डॉ. मयंक चतुर्वेदी
पिछले दिनों दो इंजीनियरों की हत्या का मामला अभी सुलझा भी नहीं था कि रंगदारी के लिए बिहार से एक ओर इंजीनियर की हत्या की खबर आ गई है। इस बार इतना ही हुआ है कि अभियंता की कंपनी बदली है, वसूली करने वालों ने सीधे रिलायंस को चुनौती दी है। राज्य में नीतीश-लालू गठबंधन के सत्ता में आ जाने के बाद इन लगातार घटित हो रही घटनाओं को देखकर लगने लगा है कि बिहार में अपराधी बेलगाम हो चुके हैं। आज निर्माण कार्य में लगी कंपनियों से खुलेआम रंगदारी मांगने का दौर शुरू हो गया है और नहीं देने वाले निजी कंपनियों के अधिकारियों की हत्या हो रही है।
वस्तुत: इस प्रकार की घटनाओं से पूरे बिहार में भय व दहशत का माहौल कायम हो गया है। नई सरकार बनने के बाद इतनी जल्दी ही विधि-व्यवस्था का बुरा हाल हो जाएगा, यह सपने में भी यहां किसी ने सोचा नहीं होगा। सही बात तो यह है कि नई सरकार के गठन के बाद से अपराधियों का मनोबल कम होने के बजाए बढ़ता चला जा रहा है। अपराधियों को लगता है कि अपनी सरकार है। हमारा कौन, क्या बिगाड़ेगा?
जबकि यह बात हम सभी को विदित है कि बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियों का अपनी जीत पक्की करने के लिए वादों का जब दौर चल रहा था, उस समय नीतीश, लालू और कांग्रेस गठबंधन ने राज्य की जनता से सुशासन की बात जोर-शोर के साथ कही थी। बिहार में भाजपा चुनाव न जीत जाए, इसके लिए पूरे देश के अंदर लेखक-कलाकारों की एक पूरी फौज देश में असहिष्णुता बढ़ रही है का नारा लगा कर मैदान में कूद गई थी। वे सफल भी हुए और भारतीय जनता पार्टी चुनाव नहीं जीत पाई। पहली बार लोकतंत्र का ऐसा मजाक होते देश की जनता ने प्रत्यक्ष देखा कि कल तक लालू यादव के शासन को कुशासन और जंगल राज की संज्ञा देने वाले खुद सत्ता सुख के लिए हर संभव येन-केन प्रकारेण समझौते करते नजर आए। नीतीश दोबारा प्रदेश के मुख्यमंत्री तो बन गए, लेकिन उनका सुशासन का वादा हवा-हवाई साबित हो रहा है।
आश्चर्य तो इस बात का भी है कि बिहार में प्रतिदिन बढ़ती अपराधिक घटनाओं को देखकर भी मुख्यमंत्री अपना मुंह नहीं खोल रहे हैं। जबकि बिहार में आज न महिलाएं सुरक्षित हैं न जनता की सुरक्षा करने वाली पुलिस ही अपने को सुरक्षित मान सकती है। दिन-प्रतिदिन रंगदार और रसूखदार सत्ता-प्रशासन पर हावी होते जा रहे हैं।
यहां एक नजर राज्य में अपराध के बढ़ते ग्राफ पर डाली जाए तो स्पष्ट हो जाता है कि नई सरकार के बनने के कुछ ही दिनों में सुशासन व्यवस्था कैसे पटरी से उतर गई है। पटना के दनियावां में छेड़खानी के झगड़े में दो की हत्या होना, नालंदा जिले के सिलाव में सरेशाम महिला से गैंगरेप, नरकटिया गंज में 13 साल की मूक-बधिर किशोरी से बलात्कार, डेहरी के एएसपी पर हमला, मुख्यमंत्री के गृह जिला नालंदा के नगरनौसा में थाना प्रभारी की हत्या। पटना में सरेआम एएसपी को गोली मारना। ऐसे ही सूबे में अन्य घटनाओं के साथ लगातार इन 3 इंजीनियरों की हत्या आखिर किस ओर इशारा कर रही हैं? यही कि नीतीश सरकार अपने चुनावी वादों को भूल गई है, जिसमें उन्होंने राज्य की जनता को सुशासन के साथ सुरक्षा का भरोसा दिया था। क्यों नहीं आज नीतीश कुमार इन सभी बातों को लेकर देश को जवाब देते हैं?
यह तो कमाल ही है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपराधियों को ढूंढ रहे हैं, मगर वे हैं कि सरकार पर भारी हैं, पकड़ में ही नहीं आ रहे। अब नीतीश जी! आप ही बताएं, इस व्यवस्था को क्या नाम दिया जाना चाहिए? क्या यह जंगलराज नहीं हैं? नीतीश जी, बात बिल्कुल सीधी सी है। बिहार की जनता ने आपको दोबारा इसलिए सत्ता नहीं सौंपी है कि आप अपनी लगातार की इस दूसरी पारी में सुशासन के बजाए कुशासन के पर्याय बन जाएं। जंगलराज वाले उन पुराने दिनों को याद कर बिहार की आम जनता आज भी डर जाती है। कृपा करें, प्रदेश की जनता पर रहम खाएं। गृह विभाग भी आप ही के पास है, इस जिम्मेदारी का भान रखते हुए कृपया जनता के हित में अपराधियों पर लगाम कसें और सख्त कदम उठाएं।
yeh sab thagbandhan wale neta hain inko bihar ki nirih janta se kuch nahi lena dena hai.
नितीश लालू सोनिया और केजरीवाल की दाल में जे.एन.यु. का तड़का लगा है। बिहार का पेट खराब हुआ तो आश्चर्य नही है।