नज़्म

राघवेन्द्र कुमार राघवlove1

 

किसी की तासीर है तबस्सुम,

किसी की तबस्सुम को हम तरसते हैं ।

है बड़ा असरार ये,

आख़िर ऐसा क्या है इस तबस्सुम में ।।

देखकर जज़्ब उनका,

मन मचलता परस्तिश को उनकी ।

दिल-ए-इंतिख़ाब हैं वो,

इश्क-ए-इब्तिदा हुआ ।

उफ़्क पर जो थी ख़ियाबां,

उसकी रंगत कहां गयी ।

वो गवारा गुलिस्तां,

जीनत को उसकी क्या हुआ ।

वो घर भी यहीं है,

हमसफर भी यहीं हैं ।

एहसास-ए-नज़र का

असर कहाँ गया ।।

ये अन्जुमन है उनकी,

है अर्श इश्क जिनका,

आदाब-ए-आदिल का फ़साना

वो आदमियत का क्या हुआ ।

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राघवेन्द्र कुमार 'राघव'
शिक्षा - बी. एससी. एल. एल. बी. (कानपुर विश्वविद्यालय) अध्ययनरत परास्नातक प्रसारण पत्रकारिता (माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय जनसंचार एवं पत्रकारिता विश्वविद्यालय) २००९ से २०११ तक मासिक पत्रिका ''थिंकिंग मैटर'' का संपादन विभिन्न पत्र/पत्रिकाओं में २००४ से लेखन सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में २००४ में 'अखिल भारतीय मानवाधिकार संघ' के साथ कार्य, २००६ में ''ह्यूमन वेलफेयर सोसाइटी'' का गठन , अध्यक्ष के रूप में ६ वर्षों से कार्य कर रहा हूँ , पर्यावरण की दृष्टि से ''सई नदी'' पर २०१० से कार्य रहा हूँ, भ्रष्टाचार अन्वेषण उन्मूलन परिषद् के साथ नक़ल , दहेज़ ,नशाखोरी के खिलाफ कई आन्दोलन , कवि के रूप में पहचान |

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