न्यू मीडिया या मीडिया भारत के गाँव के लिए अभी भी एक नई कहानी से ज्यादा और कुछ नहीं है । आज भी मीडिया से ताल्लुकात रखने वाले लोग इसके किताबी और व्यावहारिक गुत्थियों में उलझ्तें हैं । लेकिन भारत का बहुत बड़ा तबका यानि ग्रामीण हिस्सा एक ऐसे मोड़ पर आकर खड़ा है जहाँ से न्यू मिडिया का द्वार खुलता जा रहा है लेकिन परंपरागत मिडिया के वजूद को भी वह तलाश रहा है ।
आजादी के सात दशकों में भारत के हर क्षेत्र में बदलाव हुआ । देश का नया संविधान बना,विधायिका,कार्यपालिका और न्यायपालिका के बाद एक और खम्भा लोकतंत्र के मजबूती का आधार बना, मिडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ बना । भारत का लोकतंत्र व्यस्क होता गया और साथ-साथ मजबूत होता गया उसका स्तम्भ भी । एक ऐसा दौड़ आया जब भारतीय लोकतंत्र के साथ मिडिया भी खतरे में पड़ी । वह दौड़ आपातकाल का था । आपातकाल कई मायनो में भारतीय लोकतंत्र के लिए वरदान भी साबित हुआ । जिस प्रकार भारतीय राजनीति में एक दल के वर्चस्व का दौड़ आपातकाल के साथ ही समाप्त हो गया, वैसे ही मिडिया भी एक नए कलेवर में सामने आया ।
राष्ट्रीय गतिविधि के साथ-साथ वश्वीकरण के प्रभाव से भी भारत अछूता नहीं रहा । बीसवीं शताब्दी का अंतिम दसक भारत में संचार क्रांति का काल बना । कंप्यूटर से भारत को दुनिया से जोड़ दिया । देखते ही देखते संचार के क्षेत्र में भारत अव्वल स्थान प्राप्त कर लिया ।
आज इक्कीसवीं सदी का भारत दुनिया के अध्त्तन संचार तकनीकों से युक्त है । दुनिया का सबसे ज्यादा मोबाईल उपभोक्ता भारत में है । भारत के ग्रामीण अंचलों को तेजी से इंटरनेट से जोड़ा जा रहा है । इस क्रांति का मसाल न्यू मिडिया है । न्यू मिडिया का दायरा सिमित नहीं है । ब्लॉग से लेकर न्यूज पोर्टल तक और फेसबुक से लेकर गूगल हैंग आउट तक सब न्यू मिडिया का ही स्वरुप है ।