बंजारा परिवार की कन्या की शादी तय हो गयी। लेकिन माता-पिता की निर्धनता आड़े आयी। जब पांव वाले भैया शिवराज को यह पता चला तो उन्होंने कहा कि बोरना गांव (बुधनी) की कन्या वासंती का कन्यादान खुद लूंगा। धूमधाम से शादी होगी और शिवराज बासंती के मामा बन गये। यही से कन्यादान योजना ने मध्यप्रदेश के साथ देश के अधिकांश राज्‍यों में सामाजिक कल्याण कार्यक्रम का रूप ले लिया। यही कन्यादान योजना मध्यप्रदेश के समाजोन्मुखी कार्यक्रम का अंग बन गयी। शिवराज सिंह चौहान प्रदेश की कन्याओं के मामा के रूप में लोकप्रिय हो चुके हैं। आजादी के बाद जनतंत्र की स्थापना हुई। लेकिन सामाजिक समरसता के वातावरण में जन और तंत्र की दूरियां समाप्त करने का लगभग प्रयास ही नहीं हुआ। इस काम को शिवराज सिंह ने मिशन बनाया। महिला सशक्तीकरण की बहुप्रतीक्षित लाड़ली लक्ष्मी योजना, मुख्यमंत्री कन्यादान योजना, गांव की बेटी योजना ने सामाजिक क्रांति को दिशा दी है। कन्या जन्म अभिषाप से वरदान बन रहा है। स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए पचास प्रतिशत आरक्षण दे दिया गया है। इसका अनुसरण करने को केन्द्र सरकार को भी विवश होना पड़ा है। जन सुनवाई, जन दर्शन, औचक निरीक्षण, लोक कल्याण शिविर, समाधान आन लाईन जैसे अनेक कार्यक्रमों से समाज अंगड़ाई ले रहा है। जन चेतना प्रस्फुटित हो रही है। जन और तंत्र की भागीदारी विकास के नये आयाम दे रही है।

मध्यप्रदेश में खेती को लाभ का धंधा बनाने की जब शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की लोग अवाक रह गये। लेकिन उन्होंने एक कलम से गेहूं, धान के समर्थन मूल्य पर प्रदेश से एक सौ रु. क्विंटल और पचास रु. का बोनस दे दिया। फसल कर्ज पर ब्याज की दरें घटाकर तीन प्रतिशत कर दी। आसमानी सुलतानी से फसलों, पशुओं को होने वाली क्षति पर क्षतिपूर्ति राशि को कई गुना बढ़ाकर अपनी किसानों के प्रति प्रतिबध्दता को प्रमाणित कर दिया। जैव खेती की नीति बना दी है।

मध्यप्रदेश को स्वर्णिण प्रदेश बनाना शिवराज सिंह चौहान का सपना है। स्वर्णिम मध्यप्रदेश यात्राएं गांव-गांव में कुतुहल पैदा कर रही है। राजनीति को लोक सेवा के रूप में प्रतिष्ठित करना उनका मिशन बन चुका है। शिवराज सिंह चौहान खुद को मुख्यमंत्री की बजाय प्रदेश की जनता का सेवक बताने में अधिक गर्वित होते हैं। उनके लिए मध्यप्रदेश मंदिर जनता भगवान है। अपने को वे पुजारी कहकर गौरव का अनुभव करते हैं।

5 COMMENTS

  1. श्री श्री राम तिवारी जी धन्यवाद और आभार!

  2. ऐसे संकलित समाचारों का द्रुतगामी सम्पादन .भी देशभक्तिपूर्ण कार्य है .राजनेतिक हितग्राहिता पर आपका यह करारा एवं समसामयिक घोडा पछाड़ दाव;मध्यप्रदेश की उस जनता के बड़े काम का है jo अभी लड़ना सीख रही है .मध्यप्रदेश का यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा की नागनाथ और सापनाथ दो ही विकल्पों के बीच पिसते रहना नियति है .संभवत मीडिया.पूंजीपति और बड़ी जोतों के मालिक भी इन दोनों भृष्ट दलों को पालते पोषते रहे हैं .तीस्ररी ताकत याने निर्धन मजूर ;किसान और आवाम को सही एकजुट विकल्प के रूप में खड़े होने की दरकार है .

  3. २००४ से पूर्व जब केंद्र में “फील गुड “वालों की सरकार थी और आंध्र में चन्द्र बाबु नायडू ने शाइनिंग इंडिया का उद्घोष किया था तब भी मीडिया का एक बड़ा हिस्सा ;तत्कालीन शाशकों की इसी तरह की भडेती कर रहा था .
    दिग्विजय सिंह जी ने या कांग्रेस ने जो मध्यप्रदेश में किया उसी का परिणाम है की वे अब सत्ता से बाहर हैं .किन्तु वर्तमान विकाश पुरुष श्री शिवराजसिंह जी कितने पानी में हैं यह मध्यप्रदेश की जनता को अच्छी तरह से मालूम हो गया है .
    मध्यप्रदेश भाजपा अध्यक्ष पर एम् पी हाई कोर्ट में मानहानि के मुकद्दमें दर्ज होते जा रहे हैं स्वयम अनंतकुमार जी जो की प्रभारी हैं एम् पी के उन्हें भी बार बार चेतावनी देनी पढ़ रही है .की अय्याशी करने वाले मंत्रियों को बक्स्सा नहीं जाएगा ; सूरा सुन्दरी में आकंठ डूबी भाजपा सरकार की जो सूरत आदरणीय मीणा जी ने प्रस्तुत की है वह शतप्रतिशत सच है कैलाश विजयवर्गीय जैसे कद्दावर प्रतिद्वंदियों को निपटाने के लिए शिवराज मामा ने भाजपा की मराठा लाबी को बखूबी इस्तेमाल किया और परसों हुए एम् पी सी ऐ के चुनाव में सिधिया से कैलाशजी को हरवाने में भाजपा की आधी राजस्थान लाबी भी शामिल थी .जो भाजपा की ठाकुर लाबी में है वही जल जमीन जंगलों का मालिक है .आम जनता त्राहि -त्राहि कर रही है .बिजली गायब है .sadken नदारद हैं .शिक्षा के हाल सबसे बदहाल हैं सरकारी .अस्पतालों में तो नायक जी आपको भगवान् न करे की एम् पी में कहीं आपको जाना पड़े

  4. मध्यप्रदेश सरकार इतनी अच्छे है तो ये क्या हो रहा है?
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    बृहस्पतिवार, १९ अगस्त २०१०

    सरकारी धन को लूटने में जुटी सरकार

    मध्यप्रदेश सरकार के फ़ैसलों को देखकर “अँधी पीसे-कुत्ते खाएँ” कहावत चरितार्थ होती दिखाई देती है । सत्ता के नशे में डूबी भाजपा को विपक्ष की निष्क्रियता ने निरंकुशता के पंख लगाकर भ्रष्टाचार के आसमान में लम्बी और ऊँची उड़ान भरने के लिये स्वतंत्र छोड़ दिया है । कैबिनेट के एक के बाद एक फ़ैसले बताते हैं कि किस तरह सरकारी खज़ाने का दुरुपयोग कर नेता अपने उद्योग धंधे आगे बढ़ा रहे हैं । इस तरह की योजनाएँ बनाई जा रही हैं, जिनमें उद्योग लगाने वालों को सरकारी पैसा मुफ़्त में मिल रहा है, जैसे वे अपना बिज़नेस प्रदेश में लाकर जनता पर बड़ा भारी एहसान कर रहे हैं । बेशकीमती ज़मीनों को औने-पौने में ठिकाने लगाने की मुहिम की अपार सफ़लता से उत्साहित राज्य सरकार अब यही फ़ार्मूला अन्य क्षेत्रों में भी आज़माने जा रही है । यकीन ना आये तो सरकार के हालिया फ़ैसलों को उठाकर देख लीजिये ।

    मध्यप्रदेश सरकार ने निजी क्षेत्र के ऑपरेटरों के माध्यम से प्रदेश के प्रमुख शहरों को वायु सेवा से जोड़ने का निर्णय लिया है। चार बड़े शहरों समेत कई नगरों को हवाई सेवा से जोड़ने की योजना में निजी ऑपरेटरों को कई रियायतें देने की तैयारी को अंतिम रुप दे दिया गया है । निजी ऑपरेटर्स 9 सीटर विमान चलाएंगे। इसके लिए वे प्रत्येक सेक्टर में किराया तय करने के लिये स्वतंत्र होंगे। प्रत्येक सेक्टर के लिए विमान में कुछ सीटें राज्य शासन के उपयोग के लिये आरक्षित होंगी। इन सीटों पर प्रत्येक सीट का किराया निर्धारण निविदा के माध्यम से किया जाएगा, जिन पर राज्य शासन द्वारा अधिकृत अधिकारी यात्रा कर सकेंगे। अगर किसी सेक्टर में किसी समय शासकीय अधिकारी आरक्षित सीट पर यात्रा नहीं करेंगे तो ऎसी सीटें आपरेटर द्वारा प्राइवेट मार्केट में बेची जा सकेंगी ।

    इस फ़ैसले का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि जो भी आरक्षित सीट खाली जाएगी उसका भुगतान राज्य सरकार करेगी । भुगतान अधिकतम चार खाली सीटों का होगा । इस पर 84 लाख महीना और सालाना करीब 8 से 9 करोड़ रूपए खर्च होंगे । सरकार तीन साल तक यह प्रोत्साहन राशि देगी । निजी आपरेटर को विमान में लगने वाले ईंधन में वैट से भी छूट मिलेगी । ये वही सरकार है जो महँगाई पर काबू पाने के लिये डीज़ल-पेट्रोल और रसोई गैस पर लगे करों को ज़रा भी कम करने को तैयार नहीं है । गौर करने वाली बात है कि मध्यप्रदेश में पेट्रोलियम पदार्थ और रसोई गैस अन्य प्रदेशों की तुलना में तीस से पैंतीस फ़ीसदी तक महँगे हैं ।

    औद्योगिक घरानों और व्यापारियों पर मेहरबान राज्य सरकार अपने कर्मचारियों का खून चूसने से भी बाज़ नहीं आ रही है । हाल ही में हुए खुलासे ने कर्मचारियों को हक्का बक्का कर दिया है । महंगाई की मार से दोहरे हो चुके कर्मचारियों की मकान किराया भत्ता, वाहन भत्ता जैसी मूलभूत सुविधाओं पर भी सरकार ने रोक लगा रखी है । बेहाल सरकारी मुलाज़िमों के हक के पैसे पर डाका डालकर सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है । कर्मचारियों को सरकार की रीढ़ मानने का दावा करने वाली प्रदेश में बीते छह वर्षो में सत्तारूढ़ भाजपा साढे पांच लाख मुलाजिमों का दस हजार करोड़ रूपया डकार चुकी है। सरकारी खजाने में जमा यह राशि केंद्र की अनुशंसाओं को राज्य सरकार द्वारा देरी से लागू करने के अंतर की है । अप्रैल 2004 को केंद्र ने 50 फीसदी डीए मूल वेतन में शामिल कर दिया। राज्य ने इसे 1 अप्रैल 2007 में सम्मलित किया । केंद्रीय कर्मियों को 1 जनवरी 2006 से 31 अगस्त 2008 के बीच छठे वेतनमान के एरियर का भुगतान डीए समेत किया । छठे वेतनमान में केंद्र ने 1 जनवरी 2006 से अपने कर्मचारियों को महंगाई भत्ते का भुगतान किया। राज्य ने एरियर तो दिया लेकिन बिना डीए का ।

    जनतांत्रिक तरीके से चुनकर आई प्रदेश सरकार के सामंती और तानाशाही तेवरों का आलम यह है कि कर्मचारियों के जायज़ हक को नज़र अंदाज़ करने वाले वित्त मंत्री राघवजी अपने फ़ैसले को सही ठहरा रहे हैं । कर्मचारियों को वेतन-भत्ते देने के लिये सरकार के पास पैसा नहीं है, लेकिन सरकारी योजनाओं के नाम पर उद्योगपतियों को रियायतें देने के लिये सरकारी खज़ाना खाली करने में कोई संकोच नहीं है । वे कहते हैं कि यह जरूरी नहीं है कि केंद्रीय तिथि से ही राज्य अपने कर्मियों को महंगाई भत्ता या अन्य लाभ दे। राज्य इस मामले में स्वतंत्र है। वित्त विभाग का दो टूक कहना है कि जरूरी नहीं है कि वह केंद्रीय तिथि से भुगतान करे।

    तमाम हेराफ़ेरी के बावजूद सरकारी आँकड़े ही प्रदेश के वित्तीय हालात की चुगली करते दिखाई देते हैं । आंकड़े बयां कर रहे हैं कि किस तरह कर्मचारियों का पेट काटकर ही तिजोरी भरी गई है। राज्य सरकार के वित्तीय वर्ष 2009-10 के अंत में शुद्ध बचत रिजर्व बैंक के खजाने में बचत 5560 करोड़ रूपए थी, जबकि केंद्रीय तिथि से कर्मचारियों को भुगतान नहीं करने का सरकारी आंकड़ों में अंतर 10012 करोड़ रूपए है। इस तरह यदि कर्मचारियों को उनकी बकाया राशि का भुगतान कर दिया जाए, तो खज़ाना भरा होने का सरकारी दावा पल भर में काफ़ूर हो जाए ।

    स्वर्णिम प्रदेश बनाने का शिगूफ़ा छोड़ने वाले शिवराज के फ़ैसले अँधेर नगरी के…….राजा की याद ताज़ा कर देते हैं । आये दिन केन्द्र पर भेदभाव का आरोप मढ़कर जनता को बेवकूफ़ बनाने वाले मुख्यमंत्रीजी की शिकायत है कि इस साल उसे केंद्रीय सड़क निधि और अन्य योजनाओं में मिलने वाले 1000 से 1500 करोड़ रूपये नहीं मिले, इसलिए सड़कें बनाने के लिए धन की भारी कमी हो गई है। लेकिन शिवराज सरकार इन तात्कालिक बाधाओं के आगे घुटने टेकने वाली थोड़े ही है, लिहाज़ा इरादे के पक्के मुख्यमंत्री ने आनन-फ़ानन में फैसला ले लिया है कि करीब 2500 किलोमीटर लंबी सड़कों के निर्माण के लिए वह ठेकेदारों से ही करीब 2000 करोड़ रूपये का लोन लिया जाएगा । यह राष्ट्रीयकृत बैंकों की मौजूदा ब्याज दर पर ही होगा और उसे 10 वर्षो में सालाना किश्तों में चुकता किया जाएगा ।

    यहां गौर करने लायक बात यह है कि “एनयूटी मोड” के तहत बनने वाली ये वे सड़कें होंगी जहां टोल टैक्स की वसूली संभव नहीं है। अब एनयूटी मोड में सड़कें बनेंगी, यानी ठेकेदार सड़क बनाएगा और सरकार किस्तों में उसे ब्याज सहित लागत रकम लौटाएगी। अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि इस तरह बनने वाली सड़कों में असल फायदा किसे होगा- सरकार को, ठेकेदार को या जनता को? क्योंकि बीओटी के तहत बनी सड़कों पर टोलटैक्स वसूली की हकीकत से सभी कभी न कभी दो-चार हुए हैं ।

    सबसे गंभीर और हैरानी की बात यह है कि सारे सरकारी निर्माण कार्य घाटे में ही क्यों जाते हैं, जबकि सरकारी ठेके लेने वाले लोग हर स्तर पर मुट्ठी गर्म करने के बावजूद दिन दोगुनी रफ़्तार से श्री और समृद्धि हासिल करते हैं । जो आमतौर पर ठेकेदार किसी ना किसी रुप में नेताओं से जुड़े रहते हैं, फ़िर चाहे वो उनके सगे-संबंधी हों या उनके इष्टमित्र । अब तो वे सरकार की कृपा से साहूकार भी बनने जा रहे हैं। सरकारी धन की लूट की बढ़ती प्रवृत्ति कह रही है कि तो वह दिन दूर नहीं जब कर्ज के बोझ तले दबी सरकार ही किसी ठेकेदार के हाथ होगी ।
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    बृहस्पतिवार, २९ जुलाई २०१०

    चल रहा है प्रदेश बेचो अभियान…..!

    मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सनसनीखेज़ और उत्तेजक बयानों ने प्रदेश की राजनीति में तूफ़ान ला दिया है । जहाँ शिवपुरी में भूमाफ़ियाओं पर उन्हें हटाने के लिये धन इकट्ठा करने का बयान दे कर सबको हक्का बक्का कर दिया। वहीं सदन के भीतर भूमाफ़ियाओं को चुनौती देने की शिवराज की दंभ भरी हुँकार से लोग सन्न हैं । विरोधियों को चुनौती देने के लिये उन्होंने संसदीय मर्यादाओं को बलाये ताक रखकर जिस भाषा शैली का इस्तेमाल किया, उसका उदाहरण प्रदेश के इतिहास में शायद ही मिले ।
    मुख्यमंत्री भूमाफ़ियाओं पर उन्हें हटाने के लिये धन इकट्ठा करने का आरोप लगा रहे हैं, मगर भाजपा सरकार की कामकाज की शैली पर नज़र डालें, तो राज्य सरकार खुद ही भूमाफ़िया की सरमायेदार नज़र आती है। शिवराज के सत्तारुढ़ होने के बाद से मंत्रिपरिषद के अब तक लिये गये फ़ैसले सरकार की शैली साफ़ करने के लिये काफ़ी हैं । हर चौथी-पाँचवीं बैठक में निजी क्षेत्र को सरकारी ज़मीन देने के फ़ैसले आम है । सदन में भूमाफ़ियाओं पर दहाड़ने वाले मुखिया का मंत्रिमंडल जिस तरह के फ़ैसले ले रहा है, उससे उद्योगपतियों, नेताओं और भूमाफ़िया ही चाँदी कूट रहे हैं । एक तरफ़ सरकारी ज़मीनों को कौड़ियों के भाव औद्योगिक घरानों के हवाले किया जा रहा है , वहीं दूसरी तरफ़ बड़े बिल्डरों को फ़ायदा पहुँचाने के लिये नियमों को तोड़ा मरोड़ा जा रहा है । सरकार के फ़ैसले से नाराज़ छोटे बिल्डरों को खुश करने के लिये भी नियमों को बलाए ताक रख दिया गया है । गोया कि सरकार नेताओं को चंदा देने वाली किसी भी संस्था की नाराज़गी मोल नहीं लेना चाहती ।

    सरकारी कायदों की आड़ में ज़मीनों के अधिग्रहण का खेल पुराना है , लेकिन अब मध्यप्रदेश में हालात बेकाबू हो चले हैं । मिंटो हॉल को बेचने के कैबिनेट के फ़ैसले ने सरकार की नीयत पर सवाल खडे कर दिये हैं । मध्यप्रदेश सरकार सूबे की संपत्ति को अपनी मिल्कियत समझकर मनमाने फ़ैसले ले रही है । मालदारों और रसूखदारों को उपकृत करने की श्रृंखला में अब बारी है भोपाल की शान मिंटो हॉल की , जिसे निजी हाथों में सौंपा जा रहा है । स्थापत्य कला के नायाब नमूने के तौर पर सीना ताने खड़ी नवाबी दौर की इस इमारत का ऎतिहासिक महत्व तो है ही, यह धरोहर एकीकृत मध्यप्रदेश की विधान सभा के तौर पर कई अहम फ़ैसलों की गवाह भी है । सरकारी जमीन लीज पर देने का अपने तरह का यह पहला मामला होगा। राज्य सरकार की प्री-क्वालीफिकेशन बिड में चार कंपनियाँ रामकी (हैदराबाद), सोम इंडस्ट्री (हैदराबाद) जेपी ग्रुप (दिल्ली) और रहेजा ग्रुप (बाम्बे) चुनी गई हैं । इनमें से रामकी ग्रुप बीजेपी के एक बड़े नेता के करीबी रिश्तेदार का है । यूनियन कार्बाइड का कचरा जलाने का ठेका भी इसी कंपनी को दिया गया है । जेपी ग्रुप पर बीजेपी की मेहरबानियाँ जगज़ाहिर हैं ।

    भोपाल को रातोंरात सिंगापुर,पेरिस बनाने की चाहत में राज्य सरकार कम्पनियों को मनमानी रियायत देने पर आमादा है । इतनी बेशकीमती जमीन कमर्शियल रेट तो दूर,सरकार कलेक्टर रेट से भी कम दामों पर देने की तैयारी कर चुकी है । ऐसा लगता है कि सरकार किसी उद्योगपति को लाभ पहुंचाने के लिए नियमों को अपने हिसाब से बना रही है। कलेक्टर रेट पर भी जमीन की कीमत लगभग 117.25 करोड़ है,जबकि 7.1 एकड़ के भूखंड की कीमत महज़ 85 करोड़ रुपए रखी गई है। शहर के बीचोबीच राजभवन के पास की इस जमीन की सरकारी कीमत सत्रह करोड़ रूपए प्रति एकड़ है। यहाँ जमीन का कामर्शियल रेट कलेक्टर रेट से तीन गुना से भी अधिक है। कीमत कम रखने के पीछे तर्क है कि उपयोग की जमीन मात्र साढ़े पांच एकड़ है। इतना ही नहीं 1.2 एकड़ में बने खूबसूरत पार्क को एक रूपए प्रतिवर्ष की लीज पर दिया जाएगा, जिसका उपयोग संबंधित कंपनी पार्टियों के साथ ही बतौर कैफेटेरिया भी कर पायेगी ।

    सरकार की मेहरबानियों का सिलसिला यहीं नहीं थमता । उद्योगपतियों को लाभ देने के लिए 85 करोड़ की राशि चौदह साल में आसान किश्तों पर लेने का प्रस्ताव है। पहले चार साल प्रतिवर्ष ढ़ाई करोड़ रूपए सरकार को मिलेंगे, जबकि पांचवे साल से सरकार को 14.90 करोड़ रूपए मिलेंगे। इस दौरान कंपनी सरकार को राशि पर महज़ 8.5 फ़ीसदी की दर से ब्याज अदा करेगी। इतनी रियायतें और चौदह साल में 85 करोड़ रूपए की अदायगी का सरकारी फ़ार्मूला किसी के गले नहीं उतर रहा है। सरकार मिंटो हॉल को साठ साल की लीज पर देगी, जिसे तीस साल तक और बढ़ाया जा सकता है। गौरतलब है कि गरीबों और मध्यमवर्गियों को मकान बनाकर देने वाला मप्र गृह निर्माण मंडल अपने ग्राहकों से आज भी किराया भाड़ा योजना के तहत 15 फ़ीसदी से भी ज़्यादा ब्याज वसूलता है ।

    इसी तरह पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर मप्र पर्यटन विकास निगम ने महज़ 27 हजार 127 रुपए की सालाना लीज पर गोविंदगढ़ का किला दिल्ली की मैसर्स मैगपी रिसोर्ट प्रायवेट लिमिटेड के हवाले कर दिया है। इस तरह करीब 3.617 हेक्टेयर में फ़ैले गोविंदगढ़ किले को हेरिटेज होटल में तब्दील करके सैलानियों की जेब हल्की कराने के लिये कंपनी को हर महीने सिर्फ़ 2 हज़ार 260 रुपए खर्च करना होंगे। उस पर तुर्रा ये कि निगम के अध्यक्ष बड़ी ही मासूमियत के साथ कंपनी का एहसान मान रहे हैं,जिसने कम से कम किला खरीदने की हिम्मत तो की । वरना कई बार विज्ञापन करने के बावजूद कोई भी कंपनी किले को खरीदने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही थी ।

    “मुफ़्त का चंदन” घिसने में मुख्यमंत्री किसी से पीछे नहीं हैं । ज़मीनों की रेवड़ियाँ बाँटने में उनका हाथ काफ़ी खुला हुआ है । पिछले छह सालों में केवल भोपाल ज़िले में सेवा भारती सहित कई सामाजिक और स्वयंसेवी संगठनों को करीब 95एकड़ ज़मीन दे चुके हैं । इसमें वो बेशकीमती ज़मीनें शामिल नहीं हैं , जिन पर मंत्रियों और विधायकों से लेकर छुटभैये नेताओं के इशारों पर मंदिर,झुग्गियाँ तथा गुमटियाँ बन चुकी हैं ।

    राजधानी के कमर्शियल एरिया महाराणा प्रताप नगर से लगी सरकारी ज़मीन पर बसे पट्टेधारी झुग्गीवासियों को बलपूर्वक खदेड़ दिया गया था । ज़मीन खाली कराने के पीछे प्रशासन का तर्क था कि सरकार को इसकी ज़रुरत है । विस्थापन के लिये सरकार ने झुग्गीवासियों को वैकल्पिक जगह दी और उनके विस्थापन का खर्च भी उठाया । बाद में मध्यप्रदेश गृह निर्माण मंडल के दावे को दरकिनार करते हुए बीजेपी सरकार ने बेशकीमती ज़मीन औने-पौने में दैनिक भास्कर समूह को “भेंट कर” दी । आज वहाँ डीबी मॉल सीना तान कर बेरोकटोक जारी सरकारी बंदरबाँट पर इठला रहा है । हाल ही में इस मॉल के प्रवेश द्वार में तब्दीली के लिये कैबिनेट के फ़ैसले ने एक बार फ़िर व्यावसायिक परीक्षा मंडल को अपना आकार सिकोड़ने पर मजबूर कर दिया । तमाम विरोधों को दरकिनार करते हुए कई पेड़ों की बलि देकर बेशकीमती ज़मीन डीबी मॉल को सौंप दी गई । करीब पाँच साल पहले भोपाल विकास प्राधिकरण ने भी एक बिल्डर पर भी इसी तरह की कृपा दिखाई थी । सरकारी खर्च पर अतिक्रमण से मुक्त कराई गई करीब पाँच एकड़ से ज़्यादा ज़मीन के लिये बिल्डर को कई सालों तक आसान किस्तों में रकम अदायगी की सुविधा मुहैया कराई थी । इसी तरह राजधानी भोपाल के टीनशेड, साउथ टीटीनगर क्षेत्र के सरकारी मकानों को ज़मीनदोज़ कर ज़मीन कंस्ट्रक्शन कंपनी गैमन इंडिया के हवाले कर दी गई ।

    राज्य सरकार सामाजिक,राजनीतिक,शैक्षिक संस्थाओं के अलावा अब उद्योगपतियों पर भी मेहरबान हो रही है । राजधानी भोपाल,औद्योगिक शहर इंदौर,जबलपुर,ग्वालियर सहित कई अन्य शहरों में तमाम नियमों को दरकिनार कर सरकारी ज़मीन कौड़ियों के दाम नेताओं के रिश्तेदारों और उनके चहेते औद्योगिक घरानों को सौंपी जा रही हैं । 23 अप्रैल 2010 के पत्रिका के भोपाल संस्करण में सातवें पेज पर प्रकाशित ज़ाहिर सूचना में ग्राम सिंगारचोली यानी मनुआभान की टेकरी के आसपास की 1.28 एकड़ शासकीय ज़मीन एस्सार ग्रुप को कार्यालय खोलने के लिये आवंटित करने की बात कही गई है । नजूल अधिकारी के हवाले से प्रकाशित इस विज्ञापन में बेहद बारीक अक्षरों में पंद्रह दिनों के भीतर आपत्ति लगाने की खानापूर्ति भी की गई है ।

    सरकार के कई मंत्री और विधायक शहरों की प्राइम लोकेशन वाली ज़मीनों पर रातों रात झुग्गी बस्तियाँ उगाने, शनि और साँईं मंदिर बनाने के काम में मसरुफ़ हैं । नेताओं की छत्रछाया में बेजा कब्ज़ा कर ज़मीनें बेचने वाले भूमाफ़िया पूरे प्रदेश में फ़लफ़ूल रहे हैं । भाजपा के करीबियों ने कोटरा क्षेत्र में सरकारी ज़मीन पर प्लॉट काट दिये । गोमती कॉलोनी के करीब चार सौ परिवार नजूल का नोटिस मिलने के बाद अपने बसेरे टूटने की आशंका से हैरान-परेशान घूम रहे हैं । असली अपराधी नेताओं के संरक्षण में सरकारी ज़मीनों को “लूटकर” बेच रहे हैं । आलम ये है कि सरकार की नाक के नीचे भोपाल में करोड़ों की सरकारी ज़मीनें निजी हाथों में जा चुकी है । कई मामलों में नेताओं और अफ़सरों की मिलीभगत के चलते सरकार को मुँह की खाना पड़ी है ।

    राज्य सरकार ने काफी मशक्कत के बाद भोपाल के मास्टर प्लान को रद्द करने का निर्णय लेने का मन बना लिया है। नगर तथा ग्राम निवेश संचालनालय ने राज्य शासन को नगर तथा ग्राम निवेश की धारा 18 (3) के तहत प्लान को निरस्त करने का प्रस्ताव भेज दिया है।शहरों में जमीन की आसमान छू रही कीमतों और बढ़ते शहरीकरण के मद्देनजर आवास एवं पर्यावरण विभाग ने टाउनशिप विकास नियम-2010 का प्रारूप प्रकाशित कर दिया है। ऊपरी तौर पर सब कुछ सामान्य घटनाक्रम दिखता है, लेकिन पूरे मामले की तह में जाने पर सारी धाँधली साफ़ हो जाती है । टाउनशिप विकास नियम-2010 के प्रकाशन से पहले भोपाल के मास्टर प्लान को रद्द करने की मुख्यमंत्री की घोषणा की टाइमिंग भूमाफ़ियाओं से सरकार की साँठगाँठ की पोल खोल कर रख देती है ।

    सरसरी तौर पर टाउनशिप विकास नियम-2010 में कोई खोट नज़र नहीं आती, लेकिन प्रारूप में एक ऎसी छूट शामिल कर दी गई है, जिससे शहरों के मास्टर प्लान ही बेमानी हो जाएँगे । मास्टर प्लान में कई नियमों से बँधे कॉलोनाइजरों और डेवलपरों के लिये स्पेशल टाउनशिप नियम राहत का पैगाम है। राज्य सरकार ने टाउनशिप नियमों का जो मसौदा तैयार किया है, उसमें स्पेशल टाउनशिप को मंजूरी देने के लिए मास्टर प्लान के नियम बाधा नहीं बनेंगे। जहां भी मास्टर प्लान का क्षेत्र होगा, यदि वहां उक्त प्रस्ताव के नियमों और मास्टर प्लान के नियमों में विरोधाभास हुआ तो टाउनशिप के नियम लागू होंगे। इस तरह राज्य सरकार ने स्पेशल टाउनशिप के ज़रिये मास्टर प्लान से भी छेड़छाड़ की छूट दे दी है।

    टाउनशिप के निर्माण के लिए असीमित कृषि भूमि खरीदने और इस जमीन को कृषि जोत उच्चतम सीमा अधिनियम के प्रावधानों से भी मुक्त करने जैसी बड़ी रियायतें भी देने का प्रस्ताव है। साथ ही टाउनशिप के बीच में आने वाली सरकारी जमीन प्रचलित दरों या अनुसूची(क) की दरों अथवा कलेक्टर की ओर से तय दरों पर पट्टे पर देने का प्रस्ताव भी आगे चलकर किसके लिये मददगार बनेगा,बताने की ज़रुरत शायद नहीं है । खतरनाक बात यह है कि कृषि भूमि पर भी टाउनशिप खड़ी हो सकेगी। खेती को लाभ का धँधा बनाने के सब्ज़बाग दिखाने वाले सूबे के मुखिया ने खेती की ज़मीनों पर काँक्रीट के जंगल उगाने की खुली छूट दे दी है । किसान तात्कालिक फ़ायदे के लिये अपनी ज़मीनें भूमाफ़ियाओं को बेच रहे हैं । सरकार की नीतियों के कारण सिकुड़ती कृषि भूमि ने धरतीपुत्रों को मालिक से मज़दूर बना दिया है । इससे पहले राज्य सरकार हानि में चल रहे कृषि प्रक्षेत्रों, जिनमें नर्सरियाँ और बाबई कृषि फ़ार्म भी निजी हाथों में देने का फ़ैसला ले चुकी है ।

    प्रारूप के नियमों में हर जगह लिखा गया है कि विकासकर्ता को अपने स्रोतों से ही टाउनशिप में सुविधाएँ उपलब्ध कराना होंगी जिनमें सड़क बिजली एवं पानी मुख्य है । वहीं यह भी जोड़ दिया कि वो चाहे तो इस कार्य में नगरीय निकाय की सहायता ले सकते हैं। नियम में इस शर्त को जोड़कर विकासकर्ता को खुली छूट दी गई है कि वो अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर टाउनशिप का पूरा विकास सरकारी एजेंसी के खर्चे से करवा ले। आवास एवं पर्यावरण विभाग की वेबसाइट पर मसौदे को गौर से पढ़ा जाए तो इसमें शुरू से लेकर आखिर तक सिर्फ बिल्डरों को उपकृत करने की मंशा साफ़ नज़र आती है। विभाग ने अपने ही नियमों को धता बताते हुए इस नए नियम से बड़े कॉलोनाइजरों और डेवलपरों की खुलकर मदद की है।

    स्पेशल टाउनशिप को पर्यावरण और खेती का रकबा घटने के लिये ज़िम्मेदार मानने वालों का तर्क है कि शहर के बाहर स्पेशल टाउनशिप बनाने के बजाए पहले सरकार को पुनर्घनत्वीकरण योजना के तहत शहर के पुराने, जर्जर भवनों के स्थान पर बहुमंजिला भवन बनाना चाहिए। अंग्रेजों द्वारा 1894 में बनाये गये कानून की आड़ में सरकारी ज़मीनों की खरीद फ़रोख्त का दौर वैसे ही उफ़ान पर है । ऎसे में खेती की ज़मीनों पर टाउनशिप विकसित करने का प्रस्ताव आत्मघाती कदम साबित होगा । इस प्रस्ताव से कृषि भूमि के परिवर्तन के मामलों में अंधाधुंध बढ़ोतरी की आशंका भी पर्यावरण प्रेमियों को सताने लगी है ।

    कृषि भूमि का अधिग्रहण कर पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने पर उतारु सरकार सरकारी संपत्ति की लूट खसोट के लिये जनता द्वारा सौंपी गई ताकत का बेजा इस्तेमाल कर रही हैं । अरबों-खरबों के टर्नओवर वाली कंपनियों पर भी शिवराज सरकार की कृपादृष्टि कम नहीं है । इस बात को समझने के लिये इतना जानना ही काफ़ी होगा कि बीते एक साल के दौरान प्रदेश में बड़ी कंपनियों को सरकार 8000 हैक्टेयर से अधिक ज़मीन बाँट चुकी है । बेशकीमती ज़मीनें बड़ी कम्पनियों को रियायती दरों पर देने का यह खेल प्रदेश में उद्योग-धँधों को बढ़ावा देने के नाम पर खेला जा रहा है । पिछले एक साल में रिलायंस, बिड़ला समूह समेत 22 बड़ी कंपनियों को करीब 6400 हैक्टेयर निजी भूमि भू अर्जन के माध्यम से दी गई । वहीं 14 ऎसी कंपनियाँ हैं जिन्हें निजी के साथ ही करीब 1640 हैक्टेयर सरकारी ज़मीन भी उपलब्ध कराई गई है । इनमें भाजपा का चहेता जेपी ग्रुप भी शामिल है । अरबों के टर्नओवर वाली कंपनियों को रियायत की सौगात देने के पीछे सरकार का तर्क है कि इससे लोगों को स्थानीय स्तर पर रोज़गार मिल सकेगा लेकिन अब तक सरकारी दावे खोखले ही हैं ।

    सरकारी संपत्ति पर जनता का पहला हक है। आम लोगों को अँधेरे में रखकर सरकार पूंजीपतियों के हाथ की कठपुतली की तरह काम कर रही है । नवम्बर 2005 के बाद प्रदेश की भाजपा सरकार के फ़ैसले भूमाफ़ियाओं के इशारों पर नाचने वाली कठपुतली के से जान पड़ते हैं । पिछले छः दशकों में आदिवासी तथा अन्य क्षेत्रों की खनिज संपदा का तो बड़े पैमाने पर दोहन किया गया है मगर इसका फायदा सिर्फ पूँजीपतियों को मिला है। जो आबादियाँ खनन आदि के कारण बड़े पैमाने पर विस्थापित हुईं, अपनी जमीन से उजड़ीं, उन्हें कुछ नहीं मिला। यहाँ तक कि आजीविका कमाने के संसाधन भी नहीं मिले, सिर पर एक छत भी नहीं मिली और पारंपरिक जीवनपद्धति छूटी, रोजगार छूटा, सो अलग। सरकार को उसकी हैसियत बताने के लिये जनता को अपनी ताकत पहचानना होगा और जागना होगा नीम बेहोशी से ।…….क्योंकि ज़मीनों की इस बंदरबाँट को थामने का कोई रास्ता अब भी बचा है ?
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    बृहस्पतिवार, २२ जुलाई २०१०

    बौखला रहे हैं शिवराज

    अपनी राह के काँटों को हटाने में मिल रही नाकामी से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री इन दिनों बौखलाए हुए हैं । तभी तो लोकतंत्र के मंदिर में एक जनप्रतिनिधि की बजाय “गर्वोन्मत्त” बयान देते दिखाई दिये । सौम्य और शालीन कहे जाने वाले शिवराज के तल्ख तेवर के लोग अपने-अपने तरीके से मायने लगाने में जुटे हैं । शिवपुरी में दिए कथित बयान पर मचे बवाल के बाद कल विधानसभा में दंभ से भरे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि उन्हें हटाने का किसी माई के लाल में दम नहीं है और वे किसी से डरते नहीं हैं। न किसी में हिम्मत है कि उन्हें हटा सके। उन्होंने कहा, भूमाफियाओं पर कार्रवाई की बात मैं करता आया हूं। भूमाफियाओं से मुझे कोई डर नहीं है। वे इतने पर ही नहीं ठहरे । आत्मविभोर शिवराज ने अपनी लोकप्रियता को काँग्रेस के डर का सबब तक बता डाला । उनका गुरुर अब मग़रुरी की शक्ल अख्तियार कर चुका है ।

    दरअसल विरोधी खेमे को नेस्तनाबूद करने के लिये मीडिया की मदद से चलाई गई मुहिम की नाकामी ने शिवराज को हिला कर रख दिया है । विनम्रता का चोला उतरते ही सूबे के मुखिया का असली चेहरा सबके सामने आ गया है । प्रवचन की शैली और चंद चापलूस नौकरशाहों की बदौलत एक जननायक की छबि गढ़ने वाले मुख्यमंत्री की हकीकत से अब जनता बखूबी वाकिफ़ हो चुकी है । “काठ की हाँडी बार-बार नहीं चढ़ती ” ये शिवराज भी बखूबी जानते हैं । लिहाज़ा जनता की नज़रों में खुद को मासूम और लाचार साबित करने के लिये उन्होंने बड़ी ही चतुराई से दाँव खेला है । लेकिन उनका ये पैंतरा हारे हुए सिपाही की आखिरी कोशिश सा है ।

    पिछले दिनों पत्रिका समाचार पत्र को आगे कर सूबे के मुखिया ने कैलाश विजयवर्गीय पर जिस तरह का हमला बोला , उसे पूरे प्रदेश ने देखा । निर्भीक और निष्पक्ष पत्रकारिता की दुहाई देने वाले समाचार पत्र “पत्रिका” की दस-पंद्रह दिन लगातार चली मुहिम ने पीत पत्रकारिता के ताज़ा मानदंड बनाये । संभव है कि समाचार पत्र समूह को तात्कालिक फ़ायदे मिल गये हों , मगर इस एकतरफ़ा मुहिम ने मीडिया की बची खुची साख पर भी बट्टा लगा दिया । कैलाश विजयवर्गीय को हटाने की कोशिशों की नाकामी से बदहवास शिवराज अब आपा खोते जा रहे हैं । जनसंपर्क विभाग के ज़रिये मीडिया के सामने फ़ेंके गये टुकड़ों की बदौलत साफ़ सुथरी जनप्रिय छबि गढ़ी गई । लेकिन नौकरशाहों के इशारों पर काम करने वाले मुख्यमंत्री ये भूल गये कि “हनीमून” खत्म होने के बाद आटॆ दाल का भाव याद आने ही लगता है । जनता अब अपने नेता से काम का हिसाब माँग रही है ।

    वैसे तो प्रदेश के दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों में अराजकता और दूसरे को गिराकर आगे बढ़ने की प्रवृत्ति ज़ोर पकड़ रही है । काँग्रेस के क्षत्रपों में वर्चस्व की लड़ाई लम्बे समय से चली आ रही है । वहीं नेता प्रतिपक्ष का पद हासिल करने की होड़ ने विधानसभा में विपक्ष के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है । हर नेता की ढ़पली अलग है,ज़ाहिर बात है कि राग भी अलग ही होगा । कमोबेश ये ही हालात बीजेपी में भी हैं । लेकिन यहाँ पद से ज़्यादा बड़ा झगड़ा सत्ता के ज़रिये प्रदेश में चल रही लूट खसोट के माल के बँटवारे का है । शिवराज सरकार की “साँसों की घड़ी की टिकटिक” का रिमोट दिल्ली में बैठी चाँडाल चौकड़ी के हाथों में है । सूबे के मुखिया के मौजूदा हालात शोले फ़िल्म के “धन्नो, वीरु और गब्बर सिंग” के सीन की याद बरबस ही दिला जाते हैं,जिसमें गब्बर सिंग कहता है कि जब तक तेरे पाँव चलेंगे, वीरु की साँस चलेगी । उसी तरह जब तक सत्ता से लूटे जा रहे धन का तयशुदा मोटा हिस्सा आकाओं तक पहुँचता रहेगा, सरकार कायम रहेगी । जब कोई इससे तगड़ा बोलीदार सत्ता के टेंडर की नीलामी रकम बड़ा कर लगा देगा , तब धंधे के उसूलों से बँधे सौदागर उसे सत्ता की चाबी सौंपने को मजबूर होंगे ……! क्या करें गंदा है पर धँधा है ये …….!
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    मंगलवार, ६ जुलाई २०१०

    भरोसा कर लिया जिन पर …………

    मध्यप्रदेश सरकार सूबे की संपत्ति को अपनी मिल्कियत समझकर मनमाने फ़ैसले ले रही है । एक तरफ़ सरकारी ज़मीनों को कौड़ियों के भाव औद्योगिक घरानों के हवाले किया जा रहा है । वहीं दूसरी तरफ़ बड़े बिल्डरों को फ़ायदा पहुँचाने के लिये नियमों को तोड़ा मरोड़ा जा रहा है । सरकार के फ़ैसले से नाराज़ छोटे बिल्डरों को खुश करने के लिये भी सरकार ने नियमों में ढ़ील दे दी है । गोया कि राज्य सरकार नेताओं को चंदा देने वाली किसी भी संस्था की नाराज़गी मोल नहीं लेना चाहती । सरकारी कायदों की आड़ में ज़मीनों के अधिग्रहण का खेल पुराना है , लेकिन अब मध्यप्रदेश में हालात बेकाबू हो चले हैं । राजधानी भोपाल के सरकारी मकानों को ज़मीनदोज़ कर कंस्ट्रक्शन कंपनी गैमन इंडिया के हवाले कर दी गई ।

    मालदारों और रसूखदारों को उपकृत करने की श्रृंखला में अब बारी है भोपाल की शान कहे जाने वाले मिंटो हॉल की , जिसे निजी हाथों में सौंपने की तैयारी चल रही है । स्थापत्य कला के नायाब नमूने के तौर पर सीना ताने खड़ी इस इमारत का ऎतिहासिक महत्व तो है ही, यह धरोहर एकीकृत मध्यप्रदेश की विधान सभा के तौर पर कई अहम फ़ैसलों की गवाह भी रही है । मिंटो हॉल से लगी 7.1 एकड़ जमीन पर कंवेंशन सेंटर बनाने के लिए सरकारी रेट से कम दर पर जमीन देने की तैयारी राज्य सरकार ने कर ली है। यही नहीं मिंटो हाल से सटे एक एकड़ से अधिक क्षेत्र में फ़ैले पार्क को एक रूपए प्रतिवर्ष के लीज पर दिया जाएगा। शायद सरकारी जमीन लीज पर देने का अपने तरह का यह पहला मामला होगा। लघु उद्योग निगम ने कैबिनेट में प्रस्ताव लाने के लिए प्रेसी बनाकर राज्य सरकार को भेज दी है। राज्य सरकार द्वारा जारी की गई प्री-क्वालीफिकेशन बिड में चार कंपनियाँ रामकी (हैदराबाद), सोम इंडस्ट्री (हैदराबाद) जेपी ग्रुप (दिल्ली) और रहेजा ग्रुप (बाम्बे) का चुनी गई हैं । इनमें से रामकी ग्रुप बीजेपी के एक बड़े नेता के करीबी रिश्तेदार का है । यूनियन कार्बाईड का कचरा जलाने का ठेका भी इसी कंपनी को दिया गया है । जेपी ग्रुप पर बीजेपी की मेहरबानियाँ जगज़ाहिर हैं ।

    रातोंरात भोपाल को सिंगापुर,पेरिस बनाने का चाहत में राज्य सरकार कम्पनियों को मनमानी रियायत देने पर आमादा है । तभी तो कमर्शियल रेट तो दूर की बात है इतनी बेशकीमती जमीन को सरकार को कलेक्टर रेट से भी कम दामों पर देने की तैयारी कर चुकी है । शहर के बीचोबीच राजभवन के पास की इस जमीन की सरकारी कीमत सत्रह करोड़ रूपए प्रति एकड़ है। लेकिन सरकार ने 7.1 एकड़ के भूखंड की कीमत 85 करोड़ रुपए रखी है। इस हिसाब से जमीन की कीमत बारह करोड़ रूपए प्रति एकड़ होगी, जबकि यहाँ जमीन का कामर्शियल रेट कलेक्टर रेट से तीन गुना से भी अधिक है। कलेक्टर रेट पर भी जमीन की कीमत लगभग 117.25 करोड़ होना चाहिए। लेकिन जमीन की कीमत सरकारी कीमत से 32 करोड़ रूपए कम रखी गई है। इसके पीछे कैबिनेट की प्रेसी में तर्क दिए गए है कि उपयोग की जमीन मात्र साढ़े पांच एकड़ है। सरकार मिंटो हॉल को साठ साल के लीज पर देगी, जिसे तीस साल तक और बढ़ाया जा सकता है।

    सरकार की मेहरबानियों का सिलसिला यहीं नहीं थमता । उद्योगपतियों को लाभ देने के लिए 85 करोड़ की राशि चौदह साल में आसान किश्तों पर लेने का प्रस्ताव है। पहले चार साल प्रतिवर्ष ढ़ाई करोड़ रूपए सरकार को मिलेंगे, जबकि पांचवे साल से सरकार को 14.90 करोड़ रूपए मिलेंगे। इस दौरान कंपनी सरकार को राशि पर महज़ 8.5 की दर से ब्याज अदा करेगी। इतनी रियायतें और चौदह साल में 85 करोड़ रूपए की अदायगी का सरकारी फ़ार्मूला किसी के गले नहीं उतर रहा है। गौरतलब है कि गरीबों और मध्यमवर्गीयों को मकान बनाकर देने वाला मप्र गृह निर्माण मंडल अपने ग्राहकों से आज भी किराया भाड़ा योजना के तहत 15 फ़ीसदी से भी ज़्यादा ब्याज वसूलता है ।
    ऐसा लगता है कि सरकार किसी उद्योगपति को लाभ पहुंचाने के लिए नियमों को अपने हिसाब से बना रही है। कैबिनेट के लिए तैयार किए गए प्रस्ताव में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मिंटोहाल के वर्तमान स्वरूप में कोई बदलाव और फेरबदल नहीं किया जाएगा। लेकिन टेंडर जिस कंपनी को मिलेगा , वह इमारत का इस्तेमाल कर सकेगी । इतना ही नहीं 1.2 एकड़ में बने खूबसूरत पार्क को एक रूपए प्रतिवर्ष

    • यह विवरण सरिता अरगरे जी की सहमती से उनके ब्लॉग “नुक्ताचीनी” से लिया गया है. जिसका उल्लेख मैंने इस विवरण को पोस्ट करते समय भी स्त्रोत के रूप में किया था, जिसे न जाने किस कारण से यहाँ दिखाया नहीं गया है, इसलिए इसे स्पष्ट करना जरूरी है.

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