अब बिस्मिल की चिता पर मेले नहीं जुड़ते

-अवधेश पाण्डेय-

bismil

आज 11 जून है, पंडित राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ का जन्मदिवस, सभी जानते हैं कि बिस्मिल जैसे क्रांतिकारियों का स्वप्न एवं एकमेव लक्ष्य स्वराज्य की प्राप्ति था. वह अंग्रेज़ी राज्य की दासता में कदापि नहीं जीना चाहते थे और स्वतंत्र होने के लिये तड़पते रहते थे. बिस्मिल का जोश क्षणिक आवेग नहीं था, उनकी रचनाओं में उनकी पीड़ा झलकती है. पंक्तियाँ देखिये:-

मुर्गे दिल मत रो यहाँ, आँसू बहाना है मना,
अंदलीबों को कफस में, चहचहना है मना…..
हाय जल्लादी तो देखो कह रहा जल्लाद यह,
वक्ते-जिब्ह बुलबुलों का फ़ड़फड़ाना है मना….. (अंदलीब:- बुलबुल, कफस:- पिजरा, जिब्ह:-कत्ल)
—-> स्रोत:- मुर्गे-दिल, मन की लहर.

अंग्रेजी शासन में जनता पर नये नये तरीकों से प्रतिदिन जुल्म ढ़ाये जाते थे, बिस्मिल का क्रांतिकारी मन भी प्रतिदिन तड़पता था. अपनी बेचारगी को उन्होने निम्नलिखित पंक्तियों में व्यक्त किया है….

जुल्म हमसे नित नये, अब तो सहे जाते नहीं
कब तलक हे दीन बन्धो! दिन वही आते नहीं…….
—-> स्रोत:- विश्वास का अंत, मन की लहर.

अंग्रेज़ों के सामने झुकने के बजाय वह मृत्यु का आलिंगन पसंद करते थे, तत्कालीन नेताओं का अंग्रेज़ों के सामने लाचार रवैया उन्हे पसंद नहीं था. वह कायरता को अंहिसा नहीं मानते थे.

 

फँस दया-अहिंसा फन्दे में, हो गये हीज़ड़े ये पक्के,
कुछ जगे जोश मर्दों वाला, अब ऐसा जोर लगा बाबा!
—-> स्रोत:- फकीरों की फेरी, क्रान्ति गीतांजलि.

तत्कालीन परिस्थितियों के आधार पर आकलन है कि उपर्युक्त पंक्तियों में आया बाबा शब्द संभवत: उन्होने गाँधी जी के लिये किया था.

कहते हैं कि मन में जो भाव होता है, उसे शब्दश: कहना मुश्किल है और कलम बद्ध करना और भी मुश्किल फिरभी उनके मन में देश के लिये जो तड़प थी, वह निम्न पंक्तियाँ देखने से पता चलता है.

जगदीश! यह विनय है, जब प्राण से तन से निकलें
प्रिय देश! देश! रटते, यह प्राण तन से निकलें…
—-> स्रोत:- जब प्राण से तन से निकलें, संगीत सरोवर.

वह देश के लिये अपना तन-मन-धन न्यौछावर कर चुके थे, उन्हे मृत्यु का भी भय नहीं था. वह किसी भी प्रकार स्वराज्य की प्राप्ति चाहते थे.

क्या हुआ गर मिट गये अपने वतन के वास्ते,
बुलबुलें कुर्बान होती हैं चमन के वास्ते
—-> स्रोत:- वतन के वास्ते, राष्ट्रीय गीत.

निराशा के इस माहौल में जब क्रांतिकारियों को जन-समर्थन नहीं था, लेकिन उन्हे आशा एवं प्रबल विश्वास था कि भारतवासियों के भाग्य से हमारी मातृभूमि पुन: सुखी होगी. निम्नलिखित पंक्तियाँ देखिये.

मादरे हिन्द! गमगीन न हो, अच्छे दिन आने वाले हैं,
आज़ादी का पैगाम तुझे, हम जल्द सुनाने वाले हैं.
—-> स्रोत:- अच्छे दिन आने वाले हैं, मन की लहर.

फाँसी की सजा पाने के बाद मातृभूमि के वियोग में दु:खी बिस्मिल को अफसोस था कि वह जन्मभूमि के लिये कुछ न कर सके. वह कहते हैं कि बस यही संतोष है कि हम स्वयं का बलिदान दे रहे हैं.

हाय! जननी जन्मभूमि! छोड़कर जाते हैं हम,
वश नहीं चलता है, रह रह करके पछताते हैं हम…

कुछ भलाई भी न हम, तुम सब की खातिर कर सके,
हो गये बलिदान बस, संतोष यूँ पाते हैं हम.
—-> स्रोत:- मातृ-भूमि वियोग, मन की लहर.

देश के लिये जीने-मरने के बाद भी, उनके मन में यश की आकांक्षा नहीं थी, न ही वह स्वर्ग के सुख की चाह थी. उनके मन में सिर्फ भारत के लिये चाह थी.

न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना
मुझे वर दे यही माता, रहूँ भारत पे दीवाना…..
—-> स्रोत:- मेरी भावना, मन की लहर.

उपर्युक्त पंक्तियों को ब्लॉग में संकलित करते समय मन में बिस्मिल के प्रति अपार श्रद्धा भाव है अत: इन्हे विश्राम देने का मन नहीं है. लेकिन इसकी भी सीमा है. वह क्रांतिकारियों से कहते थे, आज भले ही हमें जन-समर्थन न हो, किन्तु हमारी कहानियाँ प्रेरणा स्रोत होंगी.

शहीदों की चिताओं पर, जुड़ेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का, यही बाकी निशाँ होगा.
कभी वह दिन भी आयेगा, जब अपना राज देखेंगे,
कि जब ‘बिस्मिल’ जमीं अपनी औ अपना आस्माँ होगा……
—-> स्रोत:- उम्मीदे-सुखन, मन की लहर.

उपर्युक्त पंक्तियों का संकलन डा. मदन लाल वर्मा ‘क्रान्त’ ने सरफरोसी की तम्मना नामक पुस्तक में किया है. वह ग्रेटर नोएडा में रहते हैं, प्रत्येक वर्ष बिस्मिल के जन्मदिवस(11 जून) एवं बलिदान दिवस (19 दिसम्बर) पर कार्यक्रम करते हैं. वह अपने देश के लिये बलिदान होने वाले क्रांतिकारियों की उपेक्षा पर बहुत निराश दिखे. उन्होने बताया कि बिस्मिल जब ‘शहीदों की चिताओं पर’ वाला गीत गाते थे तो प. चन्द्र शेखर आज़ाद उनसे कहते थे कि

शहीदों की चिताओं पर, पड़ेंगे राख के ढ़ेले,
वतन पर मरने वालों का, नहीं नामों निशाँ होगा…….

क्या सच नहीं? कभी सोचियेगा!

अंत में बिस्मिल की निम्नलिखित पंक्तियों के साथ……..

उठो नींद से, अब सहर हो रही है,
उठो! रात सारी बसर हो रही है……..

3 COMMENTS

  1. पाण्डेय जी
    अब ‘बिस्मिल’ हों या अन्य देश-भक्त उनकी चिताओं पर मेले तो अलग उन्हे याद भी नहीं करते । न आज के नेता और न ही आज की नौजवान पीड़ी क्योंकि इस पीड़ी को उनके वारे में बताया ही नहीं गया ।
    मेँ आप जैसे लोगों को धन्यबाद देता हूँ जो कम-से कम उन्हे याद तो कर लेते हैं ।

  2. ये राष्ट्रभक्त कब थे ???
    जिस समय पूरा देश पाकिस्तानियों द्वारा भारत के सैनिक का सर काटे जाने तथा दिल्ली की दुखद घटनाओं से दुखी था उसी समय वाइब्रेंट गुजरात के अहमदाबाद में आयोजित ‘बायर सेलर मीट’ में 9 और 10 जनवरी 2013 को पाकिस्तानी शिष्टमंडल ने भी शिरकत की थी ( देखिए राजस्थान पत्रिका -13-1-13,पेज नम्बर -01)
    ये लड़ाइयाँ भारत के सामन्य जन और लुटेरी कम्पनी रिलायंस के बीच हैं ! केजरीवाल सामान्य जन को रिलायंस के चंगुल से बचाने के लिए उसपर जाँच कराना चाहते हैं पर लूट का माल डकारने वाले बीजेपी-कांग्रेस के लोग केजरीवाल का विरोध करके रिलायंस की लूट को जारी रखना चाहते हैं — आप निर्णय करें इस नेकी-बदी के जंग में आप कहाँ खड़े हैं –पर ध्यान रहे इतिहास ने एक मौका आपको दिया है ——
    बच्चों के मन में देश के प्रति जहर भरवाने वाली रिलायंस देश को लूटकर हमारे जननायकों को भ्रष्ट बना रही है ऐसी खतरनाक कम्पनी का बॉयकॉट करना चाहिए
    भारत में लोकतंत्र नहीं कंपनी तन्त्र है बहुत से सांसद, मंत्री, प्रशासनिक अधिकारी कंपनियों के दलाल हैं उनकी भी नौकरियां करते हैं उनके अनुसार नीतियाँ बनाते हैं, वे जनहित में नहीं होती हैं —————-
    अम्बानी साहब भाग्यशाली हैं कि उन्हें इतने वफादार मिल गए हैं !
    ये वफादार रिलायंस को बचाने के लिए अपने राजनीतिक कैरियर का भी अंत करते जा रहे हैं ??? इन वफादारियों का मुकाबला संसार का कोई भी वफादार प्राणी नहीं कर सकता है !!
    अम्बानी के ४ जी घोटाला जो शीला दीक्षित के समय हुआ था पर जाँच की बात ०७-६-१५ को ही केजरीवाल साहब ने की थी और आज — ???
    कर लो दुनिया मुट्ठी में ———

    ये बीजेपी वाले धार्मिक थे ही कब ??? धर्म-जाति-भाषा के नाम पर और कितना —– 1८ चैनल्स को खरीदकर रिलायंस ने पत्रकारिता की अंतिम क्रिया कर दी है , इसलिए कोई रिलायंस-गुजरात की सच्चाई नहीं दिखा रहा है . कॉरपोरेट जगत रिलायंस में तो रिलायंस स्कूल के प्रिंसिपल पाकिस्तानी बॉर्डर जाम्नगर ( गुजरात ) में बच्चों के मन में जहर भरते हैं वो भी हिंदी दिवस ( 14-9-10 ) के दिन माइक पर प्रात:कालीन सभा में :- ” हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं है आपके शिक्षक-शिक्षिकाएँ गलत पढ़ाते हैं ”
    ” धर्म एक अफीम है जिसे खिलाकर जनता को मूर्ख बनाया जा सकता है ” कार्ल मार्क्स का यह कथन आज सार्थक होता दिख रहा है !
    चाहे द्वारका धाम के शंकराचार्य हों – चाहे पोरबंदर के रमेश भाई ओझा – चाहे साबरकांठा के आचार्य ज्ञानेश्वर सब किसी न किसी घराने के समर्थक बन गए हैं !!
    सोमनाथ मंदिर का इतिहास जानते हुए भी तिरुपति-साईंमंदिर आदि में जमा धन गरीबों की भलाई में नहीं लग रहा है ?
    केवल आम आदमी पार्टी ही नहीं कम्यूनिस्टों को भी साम-दाम-दण्ड-भेद आदि नीतियों से अलग कर दिया गया है जो लोकतंत्र के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है —–
    गुजरात में तो गरीब मरने के लिए विवश हैं धर्म-भाषा- जाति के नाम पर परेशान किए जा रहे हैं – हिंदी शिक्षक-शिक्षिकाओं तथा उनके बच्चों तक के साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है — लिखित शिकायतें महामहिम राष्ट्रपति-राज्यपाल प्रधानमंत्री सीबीएसई आदि के इंक्वायरी आदेश आने पर भी गुजरात सरकार कुछ नहीं कर रही है ?

  3. हमने छद्म अहिंसा,से कायरता को दबाया। कामचोरी को असहयोग आंदोलन से दबाया , वीरता ,बलिदान ,त्याग ,को भुला दिया. जिन युवकों युवतियों ने बलिदान दिए ,अपनी और अपने परिवार की चिंता नहीं की उन्हें हमने भुला दिया। माता पिता के सामने सग्गे भाईओं को फांसी दी गयी. कई पिताओं ने अपने पुत्रों को कन्धा दिया ,किन्तु हम शांति,धर्मनिरपेक्षता ,अहिंसा के ढोल ही पीटते रहे और इन त्यागी,बलिदानी ,और वीर योद्धाओं को भुला बैठे. आज मीडिया भी बिहार के चुनाव ,लालू नीतीश गठजोड़ ,जितेंद्र की फर्जी डिग्री , के कसीदे ही पढ़ते रहेंगे. किन्तु धन्यवाद है ”प्रवक्ता”को और बिस्मिल की शहादत का स्मरण करने वाले लेख को. ”बिस्मिल”जी को नमन

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