नो मैनस् लैंड (एक असमीया कहानी)

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सीमांत अंचल के इस छोटे से गांव मे एक खुशगवार चहल पहल छाई हुई है। बाजार मे साग-सब्जी, अंडे, चावल, सरसों का तेल अथवा किसी भी वस्तु की खरीददारी के समय हर तरफ एक ही विषय पर चर्चा हो रही है और वह विषय है सिर्फ ‘एक फुटबॉल मैच’। मुझे यहां आये एक महीना भी नहीं हुआ है। यहां पहला कदम रखते ही मुझे ऐसा अहसास हुआ मानो मै किसी अनजान और अपरिचित अंचल मे पहूंच गई हूं। दुर्गम पहाङों की गगनचुंबी चोटियों के ऊपर तैरते मेघों और वेगवान जलप्रपातों के मायावी आलिंगन से निर्मित टेढे-मेढे रास्ते से होते हुए मै जिस सुरम्य अंचल पर आकर उपस्थित हुई उसका नाम है ‘डाऊकी’। मेघालय और बंगलादेश की सीमा पर स्थित भारतवर्ष का आखिरी शहर। पिछले दो वर्षों से मै किसी एक संस्था के साथ सीमांत अंचल मे बसे लोगों के ‘डेमोग्राफीकेल सर्वे’ का कार्य कर रही हूं। मै यह तो नही जानती कि इस सर्वे की उपयोगिता क्याहै लेकिन मुझे यह काम अच्छा लगता है। क्योंकि इस काम के साथ जुङने के बाद मैने यह जाना कि दो देशों की जमीनी सीमाएँ मानव को मानव से अलग नहीं कर सकती।

इस छोटे से शहर को वस्तुतः एक गांव का आधुनिक संस्करण माना जा सकता है। यहां गिरजाघर, फुटबॉल खेलने का मैदान, स्कूल और रास्ते के किनारे किनारे चाय व भोजन के होटलों सहित अनेक वस्तुओं की दुकाने देखी जा सकती है। गुमटीनुमा दुकानों पर बंगलादेश से लाये गये पोटेटो चिप्स, ढाका के ‘खान चनाचूर’ इत्यादि वस्तुओं के पैकेट्स लटके हैं। प्रखर गर्मी से सूखते गले को बंगलादेश से आयात हुई छोटी छोटी बोतलों मे पैक फलों के रस से तर किया जा सकता है। मै अपनी खराब हुई बिजली की इस्तरी को ठीक कराने जिस मैकनिक के पास ले गई थी उसकी दुकान फुटबॉल फिल्ड के नजदीक ही थी। मैकनिक इस्तरी बनाने लगा और मै मैदान मे स्थानीय बच्चों को बङे उत्साह के साथ फुटबॉल खेलते देखने लगी। उसी समय इस्तरी बनाने मे लगे मैकनिक ने कहा — यहां एक बङा फुटबॉल मैच होने जा रहा है, बंगलादेश वर्सेस इण्डिया। हम लोग बङी उत्सुकता से मैच की प्रतिक्षा कर रहें हैं। बंगाली इलेक्ट्रेसियन को इस्तरी बनाने के पैसे दे कर रास्ते के किनारे स्थित होटलों की ओर देखते हुए आगे बढी। सोचा, घर जा कर चाय बनाने की बजाय यहीं कहीं पी लेना होगा।

जयंतिया बहुल इस अंचल मे बंगाली, बिहारी. हिन्दु-मुस्लिम भी यहाँ काफी तादात मे हैं। ईसाइयों मे ज्यादातर खासी लोग ही हैं। ये सभी व्यवसाय के सिलसिले मे यहाँ बसे हुए हैं। कोयला लदी ट्रकें और उनके साथ साथ सेना के जवानों का कॉनवॉय। इनको देख कर ऐसा लगता था मानो कुछ ही देरमे युद्ध छिङने ही वाला है। इस मंजर के कारण यहाँ लोगों के चेहरों पर उदासी, संशय और चिंता बनी रहती है।

मै एक चाय की दुकन मे गई। कहने को तो इनमे हर समय दाल-भात और रोटी-सब्जी वगैरह सब कुछ मिलता है। एक होटल मे सेना के तीन जवान बंगलादेश और इण्डिया के बीच होने वाले फुटबॉल मैच के बारे मे बातें कर रहे हैं। ‘अब्बाज राइट-इन खेलेगा, कल कह रहा था। गोलकीपर कौन होगा, इसकी कोई जानकारी नही है। पर जो भी हो, अपने रनधीर की बराबरी कोई नहीं कर सकता। इसके अतिरिक्त फॉरवार्ड भी ठीक नहीं है¬ — थापा को शामिल किया जाता तो अच्छा रहता। उसको रानी बोर्ड की ड्युटी पर तैनात किया गया है। कम से कम एक दिन के लिए तो लाया ही जा सकता था’। तीनो जवानो मे दो जवान परस्पर फुटबॉल मैच की बातों मे मसगूल हैं और इन बातों से बेखबर तीसरा जवान आचार और सब्जी के साथ रोटी व ठंडी जलेबी खा रहा है। जलेबी इतनी ठंडी हो चुकी है कि चासनी जम कर चीनी के रुप मे साफ दिखलाई पङ रही है। लेकिन तथापि वह जवान बङी तृप्ति के साथ खा रहा है। होटल वाली गोर-वर्ण सुन्दर खासी युवती को निर्निमेष देखते हुए ‘मीर्ची देना, रोटी देना’ कहने के अतिरिक्त अपने दोनो साथी जवानो की बातों मे उसकी कोई दिलचस्पी दिखलाई नहीं पङती। खासी युवती ने मुझसे पूछा- ‘चाय के साथ क्या लेंगी’ ? उसके होटल की ग्लास लगी अलमारी मे रखे बिस्कुट और ठंडी व चीनी से लिपटी जलेबी के अतिरिक्त कुछ भी तो नहीं था। फिर भी चाय के साथ कुछ लेना अच्छा लगता है। खासी युवती ने स्वयं ही पूछ लिया – केक खायें, बिल्कुल ताजा, आज ही आई है।

——क्या बंगलादेश की है ?

——-हाँ, खाने मे बङी स्वादिष्ट है।मैने देने को कहा। उसने सेंडविच की सी त्रिकोनी आकार वाली एक केक प्लेट मे ला कर मेरे सामने रखते हुए कहा – जिस दिन मैच होगा उस दिन समोसे और कचोरी बनाने के लिए शिलांग से एक आदमी आयेगा। चेरापुंजी से भी लोग मैच देखने आयेंगे।

मेघालय बोर्डर पार करके बंगलादेश को जाने वाली कोयलों की सैंकडों ट्रकों के ड्राईवर-हैंडीमैनस् और इस व्यवसाय से जुङे लोगों से ही यहां की दुकाने चलती है। बोर्डर चैक पोस्ट पर हैंडीमैन व अन्य लोग उतर जाते हैं। अकेले ड्राईवर ही ट्रक ले कर जाने और बंगला देश के किसी निश्चित डिपो मे कोयले डाल कर खाली ट्रक के साथ लौट आने का नियम है। रोजाना के आवागमन के कारण सेना के जवान ड्राईवर्स् और हैंडिमैनस् के चेहरे ब्यक्तिगत रुप से पहचानने लगे हैं। इसलिए होता क्या है कि चैक पोस्ट पर ड्राईवर्स उतर जाते हैं और हैंडिमैनस् ही गाङियाँ लेकर जाते हैं। गाङियाँ पार होने के बाद ड्राईवर्स चाय की दुकानें चलाने वाली पहाङी लङकियों और औरतों के साथ खुल कर मजाक करने का आनंद उठाते हैं। ——आप उस पार की हैं या इस देश की ? खासी लङकी ने पूछा।——इसी देश की, क्यों ? कैसे पूछ रही हो ?—-आप नई लग रही हैं। आज कल बहुत चेकिंग चल रही है। पिछले माह एक लङके ने यहीं खाना खाया था। बाद मे आर्मी के लोगों ने आकर हम लोगों को बङा तंग किया। वह लङका डाक बंगले मे रुका था। बाद मे आर्मी ने उसे हिरासत मे ले लिया और उसके पास से बहुत से हथियार और गोलियाँ बरामद हुईं। वह लङका कोयलों की गाङी मे छुप कर बोर्डर क्रोस करके यहां चला आया था। इस तरह की बहुत वारदात यहां होती रहती है। लेकिन रुपैयों पैसों के लेन-देन मे गङबङ होने पर ही कोई पकङ मे आता है। पार्टी के आदमी आर्मी को इनफोर्म कर देते हैं। यहां के सब लोग यही चाहते हैं कि बंगलादेश और इण्डिया के बीच होने वाला फुटबॉल मैच अच्छी तरह हो जाये। मेरे भी रिश्तेदार आयेंगे।— तुम्हारे रिश्तेदार ? मैने हैरानी से पूछा—- मेरे बाबा (पिता) सिलहट के हैं। मां के साथ विवाह कर यहीं बस गये। दो साल पहले बाबा की मौत हो गई। चाय दुकान वाली वह लङकी फिर चूल्हे के पास जा कर चाय छानने लगी। इस तरह बहुत से बंगलादेशी नागरिकों ने खसिया और जयंतिया जाति की लङकियों और औरतो से विवाह कर जमीन व संपति जुटा ली और यहीं भारत की सीमा मे स्थायी रुप से बस गये। बंगलादेश के नागरिकों की इस चालाकी को ध्यान मे रख कर भारत के लोगों की ओर से काफी चौकसी बरती जाती थी ताकि और बंगलादेशी यहां न बस पाये। इन दिनो बहुत सी कहानियां अथवा तो अफवाहें सुनी जाती थी। यह भी सुना था कि तामाबिल के लोग अनायास ही बोर्डर पार कर इस ओर रसगुल्ले बेच कर वापस बंगलादेश लौट जाया करते थे। लौट जाने मे यदि कोई असुविधा होती तो भारत के सीमांत अंचल मे रुक भी जाया करते थे। दोनो देशों के बीच ‘नो मैनस् लैंड’ से पार हो कर आने वालों को औपचारिक पासपोर्ट दिखलाना पङता था। ‘नो मैनस् लैंड’ से हट कर कुछ लोग दूसरे इलाके से कुछ टैक्स अदा करके भारत की सीमा मे प्रवेश कर आते और अपना अपना खुदरा सामान बेचते हुए यहां की कुछ खबरे ले कर लौट जाया करते। यह सिलसिला बे रोक टोक चलता रहता और इस तरह दोनो देशों के नागरिकों का आना जाना बना ही रहता और उनके खिलाफ शायद ही कभी कोई कार्रवाई होती। सेना को लगता इस प्रकार के आने जाने से कोई विशेष नुकसान होने वाला नही है।

लीली मारबनियां बंगलादेश से लाई गई कुछ इलिस मछलियां अपने सामने ले कर बैछी है। कुछ काटोला मछलियां भी साथ मे है। दोपहर की तेज धूप मे उसके गुलाबी चेहरे के गाल बिल्कुल लाल हो चुके हैं। बङी बङी मक्खियां उसको बार बार परेशान कर रही हैं। वह अपनी ‘जेनसाम’ नामक पौशाक के पल्लू से मक्खियां उङाते रहने के बावजूद लीली मक्खियों से निजात नहीं पा रही है। पास बैठी सिलभियस ने उसकी ओर देख कर एक जम्हाई ली और बोली – ‘अरे ! बोर्डर वाला तुम्हारा मेजर दो दिन से दिखलाई नहीं दिया क्या बात है ? घोस होटल के लिए तुम्हारी तो दो इलिस जा भी चुकी। लेकिन मेरी मछलियों के पास तो अभी तक कोई ग्राहक फटका भी नहीं। सङी गली मछलियां खरीदने वाले बिहारियों के हाथों नुकसान उठा कर बेचना पङेगा’। यों तो सिलभियस की इस तरह की बातों की लीली आदी हो चुकी है। लेकिन आज उसे बङा गुस्सा आया। क्योंकि एक तो पेट भूख से तिलमिला रहा था दूसरे कोयलो की गाङियों की लम्बी लाइन देखते देखते दोपहर हो चुकी पर ग्राहक का नाम नहीं। काफी गुस्से मे थी। अपने हाथ के गत्ते से इतने जोर से झपाटा मारा कि वह उसके हाथ पर ही चिपक कर रह गई। फिर सिलभिया की ओर मुङ कर कहा- ऐ बुढिया ! ग्राहक न मिलने की अपनी खीज मिटाने के लिए बिहारी ब्यापारियों का इंतजार न कर सङी मछली पर कटारी न चला कर मेरे घावों पर क्यों नमक बुरका रही हो। अपने मोटे मोटे ओठों के बीच धपात के साथ पान खाने से काले हुए दांतो को निपोङते हुए सिलभिया बोली- ऐ छोकरी ! बकवास कुछ ज्यादा ही करने ही लगी हो। ऱुको, साइमन को बतलाने दो तुम क्या क्या हरकत करती हो। हम बीस परसेंट टैक्स दे कर मछलियां लाते हैं और तुमको बिना टैक्स दिये मछलियां लाने की छूट.कैसे मिल जाती है , क्या यह किसी से छुपा है ? यह सुन कर लीली चुप हो गई। सिलभिया ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया। लीली ने सर नीचा कर चुपचाप अपनी मछलियों पर काला प्लास्टिक बिछाकर दोनो तरफ दो ईंटें रख कर उठ खङी हुई और चक्कों वाली रोबिन की गाङी के पास जा कर बोली- दो, अच्छी सी एक चाय दो। ये सङी गली केक मत देना। इनके अलावा और क्या है ? कुछ प्याजी रक्खी हैं उनमे ही एक देदोये मोर्निंग की है, कुछ खराब हो चकी है। इससे अच्छा है बोन खाओ, भूख भी मिट जायेगी। इस अंचल मे रोबिन की चाय की दुकान एक नामी दुकान है इसकी जानकारी मुझे यहां आते ही मिल गई थी। चाय का एक कप और ढाका के ‘खान बहादुर’ के चनाचूर का एक पैकेट लेकर एक पेङ के नीचे बैठ कर चाय की चुस्की लेते हुए नोट बुक पर शेष बचे कामो पर सरसरी निगाह डाल ही रही थी कि लीली

बेखबर हो कर मेरे पास आ कर बैठ गई। बिना इधर उधर झांके बस खाने मे मशगूल। लीली के शरीर से बदबू सीधी मेरे नाक के पास से गुजर गई। उसके गाल दोनो चटकीले लाल आम की तरह लग रहे थे। पैरो मे हरे रंग की हवाई सैंडल। बैठे बैठे वह अपने दोनो पैर नचा रही है। इस नीरस और शुश्क अंचल मे प्राकृतिक खूबसूरती लिए लीली वास्तव मे जंगली लीली के फूल की तरह लग रही थी। लोगों की ललचाई नजर उस पर अकारण लगी नहीं रहती है। अपने आप से बेखबर लीली बङे अनमने भाव से खङी हुई और किसी को देखने की गरज से कहीं दूर तक नजर दौङाई। रोबिन ने उसकी खोजी भंगीमा को भांपते हुए बोला- ‘ लीली, तुम्हारा मेजर शायद आज आ सकता है। दो एक दिन पहले मैने उसे कहीं जाते हुए देखा था’। लीली ने उसको टेढी नजर से देखते हुए कहा- ‘रे !तुम सब मर्दो के दिलों मे बङा खोट रहता है। मुझसे वह मछली खरीद लेता है तो तुम लोगों की आँखों मे किरकिरी होने लगती है। लेकिन तुमसे भी तो एक कप चाय खरीद कर पीता है। वह मुझसे मछली खरीदता है तो तुम सब आँखें फाङ फाङ कर देखने लगते हो और तुमसे चाय खरीदता है तो उस पर किसी की नजर ही नहीं जाती’। लीली ने गुस्से मे चाय का कप जोर से रखते हुए कहा-‘पहले के हिसाब मे लिख लेना’।

— क्यो ? बिना टैक्स चुकाये लाई गई मछलियां होटल वाले घोष के बेटे को बेच कर भरपूर लाभ कमा लेती हो। तुम्हारा तो सारा लाभ ही लाभ का धंधा है। फिर चाय का दाम क्यों नहीं दे सकती ? कर

गुस्से से लाल पीली हुई लीली ने अपने गुप्त स्थान से एक थैली निकालीऔर उसमे से सौ रुपये का नोट रोबिन की ओर फेंकते हुए बोली-

–और कितना है तेरा बकाया ?

— सत्तर ऱुपैये साठ पैसे — तुम्हे ही वापस मिलेंगे।

मवाली कहीं के ! केवल सत्तर रुपली के लिए इतनी बातें सुना डाली।

— अरे, नहीं रे ! तुम अच्छी लगती हो इसलिए मजाक कर लिया करता हूं। मुझे यह मालुम है कि तुम तो मेजर को घास भी नही डालती। वही मछली खरीदने के बहाने तुम्हारे पास आकर खङा रहता है और तुम हो कि सिलभियस की बातें सुन कर बेकार ही जल भुन जाती हो। क्या तुम्हे नहीं मालुम कि इस बुढिया ने अपनी जवानी मे क्या क्या गुल खिलाये थे ? वह तुमको अपना ‘राइवल’ समझती है, मुझे सब मालुम है। ये सब बताते हुए रोबिन डर भी रहा था कि कहीं सिलभियस सुन न ले। इसी डर से वह लीली के कान मे फुसफुसा कर बातें कर रहा था। लेकिन मै सब कुछ सुन रही थी। मै रोबिन को चाय के पैसे देने उठ कर गई। इधर कुछ दिनो से रोबिन के प्रति मै कुछ निकटता महसूस करने लगी थी।

–आप फुटबॉल मैच देखेंगी ?

— क्यों नही ? यह मैच तो देखना ही है।

— उनके पास दो एक अच्छे प्लेयर हैं। सुना है दोनो देशों की आर्मी के बङे-बङे ओहदेदार ऑफिसर मैच देखने आयेंगे। लेकिन एक बात बतलाउँ आपको ? ये मैच-वैच किये बिना ही दोनो देशों के लोगों के बीच स्वाभाविक ही अच्छा-खासा भाई चारा है। हमे वहां से केक, बिस्कुट, मुङी आदि बहुत सा सामान उधार मिल जाता है। वे लोग भी यहां से चावल केरासीन आदि जरुरत का सामान ले जाते हैं। यहां सीमा-वीमा की बात हमे तो बेमानी लगती है। दोनो देशों के बीच सीमा के सवाल से जुङे कानून कङे है तो उस देश से उङ कर यहां आश्रय लेने वाले पक्षियों पर लगाओ पाबंदी, हमारी गाय-बकरी उस पार चरने जाती हैं और लौट कर आ जाती हैं। उसी तरह हम लोग भी आते जाते हैं। आर्मी के लोग कुछेक लोगों को हिरासत मे ले कर परेशान करते हैं तो कुछ लोगों को नहीं भी करते है। कुछ लोगों को देख कर भी अनदेखा कर दिया जाता है। समझ मे नही आता कि आखिर माजरा क्या है। रोबिन ने मेरे कुछ नजदीक आकर धीरे से कहता है- ‘यह जो लीली है न वह तामाबील से मछलियां लाती है लेकिन एक दूसरे रास्ते से। मेजर को इसकी जानकारी है। वह इसको कुछ नही कहता, क्योंकि हसीन जो ठहरी। बल्कि वह तो यहां आकर लीली से ही मछलियां खरीद कर ले जाता है। इसका पति गांजे की तस्करी करने के कारण दो बार जेल भी जा चुका है लेकिन उसे ज्यादा दिन जेल मे नहीं रहना पङा। प्रमाण के अभाव मे राहत मिल गई और दोनो बार छूट कर बाहर आ गया। अपने पति साइमन के भरोसे न रह कर लीली खुद ही मछलियां बेचने का यह छोटा-मोटा व्यवसाय करने लगी। अब आपसे क्या छुपाना, यह कुछ यहां बदनाम भी है’। मै रोबिन को चाय के पैसे देकर बस का इंतजार करने लगी। मौका पाकर रोबिन लीली के बारे मे

सब कुछ बतलाने के लिए ब्यग्र हो रहा था। बदनामी इसी तरह तो फैलती है। लीली की ओर मुङ कर देखा, वह मछलियों पर भिनभिनाती मक्खियों को उङाने मे ब्यस्त है। मछलियों के साथ साथ मक्खियों का झुंड लीली को भी घेरे हुए है। अपने आप से बेखबर और बैठने के लापरवाह ढंग के कारण लीली की जंघा तक दिखलाई पङ रही थी। मरी मछली की आंखों की तरह लीली की आंखें भी मलीन है। शायद, अपने पति के आने की नाउम्मीदी के कारण लीली की यह हालत हुई हो।

बस मे लटकने की भी जगह नहीं है तथापि हैण्डिमैन चिल्ला रहा है…..’तामबिल….तामबिल….खाली बस’…और इस तरह यात्रियों को बुला बुला कर बस मे ठूंसते ही जा रहा है। इसी बीच एक जीप आकर रुकी। उसमे सवार लोग उतर कर असमीया मे बातें करते हुए पेशाब करने के मकसद से पास ही के नाले की ओर बढे। उनको शायद यह जानकारी नहीं थी कि यहां एक सुलभ शौचालय की भी सुविधा है। शायद यहां पहली बार आ रहे हैं। उनमे से एक को मैने बस यों ही पूछ लिया. ‘आप लोग कहां से आ रहे हैं ?’ कभी कभी एक छोटे से प्रश्न से कई समस्याओं का हल निकल आता है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। जीप से उतरने वाले लोग किसी एक जल-विद्युत-प्रकल्प के सिलसिले मे नदी के श्रोत और वेग का अध्ययन करने वाले काफी फुर्तीले और दिलचस्प ईंजीनियरस् और भूतत्वविद थे। वे मुझे अपने साथ तामाबिल ले गये। मैने भी उनको बोर्डर की सैर करवाई।

हरा शर्ट, कोर्ड की पुरानी पेंट और टोपी पहने एक अधेङ ईंजीनियर ने ‘नो मेनस् लैंड’ के क्षेत्र मे प्रवेश करते ही वहां तैनात जवानो के साथ बातचीत करने लगा और मुझे भी इशारे से अपने पास बुला लिया। मुझे लगा जैसे वे इस क्षेत्र मे खङे हो कर अपने आप को आत्मविभोर महसूस कर रहें हैं – ‘जानती हो, यह नो मैनस् लैंड अत्यंत पवित्र भूमि है। पृथ्वी पर यदि कहीं स्वाधीनता है तो यहीं है’। भला कब धरती पर मानव का अधिकार हो पाया है ! पैंतालिस हजार करोङ पुरानी इस धरा के जीव-जंतुओं और पेङ-पौधों ने कहां किसी की आधीनता स्वीकार की है ! क्या यहां के पेङ जानते हैं कि ये किस गांव के हैं और इनका ठिकाना क्या है ? मेघालय के पहाङो को चीर कर बहने वाली नदी को क्या यह मालुम है कि उसका कितना हिस्सा भारत का और कितना बंगलादेश का है ? भारत-बंगलादेश के सीमांत अंचल की श्रीवृद्धि मे इस नदी के स्निग्ध प्रवाह का बहुत बङा योगदान है। स्वर्ग के सौन्दर्य की तो कल्पना मात्र ही की जा सकती है। लेकिन यहां की नैसर्गिक शोभा तो स्वर्ग की कल्पना को भी म्लान करने वाली है।

तामाबिल को जाने वाले रास्ते मे आने वाले पहाङ का समतल भाग बंगलादेश का है। इस रास्ते के पेङों की जङें तो बंगलादेश मे है परन्तु इनके डाल-पात भारत की भूमि का मानो स्पर्श करने के लिए झुके हुए हैं। इस देश की लताऍ उस देश की ओर बढती हुई नजर आ रही हैं। बंगलादेश के पंक्तिबद्ध तामूल के पेङ मानो मेघालय के आकाश की ओर झांक रहे हैं। ‘कुछ नही होगा, आप लोग आ सकते हैं’ सीमा सुरक्षा बल के एक जवान ने कहा। उसकी वर्दी के शर्ट पर नाम था ‘रियाज अहमद’। पहली ही मुलाकात मे ही उसकी हंसी आकर्षित लगी थी। आगे बढने मे हमारी झिजक देख कर दो तीन बंगलादेशी जवानो ने बतलाया — ‘आमरा जाछि फुटबॉल खेलते दू दिन पोरे, जानेन ना ?

ऐसा लगा मानो इस मैच के बाद बंगलादेश के साथ जुङी सारी राजनैतिक और कूटनैतिक समस्याओं का समाधान हमेशा के लिए होकर उसके साथ सारे सबंध सामान्य हो जायेंगे और सीमा को लेकर कभी कोई प्रश्न खङा नहीं होगा। दो दिन के बाद संपन्न होगा सब लोगों की उत्कंठा के साथ प्रतिक्षित मैच। अपने चेहरे पर सदैव मुस्कराहट रखने वाले रियाज ने मेरी ओर एक कदम आगे बढ कर कहा– “आपनादेर कर्नल साहब एसे, गतो काल चाय खेये गियेसेन आमादेर केंपे। आमादेर देशे पा राखते एतो भय केनो ? एई देखुन ना कि लेखा आसे” रियाज ने जिस साइनबोर्ड की ओर ईशारा किया था उस पर लिखा है ‘सुस्वागतम बंगलादेश, आपनि जेखाने आसे ऊटाई स्वदेश’। अर्थात् आप जहां रहने लग गये वही और बस वही है आपका स्वदेश। कितना मिठास और अपनापन था इस कथन मे। इतने मे ही एक भरतीय सैनिक ने गुस्से मे आ कर दबदबाते हुए कहा- ‘चलो,चलो लौट आओ।’ रियाज की ओर देख कर मैने कहा- रियाज, मौका मिला तो पासपोर्ट ले कर तुम्हारे देश अवश्य आऊंगी। मैच अच्छी तरह खेलना। मै भी मैच देखने आऊंगी, बेस्ट ऑफ लक’। वह नो मेनस् लैंड तक मुझे छोङने आया और मुझसे हाथ मिलाते हुए कहा – ‘इस शुन्य भूमि (नो मेनस् लैंड) पर खङे हो कर जो भी बात मुंह से निकलती है वह निर्दोष, सच्च और सिर्फ सच्च होती। हर ब्यक्ति को चाहिए कि वह अपना चिंतन शुन्य से शुरु करे अर्थात् अपने दिलो-दिमाग को खाली कर चिंतन करे। इस तरह के चिंतन मे पक्षपात का न तो कोई स्थान होता है और न कोई गुंजाइस। ऐसे मे धर्म, जाति-पांति, देश व सीमाएं आदि सब कुछ एकाकार हो कर एक फुटबॉल सदृश्य हो जाता है। महाकाशयान से ली गई सीमाहीन पृथ्वी की तरह गोल। रियाज के इन दार्शनिक विचारों से अभिभूत हो कर मै उसकीदेखतीगई। केमो फ्लेज वर्दी पहने रियाज की टोपी से ढकी चमकती आंखों मे एक प्रकाश दिखलाई दे रहा था। उस समय ऐसा अहसास हो रहा था कि जैसे बंगलादेशी जवान के साथ बिताये वे कुछ पल मुझे एक मुक्त आकाश मे उङाये लिए जा रहे हों। मेरे साथ के ईंजीनियर ने रियाज से हाथ मिलाते हुए कहा- ‘मेरे देश तुम्हारे देश की बातों को दर किनार करदो। मै तो सिर्फ इतना जानता हूं कि तुम मेरे भाई हो, बस। हाथ मिला कर हम परस्पर विदा होते हैं। अचानक लीली दिखलाई पङी। वह बिना किसी की ओर देखे दोनो देशों की सीमा के सुनसान रास्ते पर अपने गंतब्य की ओर आगे बढी चली जा रही है। दो घंटे पूर्व तो मै उसे देख कर आ ही रही हूं फिर उसने अपनी मछलियां न बेच करइधर क्यों चली आई। मेरे जेहन मे सहज ही एक सवाल उभर कर आया। क्या मेजर की तलाश मे आई है ? लेकिन इसने तो पहले ही सुनन कि मेजर कहीं गया हुआ है।

अनुवादक : नागेन्द्र शर्मा

 

लेखिका : अनुराधा शर्मा पुजारी

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