आसान नहीं होगी अगले पोप की राह

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 popeफरवरी महीने के अंत में पोप बेनेडिक्ट सौहलवें कैथोलिक चर्च के सर्वोच्च पद से विदार्इ ले लेगें और उनकी जगह कौन लेगा इसके बारे में पूरी दुनियां में कयास लगाए जा रहे है। अचानक पोप बेनेडिक्ट सौहलवें द्वारा पद त्याग की खबर से पूरी दुनियां के कैथोलिक र्इसार्इ हैरान है।

पोप बेनेडिक्ट सौहलवें द्वारा पद छोड़ने की घोषणा ऐसे समय की गर्इ है जब कैथोलिक चर्च कर्इ अदंरुनी झंझवटों – संकटों के बीच फंसा हुआ है। द्वितीय वेटिकन के पचास साल (1962 – 2012) पूरे होने के अवसर पर पिछले साल पोप ने चर्च में बढ़ रही शिथिलता, नैतिक क्षरण और अनुशासनहीनता पर अपनी चिंता जतार्इ थी। कैथोलिक विश्वासियों की लगातार घटती संख्या को देखते हुए ही वेटिकन ने 2013 के साल को ‘विश्वास का साल घोषित किया है।

पोप बेनेडिक्ट सौहलवें ने जब आठ साल पहले 19 अप्रैल 2005 को कैथोलिक चर्च की कमान संभाली थी तो उस समय कैथोलिक र्इसाइयों को उनसे काफी उम्मीदें थी कि वह चर्च के कायदे-कानूनों में बदलाव लाएगें, सबसे विवादास्पपद मामला पादरियों द्वारा बच्चों के यौन उत्पीड़न से जुड़ा था जिसे लेकर मुकदमें तक हुए और कर्इ देशों में पीडि़तों को चर्च द्वारा भारी मुआवजा भी देना पड़ा। सबसे दुखद यह कि पोप के आलोचकों ने उन पर ऐसे मामलों की लीपापोती करने में सहभागी होने के आरोप भी लगाए।

लेकिन वे आलोचकों की परवाह किये बिना अपनी विचारधारात्मक पवित्रत के प्रति अपने जनून को लेकर आगे बढ़ते रहे। उन्होंने गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल के साथ ही कृत्रिम गर्भधारण का भी विरोध किया, गर्भपात को लेकर भी वेटिकन का कड़ा रुख सामने आया। इंग्लैंड के कैथोलिक अखबार द यूनिवर्स के संपादक केविन रैफर्टी ने अपने एक लेख में लिखा, कि उनकी विचारधारा में जीवन के आधुनिक रीति – रिवाजों के लिए कोर्इ जगह नहीं थी और वे किसी भी छूट के लिए तैयार नही हुए। इस कारण कर्इ देशां से वेटिकन के सबंध खराब हो गये।

कैथोलिक चर्च में पादरियों द्वारा बच्चों के यौन उत्पीड़न के मामलों में कोर्इ साफ रुख न अपनायें जाने से नाराज होकर आयरलैंड, स्पेन और पोलैंड जैसे देशों ने वेटिकन की आलोचना शुरु कर दी, पोप ने आयरलैंड की शिकायतों की जांच के लिए एक जांच कमेटी बनार्इ जिसे आयरिश पार्लियामेंट ने आयरलैंड के अदंरुनी मामलों दखल करार देते हुए इसकी निंदा की, नाराज वेटिकन ने आयरलैंड से अपने राजदूत को वापिस बुला लिया। वेटिकन को एक स्वायत्त देश का दर्जा मिला हुआ है इसी कारण वेटिकन के भारत सहित दुनिया के अधिक्तर देशों में राजदूत होते है। वेटिकन के विरोध के बावजूद स्पेन की सरकार ने गर्भपात और समलैंगिक विवाह को मान्यता दे दी। चर्च में पादरियों के आजीवन कुंवारे रहने, महिलाओं को पादरी न बनाए जाने जैसे मामलों पर भी कैथोलिक समाज में बहस छिड़ी हुर्इ है।

दरअसल पशिचमी देशों में उम्रदराज होते पादरियों की समास्या से निपटने के लिए विवाहित या महिला पादरियों के विकल्प पर चर्च द्वारा विचार करने की मांग जोर-शोर से उठ रही है। चर्च के कर्इ पादरी और बिशप आने वाले संकट से छुटकारा पाने के लिए चर्च नियमों में ढील दिये जाने की मांग कर रहे है। बैलजियम के प्रसिद्ध विद्वान कोनराड ऐल्स्ट का यूरोप में चर्च की स्थिति पर कहना है कि – ”कोर्इ भी जो देखने की चिंता करता है, देख सकता है कि र्इसाइयत गंभीर पतन की ओर अग्रसर है। ऐसी अवस्था विशेषकर यूरोप में है जहाँ कि अनेक देशों में चर्च में उपस्थिति दस या पाँच प्रतिशत से भी कम रह गर्इ है-र्इसाइयत के अपने असितत्व के लिए और भी अधिक अशुभ बात यह है पुरोहिती व्यवसायों में कमी। बहुत से र्इसार्इ धार्मिक प्रदेश (गिरजाघर) जो पहले दो तीन पादरी रखते थे अब वहाँ एक भी नही है। परिणामस्वरुप यहाँ तक कि अब रविवारीय पादरी सेवाएं भी एक आमंत्रित पादरी द्वारा करवार्इ जाती है। पादरियों की कमी उनके अवकाश ग्रहण, मृत्यु अथवा पादरीपन का व्यवसाय छोड़ देने और उसकी आपूर्ती न हो पाने के कारण होती जा रही है। हालाकि चर्च इस कमी को पूरा करने के लिए भारत जैसे देशों में अति सक्र्रिय है।

वेटिकन द्वारा शुरु किये गए अतंरधार्मिक वार्ताओं को भी गह्रण लगने लगा है हालांकि आज के समय में यह कैथोलिक चर्च का सबसे बड़ा कार्यक्रम है। अपने को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने की होड़ में वेटिकन हर मानवीय गलती के लिए दूसरो को जिम्मेवार ठहराता है। साल 2006 में पोप ने चौहदवीं सदी के एक र्इसार्इ सम्राट के इस कथन को दोहराया कि हर गलत और अमानवीय चीजों के लिए इस्लाम जिम्मेदार है। हालांकि बाद में वेटिकन ने इसके लिए क्षमा भी मांग ली। भारत में चर्च अपने साम्राज्यवाद के साथ साथ हिन्दुओं से अतंरधार्मिक वर्ताओं को सौहार्दपूर्ण तरीके से चलाने में कामयाब हो रहा है।

चर्च के वैभवशाली आवारण से कैथोलिक र्इसार्इ व्यथित है पादरियों की ऐशो-अराम के जीवन को देखकर उन्हें र्इसा याद आते है। खुद पोप की पोशाक ऐसी भव्य होती है कि कोर्इ राजा भी आज के समय ऐसी पोशाक की कल्पना नही कर सकता। इसी साल इटली की जनता ने चर्च की संपत्ति पर टैक्स लगाने की मांग की है। इटली में 20 फीसदी संपत्ति सीधे या अप्रत्यक्ष रुप में चर्च के नियंत्रण में है जिसपर चर्च कोर्इ टैक्स नहीं देता क्योंकि 1930 में होली सी और इटली ने ‘लैटरन अकार्ड पर दस्तखत किये थे। इटली के प्रमुख विपक्षी दल, वहां की जनता और अखबार टैक्स लगाने की मांग कर रहे है तांकि सधारण जनता पर टैक्सों का बोझ कम किया जा सके। इटली के अखबार ला रिपबिलका ने आधिकारी आंकड़ों का हवाला देकर बताया है कि रोम शहर के बीचोबीच बना फ्रेंच रेस्टोरेंट ओ वीव और चार सितारा होटल पोन्टे सिस्टो और दूसरी इमारतों से चर्च रोम में ही एक साल में 2.55 करोड़ यूरो कमा रहा है। इटली की म्युनिसिपलटियों की राष्ट्रीय संगठन का कहना है कि अगर नया कानून लागू कर दिया जाए तो उन्हें 50 से 70 करोड़ यूरो की सलाना आय होगी।

ऐसे में जो भी नया पोप चुना जाएगा उसके लिए चुनौतियां कम नहीं होगी। कैथोलिक र्इसाइयों में चर्च के प्रति गिरते विश्वास को बांधे रखना ही एक बड़ी चुनौती है। कर्इ कैथोलिक बिशपों और पंरपरावादी अनुयायियों के लिए पोप बेनेडिक्ट विश्वास खो चुकी दुनिया में निशिचतता के अकेले प्रकाश स्तंभ थे। लेकिन समास्याओं से परेशान करोड़ों कैथोलिकों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए वेटिकन के पास कहने को कुछ नही है। भारत के कैथोलिक चर्च के अंदर सत्तर प्रतिशत दलित र्इसार्इ है जो चर्च के अंदर घुटन भरा जीवन बिता रहे है लेकिन आजतक आज तक किसी पोप ने उनकी व्यथा का संज्ञान नहीं लिया। चर्च का एक वर्ग मानता है कि इतिहास, नौकरशाही पंरपरा और रीति -रिवाजों की राख के बोझ तले दबा हुआ चर्च समय से दो सदी पीछे चला गया है।

 

हम उम्मीद कर सकते है कि कोर्इ ऐसा चेहरा इस सर्वोच्च पद पर आएगा जिसके पास विश्वास और दृढ़-इच्छाशकित हो, जो कैथोलिक चर्च को बदलने की क्षमता रखता हो, कैथोलिक चर्च को ऊपर से नीचे तक बदलना होगा। लेकिन बदलाव नीचे से ऊपर की और लाना होगा। इसकी शुरुआत यूरोप से हो चुकी है।

 

आर.एल. फ्रांसिस

 

2 COMMENTS

  1. फ्रांसिस भाई मैने जर्मनी के चर्चो को देखा है क्या सन्नाटा है | जब मै एक दो चर्च के अंदर गयी तो इतना बड़ा हाल उसमे तमाम कुर्सिया एक तरफ समेट करके रखी है और दूसरी तरफ कोने मे दो चार लोग अंदर बैठे है| एक कोने मे कुछ मोमबत्तिया जल रही है तथा कुछ coin रखे हुए है | मैने भी एक मोमबत्ती
    जलाई और जेब मे कुछ यूरो coin थे चढ़ा दिए |एक चर्च के तो ६ वे मंजिल पर किसी तरह चढ कर देखा तो एक बूढ़ा आदमी कुछ पोस्ट कार्ड बेच रहा था की कुछ पैसे आ जाए तो इस चर्च की सीढियों का पुनर निर्माड हो जाए जो की बहुत ही जर्जर अवस्था मे थी |मैने भी कुछ कार्ड खरीदे |यह संप्रदाय कब तक लोगो को धोखा देता रहेगा |ईसा मसीह तो एक दिव्य महान आत्मा थे लेकिन उनके नाम पर यह सब धोखा और स्त्री पुरुष का भेदभाव कब तक चलता रहेगा |मुझे तो आशा की कोइ किरण नहीं नजर आती दिखाई देती है |
    सुंदर लेख के लिए धन्यबाद|

  2. पर मुझे कैथोलिक सम्प्रदाय में सुधार की कोई आशास्पद दिशा आज दिखाई नहीं देती|
    आप के आलेख सदा प्रामाणिक लगते हैं|
    लेखक को धन्यवाद|

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