विभाजीय राजनीति से बचे भारत – नरेश भारतीय

7
206

जयपुर में हुए अपने चिंतन शिविर में राहुल गाँधी को और आगे बढ़ाने का उपक्रम और उनके नेतृत्व में आगामी लोकसभा चुनाव जीतने का स्वप्न देखना कांग्रेस के नेताओं और उनके समर्थकों का हक है. उनके द्वारा तदर्थ अपनी चुनावी रणनीति का निर्धारण समझ में आता है. लेकिन उसी उतावली में उनके द्वारा की गई कुछ बयानबाजी निश्चित ही समाज में विभाजन विखंडन उत्पन्न करने वाली प्रतीत हुई. देश के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे का यह बयान कि राष्ट्रवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक और भारतीय जनता पार्टी अपने प्रशिक्षण शिविरों में हिंदू आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं’ एक गैरज़िम्मेवाराना और आपत्तिजनक बयान ही माना जा सकता है. आम जनता की दृष्टि में, संघ और भाजपा दोनों ही लंबे समय से प्रतिष्ठित राष्ट्रवादी संगठन हैं, जिन्हें व्यापक समर्थन प्राप्त है. कोई उनका समर्थक हो या न हो लेकिन उनकी सामान्य जन विश्वसनीयता पर शक की कोई गुंजायश नहीं है. इस पर भी कांग्रेस के नेता इन दोनों राष्ट्रवादी संगठनों के विरुद्ध ‘हिंदू या भगवा आतंकवाद’ को बढ़ावा देने का आरोप थोप कर किसके हित में क्या सिद्ध करने के प्रयास में रहते हैं?

देश की आंतरिक राजनीतिक रस्साकशी कैसा भी रुख ले ले इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता. लेकिन इस तरह का बयान देश की ऐसी पार्टी के नेताओं के द्वारा दिया जाना जो सत्ता में है बाहरी विश्व को यह सन्देश देता प्रतीत हुआ, कि जिस आतंकवाद के खतरे को अब सारी दुनियां जानती और पहचानती है और उससे जूझ रही है, भारत का सत्ताधारी दल उसे पहचानने से झिझक रहा है. विश्व भर में कोई कभी भी इस कांग्रेस जनित अवधारणा को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होगा कि वह हिंदू आतंकवादी हो सकता है जो ‘सर्वे भवन्तु सुखिना’ का मंत्र जपने वाला और विश्व शांति की सतत कामना करने वाला हिंदू है. जो देश और विदेश में सर्वत्र भारत के सांस्कृतिक सत्य सर्व धर्म-पंथ सद्भाव के शांति ध्वज को लिए विचरता है. प्रबुद्ध विश्व के देश अब बखूबी जानते हैं कि संघ और भाजपा भारत के राष्ट्रवादी संगठन हैं और भारत की ऐसी ही हिंदू सांस्कृतिक मान्यताओं के पक्षधर हैं. ऐसे हिदू राष्ट्रवाद और राष्ट्रवादियों को आतंकवाद के साथ जोड़ना बेतुका है और सरासर गलत है.

कांग्रेस सत्ता में बने रहने के लिए तरह तरह से प्रयत्नशील हो रही है. प्रकटत: भारत के बदलते जन मन मत को महसूस करते हुए, उसे आगामी शक्ति परीक्षण में, सत्ता उसके हाथों से खिसकती नज़र आती है. देश की आम जनता हाल में एक के बाद एक हुए ऐसे खुलासों से अनभिज्ञ नहीं है जो कांग्रेस सरकार को उसकी दृष्टि से कटघरे में खड़ा करते हैं. व्यापक भ्रष्टाचार, पाक प्रायोजित आतंकवाद को रोकने में उसकी असमर्थता और बढ़ती महंगाई. चुनावों के अखाड़े में एक मुख्य दल के रूप में उसके मुकाबले में खड़े हैं भाजपा और उसके सहयोगी दल. भाजपा नेता इन मुद्दों को उठाना चाहते है, उठा रहे है. लेकिन मुद्दों पर बहस और उनके समाधान पर ध्यान केंद्रित करने की बजाए यदि परस्पर कीचड़ उछालने वाली राजनीति को प्रोत्साहन मिलने लगेगा तो इससे भारत के सुखद भविष्य की तस्वीर नहीं उभरती.

भारत की जनता अपने आस पास और देश की सीमाओं पर जिहादी आतंकवादियों के द्वारा की जा रहीं जघन्य हत्याओं को होते देखती सुनती है. बखूबी जानती है कि कौन आतंकवादी है और कौन नहीं? उसे भारत में बार बार होते आतंकवादी हमलों के दोषियों और उनकी पीठ पर हाथ रखने वालों दोनों की पहचान की वैसी ही सूझबूझ है जैसी आज शेष विश्व को है? लेकिन देश का दुर्भाग्य है कि कांग्रेस जो देश को आज़ादी दिलवाने का सेहरा बार बार मात्र अपने ही सिर पर बांध कर, गाँधी नेहरु के नाम पर, चुनावों के मैदान में उतरते हुए जनता से समर्थन की अपेक्षा करती है, आज मुद्दों की राजनीति नहीं, अपितु सामाजिक विभाजन विखंडन की राजनीति करने की भूल कर रही है. अल्पसंख्यक मुस्लिम वोट बैंकों को सुरक्षित करने की चेष्ठा में संघ जैसे राष्ट्रवादी सामाजिक संगठन पर कथित ‘हिंदू आतंकवाद’ को बढ़ावा देने का मनघडंत और आधारहीन आरोप लगा कर भ्रम निर्माण करने की उसकी कोशिश विभाजनकारी है. चुनावों में यह कांग्रेस के लिए ही विपरीत परिणामकारी सिद्ध नहीं होगी बल्कि इससे समाजिक समरसता के सबके संकल्प को भी धक्का पहुंचेगा.

श्री शिंदे के इस विवादित बयान के तुरंत बाद संघ और भाजपा के द्वारा इसका त्वरित विरोध अवश्यम्भावी था. भाजपा नेताओं ने इसके लिए कांग्रेस के शिखर नेतृत्व से न सिर्फ माफ़ी मांगने के लिए कहा, बल्कि, गृहमंत्री के त्यागपत्र की मांग भी की. इस पर कांग्रेस में हलचल मची, बेशक इस पर भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रवक्ताओं ने एक के बाद एक श्री शिंदे के बयान के समर्थन में बोलना जारी रखा जिससे यह स्पष्ट होता चला गया कि यह कांग्रेस पार्टी के शिखरस्थ नेताओं की पूर्ण सहमति के साथ फैंका गया चुनावी पैंतरा था. निश्चित ही यह चुनाव अभियानों में चर्चा का केंद्र बिंदु बन सकता है. यदि ऐसा होता है तो इससे कांग्रेस का यह उम्मीद करना व्यर्थ है कि इतने भर से वह मुसलमानों का विश्वास जीत लेगी जो हाल के वर्षों में उससे दूर भागते चले गए हैं. नासमझी वाली बयानबाज़ी की प्रतिक्रिया में हिंदू भी यदि कांग्रेस के विरुद्ध जाने लगे तो विस्मय नहीं होगा.

स्थिति के इस पक्ष की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती कि कांग्रेस के प्रवक्ताओं के द्वारा की जाने वाली इस तरह की बयानबाज़ी जहां कांग्रेस की माजूदा मुद्दा विहीनता पर से पर्दा उठाती है वहाँ देश की अन्तर्बाह्य सुरक्षा के लिए भी खतरा उत्पन्न कर सकती है. श्री शिंदे के इस कथित बयान के तुरंत बाद भारत विरोधी और आतंकवाद समर्थक संगठन जमात-उद-दावा के अध्यक्ष हाफिज सईद की यह टिप्पणी कि ‘भारत को एक ऐसे देश के रूप में क्यों न घोषित किया जाए जो अपनी धरती से आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है’ चौकाने वाला टिप्पणी है.

यह एक ऐसा नाज़ुक वक्त है जब समूचा विश्व आतंकवाद को सिर्फ ‘इस्लामी आतंकवाद’ के नाम से जानता और पहचानता है. जानता है कि इसका केन्द्र स्थल पाकिस्तान है. इस जिहादी आतंकवाद के प्रतिपादक स्वयं इसे इस्लाम के नाम पर आत्मघाती बम हमले करके जतलाने की पहल करते हैं. गत दिनों, उत्तरी अफ्रीका के देश माली में कट्टरपंथी इस्लामी तत्वों के द्वारा सत्ता पलटने के प्रयास को रोकने के लिए फ़्रांस की सहायता ली गई. अल्जीरिया में इसकी प्रतिकियास्वरूप एक गैस कारखाने में कार्यरत ब्रिटिश और अन्य यूरोपीय नागरिकों का अलकायदा से जुड़े आतंकवादियों ने अपहरण किया. कुछ ब्रिटिश नागरिकों की हत्या कर दी गई. ब्रिटेन की सरकार तुरंत हलचल में आई. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरोन ने उत्तर अफ्रीका में अल कायदा के विरुद्ध युद्ध का नया मोर्चा कायम करने की घोषणा कर दी. उनके शब्द हैं ”हमें अल कायदा से जुड़े एक कट्टरपंथी, इस्लामी आतंकवादी संगठन का सामना करना है. ठीक उसी तरह जिस तरह से हमें पाकिस्तान और अफगानिस्तान में करना पड़ा है”. सच्चाई समझने और कहने में झिझक नहीं. निर्णय लेने में कोई उहापोह नहीं, करणीय को करने में देरी नहीं. लेकिन भारत में गम्भीर से गम्भीर आतंकवादी हमले के बाद उहापोह दिखाई देती है. संसद भवन पर हमले के दोषियों को फांसी की सजा सुना दिए जाने पर भी फांसी नहीं दी जाती.

माना कि देश में इसलिए बहसें उभरतीं हैं क्योंकि लोकतंत्र है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कोई भी पार्टी और उसके नेता सामान्य समाज और भारत राष्ट्र पर अपने अदूरदर्शी वक्तव्यों के दूरगामी परिणामों की चिंता किए बिना निजी या पार्टी के हित साधन के लिए इस स्वतंत्रता का दुरूपयोग करें. ऐसी किसी भी बयानबाजी करने से बचने की आवश्यकता है जो वोट बैंक खड़े करने के लिए भले ही उन्हें लुभाती होगी, लेकिन ऐसी बयानबाजी देश के दुश्मनों को बहुत सुहाती है. ऐसे आतंकवाद को प्रोत्साहन देती है जिसके विरुद्ध आज समस्त विश्व खड़ा हो रहा है. आतंकवाद जिसने मज़हब के नाम पर अनेक देशों में दहशत फैलाई है. भारत लगातार इसी जिहादी आतंकवाद का निशाना बनता आ रहा है. निस्संदेह, ऐसी स्थितियों में जहां यह जरूरी है कि देश में सामाजिक एकता और धार्मिक-सांस्कृतिक समरसता का वातावरण पुष्ट रहे वहीँ यह भी जरूरी है कि वोटों के लालच में समाज में एक समुदाय को दूसरे के विरुद्ध खड़ा करने की विभाजीय राजनीति से जिम्मेदार राजनीतिक दल देश को दूर रखें.

भारत के नेतृत्व को समय की आवश्यकता पर ध्यान देने और विपक्ष के साथ परस्पर सहयोग से आतंकवाद जैसे महारोग से निपटने की तत्परता दिखाने की आवश्यकता है. चुनावी रणनीति अपनी जगह है और उनमें आतंकवाद से निपटने का मुद्दा अवश्य उभरना चाहिए. इस बीच यदि कांग्रेस देश में सम्भ्रम उत्पन्न करने वाले अपने हालिया बयान को वापस लेते हुए अपनी भूल स्वीकार कर लेती है तो अच्छा होगा. अन्यथा इस मुद्दे पर सामाजिक विभाजन को जन्म देने का दोष इतिहासकार कांग्रेस को ही देंगे जो अल्पसंख्यकों का समर्थन पाने की चेष्ठा में सुध बुध खोती दिखाई दी है. फ़िलहाल सत्ता में रहते कांग्रेस को और भविष्य में फिर उसे या उसके विकल्प भाजपानीत गठबंधन को इस पर ध्यान देने की आवश्यकता महसूस होगी कि उस आतंकवादी शैतान को कबी करे जो सीमा पार से आकर, भारतीय सैनिकों की हत्या करके और उनके सिर काट कर भारत का अपमान करने का दु:साहस दिखाते हैं. यह तभी होगा जब देश का हर नेतृत्व समाज में एकजुटता बनाए रखने की तत्परता और विवेक बनाए रखे.

7 COMMENTS

  1. इकबाल भाई,

    बीजेपी और आरएसएस किस तरह से विभाजन की राजनीती कर रहे है?….बीजेपी, आरएसएस स्वयं को “हिंदुस्तान” से विभाजित कर कौन सा नया देश बनाने वाले या उसकी मांग करने वाले हैं.??.. … .. क्या हम हिन्दू हैं कहना या हिंदुत्व की बात करना विभाजन या साम्प्रदायिकता है??..

    उस तरह तो पांच वक्त की नमाज अता करते वक्त यह बताना की “हम मुसलमान हैं” और यह करना है, यह नहीं या हर वक्त इस्लाम के कट्टरपन का पाठ पढाना तो उस से भी बड़ा कट्टरपन है… वर्ना क्या ज़रुरत है मदरसों की क्यों नहीं सबके लिए एक सी सामान शिक्षा प्रणाली की बात नहीं करते.. .जहाँ कोई भी धर्म-जाति या आर्थिक स्तर का विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर सके….. चलो माना, अगर बीजीपी सांप्रदायिक है, क्या कोई भी अन्य राजनीतिक दल सबको सामान अधिकार दिलाने की बात करता है सभी तो धर्म (सपा, कांग्रेस ), जाति (बसपा, रालोद), क्षेत्र (तृणमूल कांग्रेस, सीपीएम्, डीएमके आदि) सिर्फ अपना हित साधने के लिए आम-मुर्ख जनता का लाभ उठाते हैं… तो कोई क्यों इन के विरूद्ध जातिवादी, क्षेत्रवादी आतंकवाद फ़ैलाने की बात नहीं करता..? क्योंकि फैशन ही ऐसा है.. एक पार्टी (जो हिंदुत्व (अपनी) की बात करती है, न की इस्लाम की मुखालफत ) का विरोध करने का …..आज तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टी को समर्थन वालों की मानसिकता है… चाहे दूसरी पार्टियाँ आम आदमी को चौराहे पर कच्छे-बनियान वाले भिखारी वाली हालत में ला दें पर हम तो इनका ही समर्थन करेंगे ………. आपने बीजेपी को कितने विस्फोट करते देखा या सुना है.. और क्यों हर आतंकवादी घटना में कट्टर इस्लामी संगठनों का हाथ होता है… इकबाल भी यह तो वही बात हो गयी “खिसयानी बिल्ली खम्बा नोंचे” और हम तो नंगे हैं ही तुम्हे भी नंगेपन पर ला कर छोड़ेंगे..

    रही बात आरएसएस की तो जितना राष्ट्रधर्म और विपत्ति (रेल दुर्घटनाओं, भूकंप, बाढ़, सूखा या युद्ध ) के समय समाज सेवा आरएसएस वाले बिना किसी भेदभाव के करते हैं उसे किसी इस्लामिक संगठन द्वारा देखने के लिए हम न जाने सालों से तरस रहे हैं… जब तक बात कोर्ट द्वारा साबित न हो जाये… तब तक उस पर प्रमाणिकता की मुहर लगाना कतई उचित नहीं हैं… वरना तो कोई भी किसी के खिलाफ झूँठा आरोप लगा, केस दर्ज कर, दावा कर कह सकता है… फलां फलां तो चोर या कातिल है.. जैसा की होता भी है.. (पर कितने सच होते हैं आपको भी पता है)..

    इकबाल भाई… कहने को तो बहुत है… पर इतना ही कहूँगा….. प्लीज सच्चे हिंदुस्तानी बनिए और दुसरे धर्म पर कोई भी आरोप न लगा अपने का शुद्धिकरण का प्रयास करिए….वर्ना तो सभी नाले में गिर कर एक दुसरे सेस कहंगे “तुम भी तो नाले में गिरे हो”…

    आर त्यागी
    बिजनौर (उ०प्र०)

    .

    • इकबाल भाई,

      बीजेपी और आरएसएस किस तरह से विभाजन की राजनीती कर रहे है?… क्या हम हिन्दू हैं कहना या हिंदुत्व की बात करना विभाजन या साम्प्रदायिकता है.. उस तरह तो पांच वक्त की नमाज अता करते वक्त यह बताना की “हम मुसलमान हैं” और यह करना है, यह नहीं या हर वक्त इस्लाम के कट्टरपन का पाठ पढाना तो उस से भी बड़ा कट्टरपन है… वर्ना क्या ज़रुरत है मदरसों की क्यों नहीं सबके लिए एक सी सामान शिक्षा प्रणाली की बात नहीं करते .जहाँ कोई भी धर्म-जाति या आर्थिक स्तर का विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर सके.. आपने बीजेपी को कितने विस्फोट करते देखा या सुना है.. और क्यों हर आतंकवादी घटना में कट्टर इस्लामी संगठनों का हाथ होता है… इकबाल भी यह तो वही बात हो गयी “खिसयानी बिल्ली खम्बा नोंचे” और हम तो नंगे हैं ही तुम्हे भी नंगेपन पर ला कर छोड़ेंगे..

      रही बात आरएसएस की तो जितना राष्ट्रधर्म और विपत्ति (रेल दुर्घटनाओं, भूकंप, बाढ़, सूखा या युद्ध ) के समय समाज सेवा आरएसएस वाले बिना किसी भेदभाव के करते हैं उसे किसी इस्लामिक संगठन द्वारा देखने के लिए हम न जाने सालों से तरस रहे हैं… जब तक बात कोर्ट द्वारा साबित न हो जाये… तब तक उस पर प्रमाणिकता की मुहर लगाना कतई उचित नहीं हैं… वरना तो कोई भी किसी के खिलाफ झूँठा आरोप लगा, केस दर्ज कर, दावा कर कह सकता है… फलां फलां तो चोर या कातिल है.. जैसा की होता भी है.. (पर कितने सच होते हैं आपको भी पता है)..

      इकबाल भाई… कहने को तो बहुत है… पर इतना ही कहूँगा….. प्लीज सच्चे हिंदुस्तानी बनिए और दुसरे धर्म पर कोई भी आरोप न लगा अपने का शुद्धिकरण का प्रयास करिए….वर्ना तो सभी नाले में गिर कर एक दुसरे सेस कहंगे “तुम भी तो नाले में गिरे हो”…

      आर त्यागी
      बिजनौर (उ०प्र०)

      .

  2. इंसान जी
    निस्संदेह, आपके शब्दों में पीड़ा है और उसकी गहनता का अनुभव मैं भली भांति कर सकता हूँ. इस पर भी जो अब तक नहीं हो सका उस कारण से मन की पीड़ा और अपने विचारों को बिना अभिव्यक्ति दिए किसी समाधान की अपेक्षा करना भी तो व्यर्थ ही होगा.
    भला बुरा जैसा भी लोकतंत्र देश में इस समय है उसी के माध्यम से और उसी का उपयोग करते हुए स्थितियों में सुधार की सम्भावना बन सकती है. व्यवस्था में परिवर्तन की मांग उठाई जाती है लेकिन परिवर्तन कैसा हो इस पर स्पष्टता चाहिए और उसके लिए प्रबुद्ध जन सहमति की आवश्यकता है. देश में निराशा का वातावरण है लेकिन उस निराशा को आशा में बदलने के लिए निस्वार्थ प्रतिबद्धता की आवशयकता है. किस पार्टी में ऐसी प्रतिबद्दता है या किस उदीयमान पार्टी में यह दिखाई देगी इसका निर्णय तो मतदाता ही करेगा. तदर्थ सभी पक्षों का ध्यान केन्द्रित हो रहा है. देश में इमानदारी, नैतिकता के साथ और देशहित में ही काम करने वालों का अभाव जब तक बना रहेगा तब तक नित्यप्रति उभरती समस्याओं के समाधान संभव नहीं.
    जो पीड़ित हैं उन्हें ही अपनी पीड़ा से मुक्ति के लिए प्रयत्न करना होगा. और उसके लिए उत्तम अवसर प्रस्तुत करते हैं चुनाव.

    नरेश भारतीय

    कता है

    • प्रवक्ता के इन्हीं पन्नों पर जून ८, २०११ को प्रकाशित आपके लेख, “उलझाया जा रहा है भ्रष्टाचार का मुद्दा!” और यहाँ मेरी टिप्पणी पर आपकी प्रतिक्रिया में प्रस्तुत आपकी सोच के बीच संतुलन ढूंढने का प्रयत्न कर रहा हूँ| ऐसा प्रतीत होता है कि लंदन में बैठ आप भारत में रोटियों से वंचित लोगों को केक के स्वप्न देखने को कह रहे हैं| कीर्तीश भट्ट ने अपने बामुलाहिजा ब्लॉग पर भारतीय गणतंत्र को अपने हास्यचित्र, https://bamulahija.blogspot.com/search?updated-min=2013-01-01T00:00:00%2B05:30&updated-max=2014-01-01T00:00:00%2B05:30&max-results=32, में बड़े हलके फुल्के ढंग से चित्रित किया है| चिरकाल से विशिष्ठ के ब्रह्मदंड के आचरण को निभाते यहाँ गण में कोई पीड़ित नहीं है| उन्हें तो केवल आत्मा की मुक्ति चाहिए|

  3. ऐसा और अन्य ऐसे लेख तथाकथित भारतीय स्वतंत्रता के तुरंत पश्चात पाठकों के समक्ष आने चाहियें थे| बहुत देर हो चुकी है| पिछले पैंसठ वर्षों में केवल राजनीतिक वातावरण ही नहीं बल्कि समस्त भारतीय समाज दूषित हो चुका है| लेख कांग्रेस रूपी दैत्य को जीवत रखने के साधन जुटाते उसे विभाजीय राजनीति से परहेज करने का सुझाव देते दिखाई देता है| आज भारत में किसी शहर, कस्बे, अथवा गाँव में चौराहे पर खड़े हो देश और देशवासियों की दयनीय दशा भांपी जा सकती है जो अवश्य ही चिरकाल से उपद्रवी-भीड़ शासन की देन है| बयानबाजी के इस आदान प्रदान की स्थिति में विपक्ष में बैठे भाजपा निरर्थक सिद्ध हो चुका है| देश में वास्तविक लोकतंत्र स्थापित करने हेतु भारतीयों को अरविंद केजरीवाल व अन्य राष्ट्रवादी व्यक्तियों के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी को समर्थन देना होगा| राजनीति के अतिरिक्त समाज में ऐसे ऐसे मार्ग-निर्माता आने चाहियें जो जनसमुदाय के प्रत्येक वर्ग में औचित्य को बढावा देते हुए शासन के साथ मिल-जुल सामान्य जीवन में आधुनिक सुविधाएँ और उपलब्धियों की व्यवस्था कर समाज में सुधार व उन्नति का प्रयोजन कर सकें| लोंगों को जान लेना चाहिए था कि देश के १९४७ के विभाजन के पश्चात भारत में विभाजीय राजनीति का कोई स्थान नहीं है| और इस संदर्भ में लिखना और सोचना अविश्वसनीय समझा जाना चाहिए|

    • “साढ़े पांच वर्ष पहले “इंडिया अगेंस्ट करप्शन” के वाहन पर बैठे कपटी अरविन्द केजरीवाल के प्रभाव में आ मैं यहाँ अपनी टिप्पणी के लिए बहुत लज्जित हूँ|” भारत के इतिहास में ईस्ट इंडिया कंपनी, अंग्रेजी साम्राज्य और तत्पश्चात उनके कार्यवाहक प्रतिनिधि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के समर्थन में अब तक लगे भारतीय मूल के देशद्रोहियों से दुष्टतर अरविन्द केजरीवाल आज स्वतन्त्र भारत के माथे पर कलंक है|

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here