नोबेल मलाला

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कैलाश सत्यार्थी और मलाला युसूफ जई को संयुक्त रूप से इस वर्ष का शान्ति नोबेल पुरुस्कार के लिए चुना गया है। कैलाश जी को यह सम्मान बचपन बचाने के लिए तो मलाला को मुस्लिम समाज में बालिकाओं को शिक्षा के लिए प्रेरित करने पर दिया जा रहा है। इन दोनों को नोबेल मिलने में जहां कैलाश के नाम को भारत, नरेन्द्र मोदी और उनके अपने काम को श्रेय दिया जाना चाहिए वही मलाला के लिए तालिबान, और बीबीसी के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का बड़ा हाथ रहा है। मैंने बचपन बचाओ आन्दोलन और अभियान के साथ कुछ समय तक काम किया है और आज भी हमारे कई परिचित इस संस्थान से जुड़े हैं। मुझे उनका कार्य बड़ा अच्छा लगता है परन्तु बच्चे और उनका बचपन तो बचा लिया जाता है मगर उन माँ-बाप और परिजनों का क्या जो उन बचपन के चंद पैसे पर पलता है। किसी न किसी विवशता और परिस्थिति के हाथों माँ बाप अपने जिगर के टुकड़ों को स्कूल न भेज कर उससे मजदूरी करवाते हैं। अगर उन बाल मजदूरों के परिजनों के जीवन यापन की व्यवस्था की जाए तो यह अभियान और अधिक कारगर होगा। मलाला युसूफ जई लंदन में शिक्षा प्राप्त कर रही है। काश सभी पिछड़ी बालिकाओं का भाग्य मलाला जैसा हो। जिस पर अनेको पुस्तक की रचना हुई हो। बीबीसी जैसा प्लेटफार्म जिसके प्रतिभा के निखार को मिलता हो। पिछली बार भी उनके नामों की बड़ी चर्चाऐं थी और वह नोबेल के करीब करीब आ गई थी। पिछले वर्ष ही उनके 16वें जन्म दिन का जश्न संयुक्त राष्ट्र में मनाया गया था। और उस अवसर पर मलाला ने संयुक्त राष्ट्र को संबोधित किया था। जिसमें ब्रिटेन के प्रधनमंत्राी ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की थी।

पाकिस्तान के मशहूर पत्रकार, ऐंकर हामिद मीर मलाला के बड़े प्रशंसकों में से है और पिछले दिनों जब उन पर जानलेवा हमला हुआ था तो उनका आॅपरेशन लंदन में मलाला और उनके परिवार ने करवाया था। 19 अक्टूबर 2012 को जब तालिबान ने मलाला को निशाना बनाया था, तब से लेकर मलाला के नोबेल के लिए नामांकित किये जाने तक मीर ने मलाला, उनके द्वारा चलाऐ जाने वाले आन्दोलन और मलाला, तालिबान एवं मलाला और अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया पर उनके कईयों लेख छप चुके हैं। मलाला मुझे कई मायनो में प्रभावित करती है। प्रथम वह मेरे बेटी जैसी है। फिर नोबेल पुरस्कार विजेता, मेरे समाज और युसूफ जई, कबीला की जिससे मेरा भी सम्बन्ध् है। 9 अक्टूबर 2012 से मैंने मलाला पर अनेकों लेख लिखे हैं। मगर नोबेल के लिए नामांकित किये जाने के पश्चात् उस मासुम पर लिखने का अपना मजा है। मलाला अब न तो मेवन्द की बेटी है! न पाकिस्तान की! वह विश्व की सम्पत्ति है। मानवत की आदर्श है।

अफगानिस्तान के शहर कनधार के समीप, मेवन्द नाम का स्थान है। 1880 ई. में ब्रिटिश सेना ने मेवन्द पर आक्रमण किया था। समकालीन अफगान शासकों की ओर से ब्रिटिश सेना को रोकने के लिए प्रयास हुआ था। 2 जुलाई 1880 में मेवन्द की जमीन पर युद्ध शुरू हुआ। स्थानीये लोग इस युद्ध में शामिल हुये, उसी दिन 19 वर्षीये मलाला की शादी थी, इस युद्ध में मलाला और उसका होने वाला पति भी शामिल हुआ, महिला अपने जनजातिये परम्परा के अनुरूप घायल व्यक्ति की सेवा और उपचार में सहयोग करती थी। इस युद्ध में मलाला ने कई ऐतिहासिक काम किये। प्रथम उन्होंने मातृभक्ति, देशभक्ति और कबीलाई गीत गा गा कर सैनिक का हौसला बढ़ा और जब मुख्य झण्डा लेकर चलने वाला सैनिक मारा गया तो मलाला ने अंतिम साँस तक अपने झण्डे को लेकर युद्धभूमि में डटी रही। अफगान सेना ने मलाला की अगुवाई में अंग्रेज समर्थकों पर फिर से एक जोरदार आक्रमण किये थे। और अंग्रेजी सेना ने मलाला को शहीद कर के मेवन्द की मलाला अफगान के इतिहास में अमर हो गई। तब से आज तक अफगानिस्तान और उससे लगे पाकिस्तान के खातुन अपनी बेटी का नाम गर्व से मलाला रखते हैं। अफगानिस्तान में ‘मलाली’ अथवा ‘मलाले’ के उच्चारण के साथ यह नाम लिया जाता है। पाकिस्तान स्थित इसे मलाला उच्चारण के साथ लिया जाने वाला बालिका ;बेटी का नाम है। मलाला युसूफ जई ;गुलमक्की असली नाम का जन्म 1998 में स्वात प्रान्त में हुआ था। उसके पिता का नाम जियाउद्दीन है। मलाला स्वात में तालिबान के बर्बरता, तालिबान के द्वारा महिलाओं के शिक्षा पर प्रतिबन्ध्, बालिकाओं के स्कूल को आत्मघाती हमलों से उड़ाना आदि के विरोध् करने वाली संस्थाओं, स्वयंसेवकों, पत्राकारों के संपर्क में करीब 2009 में आ गई थी। तालिबान के खिलाफ विरोध् प्रदर्शन में वह सक्रिय रही। मलाला उस समय अपने स्कूल के बन्द होने के विरोध् में आन्दोलन चला रही थी। साथ ही साथ उन्होंने बीबीसी की बेबसाइट पर गुलमक्की के नाम से डायरी लिख रही थी। जिसके लिए एक संवाददाता ने स्वात से मलाला की सहायता की थी। हामीद मीर जैसे पत्रकारों ने मलाला को अपने टाँक शो में बहुत बार ब्रेक दिया।

18 फरवरी 2009 में तालिबान और पाकिस्तान सरकार के मध्य समझौता सम्पन्न हुआ और इसी क्रम में मलाला का चेहरा विश्व पटल पर पहली बार आया था जिसमें मलाला ने शान्ति समझौते का समर्थन किया था कि शायद उसका स्कूल फिर से खुल जाऐं और उसके साथ-साथ अन्य बेटियां भी स्कूल जा सके। मलाला का पिता जियाउद्दीन युसूफ जई एक स्कूल चलाता था। शान्ति समझौते के बाद भी स्वात में बालिकाओं का स्कूल नहीं खुल सका। तब तक मलाला को स्कूल बन्द करने वालों का, और तालिबानों के सम्बन्ध् में अधिक जानकारी भी नहीं थी। स्वात में शांति समझौते टूटते ही सैनिक अभियान तेज हो गऐ तो मलाला अपने परिवार के साथ शानगला चली गई और सैनिक अभियान की समाप्ति पर वह अपने गांव मैनगोरा ;स्वात वापस आ गई। अब मलाला का स्कूल खुल चुका था। मगर कफ्रर्यू और सैनिक तलाशी से उनका जीवन सामान्य नहीं हो रहा था।

मलाला अब 17वर्ष की है। जब वह 14 वर्ष की थी ;2012 में जब उस पर तालिबान ने हमला किया था, छोटी सी बालिका सिर्फ 14 वर्ष की आयु में उन्हें कई राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके थे। और उन्हें लगातार तालिबानों की ओर से धमकियां मिल रही थी और पढ़ने के उसके जूनून और शिक्षा प्राप्त करने का मलाला का शौक तालिबान के सामने गुनाह बन गया। 18 अक्टूबर 2012 को स्कूल से घर लौटते समय मलाला के सिर पर गोली मारी गई थी। मलाला और उसका परिवार, उसकी माँ आज भी सिर्फ पशतो बोलती है। शिक्षा ले रही है और नोबेल की घोषणा के पश्चात मलाला ने अपने आने वाले परीक्षा की चिंता जताई और अपने दिल की बात पर उन्होंने कहा कि जब उन्हें साझा तौर पर नोबेल पुरस्कार दिया जाये उस अवसर पर दोनों देशों के प्रधानमंत्राी उपस्थित रहे तो उन्हें बड़ा अच्छा लगेगा।

फखरे आलम

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