सरकार अलगाववादियों के आगे घुटने न टेके!

लालकृष्ण आडवाणी

भाजपा के युवा मोर्चा ने इस गणतंत्र दिवस पर श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने के लिए कोलकाता से श्रीनगर तक की तिरंगा यात्रा शुरु की है। 12 जनवरी से कोलकाता से शुरु हुई यात्रा सात प्रदेशों से गुजरते हुए 20 जनवरी को दिल्ली पंहुची।

उस शाम को 5 बजे नई दिल्ली के विट्ठलभाई पटेल भवन प्रांगण में मैंने सांसद और भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर को श्रीनगर में फहराए जाने वाला तिरंगा सौंपा।

इसके कुछ ही घंटाें बाद जम्मू-कश्मीर सरकार ने अधिकारिक तौर पर घोषित किया कि वे लाल चौक पर भाजपा को राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराने देंगे क्योंकि यह एक ”ऐसा कार्यक्रम है जिससे राज्य में शांतिपूर्ण माहौल के बिगड़ने की संभावनाएं हैं।”

नई दिल्ली के युवा मोर्चा कार्यक्रम और जम्मू एवं कश्मीर राज्य सरकार की उपरोक्त घोषणा की अगली सुबह मुंबई के ‘फ्री प्रेस जर्नल‘ समाचारपत्र ने इस बैनर शीर्षक से प्रकाशित किया ”लाल चौक कैन टर्न ग्रीन, नॉट सफरॉन” (Lal chowk can turn Green, not Saffron ) इसमें श्रीनगर के लाल चौक का फोटो भी प्रकाशित किया गया जिसमें एक पाकिस्तानी झंडे के साथ प्रकाशित एक उप-शीर्षक कुछ इस तरह है ”श्रीनगर के लाल चौक पर पिछले वर्ष ईद पर भारतीय मीडिया के सामने पाकिस्तानी झण्डा फहराया गया।”

इस समाचार का प्रकाशन और प्रस्तुतिकरण, मुझे लगता है कि राज्य सरकार की हमारी एजेंसियों (स्पष्ट तौर पर राज्य सरकार ने केन्द्र सरकार की सहमति से ही कदम उठाया है,) द्वारा लिए गये निर्णय से होने वाली भयावह शर्म का अहसास कराने के लिए काफी होगा।

यदि प्रतिबंधात्मक आदेशों का आधार शांतिभंग की आशंका है तो यह प्रतिबंध उनके विरुध्द होना चाहिए जिन्होंने ऐलान किया है कि वे लाल चौक पर तिरंगा नहीं फहराने देंगे, न कि उनके विरुध्द जो बार-बार दोहरा रहें हैं कि वे लाल चौक पर शांतिपूर्ण एवं सम्मानपूर्वक तिरंगा झंडा फहराएंगे।

20 जनवरी के कार्यक्रम में, मैंने उपस्थित कार्यकर्ताओं को केन्द्रीय गृहमंत्री के रुप में अपनी एक लंदन यात्रा का स्मरण कराया था। मैं एक भारतीय कम्पनी के स्वामित्व वाले होटल में रुका था। उसके मैनेजर मेरे पास आए और अपनी एक समस्या बताई। उन्होंने बताया कि लंदन में गैर -ब्रिटिशों के स्वामित्व वाले होटलों पर वे अपने देशों का झण्डा फहराते हैं। लेकिन भारत में झण्डा संहिता प्रतिबंध होने के कारण, हम ऐसा नहीं कर सकते। क्या इस सम्बन्ध में कुछ किया जा सकता है। मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि मैं इस मामले की जांच कराऊंगा।

ब्रिटेन से वापस आने के बाद मैंने तब प्रभावी झण्डा संहिता की समीक्षा हेतु गृहमंत्रालय की बैठक बुलाई। राष्ट्रीय तिरंगा फहराने का अधिकार केवल सरकारी अति विशिष्ट व्यक्तियों और सामान्य भारतीय नागरिकों को इसे 26 जनवरी और 15 अगस्त को ही इसे फहराने तक सीमित क्यों रखा जाए?

मंत्रालय में इस समुचे मुद्दे पर विचार करने के लिए संयुक्त सचिव डा0 पी.डी.शिनॉय की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई। मैंने उनका ध्यान इस ओर दिलाया कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैचों और ऐसे ही खेलों के दौरान दर्शक कुछ उपलब्धियों पर राष्ट्रीय ध्वज फहरा कर अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हैं। तत्कालीन संहिता के तहत तकनीकी रुप से यह भी एक अपराध है।

संशोधित संहिता के प्रारूप को केंद्रीय मंत्रिमण्डल ने स्वीकृति दी और इसे झण्डा संहिता भारत 2002 के रूप में जारी किया। यह 26 जनवरी 2002 से प्रभावी हुआ।

संहिता का पहला अनुच्छेद कहता है:

”सामान्य नागरिकों, निजी संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों इत्यादि द्वारा राष्ट्रीय झण्डे के प्रदर्शन पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा सिवाय चिन्हों और नामों (अनुचित उपयोग पर प्रतिबंध) कानून एम्बेलम्स एण्ड नेम्स (प्रिवेंशन ऑफ इम्प्रोपर यूज़) एक्ट 1950 और राष्ट्रीय सम्मान के अपमान निवारक हेतु कानून (प्रिवेंशन ऑफ इंसल्ट्स टू नेशनल ऑनर) एक्ट 1971 तथा इससे सम्बन्धी अन्य प्रभावी कानूनों के प्रावधानों को छोड़कर।”

लगभग उसी समय गृह मंत्रालय ने तत्कालीन प्रचलित झण्डा प्रतिबंधात्मक संहिता के सम्बन्ध में अनेक नागरिकों द्वारा उठाई गई आपत्तियों को ध्यान में लिया। दिल्ली के एक नागरिक और वर्तमान में सांसद नवीन जिंदल इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय तक ले गए।

सर्वोच्च न्यायालय ने जिंदल केस में अपने निर्णय में राष्ट्रीय झण्डे फहराने को नागरिकों का मौलिक अधिकार ठहराया सिवाय उन कानून सम्मत प्रतिबंधों को छोड़कर जो उपरोक्त कानूनों में उल्लिखित किए गए हैं।

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा:

”अति प्राचीन काल से लोगों ने अपने झण्डों के लिए अपने जीवन के बलिदान दिए हैं। वस्तुत: कपड़े के इस टुकड़े जिसे राष्ट्रीय झण्डा कहा जाता है में ऐसा अवश्य ही कुछ है जिसके लिए लोग सर्वोच्च बलिदान भी करते हैं। राष्ट्रीय झण्डा समूचे राष्ट्र, इसके आदर्शों आकांक्षाओं, आशाओं और उपलब्धियों का प्रतीक है। जब लोगों का अस्तित्व ही खतरे में हो तब यह उन्हें प्रकाशपुंज की तरह प्रकाश देने वाला होता है। उस खतरे के समय इस झण्डे की लंबाई लोगों को इस छाते के नीचे करता है।”एकजुट होने की प्रेरणा देती है और अपनी मातृभूमि के सम्मान की रक्षा करने का आग्रह करती है।

मैं चाहता हूं कि प्रधानमंत्री इस बात का अहसास करें कि अनुराग ठाकुर के नेतृत्व में ये युवा कोई राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास नहीं कर रहे अपितु अलगाववादियों को चुनौती दे रहे हैं और सरकार उनके (अलगाववादियों) के सामने घुटने टेक रही है। (23 जनवरी, 2011)

2 COMMENTS

  1. आशा है आपका दल यह मुद्दा इसके तार्किक परिणाम की ओर ले जाएगा . हमें लाल चौक पर तिरंगा चाहिए . इस विषय पर एक श्वेत पात्र जारी करिए और तिरंगा न फहराए जा सकने के कारणों पर अपने दल के विचारों के साथ इस श्वेत पत्र को हर गाँव तक पहुँचाइए.

  2. आदरणीय आडवानी जी केंद्र सरकार भारत के पुनर्विभाज़न का माहौल बना चुकी है जैसा कि इसने १९४७ में भी बनाया था| ऐसे में जब भाजपा युवा मोर्चा कोई ऐसा कदम उठाये जिससे भारत की एकता एवं अखंडता बरकरार रहे तो कांग्रेस को तो पीड़ा होगी ही| ऐसे में मनमोहन सिंह का यह कहना कि “राजनैतिक दल लालचौक में तिरंगा फहराने के नाम पर राजनीति न खेलें” मनमोहन सिंह की नपुंसकता ही दर्शाता है|

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