अंतिम जय का अस्त्र बनाने नव दधीचि हड्डियां गलाएं

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चावल के बारे में एक अदभुत प्रसंग है, कृष्ण और सुदामा का। ऊहापोह की स्थिति है सुदामा के पास, वे कृष्ण से मिलने जाना चाहते हैं लेकिन अपने बाल सखा के लिए उपहार लेकर क्या जाएं यही समझ में नहीं आ रहा है उन्हें। अंतत: दो मुठ्ठी चावल कांख में दबाए द्वारिकाधीश से मिलने निकल पड़े थे सुदामा। कहते हैं कि उसी चावल के बदले जनार्दन ने राज-पाट से संपन्न कर दिया था अपने गुरु भाई को।
लोकतंत्र, सत्ता के शीर्षासन का भी नाम है। यहां पर जनार्दन की भूमिका जनता को मिली होती है और जब विकास यात्रा से लेकर चुनाव प्रचार यात्रा डॉ. रमन सिंह अपने जनार्दन से मिलने निकले थे तो उनकी पोटली में भी वही चावल था। वही सुदामा सुलभ संकोच एवं सेवा करने का अवसर दुबारा देने का याचना भाव लेकर उनके सामने थे। प्रतिसाद भी उसी तरह मिला और दुबारा में भाजपा की सरकार सुनिश्चित हो गई। 1 नवंबर 2000 की अर्धरात्रि को छत्तीसगढ़ का निर्माण हुआ था और 8 दिसंबर को भरोसे का निर्माण हुआ है। इस जीत को भरोसे की जीत में तब्दील करने की महती जिम्मेदारी डा. रमन सिंह को नियति ने दी है। अपने पुराने अनुभवों से सीख एवं गलतियों से सबक लेकर, अपनी स्वाभाविक सरलता, सहजता, विनम्रता एवं भरोसे के साथ राय को विकास के पथ पर सरपट दौड़ाना उनकी चुनौती होगी।
विजय मिली, विश्राम नहीं, इसी अटल उद्धोष को उन्हें मूलमंत्र बनाना होगा। नक्सलवाद, गरीबी, अशिक्षा, जनोपयोगी औद्योगीकरण, पिछड़ापन, पलायन ये सभी ऐसे मुद्दे सरकार के सामने होंगे जिसे इसी क्रम में प्राथमिकता बनानी होगी। नक्सलवाद पर एक सुस्पष्ट संदेश छत्तीसगढ़जनों को देना होगा कि अपने आदिवासी बंधुओं की जान से यादा महत्वपूर्ण शासन के लिए कुछ भी नहीं है। बस्तरजनों की गरदन की तरफ बढ़े हर हाथ को काट देना सरकार अपना धर्म समझती रहेगी। दण्डकारण्य की 12 सीटों में से 11 पर भाजपा की विजय और वामपंथ का नेस्तनाबूद हो जाना इसका प्रमाण है कि सभी बस्तर बंधु भाजपा के साथ हैं। मुखिया को ये याद रखकर एक स्पष्ट और कड़ा कदम उठाना होगा कि कांग्रेस को वन क्षेत्रों में सबसे ज्‍यादा खामियाजा उसकी ढुलमुल नीतियों के कारण ही उठाना पड़ा है। सभी तरह के अमानवाधिकारवादियों को कुचलना (जी हां कुचलना ही) इस बार का जनादेश है। इसी तरह औद्योगीकरण का सबसे यादा फायदा यहीं के लोगों को मिले, प्रदेश की खनिज संपदा के सबसे पहले लाभार्थी यहां के माटी पुत्र ही हों, ऐसी नीति का निर्धारण सरकार को करना होगा। इसके अलावा समूचे भारत को अपना घर मानकर देश के किसी भी कोने में सम्मानजनक रोजगार के लिए प्रदेशजनों का प्रवास करना पलायन ना समझा जाए, ऐसी परिभाषा भी शासन को विकसित करनी होगी। इस हेतु लोगों को शिक्षित-प्रशिक्षित करने का कार्य सरकार की प्राथमिकता में शामिल करना होगा।
यदि मुख्यधारा के चारों रायों के परिणाम पर नजर डालें तो (जातीय संघर्षों के कारण राजस्थान के अपवाद को छोड़कर) मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि सरकारें अब अच्छा काम करने लगी हैं। लोगों का समर्थन व्यवहारकुशल एवं विनम्र प्रतिनिधि को मिलने लगा है। रमन, शिवराज और शीला में यह समानता तो है ही कि इन तीनों की भलमनसाहत इनकी आदमीयत पर विपक्षियों को भी कभी कोई संदेह नहीं रहा है….आदमी में आदमीयत है, चलो यूं ही सही। लेकिन हमारे लिए लोगों को यह संदेश भी देना समीचीन होगा कि अपनी भलमनसाहत केवल साधुजनों के लिए ही है। परित्राणाय साधुनाम, विनाशाय च दुष्कृताम।

2008 के चुनाव परिणाम ने भाजपा के मार्ग को सुगम जरूर बनाया है, उसके कार्यों पर मुहर अवश्य लगायी है, लेकिन यह एक पड़ाव है, मंजिल नहीं। दण्डकारण्य के ही रामायण प्रसंग से कलम विराम को प्राप्त होगी। यहीं पर साधुजनों की हड्डियों का ढेर देख भगवान राम ने पृथ्वी को राक्षसों से विहीन करने का संकल्प लिया था। छत्तीसगढ़ में जनादेश शायद उस संकल्प को दोहराने का भी है। इस संकल्प की पूर्ति में खुद को दधीचि बनना पड़े तो इसे अपना सौभाग्य मानना होगा। मुख्यमंत्री समेत तमाम भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए यह विजय अवसर अटल संकल्प दोहराने का है कि हम पड़ाव को मंजिल समझ लक्ष्य को ओझल नहीं होने दें। और लक्ष्य है छत्तीसगढ़ महतारी की सेवा के द्वारा माँ भारती को वैभव के चरमात्कर्ष पर पुनर्स्थापित करना। यह समय नवजागरण और पुनर्जागरण का है!

जयराम दास

jay7feb@gmail.com

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