भोपाल से लौटकर संजीव कुमार सिन्हा
पिछले दिनों अनिल सौमित्र जी का मेल आया। 12 अगस्त को भोपाल में आयोजित ‘न्यू मीडिया’ पर एकदिवसीय कार्यक्रम के सम्बंध में। कार्यक्रम का नाम उन्होंने दिया था ‘मीडिया चौपाल 2012- विकास की बात, विज्ञान के साथ – नये मीडिया की भूमिका’. हमने तपाक से सहमति दे दी। तपाक से इसलिए कि इसके पीछे दो कारण थे। एक तो मैं स्वयं न्यू मीडिया से सन् 2006 से सक्रियता से जुड़ा हूं पहले हितचिंतक ब्लॉग के माध्यम से फिर 2008 में प्रवक्ता डॉट कॉम के माध्यम से और दूसरा कारण, भोपाल शहर में भ्रमण का लोभ। प्रकृति की गोद में बसा तालों का यह शहर अत्यंत आकर्षित करता है। साहित्य, कला और संस्कृति का केंद्र भोपाल मशहूर है।
11 अगस्त की रात में 9 बजे ट्रेन थी। निजामुद्दीन से। भोपाल एक्सप्रेस। इस ट्रेन से हमें भोपाल जाना था। औपचारिक रूप से यह कार्यक्रम दो संस्थाओं के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित था- म.प्र. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् एवं स्पंदन संस्था, भोपाल। जिस न्यू मीडिया संस्था ‘प्रवक्ता डॉट कॉम’ से सम्बद्ध होने के चलते अपन मीडिया चौपाल में अपेक्षित थे, उसके प्रबंधक भाई भारत भूषण हमें अपनी नई गाड़ी से निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन तक छोड़ने के लिए हमें लेने हमारे निवास पर समय से पहले पहुंच गए और समय से उन्होंने हमें स्टेशन परिसर में छोड़ा। हम कुल पांच लोगों का ट्रेन में आरक्षण था। साथ में थे जयराम विप्लव, विशाल तिवारी, अमिताभ भूषण और वत्स। स्टेशन पहुंचते ही न्यू मीडिया के चर्चित चेहरे आशीष अंशु मिल गए। और हमारे साथ ही हमारी बोगी में सवार हो गए। बहस का सिलसिला यहीं से शुरू हो गया। फिर मित्र राजीव गुप्ता भी हमें ढूढ़ते-ढूढ़ते हमारे पास पहुंचे। जयराम, विशाल, अमिताभ तो थे ही। वार्ता होने लगी। संघ परिवार पर अधिक चर्चा हुई। इसी बीच अमिताभ ने ट्रेन में सवार ‘कमसम’ के कर्मचारी से रात्रि भोजन के लिए 6 प्लेटें खरीद लीं। भोजन के दौरान वार्ताओं का दौर चला। 12 बज चुके थे। फिर जयराम और राजीव गुप्ता के साथ अंशु चल दिए अपने बोगी। बाद में जानकारी मिली कि वहां सिराज केसर जी और रविशंकर जी के साथ वार्ताएं होती रहीं। मैं सो गया। प्रात: 4 बजे अनिल सौमित्र जी का एसएमएस आया कि भोपाल नहीं, हबीबगंज उतरना है। सुबह सात बजे के करीब हम गंतव्य स्टेशन पर पहुंचे।
हबीबगंज रेलवे स्टेशन पर अनिल सौमित्र जी के साथ, बाएं से हर्षवर्धन, ऋतेश, राजीव, अनुराग, संजीव, जयराम, उमाशंकर, आशीष, अमिताभ
अनिलजी और लोकेंद्र सिंह राजपूत हमें लेने के लिए स्टेशन पहुंचे थे। स्टेशन पर और साथी मिल गए। व्यस्थापकों ने अच्छी व्यवस्था की थी। कार से हम लोग आयोजन स्थल के लिए रवाना हो गए। जहां हम ठहरे यानी अतिथि विश्राम वीथिका बहुत सुंदर था। खूब साफ सफाई थी। हम उमाशंकर मिश्र, आशीष अंशु, अनुराग अन्वेषी और स्वदेश सिंह के साथ एक कमरे में रूके। नित्य क्रिया से निवृत्त होने के पश्चात् कमरे से बाहर निकले। जाने-माने राष्ट्रवादी ब्लॉगर सुरेश चिपलूनकर और छत्तीसगढ़ के ब्लॉगर संजीत त्रिपाठी जी मिल गए। थोड़ी देर बाद हमने अल्पाहार किया। तत्पश्चात् सब लोग आयोजन स्थल विज्ञान वीथिका की ओर रवाना हुए।
पहला सत्र यानी उद्घाटन सत्र। वक्ता अतिथि के रूप में उपस्थित थे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अ. भा. सह सम्पर्क प्रमुख श्री राम माधव, म.प्र. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् के निदेशक प्रो. प्रमोद के. वर्मा, वैज्ञानिक डॉ. प्रमोद पटेरिया, वरिष्ठ पत्रकार श्री गिरीश उपाध्याय, विज्ञान भारती के श्री जयकुमार और सामना समाचार पत्र के कार्यकारी संपादक श्री प्रेम शुक्ल। संचालन कर रही थीं श्रीमती शिखा वार्ष्णेय।
कार्यक्रम की भूमिका रखते हुए प्रो. प्रमोद के. वर्मा ने न्यू मीडिया के माध्यम से वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रचार-प्रसार की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि हमें नॉलेज वर्कर के रूप में नहीं नॉलेज क्रिएटिर के रूप में सामने आना चाहिए।
श्री गिरीश उपाध्याय ने कहा कि इस माध्यम से सूचनाओं के आदान-प्रदान के साथ ही संरक्षण की सुविधा मिली है। अभिव्यक्ति की आजादी का अभूतपूर्व विस्तार हुआ है। इसे हम इंटरेक्टिव मीडिया कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
श्री राम माधव ने न्यू मीडिया को मिशनरी मीडिया बताते हुए कहा कि न्यू मीडिया ने मीडिया संस्था का लोकतांत्रिकरण किया है। उन्होंने कहा कि मैं नहीं मानता कि मुख्यधारा का मीडिया खत्म होगा, हां यह अवश्य हो रहा है कि न्यू मीडिया मुख्यधारा के मीडिया के अहंकार को ध्वस्त कर रहा है और न्यू मीडिया उनके लिए एक प्रमुख स्रोत के रूप में उभरा है। उन्होंने कहा कि मीडिया आम आदमी के लिए कम स्थान देता है सो न्यू मीडिया अभिव्यक्ति की आजादी को सुनिश्चित कर रहा है। आम आदमी भी बुद्धिमान होता है यह मीडिया इस बात को साबित कर रहा है। पत्रकारिता के जवाबदेही का निर्माण न्यू मीडिया कर रहा है। उन्होंने इस माध्यम को दायरे में सीमित करने पर असहमति जताई और कहा कि ऐसा करने पर इसका पैनापन खत्म हो जाएगा।
दूसरा सत्र। अतिथि वक्ता थे पीटीआई के पूर्व पत्रकार व स्तंभकार श्री के. जी. सुरेश। साथ में थे श्री गिरीश उपाध्याय। श्री आर.एल. फ्रांसिस। श्री प्रेम शुक्ल। श्री अनिल सौमित्र। अध्यक्षता कर रहे थे श्री राम माधव।
श्री के. जी. सुरेश ने कहा कि न्यू मीडिया से अखबार को कोई खतरा नहीं है। न्यू मीडिया अनूठा नहीं है। मुख्यधारा के मीडिया में जो बुराई है वह न्यू मीडिया में भी है। न्यू मीडिया आम आदमी का मंच नहीं है। जो शिक्षित है यह मंच उसी का है। उन्होंने कहा कि न्यू मीडिया इनलाइटेड है, इसमे मुझे शक है। सोशल मीडिया में आई बात को जब तक मुख्यधारा का मीडिया न उठाए तब तक इसका कोई असर नहीं पड़ता। मुख्यधारा के मीडिया में संपादकीय जवाबदेही है जो कि न्यू मीडिया में नहीं है। कार्यक्रम में उपस्थिति कई लोगों ने श्री सुरेश की बातों का जमकर विरोध किया।
भोजनोपरांत मुक्त चर्चा का सत्र। संचालन कर रहे थे श्री के.जी. सुरेश और श्री प्रेम शुक्ल ने अध्यक्षता की। इसमें प्रतिनिधियों ने न्यू मीडिया की ताकतों का उल्लेख किया तो मुख्यधारा की सीमाओं को उजागर किया। न्यू मीडिया के आर्थिक पक्ष पर भी जमकर चर्चा हुई। विषय-वस्तु की गुणवत्ता को लेकर भी सवाल उठे। सबसे अधिक सवाल श्री के. जी. सुरेश से किए गए और उनकी स्थिति बड़ी हास्यास्पद हो गई। वे जवाब देने से बचते रहे। सवालों उठाने वालों में सर्वश्री रविशंकर, पंकज झा, भवेश नंदन, आशीष कुमार अंशु, जयराम विप्लव, अमिताभ भूषण, आशुतोष कुमार सिंह, हर्षवर्धन त्रिपाठी, चंडीदत्त शुक्ल, राजीव गुप्ता, ऋतेश पाठक, सिद्धार्थ झा, पंकज चतुर्वेदी आदि प्रमुख रहे।
समापन सत्र में वक्ता थे मध्य प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्री प्रभात झा और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति श्री बी. के. कुठियाला।
श्री बी. के. कुठियाला ने न्यू मीडिया और सोशल मीडिया के नामकरण पर ही सवाल उठा दिया। उन्होंने कहा कि पिछले 300 सालों ने एकतरफा संवाद चल रहा था। सामाजिक संवाद भी गिने चुने हाथों तक ही सीमित रहा। इसी की न्यायसंगत प्रतिक्रिया आज न्यू मीडिया है। इस माध्यम ने मानवता को जोड़ने का कार्य किया है। लेकिन अभी भी न्यू मीडिया के सामने पहचान की चुनौती हैं। इस पर नियंत्रण नहीं हो सकता, लेकिन आत्मसंयम की जरूरत है।
समापन वक्तव्य देते हुए श्री प्रभात झा ने कहा कि स्वस्थ बहस लोकतंत्र के लिए जरूरी है लेकिन आज इसके लिए स्पेस खत्म होती जा रही है। उन्होंने कहा कि न्यू मीडिया में व्यक्तिगत टीका टिप्पणी अधिक है। कोशिश होनी चाहिए कि लेखन सदैव उद्देश्यपरक हो। उन्होंने आक्रोशपूर्ण लहजे में कहा कि देश में सार्थक विरोध का सामर्थ्य खत्म हो गया है। लोकशाही में राजशाही दिखने लगी है। उन्होंने चिंता प्रकट की कि मीडिया में विज्ञान पर फोकस क्यों नहीं होता, इसके बारे में गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है।
मीडिया चौपाल में छह बिंदुओं पर केन्द्रित उद्घोषणाएं सर्वसम्मति से प्रस्तुत की गयीं, जिसका सभी ने समर्थन किया। इसके मुताबिक अब वेब मीडिया है मुख्यधारा का मीडिया। न्यू मीडिया के लिए आर्थिक मॉडल की जरूरत। वेबपत्रकारों को अधिमान्यता मिलना। नेट पर राष्ट्रविरोधी बातें करने वालों पर रोक। अपनी बात सभ्य व शालीन तरीके से रखें। वेब पत्रकारों पर दमन बंद हो(भड़ास4मीडिया.कॉम के संपादक यशवंत सिंह एवं उनके सहयोगी अनिल सिंह की यूपी पुलिस द्वारा की गयी दमनात्मक गिरफ्तारी की भर्त्सना)।
आवेश भाई की अध्यक्षता में समां बंधा संगीत कार्यक्रम में : 12 अगस्त की रात भोजनोपरांत विभिन्न मसलों पर चर्चा होने लगी। चर्चा के क्रम में यह बात उठी कि माहौल को कुछ सरस बनाया जाय। तय हुआ गीत-गजलों का दौर चले। आवेश भाई के जिम्मे इस महफिल की अध्यक्षता सौंपी गई। आवेश भाई इतना सुंदर गाते हैं, यह पहली बार तभी पता चला। उन्होंने भोजपुरी लोकगीत और प्रेम कविताएं सुनाईं। भाई पंकज झा, शिखा वार्ष्णेय, वर्तिका तोमर, नीरू सिंह, भवेश नंदन, जयराम विप्लव, अमिताभ भूषण और आशुतोष कुमार सिंह ने इसमें भाग लेकर एक दूसरे को मंत्रमुग्ध कर दिया। मैंने भी कुछ गुनगुनाया।
कार्यक्रम के समापन पर इस पूरे आयोजन को यादगार बनाने के लिए ग्रूप फोटो भी लिए गए।
इस चौपाल में उपस्थित रहे– ब्लॉगर और पत्रकार अनुराग अन्वेषी (नई दिल्ली), रविशंकर (नई दिल्ली), प्रख्यात स्तंभकार आर.एल फ्रांसिस (नई दिल्ली), मुकुल कानिटकर (कन्याकुमारी), प्रवक्ता डॉट कॉम के संजीव सिन्हा (नई दिल्ली), जनोक्ति समूह के जयराम विप्लव (नई दिल्ली), नेटवर्क 6 के आवेश तिवारी (वाराणसी), सुरेश चिपलूणकर (उज्जैन), वरिष्ठ पत्रकार अनिल पाण्डेय (नई दिल्ली), चण्डीदत्त शुक्ल (जयपुर), रवि रतलामी (भोपाल), श्री बी एस पाबला, अहमदाबाद स्थित ब्लॉगर संजय बेंगाणी, लंदन स्थित ब्लॉगर शिखा वार्ष्णेय, भारतवाणी वेबसाइट के संचालक लखेश्वर चन्द्रवंशी (नागपुर), रायपुर से गिरीश पंकज, पंकज झा, संजीत त्रिपाठी, ललित शर्मा, मुम्बई से नये मीडिया के दिग्गज चन्द्रकांत जोशी, प्रदीप गुप्ता, आशुतोष कुमार सिंह, हर्षवर्धन त्रिपाठी (दिल्ली), राजीव गुप्ता (नई दिल्ली), आशीष कुमार अंशु(नई दिल्ली), ऋतेश पाठक (नई दिल्ली), उमाशंकर मिश्र (नई दिल्ली), स्वदेश सिंह (दिल्ली), गौतम कात्यायन (पटना), केशव कुमार (नई दिल्ली), पर्यावरण और पानी के लिये कार्यरत केसर सिंह और मीनाक्षी अरोडा (इंडिया वाटर पोर्टल नई दिल्ली), नीरु सिंह ज्ञानी (ग्वालियर), आकाशवाणी नई दिल्ली में कार्यरत ब्लॉगर वर्तिका तोमर, लोकसभा टीवी में कार्यरत सिद्धार्थ झा (नई दिल्ली), रतलाम के राजेश मूणत, पर्यावरण और विकास संबंधी स्तंभकार पंकज चतुर्वेदी और महेश परिमल, शशि तिवारी, लोकेन्द्र सिंह (ग्वालियर), अमिताभ भूषण, विशाल तिवारी, माही, अभिषेक रंजन (दिल्ली), सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी, अनुप्रिया त्रिपाठी (भोपाल)।
कुछ तस्वीरें :
मित्रवर पंकज झा के साथ
अतिथि विश्राम वीथिका परिसर में
मशहूर ब्लॉगर सुरेश चिपलूनकर के साथ
उमाशंकर मिश्र, सुरेश चिपलूनकर, आशीष अंशु, रविशंकर, राजीव गुप्ता, …, संजय बेंगाणी, संजीत त्रिपाठी, ऋतेश पाठक, संजीव सिन्हा, भवेश नंदन
बकुल-ध्यानम के क्षण (सुरेश चिपलूनकर जी के साथ)
उमाशंकर मिश्र, संजीव सिन्हा, पंकज झा, राजीव गुप्ता, आशुतोष कुमार सिह, अनुराग अन्वेषी, सिराज केसर
अधिकांश साथी 12 अगस्त की रात को ही कार्यक्रम स्थल से विदा हो गए। हमारा आरक्षण 14 अगस्त को शताब्दी एक्सप्रेस से सायं पौने तीन बजे था। हमने समय का फायदा उठाया। अनिलजी से अनुरोध किया कि एक गाड़ी हमारे हवाले की जाय। हमेशा की तरह उन्होंने तत्परता दिखाई। और हम निकल पड़े तालों के शहर भोपाल की सैर पर। बारिश की रिमझिम फुहारों के बीच हम पहुंचे सबसे बड़े ताल। और हमने डर और रोमांच के बीच बोटिंग का भरपूर मजा लिया।
तस्वीरें विशाल तिवारी के सौजन्य से-
भोपाल ताल में जयराम विप्लव, अमिताभ भूषण और माही के साथ
हीप-हीप-हुर्रे
बचपन की आदतों को ताजा करते जयराम
एक सुंदर, सफल और सार्थक कार्यक्रम के लिए स्पंदन संस्था के सचिव श्री अनिल सौमित्र जी और म.प्र. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् के निदेशक श्री प्रमोद के. वर्मा को हार्दिक धन्यवाद।
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में जब से कुठियाला जी आए हैं उन्होंने अपनी कुर्सी बचाने के लिए संघ का खूब इस्तेमाल किया-दुर्भाग्य यह है कि ना जाने संघ इतनी जल्दबाजी में क्यों है
संघ के अनुकुल दिखावा करने वाले और संघ निष्ठा वालों में अब संघ भेद ही नहीं कर पाता
भाई जी आप लोगो को देख कर ऐसा लगा की वाकई वेब मीडिया का आने वाला कल बेहतर होगा. एक बात और जो मैंने अपने १५ सालो की पत्रकारिता में भोग हु, वो यह की वेब मीडिया निश्पक्सता से अपना कम कर रहा है, जो की दुसरे माध्यमो में चाटुकारिता बन गया है, फ़िलहाल आप विज्ञापनों की आंधी से दूर है, मैंने महसूस किया है की बिना विज्ञापनों के सामने वाला हमारा दुश्मन लगता है, जबकि विज्ञापन देने वाला भ्रष्ट भी सेठ लोगो को रजा हरिश्चंद्र लगता है, आशय यह की वेब मीडिया सबकी नींद उरा देगा, बधाई
दिलीप सिकरवार
स्वतंत्र पत्रकार
9425002916
शानदार रिपोर्टिंग और फोटोग्राफ्स के लिए बधाई. साथ ही धन्यवाद भी….
रिपोर्ट के लिए आभार.
आप लोगों के साथ न होकर भी रिपोर्ट पढ़कर ऐसा लगा मानो साथ में ही रहे.
अबतक प्रिन्ट मीडिया और इलेक्ट्रनिक मीडिया पर वामपंथियों का एकतरफ़ा कब्जा था। न्यू मीडिया के कारण पहल अब आम आदमी के हाथों में आ गई है और आम आदमी राष्ट्रवादी होता है। लाल चश्मे वालों को इसी के कारण पेट में दर्द हो रहा है। उनके कथन में ईर्ष्या का पुट ज्यादा है। मैं कुछ अपरिहार्य कारणों से इस सत्संग में सम्मिलित नहीं हो सका, इसका कष्ट मुझे था। लेकिन संजीव जी की रिपोर्टिंग पढ़कर सारा कष्ट जाता रहा। मेरी ओर से ढेर सारी बधाइयां स्वीकार करें, संजीव जी!
विपिन जी इन वाम पंथियों की आदत दोनों ओरसे मृदंग बजाने की है.
बुलाओ तो हो जाता है “मंगेश डबरालीकरण.”
ना बुलाओ तो होता है “पेट में दर्द.”
शानदार रपट ! पूरी यात्रा की चर्चा उअर कार्यक्रम के मुख्य बिंदुओं पर ध्यान आकर्षित करते हुए लिखी गयी इस पोस्ट के लिए संजीव भाई को धन्यवाद क्योंकि मै चाह कर भी तबियत बिगड़ी होने की वजह से नहीं लिख पाया |
कुछ नया होना, नये तरीके से उसे लिखा जाना और सुना जाना अपने आप में अनोखा है!
वेब मीडिया को कोई भी नाम दें मतलब एक ही है-स्वच्छंद और बेलगाम मीडिया जिसका उजला पक्ष है-मीडिया का लोकतंत्रीकरण और गन्दा पक्ष अभद्र, घटिया और व्यक्तिगत टिप्पणी!
इन विषयों पर चर्चा हुई और पर नतीजा क्या निकला पता नहीं!
जो घोषणाएं की गयी उनका कैसे क्या होगा पता नहीं!
कुछ मित्र इस कार्यक्रम को संघी कह रहे हैं, मुझे इससे परहेज नहीं!
पर आपसी मुलाकातों और दावतों के आलावा भी तो कुछ ऐसा होना चाहिए, जिससे नतीजे सामने आयें!
अच्छी रिपोर्टिंग के लिए संजीव जा का आभार! इसमें एक बात की कमी लगी-इस कार्यक्रम के आयोजन का खर्चा किसने और किस मद से किया? इस बारे में कुछ भी नहीं लिखा गया!
सुरेश चिपलूनकर भाई..
आपकी इमानदारी का सदैव से आदर करता रहा हूँ, आप ही जैसे लोग ठीक लगते हैं कि जो हैं, खुल के हैं. वही अपने बारे में भी है, मार्क्सवादी हूँ तो ऐलानिया हूँ. भाई वैचारिक विरोध ही सही, साफ़ साफ़ होना चाहिए. हाँ इसके बाद एक टिप्पणी जरूर बनती है कि आपके प्रति आदर के बावजूद इतना ‘आपमय’ नहीं हूँ कि आपकी उपस्थिति/अमुपस्थिति से किसी मीटिंग या व्यक्ति का चरित्र तय करूं.
अब जैसे आशीष कुमार अंशु जी के बारे में बात की आपने. मित्र हैं, छोटे भाई हैं. कुछेक और दोस्तों के साथ कुछेक शामों की गुरिल्ला कार्यवाहियों की साझीदारी तक का रिश्ता है. (गुरिल्ला से कन्फ्यूज मत हो जाइयेगा, बाकी आप समझदार हैं ही). हाँ, हर बार इन्हें सीधे कहा है कि ये लेखन ही नहीं आचरण से भी संघी हैं, व्यवहार से भी. मोदी की विरुदावालियाँ गाते इनके तमाम लेख देखें हैं, और चेहरों की किताब की अपनी और इनकी दोनों दीवालों पर इनके ‘संघी’ होने मर मुझे संशय न होने की घोषणायें की हैं. मुझे दिक्कत ही इनके इसी दोहरेपन से है नहीं तो संघियों से वैचारिक विरोधों के बावजूद गहरी व्यकतिगत दोस्तियों का भी इतिहास रहा है. आवेश जी के बारे में कुछ नहीं कहूँगा क्योंकि जानता नहीं. उन्हें कभी पढ़ा भी नहीं.
हाँ, मेरी टिप्पणी का रिश्ता उपस्थित भद्र जनों से जुड़ता ही नहीं. मैं तो इस स्कूल के मास्टरों का नाम देख के चकित हूँ. आरएसएस के राम माधव, शिवसेना वाली सामना के प्रेम शुक्ल, मध्यप्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा..
इनकी गरिमामयी उपस्थिति के बारे में भी कुछ कहें सर. और बाकी पार्टियों/विचारधारों की अनुपस्थिति की भी. अरे ठीक है कि कम्युनिस्टों से बड़ी दिक्कत है पर कम से कम कांग्रेसियों को ही बुला लेते. या फिर अकाली दल टाइप वालों को. जद यू? यहाँ सिर्फ भाजपा आरएसएस है और आप बात का सिर प्रतिभागियों की तरफ मोड रहे हैं. कमाल है.
कमाल तो एक और भी है– कि शिवसेना जब दिल में आये भैया लोगों को पीटपाट देती है (गलत कह रहा हूँ तो कहियेगा, तुरंत लिंक दूंगा) शुक्ल जी वाली सामना उसे न्यायोचित ठहराती है. फिर इतने सारे ‘भैया लोगों’ ने उनसे क्या सीखा होगा? यह कि अच्छे से कैसे रहें, कैसे मार न खाएं वगैरह वगैरह?
संजीव जी ,
बहुत बढ़िया रिपोर्ट पढ़ने को मिली … आभार ! बस एक गड़बड़ है … आपने भिलाई से आए प्रसिद्ध ब्लॉगर श्री बी एस पाबला जी का नाम गलती से पी.एस. पाब्ला कर दिया है … इस भूल को सुधार लीजिएगा !
सादर !
भूल सुधार। धन्यवाद।
उद्घाटन सत्र। वक्ता अतिथि के रूप में उपस्थित थे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अ. भा. सह सम्पर्क प्रमुख श्री राम माधव और एकाध नामों के बाद सामना समाचार पत्र के कार्यकारी संपादक श्री प्रेम शुक्ल।
समापन सत्र में वक्ता थे मध्य प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्री प्रभात झा.
भाई, आरएसएस और भाजपा के नेताओं की उपस्थिति वाला और बाकी सब की अनुपस्थिति वाला अद्भुत निष्पक्ष सम्मलेन होगा. सच कह रहे हैं आप, मेरे ही ‘लाल चश्मे’ का कसूर है कि तमाम कोशिश के बाद में भी आपके ‘वक्ताओं’ की सूची में अन्य किसी विचारधारा वाले नेता नहीं ढूंढ पाया.
संजीव भाई…
रिपोर्टिंग में आपने मेरा नाम और तस्वीर डालकर “समर” भाई को नाराज़ कर दिया… 🙂
एक ही कूची से सबको पेंट करने की आदत के चलते इन्होंने शायद आशीष अंशु, आवेश तिवारी जैसे कई नाम ठीक से पढ़े ही नहीं, और एक साथ सभी को संघी घोषित कर डाला…
बहरहाल, बेहतरीन रिपोर्टिंग…
भाई सुरेश जी
आपका “खमंग मराठी चिवडा लेखन” क्यों बंद हो गया?
कभी कभी समय निकाल कर हम प्रवक्ता के पाठकों को अनुग्रहित करने की बिनती मेरे घर से ही दो लोगों की है.
शानदार रिपोर्टिंग
वाह! चित्रमय वृत्त बहुत भाया.
पंकज झा की छवि ही देखते रहना है, या कभी लेख भी देख पाएंगे?
न्यू मीडिया नहीं, संघी न्यू मीडिया का कार्यक्रम था यह. एक गोल वालों को बिठा के चर्चा नहीं होती साहब, बौद्धिक सुना जाता है और वही करके आये हैं आप लोग, अब इसे तो कमसेकम न्यू मीडिया होने के आरोप से मुक्त कर दें.
भाई समर, आप जैसे लाल चश्माधारी हर कार्यक्रम और हर आंदोलन के पीछे संघ का हाथ बताकर उसे खारिज करने की कोशिश करते हैं और आप नहीं जानते कि ऐसा करके जाने-अनजाने आप संघ को मजबूती प्रदान कर रहे होते हैं। वैसे भी स्वतंत्र भारत में संघ के बिना कोई राष्ट्रीय आंदोलन नहीं हुआ है, चाहे संपूर्ण क्रांति हो या फिर श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन या बोफोर्स कांड विरोधी आंदोलन और अन्ना आंदोलन या रामदेव आंदोलन…आदि। रिपोर्ट में हमने स्पष्ट उल्लेख किया है कि यह कार्यक्रम म.प्र. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् एवं स्पंदन संस्था, भोपाल के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न हुआ।
What is wrong in the observation of Samar? Instead of attending to his objection, you have preferred to adopt the usual blinkered approach of the SANGH. For the last few months I am faithfully reading posts on your blogs and enjoying them. Your approach is objective and you have given space to the detractors of the SANGH too but in your reply to Samar, you have deviated from your usual approach. From your post, one can infer that it was a SANGH’s programme with the state’s patronage.
शानदार रिपोर्टिंग हो गयी.. अकेले-अकेले घूमने भी चले गए? खैर, मैं तो घूमता ही रहता हूँ. तुम लोगों से मिल कर खुशी हुयी. मीडिया में विचारवान पीढ़ी आ रही है.