कुरान में तीन तलाक का ज़िक्र नहीं : न्यायालय

0
262

जीवन से खिलवाड़ मानव धर्म के विपरीत

तीन तलाक का मुद्दा एक गंभीर विषय बना हुआ है जिस पर पूरे देश की टकटकी भरी निगाहें माननीय सर्वोच्चन्यायालय  के फैसले पर टिकी हुई हैं, जिसकी  सुनवाई भी हो चुकी है तथा फैसला अभी माननीय न्यायालय के अंतर्गत सुरक्षित है। जो कि अभी जनता के सामने सम्पूर्ण रूप से आना बाकी है, क्योंकि यह फैसला एक विशेष समुदाय के लिए अत्यन्त गंभीर विषय है इसलिए पूरे देश की निगाहें आने वाले फैसले के ऊपर केन्द्रित हैं। क्योंकि न्यायालय का फैसला सर्वमान्य होगा, मुस्लिम समुदाय में महिलाओं की त्रासदी काफी समय से तीन तलाक के अनुसार चिंता का विषय रही है। न्याय हेतु महिलाओं एवं शिक्षित मुस्लिम व्यक्तियों नें ऐसी कुप्रथा का खुलकर विरोध किया, जोकि एक बड़े आन्दोलन के रूप में उभर कर देश के सामने एक विकराल समस्या के रूप में आकर खड़ा हो गया, महिलाओं ने अपने मान-सम्मान, इज्जत एवं मर्यादा, न्याय एवं मानवाअधिकार के अंतर्गत न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

महिलाओं का तर्क है कि क्या हम मानव जाति से अलग हैं, क्या हम ऐसी सम्पत्ति हैं जिसे जब चाहे खरीद लिया जाए एवं प्रयोग किया जाए तथा जब इच्छा शक्ति पूर्ण हो जाए तो हमें सड़क पर छोड़ दिया जाए, तो क्या हम महिलाओं को ईश्वर ने एक सम्पत्ति के रूप में इस संसार में भेजा है जिसका दुपयोग पुरुष प्रधान समाज के द्वारा खुले आम समाज के अंदर किया जा रहा है। तो क्या यह सही है, क्या यह उचित है, अथवा ऐसी परंपरा मानव समाज के लिए न्याय रूपी है। इन्हीं तमाम बिन्दुओं को आधार बनाते हुए महिलाओं ने मानवाधिकार एवं अपने भविष्य को आधार के रूप में केन्द्रित करते हुए  इस मुद्दे को लेकर न्यायालय के समक्ष पीड़ित महिला संगठन न्यायालय के दरवाजे पर न्याय हेतु पहुंच गया। अब न्यायालय का दायित्व बनता है कि किसी के साथ, किसी भी तरीके का अन्याय न हो, यदि शब्दों को परिवर्तत कर दिया जाए तो  किसी भी जाति धर्म एवं व्यक्ति अधिकारों का हनन न हो संविधान की जिम्मेदारी है कि सभी तथ्यों को देख, सुन एवं गंभीरता पूर्ण तरीके से भविष्य की रूप रेखा पर ध्यान केन्द्रित करते हुए विचार करे।

अत: माननीय सर्वोच्चन्यायायल ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया चरण बद्ध तरीके से माननीय न्यायालय ने पक्ष एवं विपक्ष दोनों के तर्कों को गंभीरता पूर्वक सुना, ज्ञातव्य हो कि धर्म का केन्द्र मानी जाने वाली पवित्र गं्रथ जिस पर सम्पूर्ण मुस्लिम समाज टिका हुआ है, तथा विपक्ष ने ग्रन्थ को आधार बनाते हुए माननीय न्यायालय का ध्यान अपने तर्कों के अनुसार केंन्द्रित करवाने का प्रयास किया, तो तुरंत ही सर्वोच्चन्यायालय ने बहस के दौरान धर्मिक पवित्र ग्रंथ कुरान शरीफ का गहनता पूर्वक क्रमवार अवलोकन किया तथा सभी बिन्दुओं पर ध्यान के न्द्रित किया।

ज्ञात हो कि संविधान पीठ के पांचों जज कुरान खोलकर उसकी आयतें पढ़ने लगे। मसला तलाक से जुड़ी कुरान की अल- बकरा चैप्टर दो की आयत संख्या 230 का था। जमीयत उल उलेमा हिंद के वकील वी गिरि ने जब कोर्ट का ध्यान कुरान की आयत संख्या 230 पर ध्यान दिलाते हुए कहा कि एक बार में तीन तलाक यानी तलाक उल बिद्दत की बात कही गई है। तो मुख्य न्यायधीश समेत पांचों न्यायधीशों ने सामने रखी कुरान उठाई और आयत पढ़ना शुरू किया। कुरान का वह अंग्रेजी अनुवाद था। न्यायधीशों ने वकील वी गिरी से कहा कि जो बात आप कह रहे हैं वो तो इस आयत में नहीं लिखी गई है। सबसे बड़ी बात है की आयत में लिखी बातें जिसकी आप व्याख्या कर रहे हैं उसका वो मतलब नहीं निकलता। मान्यवर जिस तरह से आप व्याख्या कर रहे हैं वह आपके अपने शब्द हैं न कि कुरान के।

तो क्या आपके शब्दों को मान लिया जाए, और पवित्र ग्रन्थ के शब्दों को न माना जाए, क्योंकि आपके शब्दों में और कुरान के शब्दों में बहुत अन्तर है। न्यायधीशों ने कहा की आप संपूर्णता से देखें कि कहीं भी एक बार में तीन तलाक की बात नहीं कही गई है। ज्ञात हो कि  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बार फिर तीन तलाक के मामले तथा फतवे पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की। इलाहाबाद हाईकोर्ट की जस्टिस एसपी केसरवानी की एकल पीठ ने आरोपित के खिलाफ दर्ज दहेज उत्पीड़न केस को रद्द करने से इनकार कर दिया। आरोपित शौहर अकील जमील का कहना था की वह अपनी बेगम सुमालिया को तलाक दे चुके हैं और दारुल इफ्ता जामा मस्जिद, आगरा से फतवा भी ले चुका है। इस आधार पर दहेज उत्पीड़न का मामला रद्द होना चाहिए। बता दें की तीन तलाक से पीड़ित वाराणसी निवासी सुमालिया ने दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया था। इस पर हाइकोर्ट ने एसीजेएम वाराणसी के आदेश को सही करार देते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया यह आपराधिक केस का मामला है।

इससे पहले पिछले वर्ष दिसंबर माह में इलाहाबाद हाइकोर्ट ने तीन तलाक के मामले पर कहा था की ‘‘तुरंत तलाक’ देना ‘नृशंस’ और ‘सबसे ज्यादा अपमानजनक’ है, जोकि ‘भारत को एक राष्ट्र बनाने में ‘बाधक’ और पीछे ढ़केलने वाला है।’ जस्टिस सुनीत कुमार की एकल पीठ ने भी कहा था कि, ‘‘भारत में मुस्लिम कानून पवित्र कुरान के विपरीत है। अदालत ने टिप्पणी की कि ‘‘इस्लाम में तलाक केवल अति आपातस्थिति में ही देने की अनुमति है। जब मेल-मिलाप के सारे प्रयास विफल हो जाते हैं, तो दोनों पक्ष तलाक के माध्यम से शादी खत्म करने की प्रक्रिया को स्वेक्षा से आगे बढाते हैं।’

F      फतवे को कानूनी बल प्राप्त नहीं है, इसलिए इसे जबरन थोपा नहीं जा सकता है|

F      इसे किसी भी तरीके से लागू नहीं किया जा सकता, यह अवैध है, फतवे का कोई वैधानिक आधार भी नहीं है।

F      कोई भी पर्सनल लॉ संविधान से ऊपर नहीं है । पर्सनल लॉ के नाम पर मुस्लिम महिलाओं सहित सभी नागरिकों को अधिकार प्राप्त है। अनुच्छेद 14, 15 और 21 के मूल अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता ।

F      जिस समाज में महिलाओं का सम्मान नहीं होता है, उसे सिविलाइज्ड नहीं कहा जा सकता ।

F      लिंग के आधार पर भी मूल और मानवाधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता ।

F      कोई भी मुस्लिम पति इस तरीके से तलाक नहीं दे सकता, जिससे समानता और जीवन के मूल अधिकारों का हनन होता हो ।

F      कोई भी पर्सनल लॉ संविधान के दायरे में ही लागू हो सकता है ।

F      ऐसा कोई फतवा मान्य नहीं है जो न्याय व्यवस्था के विपरीत हो ।

 

अवगत करा दें कि न्यालय ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा की मुस्लिम परिवार में शादी तोड़ने के लिए तीन तलाक शादी खत्म करने का सबसे खराब और अवांछनीय रूप है । प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने यह साफ कर दिया की मुस्लिमों में प्रचलित बहुविवाह के मसले पर संभवत: विचार नहीं किया जायेगा, क्योंकि यह तीन तलाक से जुड़ा मुद्दा नहीं है ।

न्यायमूर्ति जोसेफ कुरियन, आरएफ नरीमन, यूयू ललित तथा अब्दुल नजीर की सदस्यता वाली पीठ ने इस मामले में विचारणीय मुद्दे तय करते हुए कहा कि हम इस पर गौर करेंगे। उल्लेखनीय है की इस पीठ में विभिन्न धर्मों सिख, ईसाई, पारसी, हिंदू और मुस्लिम से ताल्लुक रखने वाले जज शामिल हैं। करीब छह दिन होने वाली सुनवाई में विभिन्न पक्षों के वकीलों ने दलीलें पेश कीं। अमित सिंह चड्ढा (याचिकाकर्ता सायरा बानों के वकील) ने सुनवाई की शुरूआत करते हुए कहा की तीन तलाक इस्लाम का मौलिक हिस्सा नहीं है। इसलिए इसे हटाया जा सकता है। इसे गैर-इस्लामिक बताते हुए पाकिस्तान तथा बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों का उदाहरण दिया। इस पर कोर्ट ने कहा कि इस मसले पर हम विभिन्न इस्लामिक देशों के कानूनों को देखना चाहेंगे।

पर्सनल लॉ संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत कानून माना जायेगा। इस हिसाब से मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला कानून नहीं रह सकता। एकतरफा तलाक गैर-कानूनी है। इस-पर विचार के लिए इसे ‘न्यायिक निरीक्षण’ के तहत लाया जाना चाहिए।

सलमान खुर्शीद (निजी तौर पर कोर्ट की मदद करने वाले वकील) ने कहा कि तीन तलाक (कोई मुद्दा नहीं) है, क्योंकि पति-

पत्नी के बीच समझौते की कोशिशों के बिना इसे पूरा ही नहीं माना जाता, एक बार में तीन तलाक नहीं होता, बल्कि यह प्रक्रिया तीन महीने की होती है। कोर्ट ने कहा कि क्या सुलह की कोशिश की बात संहिताबद्ध (कोडिफाइड) है? खुर्शीद ने कहा, नहीं।

कपिल सिब्बल (आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील) ने कहा की यह एक नॉन इश्यू है, क्योंकि कोई भी विवेकशील मुस्लिम खुशनुमा सुबह में जागकर तलाक, तलाक और तलाक नहीं कहेगा। तुषार मेहता (एएसजी, केंद्र की ओर से) ने कहा कि सरकार तीन तलाक को लिंग आधारित भेदभाव मानती है। यह बराबरी के हक का उल्लंघन करता है। इसलिए सरकार तीन तलाक का विरोध करती है।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए छह दिन तय किये थे। जिसमें तीन दिन उनके लिए, जो तीन तलाक को चुनौती दे रहे हैं और तीन दिन उनके लिए जो इसका बचाव कर रहे हैं। इसके तहत पीठ द्वारा तय किये गये सवालों पर बहस के लिए दोनों को दो-दो दिन और प्रतिवाद के लिए एक-एक दिन मिला था। दलीलों को दोहराये जाने पर कोर्ट ने वकीलों को मना कर दिया। क्योंकि वकीलों को तीन तलाक पर  ही फोकस करना होगा।

मामले में कुल 30 पक्ष हैं। केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी हैं, जिनमें पांच पृथक रिट याचिकाएं मुस्लिम महिलाओं ने दायर की हैं। उन्होंने समुदाय में प्रचलित तीन तलाक की प्रथा को चुनौती दी है। याचिकाओं में दावा किया गया है की तीन तलाक असंवैधानिक है। तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में बड़ी बेबाकी से अपना पक्ष रखते हुए अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा की इस मुद्दे पर कोई वैक्यूम नहीं है। इससे पहले, चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा, ‘हमारे पास जो सीमित समय है, उसमें तीनों मुद्दों को निबटाना संभव नहीं है। हम उन्हें भविष्य के लिए लंबित रखेंगे सुप्रीम कोर्ट ने यह बात तब कही, जब सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल ने कहा की दो सदस्यीय पीठ के जिस आदेश को संविधान की पीठ के समक्ष पेश किया गया है, उसमें ‘तीन तलाक’ के साथ बहुविवाह और ‘निकाह हलाला’ के मुद्दे भी शामिल हैं।

रोहतगी ने संविधान पीठ से यह स्पष्ट करने के लिए कहा की बहुविवाह और ‘निकाह हलाला’ के मुद्दे अब भी खुले हैं और कोई भी पीठ भविष्य में इसे निबटा सकती है। इस पर कोर्ट ने स्पष्ट किया, ‘इन्हें भविष्य में निबटाया जायेगा। मुस्लिम समाज में व्याप्त तीन तलाक को चुनौती देनेवाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई किया। केंद्र ने सोमवार को अपनी दलीलें पेश करनी शुरू कीं, पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कई बड़े सवाल उठाये थे। कोर्ट ने कहा था की तीन तलाक शादी खत्म करने का सबसे बुरा और अवांछनीय तरीका है। दूसरी तरफ पूर्व कानून मंत्री और कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने कहा था कि उनकी निजी राय में ट्रिपल तलाक पाप है, लेकिन  आल इंडिया मुसलिम पर्सनल ला बोर्ड का स्टैंड है कि ट्रिपल तलाक घिनौना है, फिर भी वैध है। वहीं आॅल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी तीन तलाक को गैरकानूनी करार दिया है।

 

कोर्ट के सवाल

 

F        ट्रिपल तलाक परंपरा है या शरीयत का हिस्सा नहीं|

F    जो धर्म के मुताबिक घिनौना है, क्या उसे कानून के तहत वैध ठहराया जा     सकता है?

F    जो ईश्वर की नजर में पाप है, क्या उसे शरीयत में लिया जा सकता है?

F    बहुत सारे लोग देश में मौत की सजा को सिन यानी पाप मानते हैं, लेकिन कानूनन यह वैध है।

F    अगर भारत में ट्रिपल तलाक विशिष्ट है, तो दूसरे देशों ने कानून बना कर ट्रिपल तलाक को खत्म क्यों कर दिया? इन सभी प्रश्नों का उत्तर तर्क सहित दीजिए।

ज्ञात हो कि एआईएसपीएलबी के प्रवक्ता मौलाना यासबू अब्बास ने कहा कि समय की मांग है अब कड़ा कानून लाया जाये। यह सती विरोधी कानून की तरह हो, जो किसी महिला को पीड़ित होने से बचाए और यह सुनिश्चित करे की दोषी को सजा मिले। शिया समुदाय में एक बार में तीन तलाक के लिए कोई जगह नहीं है।’’ तीन तलाक का मुद्दा पूरी तरह से पुरुषवादी वर्चस्व से जुड़ा है और इसका कुरान में कोई उल्लेख नहीं है।

 

विचारक|

सज्जाद हैदर रिज़वी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here