भंवर में गठजोड़!

शिव शरण त्रिपाठी
‘यूपी को ये साथ पंसद है’ गीत का मकसद कितना सफल होगा इसकी असलियत तो ११ मार्च को चुनाव परिणाम आने के बाद सामने आयेगी पर फिलहाल सपा कांग्रेस का गठजोड़ कांग्रेस को भले ही लाभ पहुंचा दे सपा को सिवाय नुकसान के लाभ पहुंचता नहीं दीख रहा है।
सूबे में सपा कांग्रेस के गठजोड़ से मुस्लिम मतों का विभाजन रूकना मुमकिन नहीं है। सपा कांग्रेस के गठजोड़ से दलित, सवर्ण वोटों का रूझान इस गठजोड़ की ओर होने से रहा। पिछड़े वर्ग पर डोरे डालने का मंसूबा भी उच्च न्यायालय ने ध्वस्त कर दिया है।
गठजोड़ पर मुलायम सिंह की नाराजगी, सीटों के बंटवारे से टिकटों से वंचित सपा, कांग्रेस के विद्रोहियों का धमाल एवं सपा कांग्रेस के वोटों का बिखराव इस गठजोड़ को काफ ी नुकसान पहुंचा सकता है। हां इस गठ जोड़ के चलते भाजपा, बसपा के बीच सीधी टक्कर होती जरूर नजर आने लगी है।
कल तक  सपा के सर्वेसर्वा रहे श्री मुलायम सिंह यादव से पार्टी की बागडोर हथिया लेने वाले श्री अखिलेश यादव ने यदि कद्दावर एवं अनुभवी नेता अपने पिता की मर्जी के विरूद्ध कांग्रेस के साथ चुनाव गठजोड़ किया है तो उसके नतीजे इतने घातक हो सकते है कि सपा के लिये सत्ता से बेदखली की भी नौबत आ सकती है।
श्री अखिलेश यादव को लग रहा है कि सपा कांग्रेस का गठजोड़ उत्तर प्रदेश में बड़ा गुल खिला सकता है जो बिहार के चुनाव में राजद, जदयू व कांग्रेस के गठजोड़ के चलते खिला था। श्री यादव शायद भूल रहे है कि बिहार व उत्तर प्रदेश की राजनीतिक परिस्थितियां कतई भिन्न है। वहां मुख्य रूप से राजद, जदयू व भाजपा ही प्रभावी रही है। कांग्रेस की स्थिति वहां वैसी ही रही है जैसे आज उत्तर प्रदेश में है। ऐसे में बिहार की चुनावी सफ लता में राजद जदयू के गठबंधन का अधिक योगदान रहा था। सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही थी कि राजद जदयू के वोट एक दूसरे को स्थान्तरित हो गये थे। यह बात दीगर है इस गठजोड़ के चलते ही कांग्रेस की हालत में सुधार भले हो गया था।
राजनीतिक विशलेषक स्वीकारते है कि उत्तर प्रदेश में बिहार जैसी स्थिति तभी बन सकती थी जब सपा, बसपा व कांग्रेस का गठजोड़ होता। कारण कि वास्तव में प्रदेश में सपा, बसपा व भाजपा की ही मजबूत पकड़ है। २०१४ के लोकसभा चुनाव के बाद तो कांग्रेस यहां अपने अस्तिस्व के लिये ही जूझ रही है। २०१२ के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ  २८ सीटे मिली थी और उसे केवल ११.६३ फ ीसदी मत ही मिले थे। जबकि विजेता सपा को २२४ सीटे व २९.१५ फ ीसदी मत मिले थे। ८० सीटों के साथ दो नम्बर पर रही बसपा का मत फ ीसद २५.९१ रहा था। तीसरे स्थान पर ४७ सीटों के साथ रही भाजपा का मत फ ीसद १५ रहा था। यह परिणाम तब आये थे जब सपा ने कुल ४०३ सीटों में से ४०१  पर व कांग्रेस ने ३५५ सीटों पर अपने प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे थे।
राजनीतिक सूत्रों के अनुसार श्री अखिलेश को लग रहा है कि कांग्रेस से गठजोड़ के चलते मुख्य रूप से उसे मुस्लिम मतों का भरपूर लाभ मिलेगा क्योकि गठजोड़ से मुस्लिम मतों का बिखराव रूक जायेगा। लेकिन ऐसा संभव नहीं लग रहा है। २०१२ के चुनाव में कांग्रेस को जो १८ फ ीसदी मुस्लिम मत मिले थे वे सभी सपा कांग्रेस के गठजोड़ में बने रहेंगे ऐसा मुमकिन नहीं है। यहां ये भी गौरतलब है कि २०१२ के चुनाव में सूबे की १३० अल्पसंख्यक बहुल सीटों में से सपा को ७८ सीटें हासिल हुई थी जबकि कांग्रेस को सिर्फ  चार सीटे ही मिल पायी थी। बसपा २२ सीटे जीतकर दूसरे स्थान पर रही थी जबकि भाजपा को २० सीटे ही मिल सकी थी।
ताजे गठजोड़ से जिन मुस्लिम मतों के विभाजन रूकने से लाभ मिलने की बात सपा प्रमुख श्री अखिलेश यादव बार-बार दोहरा रहे है उन मतों को ही अपने पाले में लाने के लिये बसपा प्रमुख सुश्री मायावती ने १०० मुसलमानों को टिकट दिये है। जबकि इस मामले में सपा व कांग्रेस का स्पष्ट आंकड़ा सामने नहीं आ सका है। वैसे भी सीटों के बटवारे के चलते सपा व कांग्रेस दोनो के लिये ज्यादा संख्या में मुस्लिम प्रत्याशी बनाना अब संभव ही नहीं रह गया है।
मुस्लिम मतों को लेकर जिस तरह मुस्लिम जमात के रहनुमा की छवि बना चुके पूर्व सपा प्रमुख श्री मुलायम सिंह यादव ने सपा कांग्रेस गठजोड़ पर न केवल घोर आपत्ति जताई है वरन् श्री अखिलेश यादव को मुस्लिम विरोधी करार दे डाला है उससे भी मुस्लिम जमात का वोट बिखरना तय है और इसका लाभ बसपा को मिलना तय माना जा रहा है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि कांग्रेस को मिले पूर्व के १८ फ ीसदी मुस्लिम मतों में से आधे से अधिक बसपा के पक्ष में जा सकते है।
राजनीतिक विशलेषकों का यह भी कहना है कि मुस्लिम जमात की जो युवा पीढ़ी उच्च शिक्षा ग्रहण कर रही है और जो सोशल मीडिया आदि से जुड़ी है उसके नजरिये में भी भारी बदलाव आने लगा है। इसी का नतीजा रहा है कि २०१४ के लोकसभा चुनाव में भाजपा को इसका अच्छा फ ायदा मिला था। यदि २०१७ के इस विधान सभा चुनाव में भी भाजपा को मुस्लिमों के अच्छे खासे वोट मिल जाये तो बड़ी बात न होगी। सपा, कांग्रेस गठजोड़ के लिये मुस्लिम जमात के महिला वोटो को अपने पाले में बनाये रखना एक और बड़ी चुनौती है। तीन तलाक मुद्दे को भाजपा द्वारा चुनावी मुद्दा बना लेने से यकीनन पढ़ी लिखी व तीन तलाक से परेशान गैर पढ़ी लिखी मुस्लिम महिलायें भी यदि भाजपा के पाले में खड़ी दिखे तो आश्चर्य न होगा।
राजनीतिक सूत्रों के अनुसार मुस्लिम जमात की तरह दलित वोट भी चुनाव परिणाम बदल देने की क्षमता रखते है।
कभी कांग्रेस की रीढ़ माने जाने वाली दलित विरादरी का रूझान बसपा के अस्तित्व में आने के बाद कुछ ऐसा बढ़ा कि कांग्रेस का डिब्बा ही गोल हो गया। यह बात दीगर है कि अब बसपा की भी दलित वोटों पर उतनी पकड़ नहीं रह गई है जितनी पकड़ २००७ के विधान सभा चुनाव तक रही थी। दलित वोटो के बिखराव के चलते न केवल २०१२ का सूबे का चुनाव हारकर वो सत्ता से बाहर हो गई वरन् २०१४ के लोक चुनाव में उसका खाता तक नहीं खुल पाया। हालात बता रहे है कि बसपा के पास अब सिर्फ  जाटव मतदाताओं की मजबूत ताकत रह गई है। अन्य दलित जातियों का बसपा से मोह लगातार भंग होता जा रहा है पर इसका फ ायदा सपा कांग्रेस गठजोड़ की बजाय भाजपा को मिलता दिखने लगा है। २०१४ के लोकसभा चुनाव में इसके खुले प्रमाण भी मिल चुके है। इस चुनाव में ४५ फ ीसद गैर जाटव दलित मतदाताओं ने कमल पर मोहर लगाकर उसे सूबे की ७३ सीटे जीतने में भारी मद्द पहुंचायी थी।
जानकार सूत्रों के अनुसार अब यदि सूबे के पिछड़े वर्ग के मतों पर निगाह डाली जाये तो भी सपा कांग्रेस गठजोड़ को विशेष फ ायदा मिलता नहीं दिखाई दे रहा है। सूबे की कोई ४० फ ीसदी पिछड़ी जाति की आबादी में यादवों की जनसंख्या लगभग ०९ फ ीसदी बैठती है। अब इनमें से इस गठजोड़ को यादवों का भी पूरा वोट मिलना मुश्किल नजर आने लगा है। सपा की अंर्तकलह ने यादव विरादरी को भी खेमों में बांट दिया है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि श्री मुलायम सिंह व श्री शिवपाल सिंह के समर्थक यादवगण श्री अखिलेश यादव को नुकसान पहुंचाने के लिये अंदरखाने रणनीति बनाने में जुट गये है। यहीं नही श्री अखिलेश यादव ने २२ दिसम्बर २०१६ को सूबे की जिन १७ अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जााति का दर्जा देने की घोषणा करके उनके वोट हथियाने का खेल खेला था वो २४ जनवरी २०१७ को उच्च न्यायालय के आदेश से फु स्स हो गया। हालांकि माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने इस मामले की सुनवाई के लिए अगली तारीख ९ फ रवरी तय कर दी है पर लगता नहीं कि फ ैसला सरकार के पक्ष में आयेगा। क्योकि जाति की घोषणा का संवैधानिक अधिकार सिर्फ  केन्द्र सरकार को है।
२०१४ के लोकसभा चुनाव परिणाम बताते है कि कांग्रेस से गठजोड़ से सपा को पिछड़ी जातियों का कोई ज्यादा लाभ मिलने वाला नहीं है क्योकि इस चुनाव में कांग्रेस को पिछड़ी जातियों के सिर्फ  ७.५ फ ीसद वोट ही मिल पाये थे। जबकि सपा को २२.३ व भाजपा को ४२.६ फ ीसदी वोट मिले थे। सपा व बसपा से बगावत के चलते जिस तरह पिछड़ी जातियों के कई कद्दावर नेता दलबदलकर भाजपा के पाले में गये है उससे भी सपा बसपा को पिछड़ी जातियों के मतों का नुकसान उठाना पड़ सकता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सपा कांग्रेस के गठजोड़ में भले ही दोनो के युवाओंं ने अपने-अपने दांव खेले है पर गठजोड़ के दांव से शायद ही किसी को निर्णायक लाभ हो। हां कांग्रेस की स्थिति थोड़ी बहुत सुधार जाये तो चमत्कार न होगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here