माँ बनने के लिए बच्चा होना काफी नही, माँ में ममता होना जरूरी

1
447

mother

   

 

कहते हैं पुत्र कुपुत्र हो सकता है परन्तु माँ कुमाता नही होती | माँ और बच्चे का एक ऐसा रिश्ता है जो खून की डोर से बंधा है | तभी तो कहते है माता-पिता के अधिकतर गुण उनकी संतान में जन्म से आते है व जन्म लेने के उपरान्त कैसे बच्चे की परवरिश की जाती है उसका भविष्य उस पर निर्भर करता है |

बच्चा जिस दिन कोख में फलित होता है उसी दिन से उसमें संस्कारों का संचालन शुरू हो जाता है | नौ महीने की अवधि में जो माता खाती-पीती है व सोचती है तथा जो कुछ देखती है, उन सब का प्रभाव बच्चे के स्वभाव व सेहत पर पड़ता है | कहते हैं एक बार पश्चिम में एक देश में गोरे माता-पिता की सन्तान ‘काले रंग’ की पैदा हुई तो बच्चे के पिता को शंका हो गयी कि यह मेरी सन्तान नही हो सकती व उसने अपनी पत्नी पर शक का ईजहार करना शुरू कर दिया | मामला न्यायालय तक पहुंचा तो सब टैस्ट करवाने के उपरान्त भी कोई कारण सामने नही आया तो न्यायालय ने एक ज्यूरी का गठन किया जिसमें हर किस्म के विशेषज्ञ शामिल किये गये | आखिर उस कमरे का मुआयना भी किया गया जहाँ गर्भावस्था के समय माता को रखा गया था | उस कमरे में माता के बिस्तर के सामने दीवार पर एक “काले रंग के व्यक्ति” की तस्वीर लटकी थी जो कि नौ महीने जिस समय बच्चा पेट में था माता को हर समय नज़र आती रहती थी और यही कारण पाया गया गोरे माता-पिता का काला बच्चा पैदा होने का | अत: यह स्पष्ट है कि माता गर्भावस्था के समय क्या खाती है तथा पीती है तथा क्या उसकी की दिनचर्या है, का प्रभाव उसकी होने वाली सन्तान पर पड़ता है | अत: माता-पिता जैसा चाहे अपने बच्चे को वैसा ही बना सकते है |

माँ के लिए सबसे अहम है उस की ममता | जिस माँ में ममता नही वह माँ कहलाने के काबिल नही | केवल बच्चा पैदा करना की माँ की योग्यता नही अपितु ममता को होना माँ कहलाने के लिए अनिवार्य है | माँ केवल अपने बच्चे को नही बल्कि हर बच्चे को माँ अपना बच्चा समझती है वही असल माँ है | यह जरूरी नही कि माँ बनने के लिए उसका बच्चा होना जरूरी है बल्कि ममता होना जरुरी है | मदर टैरेसा की कोई संतान नही थी लेकिन वह पूरे संसार के बच्चों की माँ थी | अत: माँ का पवित्र बंधन उसकी बच्चों के प्रति ममता है |

औरत पढ़ी-लिखी हो या अनपढ़, गरीब हो या अमीर, स्वस्थ हो या अस्वस्थ, उसका अपना बच्चा हो या नही यदि उसमें ममता का गुण विद्द्यमान है तो वह माँ कहलाती है और यदि उसमें ममता का गुण नही है व केवल अपने बच्चों को ही बच्चा समझती है व दूसरे के बच्चों को नही, तो वह माँ कहलाने के काबिल नही |

आजकल कलियुग के चलते हर काम कला के सहारे किया जा रहा है तथा संस्कृति को आदमी नजरअंदाज करता जा रहा है | कला का असर आधुनिक नारी जाति पर भी अछूता नही | आधुनिक नारी पढ़-लिख कर अपने करियर को अधिक व अपने होने वाले परिवार की कम चिंता करती है | पति को केवल अपना दोस्त मानती है, परमेश्वर नही | पुत्र को एक खिलौना समझ कर कोख से ही उसके साथ खिलवाड़ करने लगती है | पहले तो काफी सालों तक उसे अपनी कोख में जगह ही नही देती व जब देती है तो उसे पेट में रहते सही संस्कार नही दे पाती क्योंकि आज की भागदौड़ की जिंदगी में उसके पास अच्छा खाने का, अच्छा सोचने का व अच्छा सिखाने का समय ही कहाँ है | और जब बच्चा दो-तीन महीने का पेट में होता है तो उस पर फिर कला के हथियारों से प्रहार करके उसके लिंग का पता लगाया जाता है और यदि वह लड़की हुई तो कला के हथियार उस बेटी के गले का फंदा बन जाते है व उसकी भ्रूण हत्या कर दी जाती है | क्या ऐसी नारियाँ माँ कहलाने के काबिल हो सकती है ? कदापि नही | भ्रूण हत्या के कारण हरियाणा जैसे राज्यों में लिंग अनुपात का असंतुलन पैदा हो गया है | जब बच्चा होता है तो घर पर खुशियाँ मनाई जाती है लेकिन पैदा होते ही माँ की गोद उसे नसीब नही होती व उसे आया के हाथों सौंप दिया जाता है | यहाँ तक कि कुछ औरते अपने बच्चे को स्तनपान तक नही करवाना चाहती ताकि उनकी “फिगर” खराब न हो जाए | जबकि माँ का दूध ममता को जन्म देता है व बच्चे की सेहत के लिए संजीवनी माना जाता है | यहाँ तक कि कुछ औरते बच्चे को अपनी गोद तक नसीब नही करवाती व जन्म देते ही उसे “पालने” में या “आया” की गोद में डाल देती है | इस प्रकार “आया” ही बच्चे की माँ बन जाती है | बाद में वही बच्चा होस्टल में डाल दिया जाता है तथा बचपन उसका माता-पिता के साथ नही बल्कि होस्टल में दोस्तों के साथ बीतता है | परिणामस्वरूप उस बच्चे के दिल में माता-पिता के प्रति प्यार पनप नही पाता और यही कारण है कि जब वह बड़ा होकर अपने पैरों पर खड़ा हो जाता है तो माता-पिता उसे बोझ लगने लगते है व वह अपनी पत्नी के साथ अलग रहने लगता है तथा माता-पिता को “ओल्ड ऐज होम” में भर्ती करवा देता है और यही कुचक्र पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता है | आखिर जब माता-पिता खुद सही तौर पर माता-पिता नही बन पाते तो फिर किस तरह उनकी संतानों से सही व्यवहार की उपेक्षा की जा सकती है | अंततः पुत्र कुपुत्र बन जाता है |

जो माता पिता पैसे कमाने में मशरूफ है और छोटे बच्चों को नौकरों के हवाले छोड़ कर घर से बाहर जाते है उनके बच्चों के साथ ये घरलू नौकर व नौकरानियां क्या करती हैं यह दक्षिण दिल्ली में हुई ऐसी ही घटना से स्पष्ट हो जाता है | दक्षिण दिल्ली में एक खाते-पीते माँ-बाप जो अच्छी नौकरी करने घर से बाहर जाते थे पीछे से उनकी घरेलू नौकरानी बच्चे को सुलाए रखने के लिए झंडू बाम सूंघाती व खिलाती थी | जब माता-पिता आते थे तो भी बच्चा रोता नही था तथा नौकरानी यह कह कर खुश करती थी कि बच्चे की अच्छी परवरिश होने से बच्चा रोता नही है जिस पर माता-पिता अधिक खुश रहते थे लेकिन जब बच्चा सुस्त रहने लगा तो माता-पिता ने सीसीटीवी लगा कर नौकरानी द्वारा की गयी परवरिश को जानना चाहा तो यह सारा दृश्य देखने में आया | जब बच्चे की चिकित्सक जाँच करवाई गयी तो पाया गया कि झंडू बाम खिलाने से बच्चे का लीवर और किडनी खराब हो चुके थे | तब आधुनिक युग के इन माता-पिता को एहसास हुआ कि बच्चे नौकरी से कई अधिक अमूल्य होते हैं | लेकिन तब तक हाथ से बात निकल चुकी थी “अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत” | इसी प्रकार के सैंकड़ों किस्से महानगरों में हो चुके है | अत: माता-पिता को यह नही भूलना चाहिए कि यदि आप एक अच्छे माता-पिता न बन पाए तो अपने बच्चों से अच्छे बच्चे बनने की अपेक्षा न करें तथा बुढ़ापे में अपना स्थान वृद्धाश्रम में पहले से ही आरक्षित करवा रखें | क्योंकि अच्छे माता-पिता ही अच्छे बच्चों को तैयार कर सकते है | यदि कोई समझे कि वे अच्छे माता-पिता बन कर अपने बच्चों की परवरिश नही कर पायेंगें तो मेरी उन्हें सलाह है कि वे बच्चों को जन्म ना दें ताकि समाज में अच्छे बच्चों की कमी का एहसास न हो |

आज के समय में जो कुछ माता-पिता व बच्चों की सोच में विघटन हो रहा है वह भविष्य के लिए एक अच्छा समाज बनने का संकेत नही है | अत: यदि माता-पिता अपने बच्चों को अच्छे संस्कार नही देंगें तो माता-पिता अपने बुढ़ापे के दिनों में अच्छे दिनों की उम्मीद नही कर सकेंगें | इसलिए बच्चों में माँ की ममता की घुटी मिला कर अच्छे संस्कारों का संचालन करें तभी आप को मानवजाति माता कहलाने के काबिल समझेगी | माता-पिता जब तक अच्छे माता-पिता नही बनते तब तक अच्छी संतान की उम्मीद रखना बेईमानी होगी

 

 

 

 

 

1 COMMENT

  1. आप का कहना एकदम सही है की केवल पेट में ९ माह पालने और जन्म देने से कोई माँ नहीं होती. मैंने बड़े शहरों के मॉल में देखा है की जींस और टॉप पहिनकर युवतियां अपने पति के हाथ में डालकर और दूसरे हाथ में खरीदी का झोला पकड़कर चलती हैं. इस जोड़े का शिशु पीछे आ रहा होता है. किसी के हाथ से आइसक्रीम छूट कर फर्श पर गिर पड़ने पर वह शिशु उसे उठाकर खाने लगता है.विज्ञानं के बढ़ते अनुसंधानों से दिन ब दिन मातृत्व के गुण कम होते जाना स्वाभाविक हैं.pichhle दिनों सिंगापुर से मेरे रिश्ते में एक युगल मिलाथा. वह युगल एक विवाह समारोह में आया था. मुझसे खूब बातचीत हुई. सिंगापुर एक आधुनिक देश है. और लंदन से महंगा है. वहां सभी धर्मो और विभिन्न देशों के मूल के निवासी काम करने आये हुए हैं. वहां प्राम्भिक रूप में एक चलन शुरू हो गया है बिना विवाह किये लम्बे समय तक शारीरिक सम्बन्ध जारी रखते हुए जीवन व्यतीत किया जावे. और बच्चों की झंझट से दूर रहा जाये. देखें आगे क्या होता हैं?मैं तो ७० वर्ष की उम्र में भाग्यशाली हूँ की जब भी अपने देहात जाता हूँ मेरी माँ जो ९० के आसपास है,देहात के बस स्टैंड तक मुझे छोड़ने आती है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here