वैश्यावृत्तिःअपराध को अपराध नहीं मानने की पहल

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प्रमोद भार्गव

वैश्यावृत्ति को कानूनी वैघता देना इस अपराध की जटिलता से छुटकारे का सबसे सरल उपाय है। इसे जब समाज कानून और प्रशासन रोकने में असफल साबित हो रहे हैं तो राष्ट्रिय महिला आयोग की अध्यक्ष ललिता कुमार मंगलम ने इसे वैघ बनाने का आसान उपाय तलाश लिया। इस मकसद का प्रस्ताव 8 नबंवर को वे सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में लाएंगी। यह प्रस्ताव मान लिया जाता है तो इस धंधे के हरेक गली मौहल्ले में बोर्ड नजर आएंगे और वैश्यावृत्ति को कला का रूप देकर इसे समाचार माध्यमों में विज्ञापन देकर प्रोत्साहित भी किया जाने लगेगा। मसलन वैश्यावृत्ति के विरोध में सबसे बड़ी बाधा के रूप में जो मीडिया पेश आता है,वह इसके समर्थन में गुणगान करने लग जाएगा ? अपराध को अपराध नहीं मानने की यह कानूनी वैधता,कल को यह सवाल भी खड़ा करेगी कि भ्रश्टाचार और चोरी को भी चूंकि सरकार रोकने में नाकाम सिद्ध हो रही है,इसलिए इसे भी कानूनी रूप से वैघ मान लिया जाए।

मानव समाज में देह व्यापार या वैश्यावृत्ति एक ऐसा पेशा है,जो शायद सबसे पुराना है और हर युग में यह प्रचलन में रहा है। हमारे यहां तो काम-कला पर वात्स्यायन ने सवा दो हजार साल पहले ‘काम-सूत्र‘ ग्रंथ भी लिखा है। बावजूद किसी भी युग में इस पेशे को कानूनी वैघता नहीं दी गई है। गोया इसे अवैध बने रहने अथवा वैध बना देने की बहस जरूर चलती रही है। अब एक बार फिर राष्ट्रिय महिला आयोग इस धंधे के पक्ष में मुखर हुआ है,जबकि इसकी प्रमुख जिम्मेबारी हर स्तर पर पीडि़त महिलाओं को उत्पीड़न से मुक्त कराने की है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आयोग इस मसले को कोई गंभीर सामाजिक विश्लेशण करने की बजाय यौन-क्रिया को व्यापार का दर्जा देने का सस्ता उपाय तलाश रहा हैै। यह कोई गंभीर और वाजिब तर्क नहीं है कि युगों से चले आ रहे इस धंधे को आज तक रोका नहीं जा सका है,तो उसे जारी रखने की कानूनी मंजूरी दे दी जाए। इस तर्क को यदि संसद या फिर शीर्ष न्यायालय स्वीकार लेती है तो एक-एक करके सभी समाजिक अपराधों को कानूनी वैघता दी जाने की पैरवी की जाने लगेगी।

दरअसल 2010 में सुपी्रम कोर्ट में एक जनहित याचिका यौनकर्मियों के पुनर्वास के सिलसिले में दायर की गई थी। नतीजतन 2011 में अदालत ने अनैतिक व्यापार निरोधक अधिनियम 1956 की समीक्षा के लिए एक समिति गठित कर दी थी। अदालत ने इस समिति से यह भी अपेक्षा कि है कि वह यह रिपोर्ट भी दे कि देह व्यापार को वैघ माना जाए अथवा नहीं ? क्योंकि मौजूदा अधिनियम के मुताबिक सिर्फ इस धंधे का व्यवसायीकरण अपराध है। महिला निजी तौर पर अपने षरीर का इस्तेमाल व्यावसायिक उद्देश्य के लिए कर सकती है,लेकिन वह सार्वजानिक तौर पर न तो ग्राहकों को लुभाने का कोई उपाय कर सकती है और न ही संगठित रूप से वैश्यावृत्ति या वैश्यालय चला सकती है। इन नियमों में पुरुष यौनकार्मियों के लिए धंधा करने का अधिकार हासिल नहीं है।

अब आयोग की मंशा है कि देह व्यापार को पूरी तरह कारोबारी दर्जा हासिल हो जाए ? इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि ऐसा होने से महिला व बालिकाओं की तस्करी पर अंकुश लगेगा। ग्राहकों को सुरक्षित तरीकों से संबंध बनाने की वैधानिक सुविधा हासिल हो जाएगी। इस वजह से महिला यौनकर्मियों को एड्रस तथा अन्य संकमण रोगों से भी निजात मिलेगी। ललिता कुमारमंगलम द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव में वैश्याओं के काम के घंटे और उनका परिश्रमिक भी निश्चित करने का प्रस्ताव है। उनके स्वास्थ्य लाभ की भी चिंता प्रारूप में जताई गई है।

इस धंधे का सबसे शर्मनाक पहलू यह है कि पूरी तरह महिलाओं के शारीरिक उत्पीड़न और अमानवीय शोषण से जुड़ा है। इस गैरकानूनी धंधे के अर्थ का स्रोत स्त्री है,बावजूद स्त्री आजीवन आर्थिक बद्हाली की गिरफ्त में रहती है। इस व्यवसाय में लाचार महिलाओं के अलावा वैश्यालय का अड्ढा चलाने वालों का पूरा एक गिरोह सक्रिय रहता है,जो मजबूत नेटवर्किंग के जरिए इस धंधे को अंजाम तक पहुंचाता है। स्त्री से कहीं ज्यादा अड्डे के अदृष्य मालिक-मालकिन और बिचैलिये या दलालों की कमाई होती है। अब तो गरीब व अषिक्षित तबकों से तस्करी करके लाई गई लड़कियों को बड़ी तदात में इस पेशे से जबरन जोड़ा जा रहा है। इनमें से ज्यादातर लड़कियां आदिवासी समुदाय से हैं। इस पेशे में अनेक जातियां व समुदाय वंशानुगत रूप से भी जुड़े है। इनमें बेडि़या एवं बांछड़ा जातियां प्रमुख हैं।

महिला एवं बाल विकास द्वारा 2003 में कराए एक सर्वेक्षण के मुताबिक देश में यौनकर्मियों की संख्या 28,27534 है। इनमें से करीब 13 लाख महिलाएं 14 साल के कम उम्र की नबालिग है। हालांकि इस संख्या को वास्तविक नहीं कहा जा सकता है। गोया कि गैरकानूनी कारोबार होने के बाबजूद जब इस पेशे से करीब 30 लाख महिलाएं जुड़ी हैं,तब ऐसे में यदि इस धंधे को वैधानिकता दे दी जाती है तो इन पेशेवर महिलाओं की संख्या एकाएक बढ़कर 50 लाख से भी ज्यादा पहुंच जाएगी। क्योंकि तब वैश्यालय चलाने वाले गिरोहों को कानूनी मान्यता मिल जाएगी। नतीजतन वे बेखौफ होकर लाचार महिलाओं को देह व्यापार से जबरन जोड़ने लग जाएंगे। धन के लालच में पुलिस भी इनका सहयोग करेगी। जाहिर है, कानून की आड़ में महिला तस्करी को बढ़ावा मिलेगा।

यहां तक कि वैश्यावृत्ति को अपराध-मुक्त करने का फैसला बालिका तस्करी को भी प्रोत्साहित करने वाला साबित हो सकता है। बाल अधिकारों पर राष्ट्रिय बाल आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल 60 हजार से अधिक बालिकाओं को अपने आवासीय मोहल्लों से अगवा किया जाता है। बाद में इन्हें महानगरों में वैश्यावृत्ति के पेशे में धकेल दिया जाता है। अपहरण के इस धंधे के संगठित गिरोह बने हुए हंै। यह कारोबार 50 करोड़ रूपए से भी ज्यादा का है। पड़ोसी देश नेपाल और बांग्लादेश से भी बड़ी संख्या में वैश्यावृत्ति के लिए बच्चियों की तस्करी की जाती है। भारत में फिलहाल हरेक आठ मिनट में एक बालिका का अपहरण हो रहा है। यदि देह व्यापार को कानूनी मान्यता दे दी गई तो हर एक मिनट में बच्चियों का वैश्यावृत्ति के लिए अपहरण होना शुरू हो जाएगा ?

महिलाओं के बाबत भारतीय समाज में यह मान्यता प्रचलन में है कि पुरुष प्रधान समाज होेने के कारण स्त्री को इंसानी दर्जा नहीं मिल पा रहा है। उन्हें भोग की वस्तु माना जाता है। किंतु यह विडंबना ही है कि महिला आयोग की अध्यक्ष ललिता कुमारमंगलम स्त्री होने के बावजूद वैश्यावृत्ति को कानूनी दर्जा देने की पहल करके,स्त्री को पुरुष की हवसपूर्ति की सहूलियत देने का उपाय कर रही हैं। ललिता जी से पूछा जा सकता है कि हममें से कितने ऐसे लोग होंगे,जो अपने बच्चों को ऐसे माहौल में पलते देखना चाहेंगे,जहां एक महिला के षरीर को वैघ तौर पर यौन संबंधों के लिए सही वस्तु मानकर देह व्यापार कराया जा रहा है ? यदि महिला आयोग जरा भी संवेदनषील है तो उसे जरूरत है कि जबरन जिन महिलाओं या बलिकाओं को गुमराह करके अथवा तस्करी के जरिए इस धंधे में घकेला जा रहा है,उन्हंे कड़े कानूनी उपायों के चलते रोका जाए। क्योंकि यौनकर्मियों को यदि यौनकर्म का कानूनी अधिकार मिल भी जाता है तब भी समाज उन्हें सामाजिक गुनहगार की निगाह से ही देखेगा ? गोया,पीडि़ताएं मुजरिम के अभिशाप से मुक्त होने वाली नहीं हैं और न ही समाज में सम्मानजनक दर्जा देने वाला है। वैश्यावृत्ति को कानूनी दर्जा देने के कारणों में इसे एड्स के खिलाफ लड़ाई में मदद मिलने का तर्क दिया जा रहा है। किंतु इस कानून के वजूद में आने के बाद एड्स पर नियंत्रण तो नामुमकिन है,किंतु गर्भ निरोधक निर्माता कंपनियों के मुनाफे में जरूर इजाफा होने लग जाएगा। इसलिए इस आशंका का उठना भी सहज है कि कहीं बहुराष्ट्रिय कंपनियों के दबाव में तो महिला आयोग वैश्यावृत्ति को कानूनी दर्जा देने की पहल कर रहा है ?

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  1. वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता मिलनी चाहिए। और क़ानून इस प्रकार का होना चाहिए की उसमे यौनकर्मी को किसी दलाल या मालिक आदि पर निर्भर न होना पड़े या यूँ कहे की कोई विचौलिया नहीं होना चाहिए। यौनकर्मी पूर्ण स्वतंत्र हों और उनके स्वास्थ्य की चिंता राज्य को करनी चाहिए उनका नियमित डॉक्टरी चेकअप आदि होते रहना चाहिए। आज के दौर में भारत में युवाओं को जबतक अच्छी नौकरी नहीं मिल जाती तबतक शादी करते नहीं ऐसे में अक्सर 30 की उम्र के हो जाते है और तबतक उनमे से बहुसंख्यक ऐसे होते हैं जो जीवन में कभी सेक्स का आनंद नहीं पाए होते हैं जोकि उनके लिए अच्छा नहीं है।
    वेश्यावृत्ति सदियों से चली आ रही है और चलती रहेगी। अतः हमें इसकी अच्छाईयों को स्वीकारना होगा और इसे वैध बनाना होगा। कुमार मंगलम जी के इस कदम के लिए धन्यवाद और शुभकामनाएं की वओ सफल हों।

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