अब मोदी विरोधियों के अहंकार का जश्न

 

देश की राजनीति में नई दिल्ली विधानसभा चुनावों में भाजपा व कांग्रेस को मिली पराजय के बाद बने माहौल से अब दोनों ही दल निजात पाने की कोशिशों में लग गये हैं। १६ मई २०१४ के बाद से लेकर अब तक जितने भी चुनाव संपन्न हुए लगभग सभी चुनाव मोदी लहर से प्रेरित थे। हरियाणा ,झारखंड और महाराष्ट्र तथा जम्मू- कश्मीर विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की पराजय होती रही लेकिन दिल्ली में तो कांग्रेस पार्टी शून्य तक पहुंच गयी और इस प्रकार दिल्ली संभवतः देश का ऐसा पहला राज्य बन गया है जोकि कांग्रेस मुक्त हो गया है। दिल्ली विधानसभा में कांग्रेस शून्य और लोकसभा मेंंभाजपा के सात संासद। अब राज्यसभा में भी कांग्रेस को कोई सीट नहीं मिलेगी। उधर दिल्ली के तत्काल बाद प. बंगाल में दो विधानसभा व एक लोकसभा का उपचुनाव हुआ जहां तृणमूल कांग्रेस जीती और भाजपा दूसरे नंबर पर रही । बंगाल के राजनैतिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि उपचुनावों में भाजपा को दूसरा स्थान प्राप्त हुआ है और वोटों का प्रतिषत भी बढ़ा है। वही असम में नगर निगम व निकाय चुनावों में भी भाजपा को जबर्दस्त विजय मिली जिसका उल्लेख इलेक्ट्रानिक व सोशल मीडिया में उतनी तेजी से नहीं हो रहा है।

देश के सभी मोदी व भाजपा विरोधी राजनैतिक दल व शक्तियां उनके विजय रथ को रोकने के लिए कमर कस रहे थे लेकिन हर जगह निराशा ही हाथ लग रही थी। लेकिन दिल्ली में केजरीवाल की जीत से मोदी विरोधी अभी तक जश्न के अहंकार में डूबे हैं। मोदी विरोधी सभी दल व ताकतें इस कदर इतरा रही हैं और बयानबाजी कर रही हैं कि मानो उन्होंने मोदी को लोकसभा चुनावों में ही पराजित कर दिया है। केजरीवाल के मुख्यमंत्री बन जाने से उत्साहित समाजसेवी अन्ना हजारे अपने तथाकथित सहयोगियों के साथ मोदी सरकार को परेशान करने के लिए भूमि अधिग्रहण कानून के खिलाफ धरनेबाजी की नौटंकी की शुरूआत करने जा रहे हैं। आज मोदी विरोधी लालू , नीतीश कुमार , उ प्र में मुख्यमंत्री अखिलेष यादव व सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ,बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पूरी ताकत के साथ बेलगाम होकर मोदी व उनकी सरकार को पूरी तरह से बेनकाब कर रही हैं व बयानबाजी कर रही है। यह लोग भी अहंकार के जश्न में डूब गये हैं। देश के तथाकथित परम्परागत राजनैतिक विष्लेषक भी इन राजनीतिज्ञों का कुछ अधिक ही महिमामंडन भी कर रहे हैं। आज साल मीडिया में अभी तक केजरी की जीत का जश्न मनाया जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पर व्यंग्य बनाये जा रहे हैं। मोदी सरकार को आये आठ माह बीत चुके हैं तथा आम आदमी पार्टी की सरकार को बने अभी कुछ दिन ही बीते हैं। देश के तथाकथित टी वी चैनल मोदी सरकार की हर घंटे रिपोर्टिंग कर रहे हैं लेकिन दिल्ली में केजरीवाल की सरकार व उनके मंत्रियों के कामकाज का फीडबैक लेने में भी पक्षपात हो रहा है। अब केजरीवाल व उनके मंत्री कह रहे हैं कि मीडिया उन्हें काम नहीं करने दे रहा है। यह मोदी विरोधियों की दोमुंही नीति है।

मोदी विरोधियों को यह बात भलीभांति समझ लेनी चाहिए कि दिल्ली के विधानसभा चुनावों में वोटों की दृष्टि से भाजपा के उम्मीदवार लगभग सभी सीटों पर दूसरे नंबर पर रहे हैं। जबकि कांग्रेस के लगभग सभी प्रमुख उम्मीदवारों की जमानतें तक जब्त हो गयी हैं। भाजपा के लिए चुनाव परिणाम यदि गम्भीर झटका भी है तो यह हार वरदान भी साबित हो सकती है। इस पराजय के बाद जनता में यह साफ संदेश जा रहा है कि भाजपा को हराने के लिए अब देशविरोधी शक्तियां फिर से अपने आप को एकजुट हो रही हैं। जिस प्रकार से दिल्ली में भाजपा को हराने के लिए सभी दल एकजुट हो गये वहीं अभिनव प्रयोग बिहार में भी किया जा सकता है। बिहार में विधानसभा में पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए किस प्रकार से विधानसभा अध्यक्ष ने खेल खेला यह पूरे देश व जनता ने देख लिया है।

अब इस बात की संभावना प्रबल होती जा रही है कि बिहार में भी भाजपा गठबंधन को पराजित करने के लिए सभी तथाकथित शक्तियां एक हो जायेंगी। मुसिलम मतदाताओं के लिए नीतिश कुमार को एकमुश्त मतदान करने के लिए फतवा जारी हो जायेगा। विदेशी ताकतें भी मोदी सरकार की रफतार पर ब्रेक लगाने के लिए बिहार में पूरी ताकत झोकेंगी। वैसे भी अब भाजपा के लिए आगे का सफर एक कठिन डगर बन चुका है। इसलिए देश की राष्ट्रवादी ताकतों व संगठनों को अभी से पूरी तरह से सतर्क हो जाना चाहिए कि जिन मोदी विरोधी ताकतों को अहंकार का जश्न मनाने का मौका मिला है वह यहीं पर रूक जाये।

मृत्युंजय दीक्षित

2 COMMENTS

  1. दीक्षित जी,आप जब यह लिखते हैं कि भाजपा करीब करीब सब जगहों पर द्वितीय स्थान पर रही है,तब आप इस बात पर शायद ध्यान देना भूल गए कि प्रथम और द्वितीय के बीच वास्तविक अंतर कितना है?यह उस पार्टी के लिए कोई शुभ संकेत नहीं है,जिसने केवल नौ महीने पहले सभी लोक सभा सीटें जीत ली थी.नमो और उनकी पार्टी को अपनी अगली चुनाव रण नीति इसी को ध्यान में रख कर बनानी होगी.

  2. असल में न यह भाजपा की हार है और न आप की जीत है. भाजपा आप की फिरकनी में उलझ गयी. जब आप नेता ने सतीश उपाध्याय पर किसी बिजली कंपनी से सम्बन्ध बताया तो उनके मुख्यमंत्री पद की दावेदारी ही खत्म कर दी गयी. एक के बाद स्थाई नेताओं की उपेक्षा महंगी पड़ी. जो कार्यकर्त्ता बरसों से दल के लिए कार्य कर रहे हैं उनकी उपेक्षा कहाँ तक ठीक है?कांग्रेस भी यही करती है। कांग्रेस में ऐसे कई सेवा निष्ट लोगों की खेप की खेप समाप्त हो गयी. समाजवादी दल में भी यही हो रहा है. परिवार में ही सब पद समाप्त।ऐसे दल कहाँ तक रहेंगे. हालांकि भाजपा में परिवारवाद लगभग नहीं है फिर भी हाई कमान सब कुछ नहीं होना चाहिए. दूसरे मीडिया को भाजपा ने अधिक तवज्जो नहीं दी. इसलिए आप छया रहा. वैसे ”आप”लम्बी दौड़ का दल नहीं है.

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