ज्यादा दीवानगी भी अच्छी नहीं।
फासला जरूरी चाहिए बीच में
इतनी दिल्लगी भी अच्छी नहीं।
मेहमान नवाजी अच्छी लगती है
सदा बेत्क्लुफ्फी भी अच्छी नहीं।
कहते हैं प्यार अँधा होता है मगर
आँखों की बेलिहाज़ी भी अच्छी नहीं।
हर बात का एक दस्तूर होता है
प्यार में खुदगर्जी भी अच्छी नहीं।
वायदे तो खुबसूरत होते हैं बहुत
वायदा-खिलाफी भी अच्छी नहीं।
किताब आदमी को आदमी बनाती है
बेकद्री इनकी दिल को जख्मी बनाती है।
किताब कोई कभी भी भारी नहीं होती
किताब आदमी को पढना सिखाती है।
अदब आदमी जब सब भूल जाता है
किताब ही तब तहजीब सिखाती है।
उसके हर सफ़े पर लिखी हुई इबारत
सारी जिंदगी का एहसास दिलाती है।
किताबों के संग बुरा सलूक मत करना
यह मिलने जुलने के ढंग सिखाती है।
कभी रुलाती है कभी बहुत हंसाती है
नहीं किसी को ये कभी भरमाती है।
घाव ठीक हो गया दर्द अभी बाकी है
पेड़ पर पत्ता कोई ज़र्द अभी बाकी है।
सजल नर्म चांदनी तो खो गयी रात में
धूप निकल गयी हवा सर्द अभी बाकी है।
आइना तू मुस्कराना न भूलना कभी
चेहरे पर जमी हुई गर्द अभी बाकी है।
इंसान मर चूका इंसान के अन्दर का
अन्दर का शैतान मर्द अभी बाकी है।
जाने किस हाल में हैं आगे चले गये वो
यहाँ तो सफ़र की गर्द अभी बाकी है।
मेरे हाथों की लिखी हुई तहरीर में
वहशते-दिल का दर्द अभी बाकी है।
बेरुखी ऐसी की छिपाए न बने
बेबसी ऐसी की बताए न बने।
वो रु-ब-रु भी इस तरह से हुए
उनको देखे न बने लजाए न बने।
उनके हाथों की हरारत नर्म सी
हाथ छोड़े न बने सहलाए न बने।
चेहरा निखरता गया हर एक पल
महक छिप न सके उडाए न बने।
वक्त अच्छा था गुज़र गया जल्दी
याद आए न बने भुलाए न बने।
बहुत जानलेवा बना है सन्नाटा
घर रहते न बने कहीं जाते न बने।
शाम होते ही शरारतों की याद आती है
चमकती तेरी आँखों की याद आती है।
वक़्त वह जब एक दूसरे को देखा था
महकते फूल से लम्हों की याद आती है।
सर-ता-पा तुझे आज तक भूला नहीं हूँ
मिट्टी से सने तेरे पावों की याद आती है।
मुहब्बत की फिजाओं में उस सफ़र की
खाई कौलों कसमों की याद आती है।
उन दिनों मैं मर मर कर जिया था
उस उम्र के कई जन्मों की याद आती है।
चिलचिलाती जेठ की तपती दुपहरी में
साया देते तेरे गेसूओं की याद आती है।
कहीं रहो तुम रहो खैरियत के साथ
दिल को इन्ही दुआओं की याद आती