शिमला से तारा देवी स्टेशन के बीच शुक्रवार को काफी दिनों के बाद एक बार फिर से हैरिटेज शिमला-कालका ट्रैक पर शताब्दी पुराना स्टीम इंजन दौड़ा। स्टीम इंजन के साथ 2 अतिरिक्त डिब्बे जोड़े गए जिसमें इंगलैंड से आए 30 लोगों का दल सवार था। इन लोगों ने स्टीम इंजन में बैठने का आनंद लिया। इन विदेशी टूरिस्टों को स्टीम इंजन की सैर करवाने के लिए ट्रैवल पार्लस कंपनी के ऑर्गेनाइजर अमित चोपड़ा ने रेल विभाग की सेवाएं ली थीं। उन्होंने इस विदेशी दल के लिए शिमला से तारा देवी के सफर के लिए डेढ़ लाख रुपए की राशि जमा करवाई थी।
अमित का कहना है कि स्टीम इंजन के सफर के दौरान विदेशी पर्यटक इतने रोमांचित थे कि उन्होंने इसे अपने जीवन का शानदार सफर बताया, वहीं इंगलैड से आए एक पर्यटक ने कहा कि इस स्टीम इंजन में सफर करना उनके लिए यादगार रहेगा। इसमें बैठकर उन्हें अपने पुराने दिनों का एहसास हुआ। इतिहास के पन्नों को यदि पलटा जाए तो पता चलेगा कि स्टीम इंजन का इतिहास शताब्दी पुराना है।
इस स्टीम इंजन को कालका रेलवे ट्रैक पर वर्ष 1906 में पहली बार दौड़ाया गया था जिसके बाद यह 1971 तक ट्रैक पर दौड़ता रहा है लेकिन इसके बाद इसे किन्हीं कारणों से बंद कर डीजल चलित इंजन चलाए गए, जिनकी क्षमता काफी ज्यादा थी। यूनेस्को द्वारा कालका -शिमला रेलवे ट्रैक को विश्व धरोहर घोषित किया गया है। इंगलैंड में 520 केसी इस इंजन को तैयार किया गया है जिसका वजन 41 टन है और यह इंजन 80 टन भार खींचने की क्षमता अपने अंदर रखता है। इस इंजन को वर्ष 2001 में पुनरू पटरी पर दौड़ाया गया था ।

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