दलित ईसाइयों की मुश्किलों का हल रंगनाथ आयोग नहीं!

-आर. एल. फ्रांसिस

जस्टिस रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट को लेकर देश के अल्पसंखयक वर्गों में खासी हलचल है और ईसाई समुदाय भी इससे अछूता नही है। इस रिपोर्ट में ईसाइयों को शैक्षणिक रुप से पिछड़ा बताया गया है। इसी तरह अन्य मामलों में भी उनकी स्थिति चिंतनीय बतायी गई है। शिक्षा और स्वस्थ्य के क्षेत्र में ईसाई संस्थाओं और मिशनरियों का योगदान जगजाहिर है। फिर ईसाई समुदाय में अधिकांश बदहाल क्योंकर है? यह एक बड़ा स्वाल है।

देश की आबादी का ढाई प्रतिशत होने के बावजूद देश की 22 प्रतिशत मेडिकल सेवा ईसाई संस्थाएं मुहैया कराती है। भारत में पहला ईसाई अस्पताल 1530 में तमिलनाडु के तिरुनवेली जिले में खोला गया था। आज कैथोलिक ईसाई देश में 764 अस्पताल, 2575 डिस्पेन्सरी, 107 मानसिक रोग चिकित्सा केन्द्र और 4 मेडिकल कॉलेज चलाते है। प्रोटेस्टेंट ईसाइयों द्वारा देश में लगभग 350 मेडिकल इंस्टीटयूशन्स चलाई जाती हैं लेकिन पंजाब, बिहार, झारखण्ड, छतीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु के ईसाई बच्चे आज भी अशिक्षित एवं कुपोषण का शिकार है।

शिक्षा के क्षेत्र में भी चर्च के योगदान को उसके विरोधी भी स्वीकारते हैं। भारत में प्रथम रेग्यूलर स्कूल 1540 में मिशनरियों ने गोवा में खोला। इसके बाद मुंबई में (1540) कोचीन (1549) पुन्याकिल तमिलनाडु (1567) मुदैर (1565) में स्कूल खोले गए। आज देश भर में 40,000 ईसाई स्कूल है, जिनमें लगभग 48 लाख विद्यार्थी शिक्षा पाते हैं। लेकिन अफसोस रंगनाथ मिश्र रिपोर्ट बकौल कैथोलिक बिशप कांफ्रेस ऑफ इंडिया के बताती है कि आदिवासी और दलित पृष्‍ठभूमि के ईसाइयों में आज भी शिक्षा का प्रतिशत अन्यों से कम है। यह आश्‍चर्य की बात है।

इंडियन क्रिश्चियन राइर्टस एक्षन फोरम के संयोजक जोजफ गाथिया का कहना है कि भारतीय समाज के लिए समय की धुंध से छनकर आती पिछली कुछ सदियों की ओर मुड़कर देखना, यह जानने के लिए महत्वपूर्ण है कि भूत और वर्तमान के दौर में सुख और दुख के क्षणों तथा संकटों से कैसे गुजरें और उन अनुभवों से वह क्या सीख सकता है। इक्कसवीं सदी के लिए अपने आचरण और कार्यशैली में क्या परिवर्तन ला सकता है? इस प्रक्रिया के द्वारा ही चर्च भविष्‍य के नए रास्ते तलाश कर सकता है।

सामाजिक कार्यकर्ता एवं मासिक चर्च रेस्टोरेशन के संपादक श्री पी.बी.लोमियों कहते है कि सरकारी विभागों और पब्लिक सेक्टर के बाद देश में चर्च सबसे बड़ा रोजगार देने वाला उपक्रम है। अनुमान है कि स्कूल, अस्पताल और सोशल वर्क के कार्यो में चर्च लगभग एक करोड़ लोगों को रोजगार देता है। लेकिन ईसाई नवयुवक एवं युवतियां रोजगार के लिए मारे मारे फिर रहे है।

ईसाई संगठन ‘पुअर क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंट’ के मुताबिक आज भारत का ईसाई समाज उद्वेलित है। आंकड़े बताते है कि केरल, गोवा, नागालैण्ड या मिजोरम को छोड़कर ईसाइयों में शत प्रतिशत शिक्षा का अभाव है। चर्च द्वारा लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के बावजूद झारखण्ड, उड़ीसा एवं छतीसगढ़ की हजारों आदिवासी ईसाई लड़कियां राजधानी दिल्ली एवं देश के महानगरों में घरेलू नौकरानी की अपमानजनक जिंदगी जीने को मजबूर है।

‘पुअर क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंट’ की तमिलनाडु ईकाई के अध्यक्ष नरेश अम्बेदकर कहते है कि आजादी के बाद के दशकों में गोवा, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और बेंगलुरु जैसे शहरों में ईसाइयों की आबादी के आधार पर उनका आकलन किया गया है। इसमें तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, केरल, महाराष्‍ट्र एवं उड़ीसा के गा्रमीण ईसाइयों की समास्याएं दब गई है। यहां के ईसाइयों में अधिक्तर खेतिहर मजदूर और भूमिहीन गरीब है। इसी के साथ दलित पृष्‍ठभूमि के ईसाइयों की समास्यां भी जुड़ी है। चर्च के भीतर उनसे भेदभाव किया जाता है, जोकि ईसाई धर्म की मूल मान्यता के बिल्कुल विपरीत है। लेकिन अफसोस कि चर्च में उनकी स्थिति सुधारने के बजाय इस समास्या का समाधान सिर्फ जाति आधारित आरक्षण (रंगनाथ मिश्र आयोग की रिर्पोर्ट) में ढूंढा जा रहा है। जो ”कैनन लॉ” के विपरीत है और हमें मान्य नही है। हमने रंगनाथ मिश्र आयोग की रिर्पोट की समीक्षा करके उसे केन्द्र सरकार के पास भेजा है। हमने सरकार से पूछा है कि वह यह बताये कि ”दलित ईसाइयों को अनुसूचित जातियों में शामिल कर लेने से उनके साथ ”ईसाइयत” के अंदर होनेवाले भेदभाव एवं उत्पीड़न कैसे रुक पायेगें।” सरकार की तरफ से न्याय मंत्री श्री वीरप्पा मोइली एवं अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री श्री सलमान खुर्शीद ने रंगनाथ मिश्र रिर्पोट को लागू करते समय मूवमेंट द्वारा उठाये गए मुद्दों को ध्यान में रखने का आश्‍वासन दिया है।

आजादी के बाद से भारतीय ईसाई एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के नागरिक रहे है। धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था चाहे कितनी ही दोशपूर्ण हो, लोकतांत्रिक व्यवस्था चाहे कितनी ही गैर प्रतिनिधिक हो, यहां के ईसाइयों (चर्च) को जो खास सहूलियतें हासिल है, वे बहूत से ईसाइयों को यूरोप व अमेरिका में भी हासिल नही है। जैसे विषेश अधिकार से शिक्षण संस्थान चलाना, सरकार से अनुदान पाना आदि।

वर्तमान परिस्थितियों में स्वाल यह भी है कि ईसाइयों/चर्च को क्या करना चाहिए? सामाजिक कार्यकर्ता एवं दलित ईसाई नेता आर एल फ्रांसिस कहते है कि इतना तय है कि ईसाई भारतीय समाज और उसकी समस्याओं से अपने को जुड़ा नहीं महसूस करते है। वे अभी भी वेटिकन एवं अन्य पश्चिमी देशों पर निर्भर है। संकट के समय वह भारतीय न्याय व्यवस्था से ज्यादा पश्चिमी देशों द्वारा सरकार पर डाले जाने वाले अनुचित प्रभाव पर ज्यादा विश्‍वास करते है।

वे अभी तक यह नही सीख पाए हैं कि लोकतंत्र में अपने अधिकारों की लड़ाई कैसे लड़ी जाती है। बृहत्तर समाज से कटे हुए वे रेगिस्तान में शुतुरमुर्ग की तरह हो गए है, जो रेत में गर्दन छिपाकर यह समझता है कि वह सुराक्षित हो गया है। ईसाइयों को चर्च राजनीति की दड़बाई (घंटों) रेत से अपना सिर निकालना होगा और अपने ही नही देश और समाज के सामने जो खतरे है, उनसे दो चार होना पड़ेगा। जब तक ईसाई देश में चलने वाली लोकतांत्रिक शक्तियों से अपने को नहीं जोड़ेगे और अपनी समस्याओं का हल भारतीय परिवेश में नही ढूढंगें तथा उसमें उनकी सक्रिय भागीदारी नही होगी, तब तक उनका अस्तित्व खतरे में रहेगा। ईसाइयों को धर्म और सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति एक स्पष्‍ट समझ बनाने की आवश्‍यकता है। रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट लागू होने से ‘चर्च एवं धर्मांतरित’ ईसाइयों में और दूरी बढ़ेगी। इसी के साथ चर्च पर ‘धर्मातरण’ के आरोपों की बाढ़ भी आएगी। पश्चिमी देशों के मिशनरी धन-बल से इसका लाभ उठायेंगे। आज स्थिति यह है कि चर्च ने धर्म और सामाजिक कार्य को एक दूसरे में गडमड कर दिया है। नतीजतन, धर्मांतरित ईसाई हाशिए पर अटक गए है। अपने लाभ के लिए चर्च नेतृत्व ईसाइयत में जातिवाद को मजबूत करने में लगा है।

इंडियन क्रिश्चियन राइर्टस एक्षन फोरम के संयोजक जोजफ गाथिया का कहना है कि ईसाई समाज में सामाजिक आदोंलन नहीं के बराबर है। पता नही क्यों ईसाई राष्‍ट्रीय स्तर पर चलाए जाने वाले विकास कार्यक्रमों से बहूत दूर है। ब्लॉक स्तर से लेकर राश्ट्रीय स्तर तक चलने वाली आर्थिक सामाजिक परियोजनाओं में शामिल होने की आवश्‍यकता है। लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में धार्मिक परिसरों और अपने धर्मवलम्बियों तक ही अपनी चिंताओं को सीमित रखने वाले प्राय: मुख्यधारा से कट जाते है, जिसका उन्हें बहुत नुकसान उठाना पड़ता है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि भारत में लोकतंत्र किसी अल्पसंयक समुदाय के कारण ही नही है। बहुसंख्यक समुदाय को यह लगना चाहिए कि लोकतंत्र को बचाने, बढ़ाने में उसके जो प्रयास है, उसमें ईसाई पूरी तरह उनके साथ है।

दरअसल भारतीय ईसाई समाज इस समय नेतृत्वहीन है। जो नेता है भी तो वे धर्म के नाम पर रोंटियां सेंकते है। उन्हें आम ईसाइयों के जीवन और भविष्‍य से कुछ लेना देना नही है। चर्च को भारत में अपने मिशन को पुन: परिभाषित करना होगा। यही समय है जब ईसाई समुदाय को स्वयं का सामाजिक लेखा-परीक्षण करना चाहिए, तांकि पता चले कि ईसाई समुदाय अपनी मुक्ति से वंचित क्यों हैं?

3 COMMENTS

  1. =====”ईसाई चर्चने दलित ईसाइयोंपर अन्याय ही किया है”=====
    आर. एल. फ्रांसिस:=> “चर्च के भीतर उनसे भेदभाव किया जाता है, जोकि ईसाई धर्म की मूल मान्यता के बिल्कुल विपरीत है। लेकिन अफसोस कि चर्च में उनकी स्थिति सुधारने के बजाय इस समस्या का समाधान सिर्फ जाति आधारित आरक्षण (रंगनाथ मिश्र आयोग की रिर्पोर्ट) में ढूंढा जा रहा है। जो ”कैनन लॉ” के विपरीत है………… “धर्मांतरण से धर्मांतरित ईसाइयों की किसी भी स्थितिमें सुधार आता नहीं है <=जानकारी रखनेवाले बताते हैं, कि मिशनरी का बजट " हर वर्षके धर्मांतरण वाले आंकडोंके अनुपातमें होनेसे मरते मरते भी इसाइ होने वाले को प्रोत्साहित किया जाता है। जिससे यह मिशनरी की कमाई होती रहे।चर्च मिनिस्टर भी पगार पाते है। (औसतन ६९ हजार डॉलर प्रति वर्ष )
    http://www.dalitchristians.com/ की वेबसाइट खोलकर देखें।
    भारत का चर्च वास्तवमें दलित चर्च ही है, क्योंकि भारत के २५०
    लाख ईसाइयोंमें ७0% ईसाई दलित हैं। वास्तवमें इन सभी चर्चों में दलितोंका बहुमत है, परंतु अभी तक इन सभी चर्चों में उनका प्रभाव न्यूनतम या नगण्य है। सारे के सारे प्रभाववाले पदोंपर पूरी तरहसे ऊंची जाति का ईसाई, जो ईसाई जनसंख्या का केवल ३०% ही रहा हैं, बलपूर्वक सत्ताके सारे पदोंपर आसीन है। यह भेदभावी परिस्थिति विशेष रूपसे कैथोलिक चर्च में तीव्रतासे अनुभव की जाती है। चाहे तो http://www.dalitchristians.com/ की वेबसाइट खोलकर देख ले।

  2. ye sara sar dhokha he un hajaro lakho logo ke sath jinhe esase mishaniriyo ne samanta ka sabj bag dikha kar convert kiya tha,par aj bhi uanke kiye alag se charch he,or ab to reservetion bhi mang rahe he,un lakho logo ka vapsa ham hindu dharm me savagat karate he…………………………………..hindu ko chhod kar ap log kabhi sukhi nahi rahe to kahe ko apani dharm ma ko chhoda?????vaps a jaeye……………………

  3. Isaiyo me shiksha ka abhav nahi, Ashikshito ko Isai banane ke karan abhav dikh raha hai….ye aayog vagera kisliye banaye jate hai…taki tushtikaran kiya ja sake…..kabhi aarakshan….to kabhi alpasankhyako ke heeto ke nam par.

    vaise se bhi jo log garib bhole bhale aadivasiyo ko bahla kar Isai banane me lage ho vo ashikshit kaise kahe ja sakte hai….

    Jai Itli wali maiya ki….Jai sardar ji ki…..Jai Bhondu yuvraj ki ……….JAI HO

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