पिछले काफी समय से भारत में नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में महिला जाग्रति को लेकर क्रान्तिकारी कदम उठाये गये हैं जिनके कई मामलो में बहुत अच्छे परिणाम भी देखने को मिले हैं, और देखा जाये तो आज महिलाये पुरुषों से बराबर नहीं बल्कि कहीं आगे ही है, हालाँकि इसमें समाज की हर महिला को शामिल नहीं किया जा सकता पर फिर भी पहले की तुलना में अब काफी अंतर है..हाँ वो अलग बात है कि भारत में महिलाएं हमेशा से ही समाज में अहम् भूमिका निभाती रही है, जो आज की नारी लड़ झगड़ कर हासिल कर रही है वो अधिकार प्राचीन काल में स्वतः ही प्राप्त थे, किन्तु मुगलों के आक्रमण के बाद और भारत पर अंग्रेजी शासन के समय महिलाओं की स्थिति बदतर होती गयी, पर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इस दिशा में काफी प्रयास हुए और महिलाओं की स्थिति में व्यापक सुधार आया भी। पर आज मैं उस पर बात नहीं करने जा रही। जो बात अबतक मैंने कही उसका मतलब सिर्फ यही था कि स्वतंत्र भारत में महिलाओं के बारे में तो व्यापक विचार–विमर्श हुआ, वो पढ़ें लिखें आत्मनिर्भर बने, संस्कारी बने, आधुनिक चीजों को जाने, पर इस पूरी कवायद में हम लडकों के बारे में, विचार करना ही भूल गये..कहीं ना कहीं ये बात लोगो के मन में घर कर बैठी है कि आखिर लडकों की चिंता करने की जररूरत ही क्या हैं!
मुझे लगता है कि आज के ज़माने में लडकों के बारे में व्यापक विचार होना जरुरी है, अगर लडकों की शिक्षा ऐसी ही अधूरी रही (किताबी ज्ञान तक) तो जिस तरह से समाज में अपराध बढ़ रहे हैं, वो बढ़ते ही जायेंगे! एक बेहतर समाज बनाने में लडकों की, पुरुषों की भूमिका अहम् होती है, हम ये ही मानकर क्यों संतुष्ट हो जाते हैं कि लड़का अच्छी नौकरी कर रहा है, अच्छा काम रहा है। हम उनके बारे में बाकी बातों परउतनी गंभीरता से क्यों नहीं सोचते? जिस तरह से आजकल परिवार में बड़ों का आदर करना लगभग ख़तम हो रहा है, पैसे के लिए बेटा पिता तक से लड़ने में संकोच नहीं महसूस करता, क्या इसे शिक्षा की कमी नहीं माना जायेगा? लड़कियों के साथ होने वाले अपराध, छेड़छाड़, बलात्कार, धोखे से शादी करना। ये सब क्या हैं। कहीं ना कहीं लडकों की शिक्षा में कमी तो है ही। जो वो जानना ही नहीं चाहते ही गलत क्या हैं। अधिकारों के नाम पर मची क्रांतियों के करण आज ये हाल है कि कोई भी किसी का अधिकार मारना, अपना अधिकार समझता हैं! लडकों को अक्सर यही कहकर माँ गलतियाँ करने पर नहीं रोकती कि लड़की ही तो है। एक प्रसिद्ध लेखक ने लिखा था कि लडकों की प्रवृत्ति बैल की तरह होती हैं, अगर सही समय पर जिम्मेवारियों का हल रख दिया जाये, कर्तव्यों से बांध दिया जाये तो वो खेती में काम आते हैं और वरना वो ही बैल गलियों में घूमते हैं, लोगों को मारते हैं, चोट पहुचाते हैं!
आज भी अपराध के ज्यादातर गंभीर मामलो में पुरुष ही क्यों जिम्मेवार होते हैं और गंभीर अपराध ना सही, घर परिवार के ज्यादातर लडाई झगड़ों में अहम् भूमिका निभाने वाले भी ये ही होते हैं! सड़क चलते कहीं लड़ते दिखेंगे, तो कहीं थूकते हुए, कहीं गन्दी गालियां देकर बात करते हुए, तो कहीं बेशर्मी से लड़कियों को छेड़ते हुए। लड़कियों को छेड़ना तो जैसे अधिकार ही हैं इनका। आखिर क्यों होते हैं लड़के ऐसे..और क्यों ऐसे लडकों को शिक्षित मन जाये! आजकल तो पढ़े लिखे, अच्छे परिवार के लड़के शामिल होते हैं, कभी कार चुराना, कभी शराब पीकर गाड़ी चलाना। कहीं ना कहीं लडकों का नैतिक पतन हुआ है..और अगर ऐसा ही रहा तो हालत और बुरे होंगे..क्योंकि लड़कियों के अधिकारों के लिए लड़ने वालों ने तो जैसे लडकों की नक़ल करना है। अगर वो शराब पियेंगे तो हम क्यों नहीं। इस तरह की सोच समाज को कहाँ ले जाएगी!
कभी कभी सोचती हूँ कि आज की जो पीढ़ी है ये कैसे दादा-दादी बनेंगे, क्या सिखायेंगे ये अपने से छोटों को। क्या है सिखाने के लिए! बात-बात पे गालियां, रिश्तों को तार-तार करने वाले क्या दे पाएंगे ये किसी को! एक समय था कि कम उमर में शादी कर दी जाती थी, पर उसे हटाया गया, कानून बनाया गया और बल विवाह को रोका गया। आज बाल विवाह नही होते, पर क्या सच में सभी माँ बाप अपने बच्चो को रोक पाते हैं, सातवीं-आठवीं क्लास में पढने वाली लडकियां गर्भवती हो जाती है, स्कूल जाने वाले बच्चे अपनी सहपाठी का विडियो बना के सबको दिखाते हैं, क्या फर्क पड़ा कानून बनाने से, सिर्फ शादी ही तो नहीं करते ना। बाकि तो सब कर डालते हैं! क्यों नही रोक पाते माँ बाप। जब आजकल के माँ बाप नही रोक पते तो आने वाले समय में तो जरूर रोक पाएंगे..आने वाले समय में तो यही लोग बनेगे माँ-बाप..दादा, दादी। अपने इन्ही संस्कारों के साथ। हाथ में बड़ी बड़ी डिग्रियां, बड़ी बड़ी नौकरियां, पर मनुष्यता जैसी कोई बात नहीं! पर बुराई सब करते है कि जमाना बहुत बुरा हैं, पर खुद को सुधारना कोई नहीं चाहता..कोई नहीं सोचना चाहता कि क्या करते हैं उनके बच्चे, हम उनकी निजी जिन्दगी में दखल नहीं दे सकते। ऐसा कहकर पल्ला झड़ने वाले माँ -बाप को सचना चाहिए कि जब उनका एक बच्च पैदा होता है, तो वो उनका ही वंश नही बढाता, समाज का भी हिस्सा होता हैं वो। समाज के लिए भी जिम्मेवार होना चाहिए। और जो माँ बाप ये संस्कार नहीं दे पाते एक दिन उनका बच्चा खुद उनके साथ भी दुर्व्यवहार करता हैं। और क्यों ना करे। आपने सिखाया ही कहाँ उन्हें सही बर्ताव करना।
समय है कि अब लडकों के आचार व्यवहार पर विचार किया जाये, ताकि उनमें पनपने वाली अपराधी प्रवृत्ति कम हो सके! माँ बाप जैसे लड़की को पढाई के साथ घर का काम सिखाते हैं वैसे ही लडको को संस्कार भी दे, ताकि वो लड़कियों के प्रति, अपने से बड़ों के प्रति सम्मान का भाव रखना सीखे! परिवार के प्रति, समाज के प्रति अपनी जिम्मेवारी समझे! और ये समाज सच में सबके लिए रहने लायक बना रहे! लड़कियों को ये डर ना रहे कि रात हो गयी है, अकेले नहीं जाना चहिये, या सामने से आते हुए लडकों के समूह को देखकर सड़क पर अकेली जाती लड़की ना डरे! ऐसा नहीं है कि हर लड़का ऐसा होता है, पर ये सच है कि एक बड़ी संख्या में लड़के या पुरुष ऐसे होते हैं..जिस कारण आज भी लड़कियां घर से निकलते समय या घर में अकेले रहने पर भी डरती हैं! अतः जरूरी है कि लडकों में नैतिक जिम्मेवारी जगाई जाये! वरना कोई कानून कुछ नहीं कर सकता